गंगा को लेकर उप्र और उत्तराखंड आमने-सामने

गंगा को लेकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार आमने-सामने आ गईं हैं। कुंभ में गंगा का पानी काला होता जा रहा है। इसके विरोध में मंगलवार को कुंभ में साधु-संतों ने प्रदर्शन भी किया। मौनी अमावस्या से पहले अगर गंगा में पानी नहीं छोड़ा गया तो साधु संत इस पानी में स्नान नहीं करेंगे, यह चेतावनी भी उन्होंने दी। उनका यह आरोप भी है कि गंगा में कानपुर में चमड़ा शोधक इकाइयों ने पानी छोड़ना बंद नहीं किया है। जिससे कुंभ में गंगा का प्रदूषित पानी बह रहा है। इस मुद्दे को लेकर हिंदू संगठन गोलबंद हो रहे हैं। खास बात यह है कि एक तरफ जहां साधु-संतों का एक तबका भाजपा के साथ आकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को उभारने में जुटा है।

साधु-संत गंगा के पानी को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर टिहरी से गंगा का पानी नहीं छोड़ा गया, तो शाही स्नान का बहिष्कार किया जाएगा। अब इस राजनीति में उत्तराखंड सरकार भी आ गई है। इससे पहले उत्तर प्रदेश के नगर विकास मंत्री आजम खां ने इलाहाबाद कुंभ में दूषित गंगा जल को लेकर उत्तराखंड सरकार पर इसकी ज़िम्मेदारी डालते हुए टिहरी बांध से पानी न छोड़े जाने को इसकी वजह बताया था। पर मंगलवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने साफ किया कि टिहरी बांध से काफी पानी छोड़ा जा चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि टिहरी बांध से लगातार कुंभ के लिए पानी छोड़ा जा रहा है। इस वजह से हरिद्वार तक गंगा पूरी तरह शुद्ध है, लेकिन हरिद्वार से आगे उत्तर प्रदेश सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है। बहुगुणा ने कहा कि सरकार गंगा को स्वच्छ बनाने में हर संभव प्रयास कर रही है, पर इलाहाबाद तक आते आते गंगा मैली हो जा रही है, यह एक और तथ्य है। इसके लिए उत्तर प्रदेश की सीमा में बहने वाली गंगा में कई उद्योगों का ज़हरीला कचरा भी जिम्मेदार है, तो उत्तराखंड में भी गंगा में जगह-जगह नाले गिराए जा रहे है। जिसे टिहरी में भी देखा जा सकता है। यही वजह है उत्तर प्रदेश के नगर विकास मंत्री आजम खां ने गंगा के प्रदूषण को लेकर उत्तराखंड सरकार को भी जिम्मेदार ठहराया था पर कानपुर में जिस तरह गंगा में चमड़ा शोधक इकाइयों का कचरा फेंका जा रहा है, उसे वे भूल गए।

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