गंगा के लिए गम्भीर प्रयास करें, राजनीति नहीं

किसी ने सच कहा है कि राजनीति में किसी का धर्म-ईमान नहीं होता, तभी तो चुनाव से पहले तक गंगा को लेकर अपनी राजनीति चमकाने और गंगा की पवित्रता को लेकर सरकार को घेरने वाले ही चुनाव के शोर में गंगा को भूल गए हैं। हद तो यह है कि उनके चुनावी घोषणा-पत्र तक से गंगा विलुप्त हो गई है, जबकि गंगा की हालत बद से बदतर होती जा रही है। सच यह भी है कि इस गंगा को प्रदूषणयुक्त करने में इन गंगा भक्तों का भी बड़ा हाथ है। ये भक्त ही गंगा में साबुन लगाकर स्नान करने से लेकर गंगा में कपड़े धोने, हवन की सामग्री, धार्मिक कैलेण्डर, पुराने कपड़ों से लेकर धार्मिक आस्था के नाम पर शव तक को बहा देते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि मोक्षदायिनी गंगा कैसे पवित्र रह पाएगी? और कैसे उसका जल आचमन लायक रह पाएगा? राधा-कृष्ण की महारास लीला से स्वर्ग में जन्मी गंगा भगीरथ की तपस्या से खुश होकर जनकल्याण के लिए बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को स्वर्ग का सुख छोड़कर भगवान शिव की जटाओं से होती हुई धरती पर आईं।

कहा जाता है कि गंगा के ही भरोसे शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष का पान किया था ताकि गंगा की शीतलता उन्हें विष के ताप से मुक्त कर सके। जिस गंगा ने शिव को शीतलता प्रदान की, वही गंगा आम भक्तों के लिए भी मोक्षदायिनी है। यह बात और है कि गंगा की गोद में डुबकी लगाते ही जो लोग धर्म और अध्यात्म के नाम पर गंगा को महिमा मंडित करते हैं, वही इसे प्रदूषित करने में भी पीछे नहीं रहते। अब तो गंगा के उद्गम स्थल गोमुख यानी गंगोत्री में भी श्रद्धालुओं व पर्यटकों ने प्रदूषण फैलाना शुरू कर दिया है।

गंगा में सीवर का गंदा पानी, नालों की निकासी, मूर्तियां, धार्मिक कैलेण्डर, हवन की राख और जले-अधजले शवों को बहाकर हम गंगा के साथ अन्याय कर रहे हैं। इन सबके प्रति आवाज उठाने के बजाए गंगा से ऊर्जा पैदा करने को लेकर राजनीति की जा रही है, जिसे लेकर मां गंगा भी आहत हैं।

पौराणिक ग्रंथों में कहीं भी ऐसा कोई उल्लेख नहीं है कि गंगा के जल का किसी भी रूप में प्रयोग करने से गंगा की पवित्रता प्रभावित होती हो। इसलिए गंगा नदी पर प्रस्तावित केन्द्रीय एवं निजी उपक्रमों की विभिन्न परियोजनाओं से गंगा की पवित्रता कम होने का सवाल ही नहीं उठता। बस जरूरत है, तो इस बात की कि हम स्वयं गंगा में ऐसा कुछ न डालें जिससे गंगा प्रदूषित हो।

गंगा में व्याप्त प्रदूषण के कारण गंगाजल के आचमन और उससे स्नान पर भी सवाल उठने लगे हैं। गंगा एक्शन प्लान के नाम पर पिछले दो दशकों में करोड़ों रुपए खर्च कर देने पर भी शिव की गंगा को मैली ही है। गंगा को लेकर सस्ती राजनीति कर रहे कुछ पर्यावरणविद व राजनीतिक लोग राष्ट्र की खुशहाली व तरक्की की पर्याय बनी गंगा की विद्युत परियोजनाओं को पलीता लगाने में लगे हुए हैं।वैसे भी गंगा का अवतरण जनकल्याण के लिए ही हुआ है। तभी तो गंगा संकट मोचक मानी जाती है। यह गंगा जल की विशेषता ही है कि वर्षो तक रखा रहने पर भी यह कभी खराब नहीं होता। लेकिन, हमें विचार करना होगा कि गंगोत्री से गंगा सागर तक के 2500 किमी. लम्बे सफर में गंगा की हालत क्या से क्या हो चुकी है? इस पर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। अलबत्ता केन्द्र सरकार ने गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में एक भारी भरकम बजट जरूर निर्धारित कर दिया है।

यह बजट गंगा को कितना प्रदूषण मुक्त बना पाएगा, यह तो भविष्य बताएगा, लेकिन सांकेतिक रूप में विभिन्न स्वयंसेवी संगठन व चिंतक जरूर गंगा की सफाई का अभियान चला चुके हैं। गंगा में व्याप्त प्रदूषण के कारण गंगाजल के आचमन और उससे स्नान पर भी सवाल उठने लगे हैं। गंगा एक्शन प्लान के नाम पर पिछले दो दशकों में करोड़ों रुपए खर्च कर देने पर भी शिव की गंगा को मैली ही है। गंगा को लेकर सस्ती राजनीति कर रहे कुछ पर्यावरणविद व राजनीतिक लोग राष्ट्र की खुशहाली व तरक्की की पर्याय बनी गंगा की विद्युत परियोजनाओं को पलीता लगाने में लगे हुए हैं।

गंगा की गोद में ऊर्जा को जन्म देने के लिए प्रस्तावित विद्युत परियोजना में 600 मेगावाट की लोहारी नागपाल, 850 मेगावाट की कोटली भेल, 120 मेगावाट की टिहरी-2, गरबा तवाघाट की 630 मेगावाट परियोजनाओं के साथ-साथ 500 मेगावाट की तपोवन विष्णु परियोजना, 500 मेगावाट की कोटेश्वर परियोजना, 340 मेगावाट की पीपली कोटी व 310 मेगावाट लता तपोवन तथा 240 मेगावाट की सोबला परियोजना को जोड़ दें तो कुल मिलाकर तकरीबन 4090 मेगावाट ऊर्जा गंगा की गोद से पैदा करने की सरकार की मंशा रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि गंगाजल से ऊर्जा पैदा करने से जल की पवित्रता प्रभावित नहीं होती। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि गंगा की गोद से ऊर्जा भी मिले और मोक्ष भी मिले, लेकिन साथ ही गंगा को स्वयं भी प्रदूषण मुक्त रहने दिया जाये तो गंगा का जल अमृत बनाया जा सकता है।

ऐसा सिर्फ गंगा पर राजनीति करने से नहीं होगा, बल्कि वास्तव में गंगा की भलाई के लिए ठोस प्रयास करने से होगा। लोकसभा चुनाव एक अच्छा अवसर है, जब देश की राजनीतिक पार्टियां गंगा की पवित्रता के लिए अपनी प्रतिबद्धता अपने चुनावी घोषणा-पत्रों में प्रदर्शित करतीं, लेकिन अफसोस कि चुनाव के शोर में वे लोग गंगा को भूल गए, जिनकी राजनीति ही गंगा पर टिकी है। ऐसे लोगों को गंगा कभी माफ नहीं करेगी तथा गंगा की अनदेखी करने वाले इन राजनीतिज्ञों को जनता इस चुनाव में कड़ा सबक जरूर सिखाएगी।

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