गंगा-जल अब कर्ज से शुद्ध होगा

वाराणसी। गंगा-जल अब कर्ज से शुद्ध होगा । वैसे गंगा जल सदियों से शुद्धता के कारण हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र बिन्दु है। इधर औद्योगीकरण और गंगा नदी के तट पर बसे शहरों की अव्यवस्थित जिन्दगी और जल-निकासी ने गंगा में तबाही की नई इबारत लिख दी है। दोआबे की जिन्दगी में सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य और खुशहाली का सबब बनने वाली गंगा पर राजनीतिक जुमले बाजी जारी है। संत समाज से लेकर सियासती रहनुमाओं के बीच गंगा घिरी नजर आ रही है। स्वामी निगमानंद भारत की घोषित राष्ट्रीय नदी गंगा को बचाने के लिए शहीद हो गए जबकि वाराणसी में बाबा नागनाथ शहादत की ओर मुखातिब हैं। बाबा नागनाथ 1084 दिन से गंगा मुक्ति के लिए अनशन कर रहे हैं। याद आया आप को महाश्वेता देवी का हजार चौरासी की मॉं। वहॉं भी उद्देश्य मुक्ति ही है। बाबा नागनाथ टिहरी में बंधी गंगा को मुक्त कराने के लिए वाराणसी में अनशन पर बैठे हैं। नागनाथ गंगा जल के अविरल प्रवाह के लिए कटिबद्ध हैं। अब वे गंगा-जल की स्वच्छता के लिए धूनी रमाए हुए हैं। उधर राजनीतिक रंग में रंगी साध्वी उमा भारती भी गंगा बचाओ अभियान कार्यक्रम से अपने राजनीतिक-पतन को टालने की कोशिश में जी जान से जुटी हुई हैं। गंगा के बहाने वे दोआबे के क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी का चुनाव अभियान चलाकर हिन्दूवादी ताकतों को एकजुट करने में लगी हुई हैं। हालांकि साघ्वी उमा भारती अपने बयानों में समग्र गंगा अभियान के द्वारा गंगा की अविरल धारा एवं उसकी स्वच्छता को ही मुद्दा बना रही हैं।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के निर्देशन में गंगा नदी घाटी प्रबंधन योजना के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने 7000 करोड़ रूपये मंजूर किए हैं। इन रूपयों को गंगा नदी की सफाई एवं बहाव को सुनिश्चित किए जाने पर खर्च करना है। इन 7000 करोड़ रूपये की धनराशि में 5100 करोड़ रूपये केन्द्र की सरकार और 1900 करोड़ रूपये उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड एवं दूसरे संबंधित राज्य देंगे। केन्द्र द्वारा गंगा की इस योजना के क्रियान्वयन के लिए भविष्य में प्रदान किए जाने वाले 5100 करोड़ रूपये में 4600 करोड़ रूपये विश्व बैंक कर्ज के रूप में भारत को देगा। इसका सीधा सा मतलब है कि दोआबे के क्षेत्र को समृद्ध प्रदान करने वाली गंगा को साफ-सफाई के लिए खुद कर्ज से जूझना होगा। इसके लिए जिम्मेदार हमारे देश के गंगा-तट वासी ही हैं। जाहिर सी बात है कि कर्ज का बोझ भी आम भारतीयों पर ही पड़ेगा। इस परियोजना को आगामी 8 वर्षों में पूरा किया जाना सुनिश्चित है एवं इस पर कुल 15000 करोड़ रूपये अनुमानित लागत है। गंगा की अविरल एवं निर्मल धारा को सुनिश्चित करने के लिए गंगा नदी घाटी प्रबंधन योजना का प्रारूप आईआईटी कानपुर के नेतृत्व में कानपुर सहित देश के प्रमुख 7 आईआईटी संस्थानों ने तैयार किया है।

गंगा नदी गोमुख से निकली हुई है। गोमुख गंगोत्री हिमनद से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पहले गोमुख गंगोत्री में ही स्थित था। बाद में बर्फ के पिघलने की वजह से गंगोत्री से दूर होते-होते अब गोमुख 19 किलोमीटर की दूरी पर चला गया है। गाय के मुख के आकार का होने के कारण इसे गोमुख के नाम से जानते हैं। अभी भी बर्फ का पिघलना जारी है। गोमुख से तुरंत निकलने के बाद इसे देवप्रयाग तक भागीरथी नदी के नाम से जाना जाता है। देवप्रयाग के बाद इसे गंगा नदी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक राजा भगीरथ के अथक प्रयत्नों के बाद गंगा की स्वच्छ निर्मल धारा धरती पर प्रवाहित हुई थी। लेकिन सोच विचार के बाद हमें जानकारी मिलती है कि भागीरथी पूरी एक परंपरा का नाम है। मतलब इस बात से है कि गंगा का उद्गम या तो खुद हुआ होगा अथवा गंगा को भगीरथ नाम की पूरी परंपरा न इसे प्रवाहित किया होगा जिसमें राजा से लेकर आम जन तक के लोग रहे होंगे। अब जिस गंगा को स्वच्छ एवं निर्मल ढंग से प्रवाहित करने के लिए पूरी परंपरा ने मशक्कत की है उसी गंगा की बर्बादी में हमने कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी है। उत्तर प्रदेश में कन्नौज से लेकर वाराणसी तक लगभग 450 किलोमीटर के बीच गंगा सर्वाधिक प्रदूषित है। इस क्षेत्र में स्थापित औद्योगिक इकाइयॉं इस नदी को सर्वाधिक प्रदूषित कर रही हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कला संकाय के एसोसिएट प्रोफेसर डा. वेद प्रकाश कहते हैं कि सभ्यताओं की उत्पत्ति कारक नदियों को हमने प्रदूषित करके जानलेवा बना दिया है। मसलन गंगा नदी में 70 प्रतिशत सीवर का पानी बहता है और 30 प्रतिशत औद्योगिक प्रदूषण पाया जाता है। जबकि कवि जसवीर त्यागी जनादेश संवाददाता के पूछने पर दुखी मन से कहते हैं कि अब गंगा को देखकर कविता का स्वर नहीं फूटता बल्कि इसकी त्रासद स्थिति पर रोना आता है।

गौरतलब है कि गोमुख से लेकर अंतिम स्थल गंगासागर तक गंगा नदी तक इसकी लम्बाई 2510 किलोमीटर है। गंगा नदी घाटी का क्षेत्रफल 907000 वर्ग किलोमीटर है। देश की राष्ट्रीय नदी गंगा-तट पर हरिद्वार, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, गाजीपुर, पटना एवं कोलकाता जैसे नगर स्थित हैं। गंगा नदी में महाकाली, करनाली, कोसी, गंडक, घाघरा, यमुना, सोन और महानंदा आदि छोटी-बड़ी नदी मिलकर इसके स्वरूप को भव्यतम बनाती है। अफसोस मानव जीवन को धन-धान्य से पूर्ण करने वाली नदियों को हमने अपनी सुविधा के लिए बदतर हालात में पहुँचा दिया है। अब हमें कर्ज लेकर इसको सजाना संवारना पड़ रहा है।

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