(सहगान के लिए : उत्तर प्रदेश की एक लोकधुन पर आधारित)
गंगा की लहर अमर है,
गंगा की।
धन्य भगीरथ
के तप का पथ।
गगन कँपा थरथर है।
गंगा की,
गंगा की लहर अमर है।
नभ से उतरी
पावन पुतरी,
दृढ़ शिव-जूट-जकड़ है।
गंगा की,
गंगा की लहर अमर है।
बाँध न शंकर
अपने सिर पर,
यह धरती का वर है।
गंगा की,
गंगा की लहर अमर है।
जह्नु न हठ कर
अपने मुख धर,
तृषित जगत-अंतर है।
गंगा की,
गंगा की लहर अमर है।
एक धार जल
देगा क्या फल?
भूतल सब ऊसर है।
गंगा की,
गंगा की लहर अमर है।
लक्ष धार हो
भू पर विचरो,
जग में बहुत जहर है।
गंगा की,
गंगा की लहर अमृत है,
गंगा की लहर अमर है,
गंगा की।
गंगा की लहर अमर है,
गंगा की।
धन्य भगीरथ
के तप का पथ।
गगन कँपा थरथर है।
गंगा की,
गंगा की लहर अमर है।
नभ से उतरी
पावन पुतरी,
दृढ़ शिव-जूट-जकड़ है।
गंगा की,
गंगा की लहर अमर है।
बाँध न शंकर
अपने सिर पर,
यह धरती का वर है।
गंगा की,
गंगा की लहर अमर है।
जह्नु न हठ कर
अपने मुख धर,
तृषित जगत-अंतर है।
गंगा की,
गंगा की लहर अमर है।
एक धार जल
देगा क्या फल?
भूतल सब ऊसर है।
गंगा की,
गंगा की लहर अमर है।
लक्ष धार हो
भू पर विचरो,
जग में बहुत जहर है।
गंगा की,
गंगा की लहर अमृत है,
गंगा की लहर अमर है,
गंगा की।
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