गंगा को बचाने की मुहिम

स्वामी चिदात्मन जी महाराज बिहार के बेगूसराय जिले में स्थित ‘सर्व मंगला आध्यात्म योग विद्यापीठ’ के माध्यम से देश-विदेश में लोगों के बीच आध्यात्म का प्रचार-प्रसार करते हैं। इसके अलावा स्वामी जी गाय, गंगा और भारतीय संस्कृति जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर भी खुद को सक्रिय रखते हैं। गत माह स्वामी जी ने नई दिल्ली के बिड़ला मंदिर में ‘गाय, गंगा और भारतीय संस्कृति’ विषय पर एक गोष्ठी का आयोजन किया। इस अवसर पर भारतीय पक्ष के प्रतिनिधि ने उनसे बातचीत की जिसका संक्षिप्त रूप प्रस्तुत है।

आपका जन्म कब और कहां हुआ?
मेरी जन्मतिथि 17 जुलाई 1956 है। बिहार राज्य के बेगूसराय जिला में एक गांव पड़ता है जिसे रुद्रपुर कहते हैं, वहीं मेरा जन्म हुआ। मां-बाप ने मेरा नाम विशंभर झा रखा। ब्राह्मण होने के कारण मेरे पिता अध्यापन, यज्ञ, वैदिक कर्मकाण्ड के अलावा खेती-बाड़ी भी करते थे।

आध्यात्म में आपकी रूचि कब उत्पन्न हुई?
जब मेरी आयु दो वर्ष की थी तभी से मैंने पूजा-पाठ शुरू कर दिया। मेरे पिता काली के भक्त थे। काली मंदिर में जब वे काली की अराधना करते तो मैं उनके साथ मां काली की स्तुति कर लिया करता। 5 साल की आयु में मैं पढ़ने के लिए स्कूल जाने लगा। स्कूल में जब लंच होता तो मैं अन्य बच्चों के साथ खेलने की बजाए एक पीपल के पेड़ के नीचे चला जाता और ईश्वरीय चिंतन तथा ध्यान करता रहता।10 वर्ष का मैं रहा होऊंगा कि मेरे पिता की मृत्यु हो गई। लेकिन मुझे इतना दुख नहीं हुआ जितना मेरी माता और भाई-बहनों को हुआ। चूंकि मैं ज्येष्ठ पुत्र था इस कारण पिता की चिता को अग्नि मैंने ही दिखाई। जैसे ही मैंने अग्नि दिखाई वैसे ही मेरे अन्तःकरण में गहरी चुप्पी सी छा गई। मैं अपने घर आया तो देखा कि मां रो रही है। उसके आंसू देख मेरे मुंह से ये वचन निकल पड़े, ”क्यों व्यर्थ रो रही हो। ये तो संसार का नियम है।”

पिता की मृत्यु के बाद भी मेरी पढ़ाई जारी रही। लेकिन पढ़ाई में मैं बहुत ज्यादा रुचि नहीं रखता था। अक्सर कक्षा के बीच में से उठ जाता और एकांत स्थान पर जाकर ध्यान करने लग जाता। कई बार तो मैं स्कूल न जाकर उस जगह चला जाता जहां कोई धार्मिक आयोजन सम्पन्न हो रहा होता। उन दिनों पाठ्यपुस्तकों को पढ़ने की बजाए मैं गीता और रामायण पढ़ने में अधिक समय व्यतीत करता था। कभी मन करता तो रेलवे स्टेशन पहुंच जाता और बिना टिकट लिये जो ट्रेन वहां खड़ी होती उसे पकड़ कहीं भी चला जाता। जब टिकट चेकर की डांट-फटकार सुनने को मिलती या कहीं कुछ खाने को नहीं मिलता तो घर लौट आता।

आपकी संस्था ‘सर्व मंगला आध्यात्म योग विद्यापीठ’ की स्थापना कैसे हुई?
गुरु की आज्ञा का सम्मान करने के लिए मैं बेगूसराय में लोगों के बीच धर्म का प्रचार करने लगा। समय बीतने पर हमसे जुड़े लोगों ने कहा कि व्यवस्थित तरीके से आध्यात्म को जन-जन तक फैलाने के लिए एक आश्रम बनाया जाना चाहिए। तब हमने बेगूसराय के ही सिमरिया घाट पर सर्व मंगला आध्यात्म योग विद्यापीठ की स्थापना की।

आध्यात्म के अलावा क्या किन्हीं प्रकार के सामाजिक कार्यों में भी विद्यापीठ रूचि दिखाता है?
विद्यापीठ सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता है। भूकंप, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं के शिकार लोगों की हम मदद करते हैं। इसके अलावा विभिन्न बीमारियों की रोकथाम के लिए मेडिकल चेकअप कैम्प आदि लगाते हैं।

गौरक्षा के संबंध में आपकी क्या गतिविधियां रही हैं?
गौरक्षा के प्रति हम पूरी तरह सजग हैं। गोहत्या का विरोध हम विभिन्न मंचों से करते हैं। हमारी सरकार से मांग है कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाए। इसके अलावा वेद के प्रति हमारी असीम आस्था है। हम चाहते हैं कि वेद को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित किया जाए। हमने अपने आश्रम में वेद मंदिर भी बनवा रखा है।

गंगा को स्वच्छ बनाने की प्रेरणा आपको कैसे प्राप्त हुई?
हर वर्ष इलाहाबाद में हम साधना शिविर लगाने जाते हैं। इसी प्रयोजन से हम कुछ वर्ष पहले इलाहाबाद आये हुए थे। सायं काल भ्रमण करते हुए गंगा के किनारे पहुंच गये। थोड़ी प्यास लगी तो गंगा का पानी अंजुरी में लेकर पीया। जब पानी पीया तो मन भटकने लगा। हमने सोचा आज मन विचलित क्यों हो रहा है। ऐसा होता तो नहीं है। अगली सुबह जब कुल्ला करने के लिए गंगा का पानी प्रयोग किया तो फिर मन भटकने लगा। तब हमें महसूस हुआ कि पानी के प्रभाव से मन भटक रहा है। कभी गंगा में स्नान से चित्त को शांति मिलती थी फिर आज गंगाजल पीने से चित्त विचलित क्यों हो रहा है। चिंतन करने पर इस प्रश्न का उत्तर मिला कि गंगा प्रदूषित हो चुकी है। पानी में विकृति पैदा हो चुकी है। तभी हमारे मन में प्रेरणा हुई कि गंगा की गरिमा को बचाने के लिए कुछ करना चाहिए और हमने पहल शुरू की।

गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए हमने ‘अखिल भारतीय सर्व मंगला गंगा प्रवाह प्रदूषण मंच’ का गठन किया। इस मंच में हमने कई प्रबुद्ध लोगों को जोड़ते हुए गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की मुहिम चलाई। गंगा को स्वच्छ बनाने के उद्देश्य से हमने न्यायालय में इस संबंध में केस दायर किया। हम आमरण अनशन पर भी बैठे। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने गंगा के संबंध में आपकी चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया जाएगा, ये कहकर हमारा अनशन तुड़वाया। इससे पहले हम गंगा के प्रश्न को लेकर तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से भी मिल चुके थे। बाद में हमने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी भेंट कर गंगा की स्थिति से उन्हें अवगत कराया। हमारी तरह अन्य कई गंगा के भक्त गंगा को बचाने के लिए अभियान चला रहे थे। उनके साथ मिलकर जब सरकार पर दबाव डाला गया तो सरकार को गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करना पड़ा। केवल राष्ट्रीय नदी घोषित कर देने मात्र से गंगा के ऊपर जो खतरे मंडरा रहे थे वे हटने वाले नहीं थे। इसलिए हमने गंगा से जुड़े अहम प्रश्नों को जन-जन के बीच में सम्मेलनों के जरिये उठाना शुरू किया जो निरंतर जारी है।
 

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