स्वच्छता मानव जीवन का अभिन्न अंग है। स्वच्छता का सीधा संबंध स्वास्थ्य से है इसलिए स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छता अनिवार्य है। स्वच्छता शरीर तथा घर परिवार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत स्वच्छता के अतिरिक्त गली, मोहल्लें और गांव की सम्पूर्ण स्वच्छता से है। हमारा देश कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के प्रति वचनबद्ध है इसलिए अपने नागरिकों को पूर्णतया स्वस्थ बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के तहत सरकार ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास पर ध्यान केन्द्रित कर रही है ताकि ग्रामीणजनों को जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकें । गांवों की सरकार पंचायतें हैं इसलिए प्रत्येक उपस्वास्थ्य केन्द्र को पंचायत के अधीन किया गया है। अब यह हमारी ग्राम पंचायतों पर निर्भर है कि वे अपने लोगों के स्वास्थ्य एवं गांव की स्वच्छता पर किस प्रकार ध्यान देती है?
गांवों में चिकित्सा की व्यवस्था के हालचाल
आबादी का तीन चौथाई हिस्सा गांवों में निवास करता है लेकिन उनके हिस्से में देश के कुल अस्पतालों का पचास प्रतिशत से भी कम हिस्सा है। शहरों में प्रायः अस्सी प्रतिशत जनता को दो किलोमीटर की दूरी के भीतर चिकित्सा सुविधाओं का लाभ प्राप्त है जबकि गांवों में यह सुविधा मात्र तीन प्रतिशत आबादी को ही मिलती है। हमारे देश के लगभग छः लाख गांवों के लिए अनुमानतः डेढ़ लाख उपस्वास्थ्य केन्द्र हैं जिनकी देखरेख अब ग्राम पंचायतों के जिम्मे है। एक केन्द्र को चार-पांच गांवों में लगभग पच्चीस किलोमीटर तक अपनी सेवाएं देने के लिए बनाया गया है। अब ये केन्द्र कितने प्रभावी ढंग से निर्धारित कार्यों को अंजाम दे पाते हैं यह विचारणीय विषय है।
जवाबदेही व्यवस्था को सुनिश्चित करना
उपस्वास्थ्य केन्द्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को एक बड़े ग्रामीण क्षेत्र में बिखरी हुई आबादी को अपनी सेवाएं उपलब्ध करानी होती है। दूर बसे गांवों के लोग इन स्वास्थ्य केन्द्रों में जाना पसंद भी नहीं करते क्योंकि वहां पहुंचने के लिए काफी लम्बी दूरी पैदल तय करनी पड़ती है। इतने पर भी जब वे स्वास्थ्य केन्द्रों पर पहुंचते हैं तो जरूरी नहीं है कि उन्हें आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं मिल ही जाएं। चिकित्सालयों में स्वास्थ्य सेवाएं न मिलने का एक बड़ा कारण यह भी है कि डॉक्टर नर्स कभी कभार ही अपनी ड्यूटी पर आते हैं। यदि वे मिल भी जाएं तो भी बुनियादी सुविधाओं के अभाव या चिकित्साकर्मियों की काम के प्रति समर्पण की भावना न होने के कारण अपेक्षित उपचार उपलब्ध नहीं हो पाता है। इस समस्या के समाधान हेतु डॉक्टर, नर्स आदि का मुख्यालय पर ठहरना पंचायतें सुनिश्चित करें। उनके लिए आवास की व्यवस्था अस्पताल के आसपास ही करें। स्वास्थ्यकर्मी समय पर चिकित्सालय में उपस्थित रहे। चिकित्सा के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास पर पूरा ध्यान दिया जाए। भवन निर्माण से ज्यादा महत्वपूर्ण है उपकरण, दवाईयां एवं बीमार रोगी को प्रदान की जाने वाली सुविधाएं ।
संचार एवं यातायात की सुविधाओं का विकास
उपस्वास्थ्य केन्द्रों के भवनों का निर्माण सड़क के किनारे एवं बस्तियों के पास में ही करें इससे लोग सुविधापूर्वक वहां पहुंच सकेंगे । आसपास के गांवों से आने जाने के लिए यातायात व्यवस्था को सुधारा जाए जिस से लोगों के वहां पहुंचने में आसानी से पहुंच सके। जिन गांवों में सम्पर्क सड़क न हो वहां इस तरह की व्यवस्था बनाने में पंचायतें मदद करें। अस्पताल या आसपास में टेलीफोन की सुविधाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था करें जिससे रोगी को बेहतर सुविधाएं शीघ्रता से प्रदान करने में मदद मिलें ।
ढांचागत विकास
चिकित्सा केन्द्रों के भवन, डॉक्टर एवं स्वास्थ्यकर्मियों के आवास, जलमल निकासी हेतु नालियां, सामूहिक शौचालयों का निर्माण एवं रखरखाव आदि कार्यों के लिए राज्य सरकारों से मिलने वाली सहायता का विवकपूर्ण उपयोग पंचायतों को ही करना होता है। इनसे प्राप्त धन द्वारा स्वास्थ्य एवं स्वच्छता की सेवाओं को नियमित रखना एवं उनमें विस्तार करना पंचायतों का दायित्व है।
प्रबंध में स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना
स्वास्थ्य केन्द्रों का प्रबंध सक्रिय कार्यकर्ताओं एवं पंचायतों के माध्यम से किया जाए। उपकरणों एवं साधनों की व्यवस्था दवाईयों की उपलब्धता, रोगियों के ठहरने एवं खाने पीने की व्यवस्था आदि कार्यों को सम्पन्न करने में पंचायतें मदद कर सकती है।स्वास्थ्य अधिकारियों और खण्ड तथा पंचायतों के बीच समन्वय कर आवश्यक दवाईयों की आपूर्ति, स्वास्थ्य केन्द्रों में डॉक्टरों तथा अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की उपस्थिति को सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है। इसी तरह गांव की नियमित स्वच्छता के प्रबंध करने में लोगों की भागीदारी जरूरी है। गांव को स्वच्छ रखने के तमाम उपायों पर पंचायत में विचार किया जाना चाहिए।
स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरूकता आवश्यकः
लोगों को उदासीनता के कारण ग्रामीणजन न तो अपने स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को समझ पाते हैं और न ही स्वास्थ्य सेवा को जान पाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अस्वच्छता, गन्दगी को व्यक्तिगत समस्या के रूप में देखा जाता है। यदि पंचायतें प्रयास करें तो लोगों में जागरूकता बढ़ सकती है इसके लिए वार्डसभा, ग्रामसभा एवं पंचायतों की बैठक में जानकारियां उपलब्ध कराई जा सकती है। गांव में उपलब्ध चिकित्साकर्मी, शिक्षक एवं जानकार लोगों द्वारा स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के प्रति जनता को सचेत किया जा सकता है।
निजी एवं स्वयंसेवी संस्थाओं से सहयोगः
अनेक धरमार्थ ट्रस्ट, संस्थाएं एवं चिकित्सा हेतु निजी तौर पर लोग धन भी खर्च करते हैं। ये विभिन्न प्रकार के केम्प आयोजित करके स्वास्थ्य जांच एवं उपचार भी करने को तैयार रहते हैं। इस प्रकार की सुविधाओं का जनता के लिए भरपूर लाभ उठाया जाना चाहिए। उन्हें मानवीय सहयोग, स्थान उपलब्ध करके अधिक से अधिक लोगों की मदद की जा सकती है।पंचायतें ऐसी संस्थाओं की जानकारी प्राप्त करके उनसे सहयोग के लिए सम्पर्क कर सकती है। जिन लोगों को उपचार की जरूरत है उन्हें इन संस्थाओं तक पहुंचाने में पंचायतें अपनी भूमिका निभा सकती है।
विद्यालय स्वास्थ्य सेवाओं का प्रबंधः
गांव के अधिकांश बालक- बालिकाएं स्कूल जाने लगे हैं। उनका स्वास्थ्य परीक्षण, उपचार व मार्गदर्शन के लिए स्थानीय चिकित्सक अथवा अन्यत्र से चिकित्सक का प्रबंध किया जा सकता है। बच्चों के माध्यम से गांव के परिवारों में भी आवश्यक जानकारियों का विस्तार किया जा सकता है। विद्यालय में इस प्रकार की व्यवस्था साप्ताहिक तौर पर कर देने से लगभग सारे गांव की स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं को सक्रिय रखा जा सकता है।
अंधविश्वास एवं नशाखोरी की बुराईयों पर नियंत्रण
लोगों में अंधविश्वास बहुत अधिक है। वे देवी- देवताओं एवं जाड़-फूंक करने वाले नीम-हकीमों के चक्कर में पड़े रहते हैं। ऐसे लोगों को गांव में आश्रय न दे लोगों को अधिकाधिक जानकारियां देकर ही अंधविश्रास को दूर किया जा सकता है। शराब, तम्बाकू या किसी भी प्रकार की नशाखोरी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। गांव में इस प्रकार के प्रचलन पर कड़ा प्रतिबंध लगाया जाए तो लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा करना संभव है। पंचायतें इन बुराइयों को दूर करने के उपाय खोज निकाले तो लोगों का स्वास्थ्य सुधर सकता है।
स्वच्छ पीने के पानी का प्रबंध
अस्वच्छ पानी अनेक बीमारियों को जन्म देता है जल के स्त्रोतों का रखरखाव पंचायतों के जिम्मे ही होता है। उनका प्रबंध ठीक प्रकार से किया जाए। पेयजल स्त्रोतों की नियमित पांच, जल की स्वच्छता के लिए दवाईयों का उपयोग किया जाए। पेयजल स्त्रोत से अन्य कार्यों के लिए पानी के उपयोग पर रोक लगानी आवश्यक रहेगी। पानी की टंकियों की नियमित सफाई, हैण्डपंप के आसपास की स्वच्छता को भी नियमित रूप से देखना होगा तभी शुद्ध एवं स्वच्छ पेयजल मिल सकेगा।
अब जब गांव की चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा का जिम्मा पंचायतों पर आ गया है तब इस जिम्मेदारी का निर्वाह अच्छी तरह से करना चाहिए। गांव, घर, गली-मोहल्ले साफ रहें । सामूहिक शौचालयों की अच्छी व्यवस्था बने। गांव के जल-मल निकासी का पूरा प्रबंध करें लोग कुपोषण का शिकार न हों। पीने को स्वच्छ पानी मिले। बीमार को अच्छा इलाज मिले । एक-एक पैसे का सदुपयोग हो। ढांचागत व्यवस्थाओं का उचित निर्माण एवं प्रबंध किया जाये । पंचायतें गांवों में लोगों की भागीदारी एवं जागरूकता बढ़ाकर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं को चुस्त-दुरुस्त कर सकती है।
स्रोत - पर्यवारण डाइजेस्ट
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