प्रदेश सरकार ‘राम मनोहर लोहिया’ के नाम पर कानपुर में गंगा बैराज के पास ‘लोहिया बोटेनिकल गार्डन’ बनाने की महत्त्वपूर्ण योजना को कानपुर विकास प्राधिकरण ने मूर्तरूप देना प्रारम्भ कर दिया गया है जबकि उच्च न्यायालय के आदेशानुसार गंगा के 500 मीटर के अन्दर किसी भी तरह का कोई निर्माण नहीं किया जा सकता है।
‘नमामि गंगे’ प्रोजेक्ट के केन्द्रीय सलाहकार एवं कानपुर आईआईटी के प्रो. विनोद तारे का मानना है कि प्रदेश सरकारों के सहयोग के बिना गंगा की स्वच्छता को नमामि गंगे प्रोजेक्ट को मूर्तरूप नहीं दिया जा सकता है। भले ही केन्द्र सरकार कितना ही बजट इस प्रोजेक्ट को क्यों न दे दे।
गंगा जिन प्रदेशों से होकर गुजरती है उन प्रदेशों के अगुआकारों को नदी के किनारे होने वाले विकास कार्यों को नदी के मूल स्वाभाव में कोई परिवर्तन न आये दृष्टिगत रखकर ही योजना बनानी होगी लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है यही वजह है कि पर्याप्त बजट एवं केन्द्र के तमाम प्रयासों के बावजूद नमामि गंगे प्रोजेक्ट को जो सफलता मिलनी चाहिए थी अभी तक नहीं मिल सकी है।
यह बात अक्षरसः सही है कि यदि प्रदेश सरकारों ने विकास की योजनाओं को बनाते समय नदियों के मूल स्वाभाव को दृष्टिगत रख योजनाओं को बनाया होता तो नदियों की ये दशा न होती।
मालूम हो कि कानपुर भारत का एक ऐसा औद्योगिक शहर है जो विश्व में प्रदूषित सात शहरों में से एक है जिसने गंगा को सबसे ज्यादा गन्दा किया है। यहाँ गंगा में सीवर से लेकर औद्योगिक कचरे के साथ ही टेनरियों का केमिकलयुक्त पानी प्रवाहित किया गया जो आज भी तमाम प्रयासों के बाद भी जारी है।
इसी क्रम में एक और अहम योजना बोटेनिकल गार्डन गंगा नदी पर बने बैराज के पास बनने जा रहा है। जबकि उच्च न्यायालय के सख्त आदेश हैं कि गंगा नदी के 500 मीटर के दायरे में कोई भी निर्माण न किया जाय। इस योजना को 100 करोड़ में पूरा किया जाना है।
बोटेनिकल गार्डन को मूतरूप देने के लिये सरकार तथा कार्यदायी संस्था कानपुर विकास प्राधिकरण ने तमाम नियमों को ताक पर रख दिया। वन एवं प्रभागीय सामाजिक वानिकी विभाग के प्रादेशिक निदेशक रामकुमार ने 31 अगस्त 2015 को 8065 उन पेड़ों को काटने की अनुमति दे दी जिन पेड़ों को उन्हीं ने नमामि गंगे योजना के तहत सघन वनीकरण की जरुरत बताते हुए 55 लाख की लागत से 8800 पेड़ लगाए थे।
वन विभाग के नियमानुसार जब भी कोई पेड़ जो आदमी की औसत लम्बाई के सीने तक आता हो उस पेड़ को काटने के लिये एक फॉरमेट भरा जाता है तभी उस पेड़ को काटने की अनुमति दी जाती है। लेकिन ऐसा यहाँ करना जरूरी नहीं समझा गया।
आश्चर्य की बात ये है कि बोटेनिकल गार्डन निर्माण करने वाली कम्पनी ने कार्य अवधि प्रारम्भ करने की तिथि अपने बोर्ड पर 26 फरवरी 2015 अंकित की है। जबकि 21 मई 2015 गूगल इमेज ये बताती है कि 80 प्रतिशत पेड़ काटे जा चुके हैं। फिर 31 अगस्त 2015 को किन पेड़ों के काटने का आदेश वन विभाग द्वारा दिया गया है।
सरकार तथा विभागों की मनमानी को देखते हुए एक जनहित याचिका दोस्त सेवा संस्थान, मुस्कान विकास सेवा संस्थान, रविकांत शुक्ल तथा गौरव बाजपेयी ने उच्च न्यायालय में 09 सितम्बर 2015 को दायर की जिसको संज्ञान में लेते हुए उच्च न्यायालय ने निर्माण कार्य रोकने को स्थगन आदेश दे दिया तथा कार्यदायी संस्था कानपुर विकास प्राधिकरण को आदेश दिया कि वह अपना पक्ष प्रस्तुत करे।
स्थगन आदेश के बाद कानपुर विकास प्राधिकरण ने अपने जवाब में कहा कि चिन्हित निर्माण स्थल में 1300 पेड़ काटा जाना प्रस्तावित है
जिसमें 600 पेड़ अमरूद के हैं जिनमें चार साल से फल नहीं लगे हैं तथा 600 पेड़ नीम के हैं जिसके एवज में कानपुर विकास प्राधिकरण 5 हज़ार लगवा रहा है साथ ही बोटेनिकल गार्डन में 40 हज़ार पेड़ लगेंगे।
ज्ञात हो कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट लोहिया बोटेनिकल गार्डन में 100 करोड़ कि लागत वाले इस प्रोजेक्ट को 40 हेक्टेयर क्षेत्रफल में गंगा बैराज के पास निर्माण होना है।
इस बोटेनिकल गार्डन में 01 ड्राइव इन सिनेमा ओपन थियेटर गार्डन के बाहर पार्किंग इस सिनेमा का 02 शो चलाये जाएँगे शाम 7 से साढ़े 8 बजे तक तथा 9 बजे से 11 बजे तक, गार्डन के परिसर में 500 कारें, 200 कारें ओपन थियेटर में, 500 मीटर तक गंगा घाट का निर्माण, 04 नायाब मनोरंजन होते (हॉल), झील, वाटर म्यूजियम, 2500 लोगों को बैठकर सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने को एमफी थियेटर, 03 मैरिज लान, प्रत्येक लान 1500 लोगों की क्षमता का, 25 से ज्यादा फूड कोर्ट, 07 करोड़ अभी तक खर्च हो चुका तथा 10 करोड़ निर्माण करने वाली कम्पनी खर्च कर चुकी है।
सोचने वाली बात ये है कि जब इतनी भीड़ इस गार्डन में आएगी तो गंगा को तो गन्दा करेगी ही साथ ही पर्यावरण को भी क्षति पहुँचाएगी।
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