प्रयागराज में महाकुंभ को लेकर साधु-संतों का आगमन बढ़ने लगा है। इसी क्रम में श्री शंभू पंचाग्नि अखाड़े की शोभायात्रा शाही अंदाज में निकाली गई। अखाड़ों की परंपरा से अलग हटकर पहली बार अग्नि अखाड़े ने अपने महामंडलेश्वरों की अलग से शोभायात्रा निकाली है। इस यात्रा को दर्जनों डीजे व हाथी-घोड़ों के साथ कड़ी सुरक्षा के बीच निकाला गया। शोभा यात्रा में शामिल महामंडलेश्वरों के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहा। यह शोभा यात्रा भारी सजावट के साथ हाथी, घोड़ों व चार पहिया वाहन को साथ लेकर हिंदी साहित्य सम्मेलन से निकली। महाकुंभनगरी। इलाहाबाद में मकर संक्रांति के स्नान के साथ ही महाकुंभ के शुभारंभ का शंखनाद हो गया है लेकिन गंगा जल को निर्मल बनाने की प्रदेश सरकार की कवायद सफल होती प्रतीत नहीं हो रही है। मंगलवार को ही मुज़फ़्फरनगर में चल रहे आठ कारख़ानों को सील किया गया जिनका प्रदूषित जल गंगा में प्रवाहित किया जा रहा था। महाकुंभनगरी में गंगा की स्वच्छता को लेकर अभी भी लोगों की शिकायत बरकरार है। कानपुर की तरफ से आने वाला गंगा जल लाल तो नहीं है लेकिन उसमें प्रदूषण साफ नजर आता है। गंगा में टेनरियों और अन्य कारख़ानों का प्रदूषित जल किस तरह से छोड़ा जा रहा है उसका उदाहरण सरकार की ही कार्रवाई है जिसमें मुज़फ़्फरनगर के आठ कारख़ानों को इलाहाबाद में चल रहे कुंभ मेले के दौरान गंगा नदी को प्रदूषण से रोकने के लिए अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया है। जिला प्रशासन ने यह कदम गंगा को प्रदूषण से दूर रखने के लिए उठाया है। कल ही कानपुर में 29 टेनरियों के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज कराई गई थी जिनकी बिजली काट दिए जाने के बावजूद वे बिजली का उपभोग कर रही थीं।
इसके पूर्व कानपुर में चमड़ों के कारख़ानों को तीन चरणों में बंद करने की घोषणा कर दी गई है। सभी चमड़ा कारखाने 11 जनवरी से 13 फरवरी तक तथा 22 फरवरी से 24 फरवरी तक और फिर 6 मार्च से 9 मार्च तक पानी का काम नहीं करेंगे। वहां के जिलाधिकारी ने यह बयान देकर सबको सकते में डाल दिया था कि टेनरियों को बंद करना मुश्किल काम है क्योंकि वे वर्षों से यही काम करती आ रही हैं।
कानपुर में जिला प्रशासन ने शहर में चल रही 350 से ज्यादा चमड़ा इकाइयों के निरीक्षण के लिए प्रशासनिक अधिकारियों की 7 टीमें बनाई हैं, जो जाजमऊ और अन्य इलाकों में लगातार निगरानी कर रही हैं कि किसी भी चमड़ा फैक्ट्री से गंदा पानी गंगा में न बहाया जाए। इससे पहले गंगा में प्रदूषित पानी बहाने वाली 33 चमड़ा फैक्ट्रियों पर जिला प्रशासन ने मुकदमा दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू कर 7 टेनरियों को बंद करा दिया था। जिला प्रशासन ने चमड़ा फैक्ट्रियों के प्रदूषण के लिए बनाई गई प्रशासनिक टीमों में मजिस्ट्रेट स्तर का एक अधिकारी भी तैनात किया है। ये टीमें कुंभ मेले तक रोज इनका निरीक्षण करेंगी प्रशासन के अनुसार सिंचाई विभाग जनवरी के पहले हफ्ते से गंगा में रोज साफ पानी छोड़ रहा है। इस पानी को प्रदूषण से बचाने के लिए प्रशासन अतिरिक्त सतर्कता बरत रहा है। प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक टेनरियों की नियमित अंतरल पर जांच की जाती है। इस जांच के दौरान पाया गय कि कई टेनरियां ऐसी हैं जिन्होंने कहने को ट्रीटमेंट प्लांट तो लगा रखा है लेकिन इनसे निकलने वाला प्रदूषित पानी प्लांट की पानी साफ करने की क्षमता सके कहीं अधिक है। यह प्रदूषित पानी को गंगा में बहा दिया जाता है। वहीं टेनरी मालिकों का कहना है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और प्रशासन टेनरियों पर गलत आरोप लगा रहे हैं। टेनरी से निकलने वाला गंदा पानी कामन इफ्लयुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) के जरिए साफ होकर ही गंगा में बहाया जाता है। टेनरी मालिकों का कहना है कि अगर सरकार इसी तरह टेनरियां बंद करवाती रही तो हजारों मज़दूर बेरोज़गार हो जाएंगे और उनके परिवार सड़क पर आ जाएंगे।
वाराणसी में गंगा किनारे घाटों पर बहुमंजिली शौचालयों के प्रस्ताव पर अदालत ने राज्य सरकार से अपना पक्ष रखने को कहा है। इस प्रस्ताव के विरुद्ध दायर एक जनहित याचिका में इसके औचित्य पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि उन जगहों पर बहुमंजिली शौचालयों की कोई आवश्यकता है ही नहीं।
गौरीशंकर पांडेय द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति एस.के. सिंह एवं न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता की खंडपीठ ने राज्य सरकार से यह पूछा है कि आखिर इन शौचालयों के निर्माण के पीछे उसकी मंशा और तर्क क्या हैं। अदालत ने शौचालयों की उपयोगिता को लेकर भी नगर निगम और पर्यटन महकमे से जानकारी मांगी है। ग़ौरतलब है कि पर्यटन विभाग व नगर निगम की सहमति से इन बहुमंजिला शौचालयों के निर्माण के प्रस्ताव तैयार किया गया है। याचिका में कहा गया है कि गंगा किनारे इस प्रकार में कहा गया है कि गंगा किनारे इस प्रकार के शौचालयों की कोई जरूरत नहीं है। जबकि नगर निगम और राज्य सरकार ने यह कहकर याचिका की पोषणीयता पर सवाल खड़ा किया है कि अभी यह प्रस्ताव है, कोई निर्माण नहीं किया जा रहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 15 दिन बाद होगी।
इसके पूर्व कानपुर में चमड़ों के कारख़ानों को तीन चरणों में बंद करने की घोषणा कर दी गई है। सभी चमड़ा कारखाने 11 जनवरी से 13 फरवरी तक तथा 22 फरवरी से 24 फरवरी तक और फिर 6 मार्च से 9 मार्च तक पानी का काम नहीं करेंगे। वहां के जिलाधिकारी ने यह बयान देकर सबको सकते में डाल दिया था कि टेनरियों को बंद करना मुश्किल काम है क्योंकि वे वर्षों से यही काम करती आ रही हैं।
कानपुर में जिला प्रशासन ने शहर में चल रही 350 से ज्यादा चमड़ा इकाइयों के निरीक्षण के लिए प्रशासनिक अधिकारियों की 7 टीमें बनाई हैं, जो जाजमऊ और अन्य इलाकों में लगातार निगरानी कर रही हैं कि किसी भी चमड़ा फैक्ट्री से गंदा पानी गंगा में न बहाया जाए। इससे पहले गंगा में प्रदूषित पानी बहाने वाली 33 चमड़ा फैक्ट्रियों पर जिला प्रशासन ने मुकदमा दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू कर 7 टेनरियों को बंद करा दिया था। जिला प्रशासन ने चमड़ा फैक्ट्रियों के प्रदूषण के लिए बनाई गई प्रशासनिक टीमों में मजिस्ट्रेट स्तर का एक अधिकारी भी तैनात किया है। ये टीमें कुंभ मेले तक रोज इनका निरीक्षण करेंगी प्रशासन के अनुसार सिंचाई विभाग जनवरी के पहले हफ्ते से गंगा में रोज साफ पानी छोड़ रहा है। इस पानी को प्रदूषण से बचाने के लिए प्रशासन अतिरिक्त सतर्कता बरत रहा है। प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक टेनरियों की नियमित अंतरल पर जांच की जाती है। इस जांच के दौरान पाया गय कि कई टेनरियां ऐसी हैं जिन्होंने कहने को ट्रीटमेंट प्लांट तो लगा रखा है लेकिन इनसे निकलने वाला प्रदूषित पानी प्लांट की पानी साफ करने की क्षमता सके कहीं अधिक है। यह प्रदूषित पानी को गंगा में बहा दिया जाता है। वहीं टेनरी मालिकों का कहना है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और प्रशासन टेनरियों पर गलत आरोप लगा रहे हैं। टेनरी से निकलने वाला गंदा पानी कामन इफ्लयुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) के जरिए साफ होकर ही गंगा में बहाया जाता है। टेनरी मालिकों का कहना है कि अगर सरकार इसी तरह टेनरियां बंद करवाती रही तो हजारों मज़दूर बेरोज़गार हो जाएंगे और उनके परिवार सड़क पर आ जाएंगे।
गंगा किनारे शौचालयों के निर्माण पर राज्य सरकार से जानकारी मांगी
वाराणसी में गंगा किनारे घाटों पर बहुमंजिली शौचालयों के प्रस्ताव पर अदालत ने राज्य सरकार से अपना पक्ष रखने को कहा है। इस प्रस्ताव के विरुद्ध दायर एक जनहित याचिका में इसके औचित्य पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि उन जगहों पर बहुमंजिली शौचालयों की कोई आवश्यकता है ही नहीं।
गौरीशंकर पांडेय द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति एस.के. सिंह एवं न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता की खंडपीठ ने राज्य सरकार से यह पूछा है कि आखिर इन शौचालयों के निर्माण के पीछे उसकी मंशा और तर्क क्या हैं। अदालत ने शौचालयों की उपयोगिता को लेकर भी नगर निगम और पर्यटन महकमे से जानकारी मांगी है। ग़ौरतलब है कि पर्यटन विभाग व नगर निगम की सहमति से इन बहुमंजिला शौचालयों के निर्माण के प्रस्ताव तैयार किया गया है। याचिका में कहा गया है कि गंगा किनारे इस प्रकार में कहा गया है कि गंगा किनारे इस प्रकार के शौचालयों की कोई जरूरत नहीं है। जबकि नगर निगम और राज्य सरकार ने यह कहकर याचिका की पोषणीयता पर सवाल खड़ा किया है कि अभी यह प्रस्ताव है, कोई निर्माण नहीं किया जा रहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 15 दिन बाद होगी।
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