पिछले दिनों राष्ट्रीय नदी गंगा विकास प्राधिकरण (एनजीआरबीए) की पाँचवी बैठक हुई। जिस बैठक में गंगा पर लागू किए जाने वाले चरणों पर बात होनी चाहिए, उस बैठक में प्रधानमन्त्री ने मिशन मोड का नारा दिया। वहीं बैठक में शामिल मुख्यमन्त्रियों ने निराशाजनक बात की। कुल मिलाकर गंगा को लेकर कोई कार्य योजना सामने नहीं आ सकी।
एक बात साफ है आने वाले दिनों में सरकार उच्चतम न्यायलय से कहने वाली है कि उत्तराखण्ड में बन्द पड़े बाँधों पर फिर काम शुरू करने की अनुमति दी जाए। इसका इशारा उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्री हरीश रावत ने राष्ट्रीय नदी गंगा विकास प्राधिकरण (एनजीआरबीए) की बैठक के बाद कर दिया। उनकी बात का खण्डन ना तो गंगा पुनर्जीवन मन्त्री उमा भारती ने किया ना ही प्रधानमन्त्री ने। हाँ प्रधानमन्त्री ने नारेनुमा अन्दाज में 6 अप्रैल को पर्यावरण सम्मेलन में बोलते हुए ये जरूर कहा कि प्रकृति को लेकर हमारी चिन्ताओं पर शक नहीं किया जाना चाहिए।
26 मार्च को राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की बहुप्रतीक्षित बैठक के बाद प्रधानमन्त्री मोदी ने घोषणा करते हुए कहा कि गंगा सफाई का काम अब मिशन मोड में होगा। जिस बैठक के बाद गंगा पर लागू किए जाने वाले चरणों पर बात होनी चाहिए, प्रधानमन्त्री ने मिशन मोड का नारा दे दिया। जाहिर है उनके पास बताने के लिये ज्यादा कुछ नहीं था।
एनजीआरबीए की पाँचवी बैठक (नई सरकार की दूसरी बैठक) में एक तरह से गंगा मन्त्रालय का प्रधानमन्त्री के सामने प्रजेंटेशन था। उमा भारती बैठक से पहले पत्रकारों से मिलीं लेकिन बैठक में क्या हुआ यह बताने के लिये उपलब्ध नहीं थीं। बैठक में शामिल तीन राज्यों के मुख्यमन्त्रियों ने भी निराशाजनक बातें ही कही।
गंगा का सबसे ज्यादा फायदा उठाने वाले और उससे भी ज्यादा उसे प्रदूषित करने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी ने बैठक में भाग नहीं लिया। कुल मिलाकर गंगा को लेकर कोई कार्य योजना सामने नहीं आ सकी। सरकार ने यह जरूर कहा कि वह जन भागीदारी मॉडल का सहारा लेगी।
लेकिन एक महत्त्वपूर्ण बात जो प्रधानमन्त्री ने कही वह सरकार की भविष्य की योजनाओं की तरफ एक डराने वाला इशारा जरूर कर देती है। नरेन्द्र मोदी ने कहा कि गंगा को निर्मल बनाने का कार्य चुनौती भरा है लेकिन इसमें अपार आर्थिक गतिविधियों के सृजन और पूरे देश में सकारात्मक दृष्टिकोण परिवर्तन की सम्भावनाएँ भी हैं।
अब इस अपार आर्थिक गतिविधियों के सृजन का मतलब समझिए। इसका मतलब है गंगा पर धर्म, आस्था, पर्यावरण और नदी जैविकी से बढ़कर उस पर व्यापारिक दृष्टि डालना। बेशक जिस नदी के किनारे भारत की एक चौथाई आबादी रहती है और उस पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जीवनयापन के लिये निर्भर रहती है, वहाँ आर्थिक दृष्टि से बात होनी ही चाहिए लेकिन यह सबसे पहली बात नहीं हो सकती और यह अविरलता सुनिश्चित किए बिना भी नहीं हो सकती।
बैठक में शामिल होने से पहले उमा भारती ने भी कहा कि वह प्रधानमन्त्री के समक्ष गंगा के सामाजिक आर्थिक महत्त्व को रखेंगी। कुल मिलाकर गंगा पर बाँध बनने को इस बैठक में हरी झण्डी दी गई है लेकिन इस पर बात करने से बचा जा रहा है। उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्री हरीश रावत ने बिना किसी लाग-लपेट के कहा कि सरकार या तो बाँधों के प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाए या फिर उत्तराखण्ड को मुआवजा दे।
अब तक अविरल धारा के लिये प्राण न्यौछावर करने वाली सत्ता ‘मिनिमम इकोलॉजिकल फ्लो’ की बात करने लगी है। लोहारी नागपाला (600 मेगावाट), पाला मनेरी (480 मेगावाट) और भैरोघाटी (381 मेगावाट) को बन्द करने व भैरोघाटी समेत 2944 मेगावाट की 24 जल विद्युत परियोजनाओं को बन्द किए जाने से राज्य को हर साल 3581 करोड़ रुपए की हानि होगी।
लोहारी नागपाला को पूरी तरह बन्द किया जा चुका है लेकिन अब इसे भी जीवित करने की सम्भावनाएँ तलाशी जा रही हैं। यही कारण है कि बन्द की घोषणा होने के बाद भी परियोजना की सुरंग को अब तक नहीं भरा गया है। बन्द की गई ज्यादातर योजनाएँ वे हैं जो इको सेंसिटिव जोन में आ रही हैं।
उच्चतम न्यायालय ने गोमुख से उत्तरकाशी तक के क्षेत्र को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया हुआ है। इस छोटे से क्षेत्र में ही करीब 34 परियोजनाएँ आती हैं। सम्भव है आने वाले समय में सरकार उच्चतम न्यायालय से इस पर भी पुनर्विचार करने की अपील करे। एनजीआरबीए की बैठक में सुझाव आया कि 25 मेगावाट से छोटी योजनाओं को इको सेंसिटिव जोन में अनुमति दी जानी चाहिए।
बैठक में बिहार, झारखण्ड और उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्रियों ने गाद प्रबन्धन और राज्यों की परियोजनाओं को सिंगल विंडो क्लीयरेंस की व्यवस्था का सुझाव दिया। फरक्का बैराज के निर्माण से गंगा की मॉफरेलॉजी में बदलाव और अप स्ट्रीम में गाद जमा होने के कारण भी उत्तर बिहार में बाढ़ की प्रबलता बढ़ी है, इसीलिए राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रभावकारी राष्ट्रीय गाद प्रबन्धन नीति बनाना आवश्यक है। यह नीति दूसरी नदियों पर लागू की जा सकती है। हालांकि इस संवेदनशील मुद्दे पर चर्चा नहीं हो पाई।
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