पटना। गंगा की निर्मलता पर सबका जोर है। गंगा में निर्मलता और अविरलता न हो तो गंगा की रक्षा नहीं की जा सकती है। गंगा नदी सिकुड़ती जा रही है, छिछली हो रही है। गंगा जल के अन्दर जो खासियत थी, वो अब कहाँ है। राज्य के बक्सर में गंगा प्रवेश करती है, प्रवेश के समय जितना पानी लेकर गंगा आती है, उसका चौगुणा पानी बिहार से जाते समय निकलती है। इसकी अविरलता पर चर्चा होनी चाहिए। बिहार के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने 26.61 करोड़ रूपये की लागत से नवनिर्मित भव्य 'अरण्य भवन' के उद्घाटन के अवसर पर कही।उन्होंने कहा कि छठ के अवसर पर गंगा की सफाई के लिए चिन्तित रहते हैं।
पर्व त्योहारों के अवसर पर ज्यादा मूर्तियाँ स्थापित होती हैं और गंगा नदी में ही उनका विसर्जन होता है। गंगा नदी में गन्दगी आ जाती है। प्रवाह सब गन्दगी को बाहर ले जाती है। प्रवाह बनी रहे तो सब गन्दगी प्रवाह में बह जायेगी। फरक्का में बराज बनने से गंगा नदी में सिल्ट जमा होने लगा है। प्रदूषण के कारण गंगा नदी में डाॅल्फिन की संख्या भी घट रही है। डाॅल्फिन को राष्ट्रीय जल जीव घोषित कर दिए जाने की माँग की गई थी, जिसे उस समय किया गया और डाॅल्फिन को राष्ट्रीय जल जीव घोषित कर दिया गया। गंगा नदी के स्वास्थ्य का पता डाॅल्फिन से लगता है।
उन्होंने कहा गंगा नदी छिछली होती जा रही है। ऊपर से सिल्ट जमा हो रहा है। फरक्का बराज के कारण जलग्रहण की क्षमता घट गई है। कम पानी में भी बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। गंगा नदी के बारे में व्यापक एवं सम्पूर्ण नजरिया होनी चाहिए। गंगा नदी के रि-क्लेम जमीन पर वृक्ष लगाने की कोशिश करनी होगी। पेड़ लग जायेंगे तो कटाव भी रूकेगा और अतिक्रमण भी रूकेगा।
उन्होंने कहा कि झारखण्ड बनने के बाद राज्य के अधिकांश वन क्षेत्र झारखण्ड प्रदेश में चले गए। शेष बचे हुए बिहार में वन के बारे में कोई सोच नहीं थी। धारणा बनी हुई थी कि वन की आवश्यकता नहीं है। राज्य के कुछ ही क्षेत्रों में वन दिखता था। वन विभाग का इतना बड़ा नेटवर्क था, मगर उनके पास विकास का काम नहीं था। सोचा गया कि ग्रीन कवर को बढ़ाना है। सड़कों के चौड़ीकरण के लिए वृक्ष काटने पड़ेंगे। वन विभाग को अनुमति देने के अलावा विकास का काम लगभग नहीं के बराबर बच गया था। जो वृक्ष कई दशकों में लगाये गए थे, वे नहीं बचे, मगर उन वृक्षों को बचाने के लिए जो बबूल लगाये गए थे, वह बच गए। मूल वृक्ष गायब हो गए, इसकी रक्षा नहीं हो पाई। छात्रवन रक्षा योजना चलाई गई, इससे सीख लिया। कृषि रोड मैप में हरियाली मिशन को शामिल किया। कृषि रोड मैप में हर तरह की चीजों को शामिल किया गया। राज्य के विभाजन के पश्चात मात्र सात प्रतिशत वन क्षेत्र राज्य में रह गए थे। निर्णय लिया गया कि पाँच वर्षों में कम से कम हरियाली क्षेत्र को पन्द्रह प्रतिशत करेंगे, इसके लिए हरियाली मिशन कायम करेंगे।
उन्होंने कहा कि 'अरण्य भवन' का निर्माण ग्रीन बिल्डिंग के तर्ज पर हुआ है। पर्यावरण एवं वन निदेशालय के संचालन के साथ-साथ दूसरी अन्य गतिविधियाँ यहाँ से संचालित होगी। हरियाली मिशन की गतिविधियों का अनुश्रवण यहाँ से किया जा सकेगा। मुख्यमन्त्री ने कहा कि राज्य में हरियाली के क्षेत्र को बढ़ाए जाने के लिए उन्होंने अपनी पार्टी में तय किया कि पार्टी के जो भी सदस्य होंगे, उन्हें कम से कम एक वृक्ष लगाना होगा। पार्टी के लिए यह काम कठिन था। राजनीतिक कार्यकर्ताओं से पेड़ लगवाना कठिन काम था, फिर भी इस अभियान में दस लाख से अधिक वृक्ष लगाये गए। माहौल बना, इस बात का प्रभाव लोगों पर पड़ा और लोगों में पेड़ लगाने की जिज्ञासा बढ़ी। बड़ी संख्या में लोगों ने बाग-बगीचा लगाये। बाहर के नर्सरियों से भी वृक्ष लाकर राज्य में लगाये गए।
हरियाली मिशन का बेहतर काम हो रहा है। लक्ष्य से आगे बढ़कर काम हो रहा है। सरकार और लोगों के प्रेरणा से पेड़ लग रहे हैं। वर्ष 2017 से पहले राज्य के वन क्षेत्र को पन्द्रह प्रतिशत किये जाने के लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे। हमारे पास जमीन नहीं है, राज्य में मात्र 94 हजार किलोमीटर क्षेत्रफल भूमि है। लगभग ग्यारह करोड़ की हमारी जनसंख्या है। जमीन की उपलब्धता कम है, इसी उपलब्ध जमीन में हर तरह के काम को करना है। वन विभाग को हरियाली मिशन के लिए बधाई देते हुए कहा कि यह प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए। लोगों में जो वृक्ष के प्रति जागृति आई है, उसे जारी रखने की जरूरत है।
मुख्यमन्त्री ने कहा कि राज्य का मौसम बेहद अच्छा है। यहाँ पर जाड़ा, गर्मी, बरसात होती है। लोगों में मेहनत की क्षमता है, उवर्रक जमीन है। मौसम के मिजाज बदलने के कारण वर्षा कम हो रही है या समय पर नहीं होती। प्राकृतिक असन्तुलन पैदा हो रहा है, यह जलवायु परिवर्तन का नतीजा है। इसका मूल कारण पेड़ों की कटाई है। इसके सामानान्तर पेड़ों को लगाने का माहौल बनाने के लिए सराहनीय है। मुख्यमन्त्री ने कहा कि वन एवं पर्यावरण विभाग के कार्यालय एक जगह रहेंगे तो चर्चा करने में सहुलियत होगी। मुख्यमन्त्री ने कहा कि बोधिवृक्ष की रक्षा और देख-रेख वन अनुसंधान इन्स्टीच्यूट देहरादून कर रहा है। एफ.आर.आई. ने बोधिवृक्ष के एक वृक्ष को देहरादून में अपने देख-रेख में लगाने की अनुमति चाही है। उन्होंने कहा कि बोधिवृक्ष की देख-रेख एवं रक्षा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बोधिवृक्ष के दो शिशु पौधे बुद्ध स्मृति पार्क एवं दो वृक्ष मुख्यमन्त्री आवास में है। इनके पत्तों को बोधगया टेंपल मैनेजमेन्ट को भेज दिए जाते हैं।
समारोह की अध्यक्षता वन एवं पर्यावरण मन्त्री श्री पी.केत्. शाही ने किया। उन्होंने अरण्य भवन की चर्चा करते हुये कहा कि 2 अगस्त 2012 में इसका शिलान्यास मुख्यमन्त्री श्री नीतीश कुमार ने किया था। इस भवन का निर्माण एवं परिसर का विकास भवन निर्माण विभाग की देख-रेख में हुआ है। यह भवन पर्यावरण एवं वन के अनुरूप बनाया गया है। इसमें वन विभाग का निदेशालय पूरी तरह से अवस्थित होगा। वन निदेशालय एक जगह हो जायेंगे। बिहार में 13 प्रतिशत वन क्षेत्र हो गए हैं। उतर प्रदेश की तुलना में यहाँ ज्यादा वन क्षेत्र हो गए हैं। प्रदूषण नियन्त्रण के क्षेत्र में काम की जरूरत है। वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुँच गया है। प्रदूषण नियन्त्रण पार्षद को और मजबूत बनाना होगा। पार्षद को सुव्यवस्थित एवं नियन्त्रित करने की आवश्यकता है। बांस के क्षेत्र में यहाँ विकास की असीम सरकार और आमलोगों की सम्भावनायें हैं। बांस के लिए दो टिशु विकास केन्द्र भागलपुर और सुपौल में स्थापित किये गए हैं।
इस अवसर पर मुख्यमन्त्री ने पर्यावरण एवं वन विभाग की एक पुस्तक ‘गाछ गुच्छ’ का लोकार्पण किया। इस पुस्तक में राज्य में पाये जाने वाले प्रमुख वृक्षों के स्पेशिज की जानकारी दी गई है। वन विभाग के अधिकारियों की ओर से मुख्यमन्त्री राहत कोष के लिए 81,900 रूपये का चेक मुख्यमन्त्री को भेंट किया गया। मुख्यमन्त्री को वन प्रमण्डल पदाधिकारी श्री गोपाल सिंह ने वन विभाग की ओर से प्रतीक चिह्न भेंटकर सम्मानित किया। इस अवसर पर निदेशक वन अनुसंधान इन्स्टीच्यूट देहरादून श्री पी.पी. भोजवैद्य ने मुख्यमन्त्री को अपनी संस्था की ओर से अंगवस्त्र एवं प्रतीक चिह्न भेंट किया। स्वागत भाषण प्रधान सचिव पर्यावरण एवं वन श्री विवेक कुमार सिंह ने किया अौर पर्यावरण एवं वन विभाग की उपलब्धियों पर विस्तार से चर्चा की।
मुख्य सचिव श्री अंजनी कुमार सिंह ने भी इस अवसर पर अपने विचारों को रखा।राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के अन्तर्गत गंगा के लिए वानिकी गतिविधियों पर परामर्श बैठक का शुभारम्भ भी मुख्यमन्त्री ने किया। समारोह को निदेशक वन अनुसंधान इन्स्टीच्यूट देहरादून श्री पी.पी. भोजवैद्य ने भी सम्बोधित किया और बिहार में पर्यावरण एवं वन के क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों को प्रशंसनीय कहा। वनों के क्षेत्र का विकास हो रहा है तथा राज्य में वन क्षेत्र बढ़े हैं। धन्यवाद ज्ञापन प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री बशीर अहमद खान ने किया।
इस अवसर पर उपाध्यक्ष आपदा प्रबन्धन प्राधिकार श्री अनिल कुमार सिन्हा, प्रधानसचिव भवन निर्माण सह प्रबन्ध निदेशक आधारभूत संरचना विकास प्राधिकरण श्रीमती अंशुली आर्या,मुख्यमन्त्री के सचिव श्री चंचल कुमार सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति एवं वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
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