गंगा नदी : प्रदूषण के क्या समाधान हैं, हमें क्या करना होगा

गंगा नदी : प्रदूषण के क्या समाधान हैं, हमें क्या करना होगा
गंगा नदी : प्रदूषण के क्या समाधान हैं, हमें क्या करना होगा

इसका जवाब है घुलाव (डायल्युशन) और प्राकृतिक प्रवाह (इकोलोजिकल फ्लो)। इसका जवाब यह भी है कि जलमल का प्रबंधन कैसे किया जाए। और उद्यौगिक प्रदूषण का नियंत्रण कैसे हो

 नदी में प्राकृतिक प्रवाह तथा घुलाव क्षमता के लिए जल की उपलब्धता

यह स्वीकार करना होगा कि भारत में नदियों की सफाई के लिए, जबकि प्रदूषण नियंत्रण की लागत का प्रबंध करना तथा वहन करना कठिन है, घुलाव क्षमता के लिए विशाल परिमाण में जल की उपलब्धता असंभव होगी। 'स्वीकार्य जल-गुणवत्ता' के लिए उपलब्ध कराया गया मानक घुलाव कारक 10 है। ऐसा इसलिए कि जलाशयों के लिए निःस्राव मान 30 बीओडी निश्चित किया गया है, जबकि स्नान योग्य पानी की गुणवत्ता का मानक 3 बीओडी है। इस तथ्य के मद्देनजर कि अपशिष्ट जल के ट्रीटमेंट की एक बहुत बड़ी समस्या है। मान में कमी लाने की लागत अवहनीय होगी। इसके बदले, जो उपलब्ध कराया जा सकता है, वह जल का पर्याप्त प्रवाह है, जिससे अपशिष्ट के स्वयं-निपटान के लिए नदी में अपचयन क्षमता निर्मित हो सकेगी।

इसपर आवश्यक रूप से गौर करना होगा कि जल के बिना नदी केवल एक नाला है। यह भी एक तथ्य है कि, इस अतिरिक्त पानी के छोड़े जाने से ऊपरी प्रवाह क्षेत्र के किसानों को सिंचाई के पानी, और शहर तथा उद्योगों को आवश्यक जल से वंचित होना पड़ेगा। प्राकृतिक प्रवाह के लिए अतिरिक्त जल बखेड़ा खड़ा करेगा। लेकिन इस प्रवाह के लिए आवश्यक रूप से आदेश देना होगा, क्योंकि यह (प्रवाह) राज्य सरकारों के अपने जलाशय अधिकार क्षेत्रों के ठिकानों से निकलता है। सरकार के पास इसके बाद यह विकल्प होगा कि वह मानसून जल के संग्रहण के लिए जल-भंडारों का निर्माण कर अपनी सीमा में इस प्रवाह के साथ घुलाव क्षमता बढ़ाए, या नदी में पानी छोड़े तथा कृषि, पेयजल या उद्योग के लिए उपयोग के अन्य विकल्पों का चयन करे। दूसरे शब्दों में, सभी उपयोगकर्ताओं को पानी की आवश्यकता की योजना इस आधार पर बनानी होगी कि नदी कैसे ठीक हो सके।   न कि वे कितना पानी खींच सकें।

कार्य-योजना

नदी के सभी खंडों में प्राकृतिक प्रवाह अनिवार्य किया जाएगा। ऊपरी खंडों में, जहां सामाजिक आवश्यकताओं के साथ ही संकटपूर्ण पारिस्थितिक प्रक्रियाओं के लिए इसकी आवश्यकता है. इसे मुख्य ऋतु प्रवाह के लिए 50 प्रतिशत तथा अन्य ऋतुओं के लिए 30 प्रतिशत पर नियमित किया जाएगा। शहरीकृत खंडों में, इसे नदी में अपशिष्ट जल के निःस्राव के परिमाण के आधार पर नियमित किया जाएगा, और इसका आकलन घुलाव के कारक 10 के आधार पर होगा।

स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत केंद्र सरकार की सभी वित्तीय सहायताएं सशर्त होंगी, जो राज्यों द्वारा नदी को प्राकृतिक प्रवाह के लिए उपलब्ध कराने के परिमाण पर निर्भर होंगी।इसे मान लें कि शहरी क्षेत्र, प्रदूषण नियंत्रण के लिए आवश्यक रफ्तार और स्तर पर, परंपरागत सीवेज नेटवर्क के निर्माण के लिए मूलभूत संरचना नहीं जुटा पाएंगे अपशिष्ट के संवहन पर पुनर्विचार करना होगा और इसे ट्रीटमेंट प्लांट की योजना बनाते समय लागू करना होगा। इससे नालियों में प्रदूषण के नियंत्रण हेतु नवीन प्रयोगों के लिए विचार करने की प्रेरणा मिलेगी जैसे कि इन-सिटु (यथास्थान) सीवेज का उपचार और स्थानीय उपचार और पुनरुपयोग।

इसके सिवा, अगर योजनाएं सीवरेज नेटवर्क की अनुपलब्धता की स्वीकृति पर आधारित हैं, तो संश्लेषित निःस्राव पर सावधानीपूर्वक पुनर्विचार तथा अभिकल्पना तैयार की जाएगी। संष्लेषित निःस्राव नालियों में असंष्लेषित निःस्राव के साथ 'मिश्रित' नहीं किया जाएगा। बल्कि, सभी ट्रीटमेंट किए निःस्राव का या तो पुनरुपयोग किया जाएगा या सीधे नदी में बहा दिया जाएगा।

कार्य-योजना

  1. एसटीपी के लिए योजना न बनाएं बल्कि उन नालों का नियोजन करें जो गंगा में गिरते हैं। उच्च प्रदूषण भार वाले नालों पर आधारित कार्य को प्राथमिकता दें ताकि प्रभाव तुरंत  दिखने लगे। 
  2. नालों के अनुसार प्लान तैयार करें जो आंतरिक प्रवाह प्रणाली बनाए बिना ही अपशिष्ट का शोधन करते हैं। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिए इंटरसेप्शन (रोक) और पंपिंग की योजना बनाएं। साथ ही यथास्थान नाले के शोधन की योजना बनाएं क्योंकि इससे ऐसे निस्सारण के प्रदूषण स्तर को कम किया जा सकेगा जिसे रोक कर रखा नहीं जा सकता। मूल बात यह है कि अपशिष्टों को उपचारित करने के लिए खुले नाले का इस्तेमाल किया जाए। यह एक हकीकत है जिसे हम नकार नहीं सकते।
  3.  सुनिश्चित करें कि उपचारित निस्सारण की योजना बनाई जाए - उपचारित जल को दुबारा उपचारित न किया जाए और न ही इसे खुले नाले में फिर से बहाया जाए जहां यह दुबारा अनुपचारित जल के साथ मिश्रित हो जाता है। इसके बदले, इसके इस्तेमाल या निस्तारण की योजना होनी चाहिए।
  4. उपचारित जल को शहर में इस्तेमाल किया जाए या इसे कृषि कार्यों में प्रयुक्त किया जाए। सोच-विचार कर योजना बनाएं। इस लक्ष्य को क्रियान्वित करें।
  5. नदी में बहाए जाने से पहले गंदे पानी को उपचारित करें। ट्रीटमेंट प्लांट में निस्सरण से पहले नाले को रोका जाए या शेष बचे अपशिष्टों के लिए नदी के तट पर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाएं।
  6.  कोई भी अनुपचारित जल नदी में न डाला जाए। अपशिष्टों के समावेशन (एसिमिलेशन) हेतु प्राकृतिक प्रवाह की उपलब्धता निस्सरण के मानक तय करने कि लिए महत्वपूर्ण होती है। यदि नदी में पानी न हो, उसमें केवल मलजल और अपशिष्ट बहाए जाएं, तो नहाने और पीने लायक पानी की गुणवत्ता के लिहाज से मानक बहुत कठोर होने चाहिए। यह असीमित रूप से खर्चीला होगा गंदे पानी को पीने लायक स्तर तक परिशोधित करना और तब उसका इस्तेमाल करना गरीब देशों के लिए आर्थिक रूप से अव्यवहार्य होगा।
  7. यदि यह सब स्वीकार्य न हो, या इसे परिचालित करना संभव न हो तो नदी की सफाई का एकमात्र विकल्प यह रह जाता है कि शहरों से कहा जाए कि उन्हें अपनी जलापूर्ति निस्सरण बिन्दु से नीचे की धारा से करनी होगी। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें अपने ही अपशिष्ट जल का उपयोग करना होगा और अपने नागरिकों को पेय जल मुहैया करने के लिए उन्हें इसी अपशिष्ट जल को शुद्ध करने पर निवेश करना होगा।अन्यथा हमें यह जान लेना होगा कि हम सब कहीं न कहीं नदी के अनुप्रवाह (डाउनस्ट्रीम) में रहते हैं। आज हर शहर का अपशिष्ट बड़ी तेजी से अगले शहर की जलापूर्ति बनता जा रहा है।

 यह स्वीकार करें कि गंगा सफाई कार्यक्रमों के लिए सार्वजनिक रूप से कोष की आवश्यकता है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करें कि राज्य और नगर निकायों के प्रशासन को अपना योगदान चाहे तो कोष के रूप में करना होगा या प्राकृतिक प्रवाह के लिए पानी छोड़कर करना होगा। बावजूद इसके कि मौजूदा परिस्थिति में पूंजी और परिचालन लागतों के लिए केन्द्र सरकार से सहायता की जरूरत है, नदी की सफाई के लिए आवश्यक प्रदूषण नियंत्रण के विशाल इनफ्रास्ट्रक्चर को चलाने के लिए यह दीर्घकालीन रूप से व्यवहार्य नहीं होगा। जब तक राज्यों द्वारा सीवेज ट्रीटमेंट प्रणालियों के निर्माण या उनके रखररखाव की जिम्मेदारी वहन नहीं की जाती वे किफायती समाधान ढूंढने या परियोजनाओं के क्रियान्वयन की दिशा में रुचि नहीं लेंगे। मौजूदा व्यवस्था में केन्द्र सरकार आधारभूत संरचनाओं के लिए पूरी लागत उपलब्ध कराएगी और प्लांट के परिचालन की लागत भी मुहैया करेगी। किफायत और धारणीयता के लिए जल-अपशिष्ट अवसंरचना की योजना बनाने की प्रेरणा तो पूरी तरह नदारद ही है।

कार्य-योजना

केन्द्र सरकार द्वारा कोष प्रदायन में स्पष्ट शर्त होनी चाहिए कि राज्य द्वारा नदी में निस्सारित प्राकृतिक प्रवाह की मात्रा या पूंजी तथा अवसंरचना के परिचालन के भुगतान के अनुरूप ही वित्तीय सहायता दी जाएगी।

जल उपयोगिताओं के पास परिचालन के लिए शुल्क लगाने, शहर/बस्ती स्तर पर प्रदूषण भुगतानों के संचयन की अभिनव प्रणालियों के निर्माण हेतु कोई व्यवस्था नहीं है।

उद्यौगिक प्रदूषण के नियमों का कठोर प्रवर्तन करें


इसका कोई विकल्प नहीं है। यह स्पष्ट है कि उद्योगों को देश में वैधानिक रूप से लागू किए गए निस्सरण मानकों के पालन में अवश्य सक्षम होना चाहिए। यूपी में, रिकॉर्ड दिखाते हैं कि 2013 में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निरीक्षण किए गए प्रायः सभी उद्योगों द्वारा मौजूदा मानकों का उल्लंघन किया गया है। कठोर कदम उठाने का समय आ गया है।

लेखिकाः सुनीता नारायण

स्रोत :- सेंटर फॉर साइंस एन्ड एन्वायरन्मेंट
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वेबसाइट: www.cseindia.org

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Post By: Shivendra
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