खंडपीठ ने सरकार से पूछा कि वह बताए कि कौन-कौन सी योजनाएं हैं और उन्हें कैसे लागू किया जाएगा, किस चरण में क्या काम होगा। उच्चतम न्यायालय ने इसके साथ ही सरकार से नदी में प्रदूषण करने वाली औद्योगिक इकाइयों की निगरानी के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से रियल टाइम मॉनीटरिंग पर मांगी गई रिपोर्ट का अपडेट भी देने को कहा है। इसके अलावा कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से गंगा को प्रदूषित करने वाली 222 औद्योगिक इकाइयों पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है। दोनों को 27 अक्टूबर तक जवाब देना है। 29 अक्टूबर को फिर सुनवाई होगी।गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना उच्चतम न्यायालय के राडार पर है। उच्चतम न्यायालय गंगा सफाई को लेकर लगातार केंद्र सरकार को फटकार लगा रहा है। पिछली तारीख पर उच्चतम न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अभी तक किए गए प्रयास दो सौ सालों बाद भी देश की पवित्रतम नदी को स्वच्छ नहीं बना सकेंगे। उच्चतम न्यायालय ने फिर कहा है कि केंद्र सरकार गंगा की सफाई पर गंभीरता नहीं दिखा रही है। कोर्ट ने यह कहा कि गंगा की सफाई में रिश्वतखोर रोड़ा बन रहे हैं, जिन्हें काम करना चाहिए वे नहीं कर रहे हैं क्योंकि वे रिश्वत ले रहे हैं। पुलिस फेल होती है तो सेना बुलायी जाती है लेकिन जब सेना फेल हो जाए तो क्या किया जाए?
उच्चतम न्यायालय की न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर एवं न्यायमूर्ति आर भानुमती की खंडपीठ ने एमसी मेहता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य (रिट याचिका सिविल 3727/1985) सहित अन्य जनहित याचिकाओं पर सुनवायी करते हुए केंद्र सरकार से सवाल किया कि अभी तक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन की नियुक्ति क्यों नहीं हुई है। उच्चतम न्यायालय ने नदियों में गंदगी रोकने के लिए जिम्मेदार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निष्क्रियता पर भी तल्ख टिप्पणियां की। खंडपीठ ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार पिछली तीन सुनवायी के दौरान गंगा सफाई की स्पष्ट कार्ययोजना नहीं पेश कर सकी। खंडपीठ ने कहा कि हम जानना चाहते हैं कि अंतिम निष्कर्ष क्या है।
खंडपीठ ने सरकार से पूछा कि वह बताए कि कौन-कौन सी योजनाएं हैं और उन्हें कैसे लागू किया जाएगा, किस चरण में क्या काम होगा। उच्चतम न्यायालय ने इसके साथ ही सरकार से नदी में प्रदूषण करने वाली औद्योगिक इकाइयों की निगरानी के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से रियल टाइम मॉनीटरिंग पर मांगी गई रिपोर्ट का अपडेट भी देने को कहा है। इसके अलावा कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से गंगा को प्रदूषित करने वाली 222 औद्योगिक इकाइयों पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है। दोनों को 27 अक्टूबर तक जवाब देना है। 29 अक्टूबर को फिर सुनवाई होगी।
इससे पहले सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने गंगा को निर्मल बनाने के लिए हो रहे प्रयासों का ब्यौरा देते हुए उन्होंने बताया कि गंगा क्षेत्र में पड़ने वाले पांच राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के 118 कस्बे और 1640 ग्राम पंचायतों को चिन्हित किया गया है जहां स्वच्छता अभियान चलाया जाएगा। इसके लिए गंगा सफाई की योजनाएं चल रही हैं। जिनमें एसटीपी लगाना, इंटरसेप्शन बनाना और जलीय जीव-जंतु संरक्षण व स्वच्छता के लिए जागरूकता लाना शामिल है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से रिपोर्ट मांगी गई है। कुमार ने कहा कि केंद्र योजनाएं बनाकर पैसा देती है लेकिन जल और स्वच्छता राज्य का विषय है और योजनाएं लागू करना राज्यों की जिम्मेदारी है। उनके सहयोग के बगैर कुछ नहीं हो सकता। इस पर कोर्ट ने राज्यों से जवाब मांगा है।
खंडपीठ ने पिछली तारीख पर सरकार से कहा था कि कलात्मक दृष्टिकोण के बजाय पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन तैयार किया जाए। अदालत दूसरे देशों से मिलने वाली वित्तीय सहायता को लेकर चिंतित नहीं है, लेकिन उसकी चिंता है कि 2500 किमी लंबी नदी की सफाई परियोजना पर काम करने के बारे में आम आदमी को कैसे समझाएंगे? खंडपीठ ने सरकार से विशेष रूप से कहा कि गंगोत्री के नीचे 135 किमी की नदी के पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में अवगत कराया जाए, क्योंकि 2003 के अधिसूचना के बाद से कोई कदम उठाया ही नहीं गया है। संतोष कुमार गंगवार ने बताया कि अब तक केंद्र तथा राज्यों द्वारा 1229.87 करोड़ रुपए की राशि जारी कर दी गई है। जिसमें केंद्र सरकार का अंश 912.52 करोड़ रुपए तथा राज्य सरकार का अंश 317.35 करोड़ रुपए है। खंडपीठ ने सुनवाई 24 सितंबर के लिए स्थगित करते हुए कहा कि सरकार के मौजूदा हलफनामे में इस मसले में सिर्फ मोटी रूपरेखा पेश की गई है और चरणबद्ध योजना के बगैर नदी को साफ करना मुश्किल होगा। खंडपीठ ने कहा कि हलफनामा दाखिलकर गंगा सफाई के पहले, दूसरे तथा तीसरे चरण के बारे में बताएं ताकि हम सब कह सकें कि इस चरण में काम आप इस तय समय सीमा में पूरा कर लेंगे।
आम जनता भी चाहती है कि गंगा की सफाई का काम होता देखे। अगर गंगा की सफाई में अदालत की मदद चाहिए तो उसके लिए कानूनी प्रक्रिया अपनाएं और अपनी कार्य परियोजना लागू करना सुनिश्चित करें। खंडपीठ ने कहा है कि सरकार की अपेक्षा है कि वह परियोजना पर चरणबद्ध तरीके से अमल का लक्ष्य तय करे। अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर औद्योगिक इकाइयां कानून का पालन नहीं करती हैं तो शीर्ष अदालत कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से सरकार की मद्द करने में संकोच नहीं करेगी। सरकार ने कहा है कि 29 बड़े शहरों, 23 छोटे शहरों और 48 नगरों से गुजरने वाली गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त कराने के चुनाव पूर्व वादे को पूरा करने के लिए वह कृतसंकल्प है।
गौरतलब है कि गंगा की सफाई पर केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में रोडमैप पेश किया था। सरकार ने कहा था कि पांच राज्यों में 76 परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है। इन परियोजनाओं पर कुल खर्च करीब 5 हजार करोड़ रुपए आएगा। यह खर्च राज्यों के चुनिंदा 48 शहरों में गंगा को बचाने के लिए तीन स्तरों पर कार्यों के लिए किया जाएगा। यह हलफनामा राष्ट्रीय गंगा स्वच्छता मिशन के निदेशक की ओर से उच्चतम न्यायालय की फटकार के बाद दाखिल किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने 13 अगस्त को नरेंद्र मोदी सरकार से कहा था कि आखिर क्यों पवित्र नदी के लिए तत्काल कदम नहीं उठाएं जा रहे। साथ ही सरकार से 2500 किमी लंबी नदी को प्रदषण मुक्त किए जाने का रोडमैप तलब किया था। उच्चतम न्यायालय लंबे समय से गंगा नदी की सफाई अभियान की निगरानी कर रहा है और इस बारे में न्यायालय में कई आवेदन दायर किए जा चुके हैं। गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए दायर जनहित याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय 1985 से सुनवाई कर रहा है। गंगा सफाई अभियान को लेकर कई बार उच्चतम न्यायालय ने सरकार और प्रशासन की तीखी आलोचना भी की है। गंगा नदी की सफाई के लिए 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी अतिमहत्वाकांक्षी गंगा कार्य योजना शुरू की थी। देश में 2500 किमी लंबी गंगा नदी 29 बड़े शहरों, 23 छोटे शहरों और 48 कस्बों से गुजरती है।
इसी बीच हाल ही में समाप्त संसद सत्र में जल संसाधन, नदी विकास तथा गंगा पुनरूद्धार राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि अब तक गंगा वाले पांच राज्यों में 48 कस्बों में 67 योजनाएं तथा स्वतः जल गुणवत्ता नियंत्रण एवं गंगा अभिज्ञान केंद्र सहित छह संस्थागत विकास योजना को मंजूरी प्रदान कर दी गई है। गंगवार ने कहा कि सरकार गंगा नदी के पुनरूद्धार के लिए वचनबद्ध है और इससे संबंधित परियोजना के कार्यान्वयन के लिए मार्च 2014 तक 838.76 करोड़ रुपए की राशि खर्च की जा चुकी है।
उन्होंने बताया कि गंगा सफाई के लिए विभिन्न हितधारकों अर्थात पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, जल संसाधन, गंगा पुनरूद्धार एवं नदी विकास, शहरी विकास, पर्यटन, नौवहन पेयजल आपूर्ति तथा स्वच्छता मंत्रालयों के साथ-साथ गंगा की सफाई से जुड़े अकादमिकों, तकनीकों विशेषज्ञों एवं गैर सरकारी संगठनों के साथ सलाह मशविरा प्रगति पर है। गंगा नदी की सफाई के लिए कार्ययोजना को अंतिम रूप देने के उपरांत ही समय सीमा तथा संभावित व्यय सहित अन्य ब्यौरे का पता चल सकेगा।
संतोष कुमार गंगवार ने बताया कि अब तक केंद्र तथा राज्यों द्वारा 1229.87 करोड़ रुपए की राशि जारी कर दी गई है। जिसमें केंद्र सरकार का अंश 912.52 करोड़ रुपए तथा राज्य सरकार का अंश 317.35 करोड़ रुपए है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने सूचित किया है कि गंगा नदी में प्रदूषण एवं नियंत्रण के लिए वर्ष 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीबीआरए) की स्थापना की गई थी। इसके मुख्य कार्यों में सीवरेज प्रणाली डालना, सीवेज शोधन संयंत्र, सौलिड वेस्ट प्रबंधन, औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण के लिए सामान्य मलिन ट्रीटमेंट संयंत्र सीवर फ्रंट प्रबंधन (घाटों के विकास सहित), श्मशान घाटों का विकास आदि शामिल है।
(ई-मेल : singhjp19@gmail.com)
उच्चतम न्यायालय की न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर एवं न्यायमूर्ति आर भानुमती की खंडपीठ ने एमसी मेहता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य (रिट याचिका सिविल 3727/1985) सहित अन्य जनहित याचिकाओं पर सुनवायी करते हुए केंद्र सरकार से सवाल किया कि अभी तक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन की नियुक्ति क्यों नहीं हुई है। उच्चतम न्यायालय ने नदियों में गंदगी रोकने के लिए जिम्मेदार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निष्क्रियता पर भी तल्ख टिप्पणियां की। खंडपीठ ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार पिछली तीन सुनवायी के दौरान गंगा सफाई की स्पष्ट कार्ययोजना नहीं पेश कर सकी। खंडपीठ ने कहा कि हम जानना चाहते हैं कि अंतिम निष्कर्ष क्या है।
खंडपीठ ने सरकार से पूछा कि वह बताए कि कौन-कौन सी योजनाएं हैं और उन्हें कैसे लागू किया जाएगा, किस चरण में क्या काम होगा। उच्चतम न्यायालय ने इसके साथ ही सरकार से नदी में प्रदूषण करने वाली औद्योगिक इकाइयों की निगरानी के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से रियल टाइम मॉनीटरिंग पर मांगी गई रिपोर्ट का अपडेट भी देने को कहा है। इसके अलावा कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से गंगा को प्रदूषित करने वाली 222 औद्योगिक इकाइयों पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है। दोनों को 27 अक्टूबर तक जवाब देना है। 29 अक्टूबर को फिर सुनवाई होगी।
इससे पहले सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने गंगा को निर्मल बनाने के लिए हो रहे प्रयासों का ब्यौरा देते हुए उन्होंने बताया कि गंगा क्षेत्र में पड़ने वाले पांच राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के 118 कस्बे और 1640 ग्राम पंचायतों को चिन्हित किया गया है जहां स्वच्छता अभियान चलाया जाएगा। इसके लिए गंगा सफाई की योजनाएं चल रही हैं। जिनमें एसटीपी लगाना, इंटरसेप्शन बनाना और जलीय जीव-जंतु संरक्षण व स्वच्छता के लिए जागरूकता लाना शामिल है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से रिपोर्ट मांगी गई है। कुमार ने कहा कि केंद्र योजनाएं बनाकर पैसा देती है लेकिन जल और स्वच्छता राज्य का विषय है और योजनाएं लागू करना राज्यों की जिम्मेदारी है। उनके सहयोग के बगैर कुछ नहीं हो सकता। इस पर कोर्ट ने राज्यों से जवाब मांगा है।
खंडपीठ ने पिछली तारीख पर सरकार से कहा था कि कलात्मक दृष्टिकोण के बजाय पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन तैयार किया जाए। अदालत दूसरे देशों से मिलने वाली वित्तीय सहायता को लेकर चिंतित नहीं है, लेकिन उसकी चिंता है कि 2500 किमी लंबी नदी की सफाई परियोजना पर काम करने के बारे में आम आदमी को कैसे समझाएंगे? खंडपीठ ने सरकार से विशेष रूप से कहा कि गंगोत्री के नीचे 135 किमी की नदी के पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में अवगत कराया जाए, क्योंकि 2003 के अधिसूचना के बाद से कोई कदम उठाया ही नहीं गया है। संतोष कुमार गंगवार ने बताया कि अब तक केंद्र तथा राज्यों द्वारा 1229.87 करोड़ रुपए की राशि जारी कर दी गई है। जिसमें केंद्र सरकार का अंश 912.52 करोड़ रुपए तथा राज्य सरकार का अंश 317.35 करोड़ रुपए है। खंडपीठ ने सुनवाई 24 सितंबर के लिए स्थगित करते हुए कहा कि सरकार के मौजूदा हलफनामे में इस मसले में सिर्फ मोटी रूपरेखा पेश की गई है और चरणबद्ध योजना के बगैर नदी को साफ करना मुश्किल होगा। खंडपीठ ने कहा कि हलफनामा दाखिलकर गंगा सफाई के पहले, दूसरे तथा तीसरे चरण के बारे में बताएं ताकि हम सब कह सकें कि इस चरण में काम आप इस तय समय सीमा में पूरा कर लेंगे।
आम जनता भी चाहती है कि गंगा की सफाई का काम होता देखे। अगर गंगा की सफाई में अदालत की मदद चाहिए तो उसके लिए कानूनी प्रक्रिया अपनाएं और अपनी कार्य परियोजना लागू करना सुनिश्चित करें। खंडपीठ ने कहा है कि सरकार की अपेक्षा है कि वह परियोजना पर चरणबद्ध तरीके से अमल का लक्ष्य तय करे। अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर औद्योगिक इकाइयां कानून का पालन नहीं करती हैं तो शीर्ष अदालत कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से सरकार की मद्द करने में संकोच नहीं करेगी। सरकार ने कहा है कि 29 बड़े शहरों, 23 छोटे शहरों और 48 नगरों से गुजरने वाली गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त कराने के चुनाव पूर्व वादे को पूरा करने के लिए वह कृतसंकल्प है।
गौरतलब है कि गंगा की सफाई पर केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में रोडमैप पेश किया था। सरकार ने कहा था कि पांच राज्यों में 76 परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है। इन परियोजनाओं पर कुल खर्च करीब 5 हजार करोड़ रुपए आएगा। यह खर्च राज्यों के चुनिंदा 48 शहरों में गंगा को बचाने के लिए तीन स्तरों पर कार्यों के लिए किया जाएगा। यह हलफनामा राष्ट्रीय गंगा स्वच्छता मिशन के निदेशक की ओर से उच्चतम न्यायालय की फटकार के बाद दाखिल किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने 13 अगस्त को नरेंद्र मोदी सरकार से कहा था कि आखिर क्यों पवित्र नदी के लिए तत्काल कदम नहीं उठाएं जा रहे। साथ ही सरकार से 2500 किमी लंबी नदी को प्रदषण मुक्त किए जाने का रोडमैप तलब किया था। उच्चतम न्यायालय लंबे समय से गंगा नदी की सफाई अभियान की निगरानी कर रहा है और इस बारे में न्यायालय में कई आवेदन दायर किए जा चुके हैं। गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए दायर जनहित याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय 1985 से सुनवाई कर रहा है। गंगा सफाई अभियान को लेकर कई बार उच्चतम न्यायालय ने सरकार और प्रशासन की तीखी आलोचना भी की है। गंगा नदी की सफाई के लिए 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी अतिमहत्वाकांक्षी गंगा कार्य योजना शुरू की थी। देश में 2500 किमी लंबी गंगा नदी 29 बड़े शहरों, 23 छोटे शहरों और 48 कस्बों से गुजरती है।
इसी बीच हाल ही में समाप्त संसद सत्र में जल संसाधन, नदी विकास तथा गंगा पुनरूद्धार राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि अब तक गंगा वाले पांच राज्यों में 48 कस्बों में 67 योजनाएं तथा स्वतः जल गुणवत्ता नियंत्रण एवं गंगा अभिज्ञान केंद्र सहित छह संस्थागत विकास योजना को मंजूरी प्रदान कर दी गई है। गंगवार ने कहा कि सरकार गंगा नदी के पुनरूद्धार के लिए वचनबद्ध है और इससे संबंधित परियोजना के कार्यान्वयन के लिए मार्च 2014 तक 838.76 करोड़ रुपए की राशि खर्च की जा चुकी है।
उन्होंने बताया कि गंगा सफाई के लिए विभिन्न हितधारकों अर्थात पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, जल संसाधन, गंगा पुनरूद्धार एवं नदी विकास, शहरी विकास, पर्यटन, नौवहन पेयजल आपूर्ति तथा स्वच्छता मंत्रालयों के साथ-साथ गंगा की सफाई से जुड़े अकादमिकों, तकनीकों विशेषज्ञों एवं गैर सरकारी संगठनों के साथ सलाह मशविरा प्रगति पर है। गंगा नदी की सफाई के लिए कार्ययोजना को अंतिम रूप देने के उपरांत ही समय सीमा तथा संभावित व्यय सहित अन्य ब्यौरे का पता चल सकेगा।
संतोष कुमार गंगवार ने बताया कि अब तक केंद्र तथा राज्यों द्वारा 1229.87 करोड़ रुपए की राशि जारी कर दी गई है। जिसमें केंद्र सरकार का अंश 912.52 करोड़ रुपए तथा राज्य सरकार का अंश 317.35 करोड़ रुपए है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने सूचित किया है कि गंगा नदी में प्रदूषण एवं नियंत्रण के लिए वर्ष 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीबीआरए) की स्थापना की गई थी। इसके मुख्य कार्यों में सीवरेज प्रणाली डालना, सीवेज शोधन संयंत्र, सौलिड वेस्ट प्रबंधन, औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण के लिए सामान्य मलिन ट्रीटमेंट संयंत्र सीवर फ्रंट प्रबंधन (घाटों के विकास सहित), श्मशान घाटों का विकास आदि शामिल है।
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Post By: pankajbagwan