लखनऊ गंगा एक्सप्रेस योजना पर फिलहाल ब्रेक लग गया है। मौजूदा पर्यावरणीय शर्तों के चलते राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण ने राज्य की मायावती सरकार के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को मंजूरी देने में अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। एक्सप्रेस वे का भविष्य अब केंद्र के पर्यावरण मंत्रालय के पाले में है, लेकिन महाराष्ट्र के लवासा प्रोजेक्ट व मुंबई की आदर्श सोसाइटी मामलों में पर्यावरण मंत्रालय के सख्त तेवरों को देखते हुए राज्य सरकार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना की डगर आसान नहीं दिखती।
प्राधिकरण द्वारा पर्यावरणीय मंजूरी न दिए जाने की वजह यह है कि गंगा एक्सप्रेस वे कई ऐसे इलाकों से होकर गुजरेगा जो देश के सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों (क्रिटिकली पॉल्यूटेड) की सूची में दर्ज हैं। ऐसे क्षेत्रों के 10 किमी के दायरे में आने वाले बड़े प्रोजेक्ट के निर्माण पर केंद्र ने फिलहाल रोक लगा रखी है। प्राधिकरण द्वारा बीते दिनों जेपी गंगा इंफ्रास्ट्रक्चर कार्पोरेशन को यह जानकारी दी गई है कि इस प्रोजेक्ट को पर्यावरणीय मंजूरी देना प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। भारत सरकार के पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआइए) एक्ट-2006 के प्रावधानों के तहत ही अब इस प्रोजेक्ट पर आगे की कार्रवाई संभव है।
गंगा एक्सप्रेस-वे के प्रस्ताव में प्राधिकरण ने पाया कि एक्सप्रेस वे का रास्ता कानपुर, बिल्हौर, मिर्जापुर, विंध्याचल व वाराणसी के कुछ ऐसे क्षेत्रों से होकर गुजरेगा जिनके 10 किमी की परिधि में अति प्रदूषित क्षेत्र के रूप में चिंहित हैं। ईआइए के अधीन ऐसे प्रोजेक्ट श्रेणी-ए में माने जाते हैं जिनकी मंजूरी का अधिकार सिर्फ केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के पास है। पर्यावरणीय प्रदूषण इंडेक्स के आधार पर पूरे देश में चिन्हित ऐसे 88 क्रिटिकल क्षेत्रों में से 12 प्रदेश में हैं। इन प्रदूषित इलाकों की सेहत सुधारने के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा समयबद्ध एक्शन प्लान बनाये गए हैं। जब तक इन एक्शन प्लान को केंद्र से हरी झंडी नहीं मिल जाती तब तक इन क्षेत्रों में नई परियोजनाओं को पर्यावरण मंजूरी देने पर रोक लगी हुई है। केवल लोकहित, राष्ट्रीय महत्व, प्रदूषण नियंत्रण व रक्षा संबंधी प्रोजेक्ट्स को ही मंजूरी देने पर पर्यावरण मंत्रालय विचार कर सकता है।
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