गंगा की निर्मलता और अविरलता के सवाल पर वाराणसी में दो दिवसीय समागम

Ganga
Ganga

दिनांक: 19-20 ​सितम्बर 2015
स्थान : धर्मसंघ सभागार, दुर्गाकुंड, वाराणसी

गंगा में मिलते कचरा एवं गंदे नालेगंगा के सवाल पर वाराणसी केन्द्र धर्मसभागार, दुर्गाकुंड में गंगा आह्वान, साझा संस्कृति मंच और गंगा रक्षा आन्दोलन के संयुक्त तत्वावधान में 19 और 20 सितम्बर को एक सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। दो दिनोें के इस सम्मेलन में देशभर के गंगा प्रेमियों का जमावड़ा होगा और इस मुद्दे पर एक निर्णायक निर्णय लिया जाएगा।

वाराणसी में इस सम्मेलन के कई मायने हैं। एक तो प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है और दूसरे देश की सांस्कृतिक नगरी के रूप में इसकी ख्याति है। त्रासदी यह है कि बनारस में बह रही गंगा में एक फीसदी गंगा का जल नहीं है। सिर्फ तमाम राज्यों के शहरी और औद्योगिक नालों का सीवर बह रहा है। सारे दिव्य गंगा जल पर औद्योगिक समूहों का कब्जा है। इसके प्राकृतिक स्रोतों को हटाकर सुरंगों के जरिए बड़े-बड़े शहरों में पेयजल और कल कारखानों की जलापूर्ति के लिए भेजा जा रहा हैै। गंगा के मैदान पानी के बिना सूख रहे हैं और गंगाजल उद्योगपातियों के बाथरूमों के फ्लश के रूप में काम कर रहा है।

हकीकत यह है कि गंगा का 20 फीसदी जल चिल्ला बाँध से, बचे हुए का 90 फीसदी भीमगोड़ा से और और शेष सारा जल नरौरा बराज से नहरों में घुमा दिया गया है। हिमालय का एक फीसदी जल भी मैदानी हिस्सें में नहीं पहुॅंच रहा है। गंगा में अन्य नदियों और नालों का जल मिल रहा है। यही स्थिति यमुना तथा अन्य नदियों की है। इसका मूल जल पहले ही निकाल लिया गया है और उनकी पूर्ति नालों से कर दी गयी। ये गंगा को भरा हुआ रखते हैं। वाराणसी में असि और वरूणा है। गंगा के निर्मलीकरण के नाम पर नालों को साफ करके गंगा में गिराना है। गंगा का सवाल उसकी अविरलता और निर्मलता को कायम रखने से है।

उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में गंगा-भागीरथी तथा उसकी प्रमुख धाराओं मंदाकिनी तथा अलकनंदा पर टिहरी सहित 70 बाँध परियोजनाएँ निर्माणाधीन और प्रस्तावित हैं। इनमें श्रीनगर, सिंगोली-भटवाड़ी, फाटा-व्यूंग, कोटलीभेल, विष्णुगाड-पिपलकोटि, विष्णुगाड तपोवन में बड़े बाँधों का निर्माण किया जा रहा है। इसी तरह गंगा नदी की अन्य सहायक धाराओं यमुना, टौंस, पिंडर काली, धौली, गोरी, रामगंगा, शारदा सहित छोटी धाराओं असिगंगा, कालिगंगा, जारगंगा, वालगंगा आदि और गंगा में गिरनेवाले झरनों पर सैकड़ों बाँध बनाए जा रहे हैं। यह साजिश है पानी पर कब्जा करने की और लोगों को बिजली उत्पादन के सब्जवाग दिखाए जा रहे हैं।

इन परियोजनाओं के लिए हिमालय के क्षेत्र में बड़े-बड़े विस्फोट, सुरंगों का खदान, खनन क्रशिंग, भारी मशीनों की गतिविधियाँ, पवित्र पर्वत श्रृंखलाओं और चारो धाम की घाटियों में वनों के अंधाधुँध कटान हिमालय के पारिस्थितिकीय तंत्र को तेजी से नष्ट कर रहे हैं। इससे गंगाजल के मूलगुण धर्मों में परिवर्तन हो रहा है। गंगा घाटियों के स्वास्थ्य पर ही गंगा का स्वास्थ्य निर्भर है। उसको नष्ट करने से गंगा गंगत्व नष्ट हो रहा है और वह गंगा नहीं रह पा रही है जिसके जल का सेवन सदियों से हमारे पूर्वज करते आए हैं।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित वैज्ञानिकों के विशेष दल ने अपनी रिर्पोट में गंगा के संवेदनशील पर्यावरण को हो रही क्षति का ब्योरा दिया था। इसमें खुलासा किया गया है कि अब तक गंगा की मुख्य धारा भागीरथी को गोमुख से एक सौ किलोमीटर नीचे मनेरी बाँध में रोककर सुरंगों में डाला गया है। इसके बाद टिहरी और कोटेश्वर बाँधों में गंगा को रोककर विशाल झील में तब्दील कर दिया गया है। इस तरह गंगा की मुख्य धारा को उसके झरनों से हटाकर 110 मीटर लम्बी सुरंग के माध्यम से बाँधों तक पहुँचाया जा रहा है जो बाँधों की कई-कई किलोमीटर तक फैली झीलें सड़ता रहता है। इसके फलस्वरूप गंगा का जीवनदायी जल जहरीले पानी में तब्दील हो रहा है। इस लूट की वजह से हिमालय सूख रहा है और पर्यावरण संकट से गुजर रहा है। ये परियोजनाएँ पूरी हो गयी ​तो गंगा का 80 फीसदी हिमालीय स्वरूप भी नष्ट हो जाएगा। वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है कि जून 2013 की केदारनाथ की आपदा में इन परियोजनाओं की भी अह्म भूमिका रही है।

सुप्रीम कोर्ट में सरकार बनाम गंगाजल चल रहा था अब वह सरकार बनाम बाँध निर्माताओं के हित में बदल गया है। इसकी पुष्टि अपील नम्बर 6736/2013, कोर्ट न.6 से होती है। सच्चाई यह है कि इन बाँधों से देश को मात्र एक फीसदी बिजली मिलेगी। सवाल यह उठता है कि विकास का यही मॉडल है। गंगा और हिमालय की हत्या कर अरबों अरब रुपये खर्च करने का आखिर क्या औचित्य है। थोड़ी सी बिजली की लालच दिखाकर अविरलता और पारिस्थितिकीय तंत्र को खत्म करने का क्या औचित्य है। फिर हम गंगा की निर्मलाता और अविरलता का दावा कैसे करते हैं।

सम्मेलन के माध्यम से मांग की जाएगी कि गंगा को हिमालय से ही उसके मूल नैसर्गिक रूप में वापस लाया जाय। बाँधों से इसे मुक्त करने की दिशा में शीघ्र कार्रवाई आगे बढ़ायी जाए। प्रस्तावित निर्माणाधीन बाँधों को तत्काल निरस्त किया जाए। इसकेे अतिरिक्त सीवर को नदियों से बिल्कुल अलग रखने की योजना पर कार्य करने, औद्योगिक एवं घरेलू अपशिष्टों के निष्कासन को गंगा से पथक रखने और इसे मोड़कर इसका इस्तेमाल सिंचाई तथा अन्य कार्यों में करने की भी मांग की जाएगी। वहीं हरिद्वार से नीचे गंगा की मुख्य धारा में हमेशा 70 से 90 फीसदी जल की सुनिश्चिता के भी सवाल होंगे। दो दिनों के समागम में देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए आंदोलनकारियों, पर्यावरणविदों द्वारा एक कार्ययोजना तय की जाएगी और उसे मूर्त रूप दिया जाएगा।

सम्पर्क: जागृति राही-09450015899, डॉ आनंद प्रकाश तिवारी-09839058528, फादर आनंद-09598604926, वीरेन्द्र निषाद-9889023512
 

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