महाकुंभनगरी। जब गंगा ही नहीं रहेंगी तो गंगा का प्रदूषण दूर करने से क्या लाभ? त्रिवेणी की तट पर पहुंच रहीं गंगा क्या वही गंगा हैं जिसके रोगनाशक जल में डुबकी लगाने के लिए करोड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ यहां पर जुटी है?
जब उत्तराखंड में मनेरी बांध से लेकर कोटेश्वर तक करीब 140 किलोमीटर तक गंगा को बांध दिया गया और वहां पर गंगा का कोई अस्तित्व ही नहीं बचा है तो मैदानी इलाके में पहुंची गंगा भी असली गंगा नहीं रही। गंगा-यमुना के संगम पर जुटे इस दुनिया के सबसे बड़े मेले में पहाड़ों पर गंगा के साथ हुए अत्याचार को लोगों को बताने के लिए मंच की तरह इस्तेमाल करने की तैयारी हो गई है। उत्तराखंड से आए लोग 25 जनवरी को संगम तट पर प्रदर्शन करके लोगों को बताएंगे कि जिस शान से वे गंगा के लिए यहां पर आए हैं वह कुछ ही दिनों की मेहमान है। हो सकता है कि अगले कुंभ तक मैदानों में गंगा का अस्तित्व समाप्त हो जाए और कुंभ की परंपरा भी खत्म हो जाए।
गंगा व हिमालय बचाने की मुहिम में एकजुट हुए गंगोत्री, यमुनोत्री, मंदाकिनी व अलकनंदा घाटियों के प्रतिनिधि आंदोलनकारी बुधवार को कुंभनगरी पहुंच गए हैं। वे कुंभ के अवसर पर लोगों को जागरूक करने के अभियान के तहत यहां आए हैं। गंगा आह्वान नाम से गंगा के नैसर्गिक व सांस्कृतिक प्रवाह हेतु एक जन अभियान शुरू करने वाले उत्तराखंड के हेमंत ध्यानी पहाड़ों में गंगा को लेकर हो रहे विलाप के बारे में बताते हैं कि वहां पर गंगा नदी में जल न होने के कारण लोग मृतकों का अंतिम संस्कार भी नहीं कर पा रहे हैं। जब गांव में किसी की मृत्यु हो जाती है तो वे लोग बांध बनाने वाली कंपनियों को नदी में पानी छोड़ने के लिए आवेदन करते हैं ताकि मृतक के अंतिम संस्कार के बाद उसकी राख को गंगा में प्रवाहित किया जा सके। लोगों के आवेदन के दो-तीन दिनों के बाद और कभी-कभी तो चार दिनों के बाद पानी नदी में छोड़ा जाता है, तब जाकर मृतक का अंतिम संस्कार पूरा हो पाता है।
ध्यानी ने कहा कि जब 140 किलोमीटर तक गंगा में पानी ही नहीं है तो प्रयाग के तट पर पहुंचा हुआ पानी गंगाजल कैसे हो सकता है? अभी तो सरकार के कहने पर नरोरा से पानी छोड़ा जा रहा है वरना संगम पर पहुंचा पानी रास्ते में पड़ने वाले नालों का ही पानी होता है। यह बात आमतौर पर लोगों को मालूम नहीं है, इसलिए वे अपने साथियों के साथ यहां पर आए हुए हैं और शुक्रवार को संगम तट पर प्रदर्शन करके जागरुकता अभियान चलाएंगे ताकि देश-विदेश से आए लोगों को गंगा को बांधों की जंजीरों में जकड़े जाने की बात मालूम हो सके।
ध्यानी के इस मिशन में इलाहाबाद के सपा सांसद कुं. रेवती रमण सिंह भी साथ दे रहे हैं। कुं. रेवती रमण सिंह ने संसद में नियम 193 के तहत दो बार इस मामले को उठाया है और इस पर साढ़े चार घंटे तक चर्चा भी हुई है। कई प्रदेशों के सांसदों ने गंगा को बचाने के समर्थन में अपनी बातें कही भी। लेकिन केंद्र व उत्तराखंड की राज्य सरकारें अब भी संवेदनहीन बनी हुई हैं। केंद्र द्वारा गठित चतुर्वेदी कमेटी का रवैय्या बहुत ही खेदजनक रहा है और अभी तक उन्होंने रिपोर्ट नहीं दी है। लगता है कि केंद्र कुम्भ के इस अवसर को टालने की मंशा में हैं। उन्होंने बताया कि सबको इस बात के लिए एकजुट होना होगा कि जब गंगा का अस्तित्व हिमालय में ही संकटग्रस्ट है तो मैदानी भागों में केवल इसकी सफाई की बात करना कैसे सार्थक हो सकता है।
अभियान में चल रहे केदारघाटी हिमालय से आये बुजुर्ग बचन सिंह दुमागा, गौर सिंह पंवार, सावित्री देवी और नागदत्त भट्ट भी ठंड के मौसम और मार्ग की परेशानियों की परवाह न कर महाकुम्भ में अलख जगाने हेतु पूरे जोर शोर से उत्साहित हैं। बचन सिंह दुमागा ने बताया कि हिमालय की सुरक्षा की और देश का ध्यान आकर्षित करने हेतु आज सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी हमारे सिर पर है, नदियां बचेंगी तभी कुम्भ जैसे आयोजन भी आगे सार्थक रह पायेंगे।
रेवती रमण सिंह ने कहा कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की सरकारें उत्तराखंड में रह चुकी हैं और वे दोनों सरकारें गंगा के अस्तित्व को खत्म करने की साज़िश में शामिल हैं। उन्होंने बताया कि टिहरी और अन्य परियोजनाओं से जो बिजली उत्पादन की बात की जा रही है, केंद्र को उतनी मात्रा में बिजली उत्तराखंड सरकार को उपलब्ध करा देना चाहिए और हिमालय को बचा लेना चाहिए। रेवती रमण सिंह ने आज यहां घोषणा की कि वे 25 जनवरी के आंदोलन में शिरकत करेंगे और इस आंदोलन को पूरे भारत में फैलाएंगे। प्रयाग के बाद वे वाराणसी, फिर कानपुर और फिर उसके बाद जिन राज्यों से गंगा गुजरती हैं वहां पर भी जाएंगे।
जब उत्तराखंड में मनेरी बांध से लेकर कोटेश्वर तक करीब 140 किलोमीटर तक गंगा को बांध दिया गया और वहां पर गंगा का कोई अस्तित्व ही नहीं बचा है तो मैदानी इलाके में पहुंची गंगा भी असली गंगा नहीं रही। गंगा-यमुना के संगम पर जुटे इस दुनिया के सबसे बड़े मेले में पहाड़ों पर गंगा के साथ हुए अत्याचार को लोगों को बताने के लिए मंच की तरह इस्तेमाल करने की तैयारी हो गई है। उत्तराखंड से आए लोग 25 जनवरी को संगम तट पर प्रदर्शन करके लोगों को बताएंगे कि जिस शान से वे गंगा के लिए यहां पर आए हैं वह कुछ ही दिनों की मेहमान है। हो सकता है कि अगले कुंभ तक मैदानों में गंगा का अस्तित्व समाप्त हो जाए और कुंभ की परंपरा भी खत्म हो जाए।
गंगा व हिमालय बचाने की मुहिम में एकजुट हुए गंगोत्री, यमुनोत्री, मंदाकिनी व अलकनंदा घाटियों के प्रतिनिधि आंदोलनकारी बुधवार को कुंभनगरी पहुंच गए हैं। वे कुंभ के अवसर पर लोगों को जागरूक करने के अभियान के तहत यहां आए हैं। गंगा आह्वान नाम से गंगा के नैसर्गिक व सांस्कृतिक प्रवाह हेतु एक जन अभियान शुरू करने वाले उत्तराखंड के हेमंत ध्यानी पहाड़ों में गंगा को लेकर हो रहे विलाप के बारे में बताते हैं कि वहां पर गंगा नदी में जल न होने के कारण लोग मृतकों का अंतिम संस्कार भी नहीं कर पा रहे हैं। जब गांव में किसी की मृत्यु हो जाती है तो वे लोग बांध बनाने वाली कंपनियों को नदी में पानी छोड़ने के लिए आवेदन करते हैं ताकि मृतक के अंतिम संस्कार के बाद उसकी राख को गंगा में प्रवाहित किया जा सके। लोगों के आवेदन के दो-तीन दिनों के बाद और कभी-कभी तो चार दिनों के बाद पानी नदी में छोड़ा जाता है, तब जाकर मृतक का अंतिम संस्कार पूरा हो पाता है।
ध्यानी ने कहा कि जब 140 किलोमीटर तक गंगा में पानी ही नहीं है तो प्रयाग के तट पर पहुंचा हुआ पानी गंगाजल कैसे हो सकता है? अभी तो सरकार के कहने पर नरोरा से पानी छोड़ा जा रहा है वरना संगम पर पहुंचा पानी रास्ते में पड़ने वाले नालों का ही पानी होता है। यह बात आमतौर पर लोगों को मालूम नहीं है, इसलिए वे अपने साथियों के साथ यहां पर आए हुए हैं और शुक्रवार को संगम तट पर प्रदर्शन करके जागरुकता अभियान चलाएंगे ताकि देश-विदेश से आए लोगों को गंगा को बांधों की जंजीरों में जकड़े जाने की बात मालूम हो सके।
कई प्रदेशों के सांसदों ने गंगा को बचाने के समर्थन में अपनी बातें कही भी। लेकिन केंद्र व उत्तराखंड की राज्य सरकारें अब भी संवेदनहीन बनी हुई हैं। केंद्र द्वारा गठित चतुर्वेदी कमेटी का रवैय्या बहुत ही खेदजनक रहा है और अभी तक उन्होंने रिपोर्ट नहीं दी है। लगता है कि केंद्र कुम्भ के इस अवसर को टालने की मंशा में हैं। उन्होंने बताया कि सबको इस बात के लिए एकजुट होना होगा कि जब गंगा का अस्तित्व हिमालय में ही संकटग्रस्ट है तो मैदानी भागों में केवल इसकी सफाई की बात करना कैसे सार्थक हो सकता है।
ध्यानी के अनुसार पहाड़ों पर गंगा और उनमें मिलने वाली नदियों अलकनंदा, भागीरथी, काली और अन्य नदियों पर कुल पांच सौ बांध बनाए जाने की परियोजनाएं तैयार की जा चुकी है। कंपनियों का इरादा गंगा को टनल से बहाने का है। इससे उसमें हिमालय की जड़ी-बूटियां नहीं मिल पाएंगी और रोगनाशक औषधियां से वंचित रह जाएगी। गंगा सिर्फ प्रदूषित पानी वाली नदी बनकर रह जाएगी। ध्यानी और उनके समर्थकों की मांग है कि टिहरी से 60 प्रतिशत जल निरंतर छोड़ा जाए और बांध बनाने की नई परियोजनाओं को बंद किया जाए।ध्यानी के इस मिशन में इलाहाबाद के सपा सांसद कुं. रेवती रमण सिंह भी साथ दे रहे हैं। कुं. रेवती रमण सिंह ने संसद में नियम 193 के तहत दो बार इस मामले को उठाया है और इस पर साढ़े चार घंटे तक चर्चा भी हुई है। कई प्रदेशों के सांसदों ने गंगा को बचाने के समर्थन में अपनी बातें कही भी। लेकिन केंद्र व उत्तराखंड की राज्य सरकारें अब भी संवेदनहीन बनी हुई हैं। केंद्र द्वारा गठित चतुर्वेदी कमेटी का रवैय्या बहुत ही खेदजनक रहा है और अभी तक उन्होंने रिपोर्ट नहीं दी है। लगता है कि केंद्र कुम्भ के इस अवसर को टालने की मंशा में हैं। उन्होंने बताया कि सबको इस बात के लिए एकजुट होना होगा कि जब गंगा का अस्तित्व हिमालय में ही संकटग्रस्ट है तो मैदानी भागों में केवल इसकी सफाई की बात करना कैसे सार्थक हो सकता है।
अभियान में चल रहे केदारघाटी हिमालय से आये बुजुर्ग बचन सिंह दुमागा, गौर सिंह पंवार, सावित्री देवी और नागदत्त भट्ट भी ठंड के मौसम और मार्ग की परेशानियों की परवाह न कर महाकुम्भ में अलख जगाने हेतु पूरे जोर शोर से उत्साहित हैं। बचन सिंह दुमागा ने बताया कि हिमालय की सुरक्षा की और देश का ध्यान आकर्षित करने हेतु आज सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी हमारे सिर पर है, नदियां बचेंगी तभी कुम्भ जैसे आयोजन भी आगे सार्थक रह पायेंगे।
रेवती रमण सिंह ने कहा कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की सरकारें उत्तराखंड में रह चुकी हैं और वे दोनों सरकारें गंगा के अस्तित्व को खत्म करने की साज़िश में शामिल हैं। उन्होंने बताया कि टिहरी और अन्य परियोजनाओं से जो बिजली उत्पादन की बात की जा रही है, केंद्र को उतनी मात्रा में बिजली उत्तराखंड सरकार को उपलब्ध करा देना चाहिए और हिमालय को बचा लेना चाहिए। रेवती रमण सिंह ने आज यहां घोषणा की कि वे 25 जनवरी के आंदोलन में शिरकत करेंगे और इस आंदोलन को पूरे भारत में फैलाएंगे। प्रयाग के बाद वे वाराणसी, फिर कानपुर और फिर उसके बाद जिन राज्यों से गंगा गुजरती हैं वहां पर भी जाएंगे।
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