गन्दगी की भारी कीमत चुकाती अर्थव्यवस्था (The effects of sanitation on economics)

स्वच्छ भारत अभियान
स्वच्छ भारत अभियान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत रविवार को आकाशवाणी पर प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा कि स्वच्छता अभियान संकल्प से सिद्धि की प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ रहा है। देश के हर वर्ग ने इसे अपना काम माना है। लोग स्वच्छता अभियान को आन्दोलन का रूप दे रहे हैं। समाज में सार्वजनिक स्थानों पर सफाई का खास ध्यान रखा जा रहा है। गन्दगी करने वालों को अब लोग टोकने लगे हैं।

दरअसल प्रधानमंत्री मोदी अपने ‘स्वच्छ भारत अभियान को हर हालत में सफल होता देखना चाहते हैं। और इन दिनों केन्द्रीय मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक से लेकर जिला कलेक्टर तक लोगों को स्वच्छता के लाभ बताने में व्यस्त हैं, यह कवायद ‘स्वच्छता ही सेवा’ नामक सरकारी मुहिम के तहत की जा रही है। इसकी शुरुआत 15 सितम्बर को राष्ट्रपति राम नाथ कोंविद ने कानपुर के ईश्वरीगंज गाँव से की थी और यह सिलसिला 2 अक्टूबर यानी गाँधी जयंती तक जारी रहेगा।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन साल पहले 2 अक्टूबर 2019 तक भारत को ‘स्वच्छ भारत’ बनाने का ऐलान किया था और इस 2 अक्टूबर को स्वच्छ भारत अभियान चौथे साल में प्रवेश करेगा। इस राष्ट्रव्यापी स्वच्छता मुहिम का उद्देश्य ‘ स्वच्छ भारत’ के महात्मा गाँधी के सपने को पूरा करने के लिये लोगों को स्वच्छता को लेकर जागृत करना और जन-आन्दोलन को फिर से गति प्रदान करना है।

सरकार की कोशिश इस अभियान की अवधि के दौरान (15 सितम्बर-02 अक्टूबर) सफाई के लिये श्रमदान देने और शौचालयों के निर्माण तथा खुले में शौच मुक्त वातावरण के निर्माण हेतु जीवन के हर क्षेत्र से लोगों को व्यापक स्तर पर जोड़ने की है। सवाल है कि क्या स्वच्छता ही सेवा वाला नया नारा कोई नया चमत्कार करने में सफल होगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत जैसे विशाल मुल्क में स्वच्छ भारत के मिशन को हासिल करना आसान नहीं है, लेकिन अगर ठोस योजनाएँ हों, राजनीतिक प्रतिबद्धता हो, लागू करने वाली संस्थाएँ जमीनी स्तर पर वास्तविक काम करें व आम जनता सहयोग करे तो यह सम्भव हो सकता है।

दरअसल मुल्क में खुले में शौच करना सदियों पुरानी एक आदत है और इसे बदलना एक बड़ी चुनौती है। स्वच्छ भारत मिशन से पहले भी केन्द्र में पहले की सरकारें राष्ट्रीय स्वच्छता कार्यक्रम 1980 से चलाती आ रही हैं। मगर 2014 तक स्वच्छ भारत मिशन के शुरू होने तक महज 39 फीसद आबादी की ही सेफ सेनिटेशन सुविधा तक पहुँच थी।

आजादी के 67 साल बाद भी करीब 61 फीसद आबादी खुले में शौच करती थी। मगर अब सरकार आँकड़ों के जरिए दावा कर रही है कि बीते तीन सालों में खुले में शौच से मुक्ति दिलाने की दिशा में तेजी से काम हुआ है और स्वच्छ भारत अभियान लांच होने के बाद सेनिटेशन कवेरज 39 फीसद से बढ़कर 67.5 फीसद हो गई है। स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के आँकड़े बताते हैं कि 4.6 करोड़ घरों व लाखों स्कूलों में शौचालय हैं। 236,000 गाँव व 195 जिले खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं।

सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, केरल, हरियाणा व उत्तराखण्ड खुले में शौच से मुक्त सूबे हैं और मार्च 2018 तक 10 अन्य सूबे भी इस फेहिरस्त में शमिल हो जाएँगे। जहाँ तक शहरों की प्रगति का सवाल है तो 1286 शहरों ने खुद को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया है।

बीते महीने अगस्त में सरकार ने नमामि गंगे परियोजना के तहत उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल में गंगा के किनारे बसे 4,480 गाँवों को खुले में शौच से मुक्त घोषित तो कर दिया, लेकिन खबरें ये भी हैं कि किसी गाँव में किसी के घर में शौचालय की छत नहीं है तो किसी को बनाने के बाद भी सरकारी रकम (12000) प्राप्ति का इन्तजार है।

सरकार आँकड़ें जारी करती है और उसकी पड़ताल मीडिया करता है। बहरहाल गरीबों तक स्थायी स्वच्छता सेवाएँ उपलब्ध कराना स्वच्छ भारत अभियान की एक महत्त्वपूर्ण कसौटी होगी। ऐसा इसलिये भी क्योंकि स्वच्छता से होने वाले लाभों का सबसे ज्यादा फायदा सबसे अधिक गरीब आबादी को होता है।

साफ-सफाई, स्वच्छता की कमी विशेष तौर पर गरीब समुदायों व संवेदनशील बच्चों को प्रभावित करती है।

खुले में शौच की प्रथा से डायरिया, पेट में कीड़े आदि हो सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में पाँच साल से कम आयु के 117,000 बच्चे डायरिया के कारण मर गए थे। छोटी उम्र में बच्चों का बार-बार बीमार पड़ना उनके स्वास्थ्य के लिये सही नहीं है। इससे उनकी शरीर में पोषक तत्वों को सम्पूर्ण जिन्दगी के लिये एब्जॉर्व करने की क्षमता को नुकसान पहुँचता है।

पोषक तत्व वाला मुद्दा बच्चों के छोटे कद से भी जुड़ा हुआ है। ऐसी स्थितियों में बच्चे का शरीर और दिमाग सामान्य रूप से विकसित नहीं होता। ऐसे बच्चे सामान्य बच्चों की तुलना में पढ़ाई व कमाई में भी पीछे रह जाते हैं। भारत में 39 फीसद बच्चे नाटे हैं। यह चिन्ता की बात है। खराब साफ-सफाई, स्वच्छता की कमी की मुल्क आर्थिक कीमत भी चुका रहा है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार सेनिटेशन की कमी की कीमत भारत अपनी जीडीपी का 6 फीसद से अधिक के रूप में चुकाता है। ऐसे में गन्दगी दूर करना सरकार की सबसे पहली प्राथमिकता है।

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)


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