गंगा को बचाने के लिए कारगर कानून बनाने की मांग

देश भर में गोष्ठी परिचर्चा के बाद जो कार्य योजना गंगा को बचाने के लिए तैयार की गई है उसका मूल भाव है कि गंगा का अंधाधुंध दोहन बंद हो, पानी व बिजली के वैकल्पित स्रोतों पर काम हो। उपचारित किया हुआ सीवर भी गंगा या उसकी सहायक नदियों में न डाला जाए। वैज्ञानिक और पारंपरिक ज्ञान को साथ लेकर काम किया जाए। टिकाऊ विकास पर जोर हो। अलग इलाके में गंगा की अलग समस्या है इसी हिसाब से कानून बने। 50 साल पुरानी गंगा के तरह गंगा को करने का लक्ष्य लेकर काम किया जाए। नई दिल्ली, 23 फरवरी। गंगा को अविरल बहने देने और निर्मल बनाने के लिए आईआईटी कंसोर्टियम की रपट को सरकार तुरंत लागू करे। सभी राजनीतिक पार्टियां गंगा के मुद्दे को आगामी लोकसभा चुनावों के अपने एजेंडे में शामिल करें। ये मांगे गंगा पर हुए राष्ट्रीय कार्यकर्ता सम्मेलन में की गई।

इस सम्मेलन का आयोजन गंगा महासभा और गंगा मिशन की ओर से किया गया इसमें प्रो. जीडी अग्रवाल, न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय, वैज्ञानिक विनोद तारे और स्वामी चिदानंद मुनि और मौलाना फजलूर्रहमान सहित कई वक्ताओं ने विचार रखे।

गंगा सिंचित सभी राज्यों की सरकारों से गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने का ठोस कानू बनाने की भी मांग की गई। केंद्र सरकार से मांग की गई कि गंगा को एक मानवीय सत्ता के तौर पर मान कर इसके खिलाफ बरती जा रही क्रूरता को रोकने का ठोस कानून बनाया जाए, जिसमें नदी का पाट परिभाषित हो।

प्रदूषित पानी या सीवर को किसी भी तरह से गंगा में न डाला जाए। बताया गया कि न्यूजीलैंड में एक नदी को मानवीय सत्ता के तौर पर मान्यता देकर उसके हितों वाला कानून बनाया गया है।

न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय ने कहा कि गंगा के लिए जो राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे पर हमारे साथ नहीं आएंगी तो हमें उनके खिलाफ वोट डालने की मुहिम चलाना चाहिए। गंगा नहीं तो सरकार नहीं का नारा दें। साथ ही आगाह किया गया कि समय रहते टिहरी डैम को खाली कराएं नहीं तो केदारनाथ से भी भयावह त्रासदी झेलनी होगी।

प्रो. जीडी अग्रवाल ने गंगा को बचाने के लिए जान की बाजी लगा दी थी पर निरंकुश सरकार के माथे पर शिकन तक नहीं पड़ी अपनी ही लोकतांत्रिक सरकार के इस संवेदनहीन रवैए से आहत प्रो. अग्रवाल ने कहा कि एक सांसद तक नजर नहीं आता, जिसमें इतनी भी इच्छाशक्ति हो जो एक निजी विधेयक ही पेश कर दे गंगा को बचाने के लिए। वे अब जनता व आंदोलन की राह से उम्मीद बांधे हैं। हिंदू मुस्लिम एकता के पैरोकार हारुन नक्शबंद ने कहा कि गंगा हम सब की है। इसे नुकसान पहुंचाने वाला मानवता का दुश्मन है।

आईआईटी कंसोर्टियम के अगुआ प्रो. तारे ने बताया कि देश के सभी आईआईटी के विशेषज्ञ और नौ अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ देश भर में गोष्ठी परिचर्चा के बाद जो कार्य योजना गंगा को बचाने के लिए तैयार की गई है उसका मूल भाव है कि गंगा का अंधाधुंध दोहन बंद हो, पानी व बिजली के वैकल्पित स्रोतों पर काम हो। उपचारित किया हुआ सीवर भी गंगा या उसकी सहायक नदियों में न डाला जाए।

वैज्ञानिक और पारंपरिक ज्ञान को साथ लेकर काम किया जाए। टिकाऊ विकास पर जोर हो। अलग इलाके में गंगा की अलग समस्या है इसी हिसाब से कानून बने। 50 साल पुरानी गंगा के तरह गंगा को करने का लक्ष्य लेकर काम किया जाए। 25 करोड़ जनता की जीविका बिना कछ खर्च किए गंगा चलाती है इस संपदा को बिजली भर के लिए न गवाएं।

चिदानंद मुनि ने गंगा किनारे औषधि वाले पौधे की व जैविक खेती की वकालत की और कहा कि सभी धार्मिक मंदिर मठ मंदिर के साथ शौचालय बनाने और शहर को साफ रखने का बीड़ा उठाएं। इसी मुद्दे पर जल्दी ही चारों धाम यात्रा की जाने वाली है। सम्मेलन में प्रस्ताव आया कि सभी धर्मगुरू एक किलोमीटर गंगा की सफाई का बीड़ा उठाएं। हंसदेवाचार्य ने सभी राज्य सरकारों से कानून बनाने की मांग की कि कोई सीवर गंगा में नहीं जाएगा।

ताजमहल को बचाने के लिए कारखाने हटा सकते हैं तो गंगा को बचाने के लिए सीवर क्यों नहीं? प्रहलाद राय गोयनका ने मीडिया का आह्वान किया कि वे गंगा के मुद्दे को प्रमुखता से उठाएं। स्वामी जितेंद्रानंद ने पाट तय करने व गंगा सेना गठित करने की मांग की। पारितोष त्यागी ने हाइड्रो पावर के लिए दूसरे विकल्प तलाशने की वकालत की। गोविंद शर्मा, मौलाना कल्बे सादिक व अन्य वक्ता ने भी विचार रखे।

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