आजकल प्राय: महानगरों को घनी आबादी के कारण नगर के मलिन पानी को मजबूरन तीसरे स्तर तक शोधित करना पड़ रहा है, जिससे वह स्नान करने योग्य स्तर तक शुद्ध होता है। इसे घरेलू प्रयोग के लिए संभरित करने के लिए और भी शोधित करना पड़ता है। खेद इस बात का है कि मशीनी साधनों से इस प्रकार की शोधन प्रक्रिया महंगी है और यह पर्यावरण सहयोगी भी नहीं है।
विकल्प के तौर पर दिल्ली स्थित एक गैर सरकारी संगठन पानी मोर्चा ने पारिस्थितिक पार्क पद्धति का प्रारूप तैयार और विकसित किया था। इस पद्धति में यद्यपि बड़े भूभाग की आवश्यकता है, परन्तु इससे कम लागत (लगभग पंचमांश व्यय में) में जल-मल को तृतीय स्तर तक शोधित किया जा सकता है। इससे आय होगी, जो इसके व्यवस्थापन व्यय के काम आएगी और इसमें स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। इस विधि में शोधन प्रक्रिया में कोई उर्जा व्यय नहीं की जाती और इस पर बाढ़ का कोई प्रभाव नहीं होता। इस प्रविधि की मुख्य विशेषताएं निम्नांकित है :
इसमें कुछ प्राकृतिक तकनीकों के माध्यम से मलिन पानी को तृतीय स्तर तक (स्नान योग्य हो जाने जितना) शोधन किया जाता है। यह बीओडी (जैविक ऑक्सीजन मांग) और कोलिफार्म, रुके हुए जल-मल के अनियंत्रित होते प्रभाव को कम करता है। पारम्परिक प्राकृतिक उपचार प्रक्रिया, जो जड़मूल क्षेत्र 'डकवीड', मत्स्यकी और वातनिर्पेक्षी, गहरेकुण्डों की अपेक्षा करती है, इसका सुधरा रूप प्रस्तुत करना इस पद्धति की मुख्य विशेषता है।
गंदा पानी इन निम्नांकित तकनीकियों से पृथक-पृथक टैंकों में उपचारित किया जाता है, इससे बीओडी (जैविक ऑक्सीजन मांग) और सीओडी (रासायनिक ऑक्सीजन मांग) के स्तर में आशातीत कमी, प्राप्त उपचारित जल के स्नान योग्य होने, जिससे आगे इसका पुनर्चक्रीकरण किया जा सकता है, जैसी सफलता प्राप्त की गयी है। प्राकृतिक उपचार प्रक्रिया में सुधार के लिए निम्नविधियां और जोड़ी गई हैं, इसमें अपेक्षाकृत कम स्थान की आवश्यकता होती है।
(अ) पहले टैंक में छनाई, रासायनिक टैस्टिंग और उपचारः-
इस प्रक्रिया में जहरीले तत्वों में कमी और भारी खनिज तत्व नीचे बैठ जाते हैं, जो वनस्पतियों द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं। इसमें जहरीले तत्वों को अप्रभावी करने के लिए रसायन मिलाए जाते हैं। इस टैंक में भारी तत्वों को चूस जाने वाली जलीय दालचीनी (हायसिंथ) उगाई जा सकती है।
(ब) वातनिर्पेक्षी उपचार करने के लिए उपचार सामग्री को गहरे टैंकों में डाला जाता है।
(स) जड़मूल क्षेत्रीय उपचार - इसमें जल-मल को कंकड़ और दूसरे जड़ीय पौधों के बीच से गुजारा जाता है, जिससे जड़मूल क्षेत्र में मल का अवशोषण हो सके। इसमें भारी खनिज भी अवशोषित कर लिए जाते हैं और जहरीले तत्वों में कमी आती है।
(द) उपचारित गंदे पानी की और सफाई के लिए उसे टैंकों में डाला जाता है, जिसमें डकवीड (कसपत का पौधा) तैरते होते हैं, ये खरपतवार भी मलदूषण का अवशोषण करते हैं।
(य) अंतिम सफाई के लिए दो जोड़ी मत्स्यिकी टैंक प्रयोग में लाए जाते हैं। इन टैकों में मलदूषित का अवशोषण करने के लिए ऐसी नस्ल की मछलियां डाली जाती हैं, जिन्हें खाने के उपयोग में नहीं लाया जाता है। ऐसे दूसरे टैंक में मत्स्य पालन किया जाता है, जिससे आय हो सके।
(बी) अर्ध पारिस्थितिकी पार्क, जिसे ''सीको पार्क'' कहेंगे
इसे इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि इसमें पहले से मैकेनिकल सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपीज) में द्वितीय स्तर तक संशोधित गंदे पानी को उच्चतर तृतीय स्तर तक संशोधित किया जा सके। इस प्रकिया के परिणामस्वरूप संशोधित जल स्नान करने के स्तर की शुद्धता वाला होगा और पुन: चक्रीयकरण के लिए उपयुक्त भी। ऐसा करने से निश्चय ही उस नदी के पानी की अशुद्धता में भी कमी होगी जिसमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का बहिस्राव छोड़ा जाता है। इससे यह भी निश्चित होगा कि नदी जल से भूमिगत जल भरण में साफ पानी ही जाएगा न कि गंदा पानी। पारिस्थितिकी पार्क के कुल टैंको में आधे ही सीको पार्क के लिए रखे जाते हैं, यह इस आधार पर है कि किसी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाला बहिस्राव किस स्तर का है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के कुछ बहिस्राव सीधे खेती और बागवानी में प्रयोग किये जाते हैं इसे सीको पार्क के पुन:उपचार की आवश्यकता नहीं रहती ।
(सी) दिल्ली स्थित पारिस्थितिकी पार्कों में तलछट सीवेज का उपचार -
आजकल दिल्ली में अनेक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट प्रयोग में लाए जा रहे हैं। अनेक पुराने प्लांटों की सफाई की गयी है। कुल 16 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम कर रहे हैं। इनकी कुल कार्य क्षमता लगभग 2280 मिलियन लीटर प्रतिदिन शोधन की है। अभी दिल्ली के जल-मल की मात्रा 3000 मिलियन लीटर प्रतिदिन है। खेद है कि अनुपयुक्त स्थल, पर्याप्त और उपयुक्त नालों कुण्डों का अभाव, बिजली फेल होने जैसे अनेक कारणों से वर्तमान प्लांट भी अपनी क्षमता भर सीवेज नहीं भर पाते। यहां तक कि भरा गया काफी सीवेज भी बिना उपचारित हुए रह जाता है। जो सीवेज उपचारित हो जाता है, वह भी स्नान करने योग्य शुद्धता वाला ही हो पाता है। क्योंकि उसका उपचार द्वितीय स्तर तक ही किया जाता है। इस प्रकार शहर का सारा जल-मल बिना उपचार या अपर्याप्त रूप से उपचार के साथ सीधा यमुना में छोड़ दिया जाता है।
यह आशंका है कि केशोपुर के निचले क्षेत्र में बड़ी मात्रा में सीवेज नजफगढ़ नाले में पड़ना और कुछ अन्य छोटी धाराओं के माध्यम से भी सीधे यमुना में पहुंचना जारी रहेगा। यह महसूस किया गया था कि इस सीवेज को यमुना में छोड़े ज़ाने से पूर्व निम्न प्रक्रिया से पारिस्थितिक पार्को में उपचारित किया जा सकता है। सौभाग्य से ऐसे एक नमूना पारिस्थितिक पार्क के उत्थापन प्रस्ताव की योजना आयोग ने संस्तुति की है और दिल्ली जल बोर्ड ने भी सिद्धान्तत: इसकी स्वीकृति दे दी है। अभी धन की व्यवस्था होना बाकी है। निम्न प्रस्तावित पारिस्थितिक पार्क; पार्कों की समग्र सूची में सम्मिलित नहीं हैं, परन्तु यह बिना उपचार हुए सीवेज के प्रमुख स्रोतों से संबंधित है।
(अ) नाला नजफगढ़- दिल्ली के सीवेज का एक तिहाई से ज्यादा भाग इसी नाले द्वारा यमुना में पहुंचता है क्योंकि इसके उत्तर में जहांगीरपुरी के पास बड़ी भूपट्टियों पर दिल्ली जल बोर्ड का स्वामित्व है। इसलिए यह सोचा गया है कि आधा सीवेज इसी क्षेत्र में पारिस्थितिक पार्को (कृत्रिम वैटलैण्ड) में उपचारित किया जा सकता है। बाकी का वजीराबाद के निचले क्षेत्र में यमुना के दाहिने तट पर उपचारित किया जा सकता है। नाला नजफगढ़ के मुहाने पर एक रैगुलेटर बनाया जाएगा और तलछट सीवेज को यमुना के दाहिने तट वाले पारिस्थितिक पार्क के 75 हैक्टेयर भाग (प्रथम दो भाग) में भेजा जाएगा। इस पार्क के टैंकों का अगला तीसरा सेट तिब्बती कॉलोनी से आगे होगा। पीछे वाले टैंको से सीवेज पाइपों के द्वारा लाया जाएगा। यहां उपचारित सीवेज सीधा यमुना में छोड़ा जाएगा।
(ब) शाहदरा बहिर्गामी नाला, हिंडौन कट कैनाल और नोएडा नाला-
इन नालों के पथ पर्याप्त चौड़े हैं और इनका सारा सीवेज मार्ग में ही उपचारित किया जा सकता है। इनमें पड़ने वाले कुछ नालों को रेलवे लाइन के साथ-साथ वाले वन प्रान्त में अपना अलग ही पारिस्थितिक उपचार करने के लिए मोड़ा जा सकता है।(स) अनुपचारित सीवेज के अन्य छोटे नाले
नए सीवेज ट्रीटमैंट प्लांटों द्वारा ग्रहण न किए गए सीवेज के यमुना में छोड़े ज़ाने से पहले उपचार के लिए यमुना के किनारों पर छोटे-छोटे पारिस्थितिक पार्क बनाने के लिए स्थान उपलब्ध हैं।
(डी) सीवेज ट्रीटमैंट प्लांटो के बहिर्स्राव का सीको पार्कों में पुन: उपचार
(अ) निलोठी और केशोपुर स्थित नजफगढ़ नाले के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट:
इन प्लांटों के बहिर्स्राव को दिल्ली बाढ़ नियंत्रण विभाग के स्वामित्व वाले भूखण्ड पर सीको पार्क बनाकर उपचारित किया जा सकता है। ये भूखंड केशोपुर के पूर्व में नजफगढ़ नाले के बाएं किनारे पर स्थित हैं। नाले के साथ-साथ उपचारित बहिर्साव को नदी तक लाने के लिए एक स्वच्छ जल ड्रेन का भी उत्थापन करना पडेग़ा। पश्चिमी यमुना नहर की दिल्ली शाखा के माध्यम से हरियाणा यदि कोई पानी देता है, तो उस अतिरिक्त पानी को इसी ड्रेन से यहां लाया जा सकता है। यह जल-मार्ग अतिरिक्त सहायक ड्रेन से जोड़ा जा सकता है, जिसे साफ पानी और वर्षा जल ड्रेन में बदला जा सकता है।
(ब) रोहिणी फेज तीन, नरेला, रिठाला और कारोनेशन पिलर स्थित सीवेज ट्रीटमैंट प्लांट
इन प्लांटों के समीप एक अतिरिक्त नाला मौजूद है। जिसके साथ सीको पार्कों में इन प्लांटों को बहिर्स्राव और उपचारित किये जा सकने की सम्भावना दिखती है। उपचार के बाद इसे इस नाले में डाला जा सकता है।
(स) दिल्ली गेट और सेन नर्सिंग होम स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट
इनमें प्रत्येक की क्षमता 10 मिलियन लीटर है। ऐसी आशा है कि ये दोनो प्लांट अपना उपचारित पानी समीप के पावर प्लांट को प्रशीतन उद्येश्य के लिए देंगे। परन्तु प्रत्येक में लगभग 40 मिलियन लीटर अतिरिक्त सीवेज होता है जो बिना उपचारित रह जाता है। दिल्ली गेट सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकली ड्रेन को सेन नर्सिंग होम स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाली ड्रेन से मिलाया जा सकता है, जो यमुना के दाहिनी ओर है। सेन नर्सिंग होम स्थित सीवेज ट्रीटमैंट प्लांट वाली ड्रेन के दक्षिण की ओर एक पारिस्थितिक पार्क बनाया जा सकता है। ऐसा पार्क यमुना के बाएं किनारे की ओर भी बनाया जा सकता है। इस पार्क का बहिर्स्राव नदी में छोड़ा जा सकता है।
(द) ओखला, यमुना विहार और कौण्डली सीवेज ट्रीटमैंट प्लांट:
ओखला सीवेज ट्रीटमैंट प्लांट से निकली पुरानी आगरा नहर के दाहिने किनारे पर एक सीको पार्क बनाया जा सकता है और बहिर्स्राव को नहरों में छोड़े ज़ाने से पहले और उपचारित करने के लिए यमुना विहार और कौण्डली सीवेज ट्रीटमैंट प्लांट के पास वाले नालों के किनारों पर भी सीको पार्क बनाए जा सकते हैं।
यदि उपरोक्त प्रकिया अपनाई जाए तो दिल्ली के सीवेज का 90 प्रतिशत अंश तृतीय स्तर तक उपचारित किया जा सकता है। घरेलू उपयोग के लिए संभरित करने के बाद इसे पुन:चक्रित किया जा सकता है। क्षरण, वाष्पीकरण और प्लांट की अपनी जरूरत का पानी छोड़ कर भी इस पुनर्चक्रित सीवेज से प्रतिवर्ष लगभग 600 एमसीएम पानी प्राप्त होना सम्भव है। यह बागवानी, प्रशीतन और कृषि के लिए मोड़े गए पानी के अतिरिक्त होगा।
अन्य बड़ा लाभ यह होगा कि नदी साफ़ हो जाएगी और इसमें नहाया जा सकेगा। यह ध्यान देने योग्य है कि थर्मल उर्जा के द्वारा सीवेज के साथ मिले कूड़े-कचरे को अच्छी खाद में बदलने की आज आधुनिक तकनीकियां मौजूद हैं। यह इस प्रक्रिया कि उपोत्पादन होगा। खाद बनाने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए इसमें कई प्रकार के ताप जीवी जीवाणु मिलाए जाते हैं। इस प्रकार कूड़े-कचरे को पर्यावरण की कोई हानि पहुँचाए बिना खाद में परिवर्तित किया जा सकता है और इसके लिए बड़े भूमिगत जल और पर्यावरण को गंदा करने वाली बड़ी-बड़ी खत्तियों की भी आवश्यकता नहीं होगी। खाद तैयार करने के लिए प्राइवेट ठेकेदारों को ठेके दिए जा सकते हैं। शहर से कूड़ा-कचरा उठवाने, छांटने के अन्य तरीकों से नष्ट न हो पाने वाले तत्वों को पृथक करने और पुन:चक्रिकरण के लिए एक सिलसिला बनाने के लिए भी उन्हें कहा जा सकता है।
विकल्प के तौर पर दिल्ली स्थित एक गैर सरकारी संगठन पानी मोर्चा ने पारिस्थितिक पार्क पद्धति का प्रारूप तैयार और विकसित किया था। इस पद्धति में यद्यपि बड़े भूभाग की आवश्यकता है, परन्तु इससे कम लागत (लगभग पंचमांश व्यय में) में जल-मल को तृतीय स्तर तक शोधित किया जा सकता है। इससे आय होगी, जो इसके व्यवस्थापन व्यय के काम आएगी और इसमें स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। इस विधि में शोधन प्रक्रिया में कोई उर्जा व्यय नहीं की जाती और इस पर बाढ़ का कोई प्रभाव नहीं होता। इस प्रविधि की मुख्य विशेषताएं निम्नांकित है :
(ए) पारिस्थितिक पार्क पद्धति
इसमें कुछ प्राकृतिक तकनीकों के माध्यम से मलिन पानी को तृतीय स्तर तक (स्नान योग्य हो जाने जितना) शोधन किया जाता है। यह बीओडी (जैविक ऑक्सीजन मांग) और कोलिफार्म, रुके हुए जल-मल के अनियंत्रित होते प्रभाव को कम करता है। पारम्परिक प्राकृतिक उपचार प्रक्रिया, जो जड़मूल क्षेत्र 'डकवीड', मत्स्यकी और वातनिर्पेक्षी, गहरेकुण्डों की अपेक्षा करती है, इसका सुधरा रूप प्रस्तुत करना इस पद्धति की मुख्य विशेषता है।
गंदा पानी इन निम्नांकित तकनीकियों से पृथक-पृथक टैंकों में उपचारित किया जाता है, इससे बीओडी (जैविक ऑक्सीजन मांग) और सीओडी (रासायनिक ऑक्सीजन मांग) के स्तर में आशातीत कमी, प्राप्त उपचारित जल के स्नान योग्य होने, जिससे आगे इसका पुनर्चक्रीकरण किया जा सकता है, जैसी सफलता प्राप्त की गयी है। प्राकृतिक उपचार प्रक्रिया में सुधार के लिए निम्नविधियां और जोड़ी गई हैं, इसमें अपेक्षाकृत कम स्थान की आवश्यकता होती है।
(अ) पहले टैंक में छनाई, रासायनिक टैस्टिंग और उपचारः-
इस प्रक्रिया में जहरीले तत्वों में कमी और भारी खनिज तत्व नीचे बैठ जाते हैं, जो वनस्पतियों द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं। इसमें जहरीले तत्वों को अप्रभावी करने के लिए रसायन मिलाए जाते हैं। इस टैंक में भारी तत्वों को चूस जाने वाली जलीय दालचीनी (हायसिंथ) उगाई जा सकती है।
(ब) वातनिर्पेक्षी उपचार करने के लिए उपचार सामग्री को गहरे टैंकों में डाला जाता है।
(स) जड़मूल क्षेत्रीय उपचार - इसमें जल-मल को कंकड़ और दूसरे जड़ीय पौधों के बीच से गुजारा जाता है, जिससे जड़मूल क्षेत्र में मल का अवशोषण हो सके। इसमें भारी खनिज भी अवशोषित कर लिए जाते हैं और जहरीले तत्वों में कमी आती है।
(द) उपचारित गंदे पानी की और सफाई के लिए उसे टैंकों में डाला जाता है, जिसमें डकवीड (कसपत का पौधा) तैरते होते हैं, ये खरपतवार भी मलदूषण का अवशोषण करते हैं।
(य) अंतिम सफाई के लिए दो जोड़ी मत्स्यिकी टैंक प्रयोग में लाए जाते हैं। इन टैकों में मलदूषित का अवशोषण करने के लिए ऐसी नस्ल की मछलियां डाली जाती हैं, जिन्हें खाने के उपयोग में नहीं लाया जाता है। ऐसे दूसरे टैंक में मत्स्य पालन किया जाता है, जिससे आय हो सके।
(बी) अर्ध पारिस्थितिकी पार्क, जिसे ''सीको पार्क'' कहेंगे
इसे इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि इसमें पहले से मैकेनिकल सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपीज) में द्वितीय स्तर तक संशोधित गंदे पानी को उच्चतर तृतीय स्तर तक संशोधित किया जा सके। इस प्रकिया के परिणामस्वरूप संशोधित जल स्नान करने के स्तर की शुद्धता वाला होगा और पुन: चक्रीयकरण के लिए उपयुक्त भी। ऐसा करने से निश्चय ही उस नदी के पानी की अशुद्धता में भी कमी होगी जिसमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का बहिस्राव छोड़ा जाता है। इससे यह भी निश्चित होगा कि नदी जल से भूमिगत जल भरण में साफ पानी ही जाएगा न कि गंदा पानी। पारिस्थितिकी पार्क के कुल टैंको में आधे ही सीको पार्क के लिए रखे जाते हैं, यह इस आधार पर है कि किसी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाला बहिस्राव किस स्तर का है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के कुछ बहिस्राव सीधे खेती और बागवानी में प्रयोग किये जाते हैं इसे सीको पार्क के पुन:उपचार की आवश्यकता नहीं रहती ।
(सी) दिल्ली स्थित पारिस्थितिकी पार्कों में तलछट सीवेज का उपचार -
आजकल दिल्ली में अनेक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट प्रयोग में लाए जा रहे हैं। अनेक पुराने प्लांटों की सफाई की गयी है। कुल 16 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम कर रहे हैं। इनकी कुल कार्य क्षमता लगभग 2280 मिलियन लीटर प्रतिदिन शोधन की है। अभी दिल्ली के जल-मल की मात्रा 3000 मिलियन लीटर प्रतिदिन है। खेद है कि अनुपयुक्त स्थल, पर्याप्त और उपयुक्त नालों कुण्डों का अभाव, बिजली फेल होने जैसे अनेक कारणों से वर्तमान प्लांट भी अपनी क्षमता भर सीवेज नहीं भर पाते। यहां तक कि भरा गया काफी सीवेज भी बिना उपचारित हुए रह जाता है। जो सीवेज उपचारित हो जाता है, वह भी स्नान करने योग्य शुद्धता वाला ही हो पाता है। क्योंकि उसका उपचार द्वितीय स्तर तक ही किया जाता है। इस प्रकार शहर का सारा जल-मल बिना उपचार या अपर्याप्त रूप से उपचार के साथ सीधा यमुना में छोड़ दिया जाता है।
भरे गये सीवेज का उपचार
यह आशंका है कि केशोपुर के निचले क्षेत्र में बड़ी मात्रा में सीवेज नजफगढ़ नाले में पड़ना और कुछ अन्य छोटी धाराओं के माध्यम से भी सीधे यमुना में पहुंचना जारी रहेगा। यह महसूस किया गया था कि इस सीवेज को यमुना में छोड़े ज़ाने से पूर्व निम्न प्रक्रिया से पारिस्थितिक पार्को में उपचारित किया जा सकता है। सौभाग्य से ऐसे एक नमूना पारिस्थितिक पार्क के उत्थापन प्रस्ताव की योजना आयोग ने संस्तुति की है और दिल्ली जल बोर्ड ने भी सिद्धान्तत: इसकी स्वीकृति दे दी है। अभी धन की व्यवस्था होना बाकी है। निम्न प्रस्तावित पारिस्थितिक पार्क; पार्कों की समग्र सूची में सम्मिलित नहीं हैं, परन्तु यह बिना उपचार हुए सीवेज के प्रमुख स्रोतों से संबंधित है।
(अ) नाला नजफगढ़- दिल्ली के सीवेज का एक तिहाई से ज्यादा भाग इसी नाले द्वारा यमुना में पहुंचता है क्योंकि इसके उत्तर में जहांगीरपुरी के पास बड़ी भूपट्टियों पर दिल्ली जल बोर्ड का स्वामित्व है। इसलिए यह सोचा गया है कि आधा सीवेज इसी क्षेत्र में पारिस्थितिक पार्को (कृत्रिम वैटलैण्ड) में उपचारित किया जा सकता है। बाकी का वजीराबाद के निचले क्षेत्र में यमुना के दाहिने तट पर उपचारित किया जा सकता है। नाला नजफगढ़ के मुहाने पर एक रैगुलेटर बनाया जाएगा और तलछट सीवेज को यमुना के दाहिने तट वाले पारिस्थितिक पार्क के 75 हैक्टेयर भाग (प्रथम दो भाग) में भेजा जाएगा। इस पार्क के टैंकों का अगला तीसरा सेट तिब्बती कॉलोनी से आगे होगा। पीछे वाले टैंको से सीवेज पाइपों के द्वारा लाया जाएगा। यहां उपचारित सीवेज सीधा यमुना में छोड़ा जाएगा।
(ब) शाहदरा बहिर्गामी नाला, हिंडौन कट कैनाल और नोएडा नाला-
इन नालों के पथ पर्याप्त चौड़े हैं और इनका सारा सीवेज मार्ग में ही उपचारित किया जा सकता है। इनमें पड़ने वाले कुछ नालों को रेलवे लाइन के साथ-साथ वाले वन प्रान्त में अपना अलग ही पारिस्थितिक उपचार करने के लिए मोड़ा जा सकता है।(स) अनुपचारित सीवेज के अन्य छोटे नाले
नए सीवेज ट्रीटमैंट प्लांटों द्वारा ग्रहण न किए गए सीवेज के यमुना में छोड़े ज़ाने से पहले उपचार के लिए यमुना के किनारों पर छोटे-छोटे पारिस्थितिक पार्क बनाने के लिए स्थान उपलब्ध हैं।
(डी) सीवेज ट्रीटमैंट प्लांटो के बहिर्स्राव का सीको पार्कों में पुन: उपचार
(अ) निलोठी और केशोपुर स्थित नजफगढ़ नाले के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट:
इन प्लांटों के बहिर्स्राव को दिल्ली बाढ़ नियंत्रण विभाग के स्वामित्व वाले भूखण्ड पर सीको पार्क बनाकर उपचारित किया जा सकता है। ये भूखंड केशोपुर के पूर्व में नजफगढ़ नाले के बाएं किनारे पर स्थित हैं। नाले के साथ-साथ उपचारित बहिर्साव को नदी तक लाने के लिए एक स्वच्छ जल ड्रेन का भी उत्थापन करना पडेग़ा। पश्चिमी यमुना नहर की दिल्ली शाखा के माध्यम से हरियाणा यदि कोई पानी देता है, तो उस अतिरिक्त पानी को इसी ड्रेन से यहां लाया जा सकता है। यह जल-मार्ग अतिरिक्त सहायक ड्रेन से जोड़ा जा सकता है, जिसे साफ पानी और वर्षा जल ड्रेन में बदला जा सकता है।
(ब) रोहिणी फेज तीन, नरेला, रिठाला और कारोनेशन पिलर स्थित सीवेज ट्रीटमैंट प्लांट
इन प्लांटों के समीप एक अतिरिक्त नाला मौजूद है। जिसके साथ सीको पार्कों में इन प्लांटों को बहिर्स्राव और उपचारित किये जा सकने की सम्भावना दिखती है। उपचार के बाद इसे इस नाले में डाला जा सकता है।
(स) दिल्ली गेट और सेन नर्सिंग होम स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट
इनमें प्रत्येक की क्षमता 10 मिलियन लीटर है। ऐसी आशा है कि ये दोनो प्लांट अपना उपचारित पानी समीप के पावर प्लांट को प्रशीतन उद्येश्य के लिए देंगे। परन्तु प्रत्येक में लगभग 40 मिलियन लीटर अतिरिक्त सीवेज होता है जो बिना उपचारित रह जाता है। दिल्ली गेट सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकली ड्रेन को सेन नर्सिंग होम स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाली ड्रेन से मिलाया जा सकता है, जो यमुना के दाहिनी ओर है। सेन नर्सिंग होम स्थित सीवेज ट्रीटमैंट प्लांट वाली ड्रेन के दक्षिण की ओर एक पारिस्थितिक पार्क बनाया जा सकता है। ऐसा पार्क यमुना के बाएं किनारे की ओर भी बनाया जा सकता है। इस पार्क का बहिर्स्राव नदी में छोड़ा जा सकता है।
(द) ओखला, यमुना विहार और कौण्डली सीवेज ट्रीटमैंट प्लांट:
ओखला सीवेज ट्रीटमैंट प्लांट से निकली पुरानी आगरा नहर के दाहिने किनारे पर एक सीको पार्क बनाया जा सकता है और बहिर्स्राव को नहरों में छोड़े ज़ाने से पहले और उपचारित करने के लिए यमुना विहार और कौण्डली सीवेज ट्रीटमैंट प्लांट के पास वाले नालों के किनारों पर भी सीको पार्क बनाए जा सकते हैं।
यदि उपरोक्त प्रकिया अपनाई जाए तो दिल्ली के सीवेज का 90 प्रतिशत अंश तृतीय स्तर तक उपचारित किया जा सकता है। घरेलू उपयोग के लिए संभरित करने के बाद इसे पुन:चक्रित किया जा सकता है। क्षरण, वाष्पीकरण और प्लांट की अपनी जरूरत का पानी छोड़ कर भी इस पुनर्चक्रित सीवेज से प्रतिवर्ष लगभग 600 एमसीएम पानी प्राप्त होना सम्भव है। यह बागवानी, प्रशीतन और कृषि के लिए मोड़े गए पानी के अतिरिक्त होगा।
अन्य बड़ा लाभ यह होगा कि नदी साफ़ हो जाएगी और इसमें नहाया जा सकेगा। यह ध्यान देने योग्य है कि थर्मल उर्जा के द्वारा सीवेज के साथ मिले कूड़े-कचरे को अच्छी खाद में बदलने की आज आधुनिक तकनीकियां मौजूद हैं। यह इस प्रक्रिया कि उपोत्पादन होगा। खाद बनाने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए इसमें कई प्रकार के ताप जीवी जीवाणु मिलाए जाते हैं। इस प्रकार कूड़े-कचरे को पर्यावरण की कोई हानि पहुँचाए बिना खाद में परिवर्तित किया जा सकता है और इसके लिए बड़े भूमिगत जल और पर्यावरण को गंदा करने वाली बड़ी-बड़ी खत्तियों की भी आवश्यकता नहीं होगी। खाद तैयार करने के लिए प्राइवेट ठेकेदारों को ठेके दिए जा सकते हैं। शहर से कूड़ा-कचरा उठवाने, छांटने के अन्य तरीकों से नष्ट न हो पाने वाले तत्वों को पृथक करने और पुन:चक्रिकरण के लिए एक सिलसिला बनाने के लिए भी उन्हें कहा जा सकता है।
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