गंगा की प्राणरक्षा के लिये प्राणोत्सर्ग कर रहे स्वामी सानंद

स्वामी सानंद
स्वामी सानंद

देश के सर्वोच्च शिक्षण संस्थानों में से एक ‘आईआईटी’ कानपुर में प्राध्यापक रहे प्रोफेसर जीडी अग्रवाल को सन्यास लेकर स्वामी सानंद का आध्यात्मिक दर्जा दिलाने वाली गंगामाई को बचाने के लिये अब वे पिछले करीब 100 दिन से अनशन पर हैं। उनके द्वारा उठाए गए सवाल और उनकी माँगें एक तरफ, गंगा की मौजूदा हालातों के लिहाज से तत्काल हल करने योग्य हैं और दूसरी तरफ, मौजूदा विकास की अवधारणा की अप्रासंगिकता को उजागर करते हैं। ऐसे में सत्ता और विपक्ष की राजनीतिक जमातों की प्रतिक्रियाएँ देखना, सुनना रुचिकर होगा।


स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंदस्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (फोटो साभार - डॉ. अनिल गौतम)गंगा की विलक्षण प्रदूषणनाशिनी शक्ति को बरकरार रखने की खातिर 22 जून 2018 से आमरण अनशन पर बैठे स्वामी सानंद को जीवन दाँव पर लगाए 100 दिन पूरे हो गए। इस बीच उनका वजन 20 किलो तक घट गया है, लेकिन फिर भी वे गंगा को बचाने की अपनी माँगों को लेकर अडिग हैं।

जो स्वामी सानंद को जानते हैं उन्हें पता होगा कि सन्यास लेने के पहले वे प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के रूप में देश के ख्यात ‘इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी’ (आईआईटी) कानपुर में वरिष्ठ प्राध्यापक थे। गंगा नदी की लगातार बढ़ती बदहाली और उसके प्रति देश की राजनीति, प्रशासन व न्यायतंत्र की आपराधिक लापरवाही से विचलित होकर उन्होंने एक जिम्मेदार नागरिक के नाते हस्तक्षेप करने का निर्णय लिया था। कई बार आवेदन, निवेदन करने, सत्ताधारियों को समझाने और समाज को उद्वेलित करने की कोशिशों के अलावा इस जीवन-मरण से जुड़े इस मुद्दे पर उन्होंने अनशन भी किया था।

करीब सवा तीन महीने से अनवरत जारी आमरण अनशन पर दिल्ली के ‘गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान’ में पिछली 18 सितम्बर को आम नागरिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और सरोकार रखने वाले अनेक साथियों ने तीन दिन का ‘गंगा सम्मेलन’ आयोजित किया था। इस सम्मेलन में केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि की हैसियत से शामिल हुए “केन्द्रीय राष्ट्रीय नदी गंगा, नदी पुनर्जीवन एवं परिवहन विभाग’ के मंत्री नीतिन गडकरी ने स्वामीजी के समर्थकों को सम्मेलन के अन्तिम दिन गंगा के पर्यावरणीय प्रवाह को सुनिश्चित कराने तथा उसकी अविरलता बनाए रखने हेतु कानून बनवाने का संकल्प घोषित किया था, लेकिन अपनी यह घोषणा उन्होंने लिखित में नहीं सौंपी। इससे निराश स्वामी जी के समर्थकों ने इस बात पर खेद जताया कि गडकरी ने अवैध खनन को रोकने, गंगा पर निर्माणाधीन बाँधों के कामों को तत्काल प्रभाव से रोकने एवं ‘गंगा भक्त परिषद’ गठित करने के विषय में कुछ नहीं कहा। स्वामी जी ने अपना अनशन जारी रखा है और 10 अक्टूबर से वे जल का भी त्याग करने के अपने निर्णय पर टिके हैं। लगता है कि स्वामी सानंद ने गंगा के जीवन के लिये अपने प्राणों का बलिदान देना सुनिश्चित कर लिया है।

इस बीच कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गाँधी ने स्वामी सानंद के समर्थन में 20 सितम्बर 2018 को प्राप्त एक पत्र भेजा है। इस पत्र में राहुल गाँधी ने स्वामी जी की माँगों को पूरा कराने के लिये उम्मीद जताई है। उन्होंने लिखा है कि वे स्वयं स्वामी जी से मिलकर उनकी माँगों को पूरा कराने का विश्वास देकर उनके प्राणों की रक्षा की पहल करेंगे। इस पत्र से स्वामीजी के समर्थकों में एक नई उम्मीद जागी हैं।

गौरतलब है कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा के प्रधानमंत्री प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी ने जगन्नाथपुरी के शंकराचार्य के माध्यम से आन्दोलन चला रहे स्वामी सानंद को विश्वास दिलाकर उनका अनशन समाप्त करवाया था। सूत्रों के अनुसार 100 दिन पूरे हो जाने के बाद राहुल गाँधी स्वामी जी से गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिये काम करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले सकते हैं और उनके प्राण बचा सकते हैं।

पिछले कई सालों से भारत के वैज्ञानिक और इंजीनियर केवल गंगा की निर्मलता के नाम पर असीमित धन व्यय करने में जुटे हैं। इससे गंगा का प्रदूषण तो कम नहीं हो रहा, बल्कि बढ़ता ही जा रहा है। इस समय गंगा के घाटों के निर्माण तथा जल शोधन संयंत्र लगाने हेतु 18 हजार करोड़ रुपयों के प्रोजेक्ट मंजूर करके धन का वितरण किया जा रहा है। हरिद्वार स्थित मातृसदन के संस्थापक स्वामी शिवानन्द सरस्वती के अनुसार इन सब निर्माण कार्यों का गंगा के पर्यावरणीय प्रवाह पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ने वाला।

गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिये जंगल-कटाई की वजह से मिट्टी/गाद का कटाव और पानी का तेज बहाव बाँधों में रुक जाता है। बाँधों में रुका हुआ पानी, गंगाजल के बायोफाज्म नष्ट हो जाने के कारण अपनी विलक्षण, प्रदूषणनाशिनी शक्ति को खो देता है। ठहरे पानी में बायोफाज्म नीचे बैठ जाता है और पानी के ऊपर काई (अलगी) जम जाती है। यह प्रक्रिया गंगाजल के मूल तत्वों को जल से अलग करती है। काई का प्रदूषण तत्व गंगा में मिलने लगता है और मूलतत्व, अमरत्व (ब्रह्मसत्व) समाप्त हो जाता है।

जल संरक्षण का नोबल पुरुस्कार ‘स्टॉकहोम वाटर प्राइज’ के विजेता और अलवर (राजस्थान) के ‘तरुण भारत संघ’ के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह के अनुसार गंगाजल को शुद्ध बनाने और बनाए रखने के लिये उसकी मूल गति को सतत बनाए रखना होगा। गंगा में जल के प्रवाह का सूखना और बाढ़, दोनों ही बढ़ते संकट हैं। इन संकटों को अब ‘चार धाम सड़क परियोजना’ और बढ़ाने वाली है। हमें गंगा के स्वास्थ्य की चिन्ता नहीं रहेगी तो समूचे देश का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहेगा।

स्वामी सानंद उर्फ प्रोफेसर जीडी अग्रवाल गंगा के स्वास्थ्य को सदियों तक ठीक रखने के लिये प्रयासरत हैं इसलिये उन्होंने गंगा पर अब और नए बाँध न बनाने, गंगा में खनन रोकने तथा निर्मित या निर्माणाधीन बाँधों को तत्काल रोककर नदी का पर्यावरणीय प्रवाह बनाए रखने की माँग की है। वे चाहते हैं कि गंगा के संरक्षण के लिये एक ‘गंगा भक्त परिषद’ का गठन किया जाये और एक कानून के जरिए गंगा के मूल प्रवाह को प्राचीन काल जैसा बनाने/बनाए रखा जाये।

राजेन्द्र सिंह के अनुसार सरकारी तौर पर अभी तक प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चुनाव-पूर्व के वायदों को पूरा करने का कोई प्रयास नहीं किया है। चुनावों से पहले मोदी जी ने भारत की जनता और गंगाभक्तों के वोट लेने के लिये कहा था कि मैं गंगा का बेटा हूँ, गंगा मां ने मुझे बुलाया है... मैं गंगा मां को अविरल निर्मल बनाँऊगा। लेकिन उनके कई दूसरे वायदों की तरह यह भी सिर्फ एक जुमला भर निकला।

‘तरुण भारत संघ’ के निदेशक मौलिक सिसोदिया कहते हैं - ‘इस समय गंगाजल को बचाने के नाम पर दुनिया की बहुत सी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ लगी हैं। वे एक तरफ गंगा के नाम पर भारत को कर्जदार बना रही हैं और दूसरी तरफ अपनी कम्पनी की आय बढ़ा रही हैं। गंगा की निर्मलता के नाम पर जो धन की बर्बादी और भ्रष्टाचार हो रहा है उससे मुक्ति पाने के लिये ‘तरुण भारत संघ’ के उपाध्यक्ष प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने ‘मातृ सदन’ में अपने प्राणों की आहुति देना तय किया है। अब देश के प्रधानमंत्री और सभी दलों के राजनेताओं को समझना होगा कि प्रो. जीडी अग्रवाल और गंगा माईया के प्राण दोनों ही बचाने हैं।’

लेखक, दीपक पर्वतियार नई दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।

 

 

 

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