सरकार ने 9 अक्तूबर 2018 को ई-फ्लो के नियमों की अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत जिन मौजूदा परियोजनाओं में मानकों का पालन करते हुए जल छोड़ने की संरचना नहीं है, उन्हें तीन साल का समय दिया जाएगा, ताकि वे संरचना में जरूरी बदलाव कर सकें। हालांकि जांच रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि सभी मौजूदा परियोजनाओं की संरचना में निर्धारित ई-फ्लो के हिसाब से पानी छोड़ने की सुविधा है और उनकी संरचना में किसी भी तरह का बदलाव करने की आवश्यकता नहीं हैं।
व्यवसायिक हितों के चलते ई-फ्लों के नियमानुसार गंगा में पानी न छोड़ने वाली मौजूदा हाइड्रोपावर परियोजनाओं पर बड़ी कार्रवाई की है। सरकार ने मौजूदा हाइड्रोपावर परियाजनाओं को ई-फ्लों नियमों का पालन करने के लिए 8 अक्तूबर 2021 तक का समय दिया था लेकिन अब इसे घटाकर 15 दिसंबर 2019 कर दिया है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने शनिवार को इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी। इसका मतलब यह है कि गंगा नदी पर उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित मौजूदा जल विद्युत परियोजनाओं से लेकर उत्तर प्रदेश के उन्नाव तक गंगा नदी पर स्थित सिंचाई परियोजनाओं सहित सभी बांधों को 15 दिसंबर 2019 से ई-फ्लो के नियमों का पालन करना पड़ेगा। सरकार ने यह कदम केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की निगरानी और एक विशेषज्ञ दल की उस जांच रिपोर्ट के बाद उठाया है। इसमें कहा गया था कि कई मौजूदा जल विद्युत परियोजनाएं अपने व्यवसायिक हितों के चलते गंगा नदी में जरूरी मात्रा में पानी नहीं छोड़ रही हैं। सीडब्ल्यूसी ने यह रिपोर्ट इस साल 11 जुलाई को सरकार को सौंपी थी। उसके बाद एक सितंबर 2019 को दैनिक जागरण ने यह खबर प्रकाशित करते हुए बताया था कि मौजूदा कंपनियां ई-फ्लो के नियमों का पालन नहीं कर रही हैं।
सरकार ने 9 अक्तूबर 2018 को ई-फ्लो के नियमों की अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत जिन मौजूदा परियोजनाओं में मानकों का पालन करते हुए जल छोड़ने की संरचना नहीं है, उन्हें तीन साल का समय दिया जाएगा, ताकि वे संरचना में जरूरी बदलाव कर सकें। हालांकि जांच रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि सभी मौजूदा परियोजनाओं की संरचना में निर्धारित ई-फ्लो के हिसाब से पानी छोड़ने की सुविधा है और उनकी संरचना में किसी भी तरह का बदलाव करने की आवश्यकता नहीं हैं। इसके बावजूद कई परियोजनाएं व्यावसायिक हितों के चलते ई-फ्लो नियमों के अनुसार पानी नहीं छोड़ रही हैं। यही वजह है कि एनएमसीजी ने मौजूदा परियोजनाओं को दी गई तीन साल की मौहलत को घटाकर 15 दिंसबर 2019 करने का फैसला किया।
सूत्रों के मुताबिक सीडब्ल्यूसी ने इस साल अप्रैल से जून के दौरान ऊपरी गंगा नदी बेसिन में ई-फ्लो की निगरानी की तो पता चला कि चार परियोजनाओं ने अधिकांश समय पर ई-फ्लो के अनिवार्य नियमों का पालन नहीं किया। नियमों का पालन न करने वाली परियोजनाओं में मानेरीभाली फेज-2, विष्णुप्रयाग एचईपी और श्रीनगर एचईपी शामिल हैं। वहीं मोनरीभाली फेज-1 और पशुलोक बैराज आंशिक रूप से ई-फ्लो नियमों का पालन कर रहे हैं। सीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि टिहरी, भीमगौड़ा बैराज और कानपुर बैराज में निर्धारित फाॅरमेट में ई-फ्लो का डाटा नहीं मिल रहा है। अप्रैल से जून की अवधि में टिहरी और भीमगौड़ा परियोजनाओं से ई-फ्लो के आंकड़े घंटे के आधार पर नहीं मिले।
क्या हैं ई-फ्लो नियम
ई-फ्लो नियमों के मुताबिक ऊपरी गंगा नदी बेसिन में देवप्रयाग से लेकर हरिद्वार तक नवंबर से मार्च के दौरान औसतन मासिक प्रवाह का कम से कम 20 फीसद, अक्तूबर से अप्रैल-मई के दौरान 25 फीसद और जून से सितंबर तक 30 फीसद प्रवाह सुनिश्चित किया जाना है। वहीं हरिद्वार के उन्नाव के बीच गंगा में पड़ने वाले चार बैराज-भीमीगौड़ा, बिजनौर, नरौरा और कानपुर के लिए अक्तूबर से मई और जून से सितंबर की अवधि के लिए अलग-अलग ई-फ्लो तय किए गए। मसलन, हरिद्वार के निकट भीमगौड़ा बैराज से आगे अक्तूबर से मई के दौरान कम से कम 36 क्यूमेंक (घनमीटर प्रति सेकेंड) और जून से सितंबर के दौरान 57 क्यूमेक जल गंगा नदी की धारा में बनाए रखना होगा। इसी तरह बिजनौर, नरोरा और कानुपर में अक्तूबर से मई के दौरान कम से कम 24 क्यूमेक और जून से सितंबर के दौरान 48 क्यूमेक जल गंगा नदी में बनाए रखना होगा।
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