गंगा के लिये नए भगीरथ बने मोदी


‘न मुझे किसी ने काशी बुलाया है और न ही किसी ने भेजा है। मैं गंगा मैया के बुलावे पर आया हूँ।’ कुछ इसी अंदाज से गंगा के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हुए मोदी ने वाराणसी से अपनी सियासी पारी शुरू की थी। चुनावी जीत हासिल करने के बाद उन्होंने गंगा आरती में शामिल होकर ऐलान किया था कि वह 2019 तक गंगा को प्रदूषण मुक्त बना देंगे। साबरमती की तरह गंगा को साफ करके उसकी सूरत बदलने का दावा करने वाले नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री नहीं हैं, जिन्होंने गंगा को निर्मल-अविरल बनाने का बीड़ा बनारस से उठाया है।

गंगा की गंदगी दूर करने की शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने भी बनारस के घाट से की थी और उनके बाद के दूसरे प्रधानमंत्री भी गंगा के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा प्रकट करते हुए इसे प्रदूषण मुक्त बनाने का दावा करते रहे लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात रहा। नरेंद्र मोदी से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने तो बाकायदा इसे राष्ट्रीय नदी का दर्जा तक दिला दिया था लेकिन गंगा में 20 हजार करोड़ रुपये बहाये जाने के बावजूद उसकी हालत में जरा भी सुधार नहीं आया।

गंगा को लेकर पर्यावरणविद, समाजसेवी, संत और राजनीतिज्ञों द्वारा की गई अपील, अनशन, यात्रा, उपवास सब निरर्थक साबित हुए हैं। 1985 में राजीव गाँधी द्वारा बनाए गए ‘गंगा एक्शन प्लान’ से लेकर फरवरी 2009 में बनाए गए ‘राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन अथॉरिटी (एनजीबीआरए)’ तक गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने में सरकार जितने रुपये बहा चुकी है, उससे कहीं ज्यादा गंगा में गंदगी घुल चुकी है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय गंगा बेसिन अथॉरिटी की चार साल में संपन्न हुई तीन बैठक नौ दिन चले अढ़ाई कोस की कहावत चरितार्थ करती नजर आती है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से कुछ दिन पहले भी आनन-फानन में गंगा की सफाई योजना बनाने के लिये बैठक बुलाई गई लेकिन वह भी आगे के लिये टाल दी गई।

बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा के लिये बाकायदा एक मंत्रालय बनाकर उसकी जिम्मेदारी गंगा की लड़ाई लड़ने वाली उमा भारती को सौंप दी है। मोदी के गंगा प्रेम को देखते हुए न सिर्फ उमा भारती, बल्कि उनके मंत्री भी सक्रिय हो गए हैं। भगीरथ के बाद मोदी को गंगा का उद्धारक बताने वाली केंद्रीय जल संसाधन विकास और गंगा पुनरुद्धार मंत्री उमा भारती ने गंगा के साथ यमुना को भी प्रदूषण मुक्त बनाने का दावा किया है।

प्रदूषित गंगाखबर है कि सरकार की तरफ से 15 दिनों के भीतर गंगा एक्शन प्लान पेश कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि संन्यास से सियासत की तरफ रुख करने वाली साध्वी उमा भारती ने भाजपा के भीतर अपना वजूद तलाशने के लिये ‘गंगा समग्र यात्रा’ की थी। ‘गंगा मैया का अपमान, अब नहीं सहेगा हिंदुस्तान,’ जब इस नारे के साथ उमा भारती ने गढ़मुक्तेश्वर के बृजघाट कस्बे में गंगा तीरे से अपनी ‘गंगा समग्र यात्रा’ की शुरुआत की तो साफ हो गया कि सत्ता के सिंहासन पर पहुँचने के लिये उनका यह प्रयास बेकार नहीं जाएगा। गंगा को लेकर की गई उस यात्रा को साधु-संतों से लेकर सोनिया तक का समर्थन मिला था।

वहीं सड़क,परिवहन एवं जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी गंगा में कार्गो चलते हुए देखना चाहते हैं। जल्द ही वह गंगा नदी के राष्ट्रीय जलमार्ग का ब्लू प्रिंट तैयार करेंगे, ताकि मोदी सरकार की गंगा नदी में यात्री और मालवाहक नौकाएं दौड़ाने की महत्त्वाकांक्षी योजना को साकार किया जा सके। गौरतलब है कि राजग सरकार ने 1998 में इनलैंड वाटरवेज-1 योजना के तहत इलाहाबाद से हल्दिया के बीच गंगा में नौकाएं दौड़ाने की योजना बनाई थी।

गडकरी की तरह ही मोदी सरकार के पर्यटन एवं संस्कृति राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीपद येसा नाइक ने बनारस के घाटों की कायापलट करने के लिये 18 करोड़ रुपये देने का ऐलान कर दिया है लेकिन उत्तराखंड के गंगा भक्तों का कहना है कि यदि गंगा को प्रदूषण से बचाना है तो उसके सफाई अभियान की शुरुआत वाराणसी से नहीं, बल्कि गंगोत्री से होनी चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रियों के गंगा प्रेम को देखते हुए देश-विदेश से भी गंगा सफाई अभियान में मदद की पेशकश होने लगी है। एक ओर जहाँ इजराइल के राजदूत एलोन उश्पिज ने भी गंगा सफाई अभियान में मदद करने की बात कही है, वहीं सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वरी पाठक ने गंगा सफाई के लिये मोदी सरकार को अपने संगठन द्वारा मदद देने की पेशकश की है। गंगा एक्शन परिवार से जुड़े स्वामी चिदानंद ने भी मोदी के सामने गंगा संसद बुलाने का प्रस्ताव रखा है। इस गंगा संसद में उन सभी सांसदों को बुलाने का निर्णय लिया गया है, जिनके क्षेत्र से गंगा बहती है।

कभी उत्तराखंड सरकार द्वारा चलाए गए ‘स्पर्श गंगा अभियान’ का नेतृत्व करने वाले परमार्थ निकेतन के चिदानंद सरस्वती गंगा के मुद्दे पर अपना पूरा समर्थन दे रहे हैं। स्वामी चिदानंद के अनुसार मोदी जी का यह मिशन भारत के लिये अहम है क्योंकि गंगा खत्म हो जाएगी तो भारत भी खत्म हो जाएगा। उनके मुताबिक गंगा के लिये अलग मंत्रालय के साथ कड़े कानून और उनका सख्ती से पालन भी जरूरी है। मंत्रालय के तहत ऐसी एक समिति होनी चाहिए, जिसमें वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और आध्यात्मिक गुरु सदस्य हों। राष्ट्रीय गंगा नदी अधिकार कानून पहले से ही मौजूद है, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं, लेकिन उनके अति व्यस्त होने के कारण इसका एक उपाध्यक्ष भी होना जरूरी है, जो पाँच साल में नतीजे देने में सक्षम हो।’ गंगा एक्शन परिवार शोधकर्ताओं, पर्यावरणविदों, इंजीनियरों, धार्मिक गुरुओं और उद्यमियों का एक साझा मंच है, जो गंगा से जुड़ी समस्याओं को दूर करने की दिशा में मिलकर काम करता है।

गौरतलब है कि उत्तराखंड की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिये ‘स्पर्श गंगा अभियान’ चलाकर उसकी ब्रांड एंबेस्डर हेमा मालिनी को बनाया था, लेकिन दूसरी तरफ गंगा में हो रहे खनन को लेकर तत्कालीन भाजपा सरकार ने आँखें मूंद रखी थीं। सरकार की नजर उस गंगा भक्त पर भी नहीं गई थी, जो गंगा में हो रहे खनन को लेकर दो महीने से ज्यादा समय से आमरण अनशन पर था और अंततः अपनी जान गवां बैठा था। तीर्थ नगरी हरिद्वार की बात करें तो यहाँ गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का अभियान 1986 में प्रारंभ हुआ था लेकिन तब से लेकर अब तक बनाई गई तमाम योजनाओं के बावजूद यहाँ तकरीबन 20 एमएलडी मलजल प्रतिदिन गंगा में बहाया जा रहा है। यहाँ कई आश्रमों, होटलों एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का गंदा पानी सीधे गंगा में गिर रहा है।

इन सभी सवालों के बावजूद तमाम लोगों की तरह ‘जल पुरुष’ राजेंद्र सिंह को भी उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गंगा को पुनर्जीवन देने के लिये जी-जान लगा देंगे। राजस्थान की सात छोटी नदियों को पुनर्जीवित करने वाले राजेंद्र सिंह ने गंगा के संरक्षण व प्रबंधन के लिये कानून बनाने के साथ ही नदी को पूरी आजादी दिलाने के लिये जल्द ही प्रधानमंत्री को अपने महत्त्वपूर्ण सुझाव भेजने की बात कही है। गौरतलब है कि उन्होंने पिछली सरकार को खाद्य सुरक्षा कानून से पहले जल सुरक्षा कानून बनाने की सलाह दी थी लेकिन उसे अनसुना कर दिया था। गंगा के शुद्धीकरण पर जोर देते हुए पुरीपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का भी कहना है कि जब देश में अंग्रेजों की सरकार थी तो उन्होंने गंगा को साफ रखने के लिये कुछ नियम बनाए थे लेकिन कालांतर में यह नियम शिथिल हो गए। स्वामी निश्चलानंद के मुताबिक गंगा का शुद्धीकरण हर उस राज्य का दायित्व है, जहाँ से गंगा गुजरती है।

शंकराचार्य की इस बात पर गौर करें तो गंगा की बदहाली के लिये न सिर्फ केंद्र सरकार बल्कि राज्य सरकारों की उदासीनता भी उतनी ही जिम्मेदार है। केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकारों के पास भी गंगा को लेकर कोई ठोस योजना या दृष्टि नहीं है। गंगोत्री से निकलने वाली गंगा उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड होते हुए पश्चिम बंगाल में जाकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इन सभी राज्यों में कई स्थानों पर गंदगी सीधे गंगा में गिराई जाती है। प्रदूषण की मार झेल रही गंगा के दर्द की बात करें तो इस पर मरहम लगाने के लिये उ.प्र., बिहार और पश्चिम बंगाल सरकार ने योजनाएं तो चला रखी हैं लेकिन वे भी गंगा की तरह भ्रष्टाचार के प्रदूषण की चपेट में हैं।

कहने के लिये भले ही इन राज्यों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट यानी अवजल शोधन संयंत्र लगे हुए हैं लेकिन उनके रखरखाव को लेकर जिस तरह से राज्य सरकार लापरवाही बरतती है, वह किसी से छिपा नहीं है। इनमें से अधिकांश या तो खराब पड़े होते हैं या फिर बिजली की अनुपलब्धता के चलते बंद पड़े रहते हैं।

गंगानदियों को प्रदूषित करने में चमड़ा उद्योग हो या डिस्टलरियां या फिर कागज बनाने वाले कल-कारखाने, सभी पर्यावरण के नियम-कानून की धज्ज्यिाँ उड़ा रहे हैं। नतीजतन कई स्थानों पर इसकी स्थिति नाले से भी गई गुजरी हो जाती है। सिर्फ गंगा ही नहीं यमुना समेत इसकी सभी सहायक नदियों काली, कृष्णी, गोमती, दामोदर, पांडु, पांवधोई, मंदाकिनी, सई, आमी आदि का भी कमोबेश यही हाल है। गौरतलब है कि 115 छोटी नदियाँ गंगा में मिलती हैं। हाल ही में उत्तर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने काली नदी के प्रदूषण पर जवाब मांगा है। देश के 29 बड़े शहरों और 71 बड़े कस्बों के सीवरेज का दूषित मल-जल सीधे-सीधे रोज गंगा में मिल रहा है। इसके अलावा 150 कारखानों और 400 टेनरीज का सड़ा हुआ पानी गंगा में गिराया जा रहा है।

गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिये राजीव गाँधी ने गंगा एक्शन प्लान 1985 में शुरू किया था, जबकि गंगा की मुक्ति को लेकर आंदोलन 1982 से ही चल रहा था। हालाँकि इन सबसे पहले गंगा की अहम लड़ाई लड़ने वालों में मदन मोहन मालवीय का नाम आता है। जिन्होंने अंग्रेजों के शासन में हीं गंगा को लेकर अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद गंगा को मोक्ष दिलाने वाले कई भगीरथ सामने आए। स्वामी निगमानंद ने तो गंगा को अविरल बनाए रखने के लिये जान तक दे दी। कुछ उन्हीं की राह पर पहले प्रो. जी.डी. अग्रवाल और अब स्वामी ज्ञानस्वरूप ‘सानंद’ चल रहे हैं। स्वामी सानंद गंगा के नैसर्गिक प्रवाह की मांग करते हुए कई बार आमरण अनशन पर बैठ चुके हैं। अहम बात यह कि उनके अनशन पर कई बार सरकार ने झुकते हुए अपने फैसले बदले हैं। फिर चाहे उत्तराखंड सरकार द्वारा जल विद्युत परियोजना पाला मनेरी और भैरों घाटी का काम रोकने का फैसला हो या फिर केंद्र सरकार की परियोजनाओं को बंद करवाना हो।

संत सानंद के गुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद भी अपने गुरू महाराज ज्योतिष पीठाधीश्वर एवं द्वारका पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के संरक्षण में ‘गंगा सेवा अभियान’ चला रहे हैं। उनके इस अभियान में सभी संप्रदाय के लोग जुड़े हुए हैं। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किए जाने का श्रेय शंकराचार्य के उस प्रयास को देते हैं, जो उन्होंने कई साल पहले माघ मेले में गंगा को लेकर उपवास किया था। गंगा को बचाने के लिये बाबा रामदेव ने भी ‘गंगा रक्षा मंच’ के जरिए देश के 568 जिलों में राष्ट्रव्यापी गंगा आंदोलन छेड़ा। लेकिन जिस तरह उन्होंने जेपी ग्रुप द्वारा बनाए जाने वाले गंगा एक्सप्रेस वे को लेकर मौन साधे रखा उस पर काफी सवाल उठे थे। गंगा के निर्मलीकरण अभियान को उनकी राजनीति से जोड़ कर देखा गया।

हालाँकि बाबा रामदेव गंगा को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर उसे प्रदूषित करने वालों के खिलाफ दंड की व्यवस्था किए जाने की बात पर जोर देते रहे हैं। गंगा से जुड़े प्रमुख संतों में टीकरमाफी आश्रम के महंत हरिचैतन्य ब्रह्मचारी महाराज का नाम भी मुख्य रूप से आता है, जिनका मानना है कि आज गंगा के नाम पर कई गैरसरकारी संगठन सिर्फ इसलिये जुड़े हुए हैं क्योंकि उनको सरकार से धन मिलता है। यदि सरकार उन्हें धन देना बंद कर दे तो वे इससे अपना मुँह मोड़ लेंगे।

बहरहाल हमारे जिस देश में पवित्रता की परिभाषा गंगाजल से लिखी जाती हो वहाँ इन दिनों गंगा को मोक्ष दिलाने के लिये कई भागीरथ पैदा हो गए हैं लेकिन जिस तरह से इस पवित्र उद्देश्य के लिये सभी ने अपने अलग-अलग मंच बना रखे हैं उसमें उनकी गंगा के प्रति आस्था और उद्देश्य पर शक होना लाजिमी है।

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