गाँधी विचार परिषद : जहाँ तालीम के साथ बेहतर जल प्रबंधन भी

Gandhi vichar parishad
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गाँधी विचार परिषददेश भर में विभिन्न विश्वविद्यालयों में गाँधी पर अध्ययन कोर्स चलाए जाते हैं, लेकिन महाराष्ट्र के वर्धा स्थित गाँधी विचार परिषद में गाँधी अध्ययन का तौर तरीका इन विश्वविद्यालयों से न केवल अलग है बल्कि अनूठा भी है। यहाँ छात्रों को नौ महीने तक रहना पड़ता है और गाँधी की बतायी दिनचर्या के हिसाब से अपना जीवन जीना भी पड़ता है। सफाई, खेतों में श्रम करने के साथ अपने भोजन का प्रबंध और अध्ययन मनन भी करना पड़ता है। गाँधी प्रकृति के करीब रहने की वकालत करते रहे हैं। इसलिए इस परिसर के परिवेश का माहौल भी प्रकृति के काफी करीब है। भिन्न-भिन्न तरह के पेड़-पौधों से अटे पड़े परिषद के परिसर में जल प्रबंधन भी अनुकरणीय है और जल के देशज ज्ञान पर आधारित है।

परिषद के निदेशक भारत महोदया का कहना है कि- “इस बार के पाठ्यक्रम में जलप्रबंधन और पर्यावरण को भी शामिल किया गया है।” ज​बकि पिछले पचीस सालों से चल रहे इस परिसर के पाठ्यक्रम में गाँधी पर ज्यादा अध्ययन पर जोर रहा है। श्रम,सफाई और अन्य तरह के नियोजन के साथ चरखा चलाना शामिल था, लेकिन पानी और पर्यावरण पर कुछ ज्यादा नहीं था लेकिन इस बार परिसर में जल संग्रहण के लिए किए प्रयोगों के बेहतर नतीजों से उत्साहित होकर इसे पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया गया है।

वर्धा शहर के गोपुरी इलाके में स्थित गाँधी विचार परिषद 78 एकड़ क्षेत्रफल में है। इस परिसर में जल प्रबंधन सुंदर तरीके से हो, इसकी परिकल्पना संस्थान के निदेशक भारत महोदय ने पाँच वर्ष पहले की थी और जब उनकी ​परिकल्पना ने साकार रूप धारण किया तो इससे न केवल संस्थान की सूरत बदली बल्कि आस-पास के इलाकों पानी की समस्या का निवारण होने लगा। संस्थान के वाटर मॉडल को यहाँ के छात्र दूसरे जगहों पर भी प्रचारित कर रहे है। इस लम्बे चौड़े परिसर में पानी की आपूर्ति का एक मात्र जरिया था बोरवेल। इसके जल के खत्म होने का खतरा कायम था। धरती में जल का पुनर्भरण कैसे हो, इसकी एक रूपरेखा तय की गयी। हालाँकि इस बोरवेल के अलावा एक कुँआ भी है, लेकिन उसका भी जल सूख रहा था। यह तय किया गया कि यहाँ के भूजल स्तर को देशज तरीके से ठीक किया जाय और उसका बेहतर प्रबंधन किया जाए। इसके लिए यहाँ तीन-चार तालाब खोदे गए। तालाब खुदने का यह नतीजा हुआ ​कि जल का स्तर कायम रहा। यह तालाब छात्रों के श्रमदान और अन्य प्रयासों से खोदे गए।

संस्थान के परिसर को हरा भरा रखना भी एक चुनौती भरा काम था। इसके लिए संस्थान के निदेशक ने ड्रिप एरिगेशन सिस्टम अर्थात टपक सिंचाई प्रणाली अपनायी। यह प्रणाली सिंचाई की उन्नत विधि है, इसके प्रयोग से सिंचाई जल की पर्याप्त बचत की जा सकती है। यह विधि मृदा के प्रकार, खेत के ढाल, जल स्रोत और किसान की दक्षता के अनुसार अधिकतर फसलों के लिए अपनाई जा सकती हैं। ड्रिप विधि की सिंचाई दक्षता लगभग 80-90 प्रतिशत होती है। फसलों की पैदावार बढ़ने के साथ-सथ इस विधि से उपज की उच्च गुणवत्ता, रसायन एवं उर्वरकों का दक्ष उपयोग, जल के विक्षालन एवं अप्रवाह में कमी, खरपतवारों में कमी और जल की बचत सुनिश्चित की जा सकती है।

वहीं वर्षा जल के सरंक्षण का काम किया। रेन वाटर हारवेस्टिंग सिस्टम को प्रयोग को अपनाया। इस प्रयोग के तहत एक बड़ा टैंक बनवाया जिसमें 25 हजार लीटर पानी संग्रहित रहता है। इसे आपात स्थिति के लिए सुरक्षित रखा जाता है। जल संग्रहित रहने की वजह से भूजल भंडार का संवर्धन होता रहता है।

भारत महोदया कहते हैं कि - “गाँधी प्रयोग में यकीन करते थे।” इसलिए उन्होंने जो परिकल्पना की उसे प्रयोग में लाने की कोशिश की। अन्ना हजारे के गाँव में उन्होंने जलसंरक्षण के प्रयोग को देखा और उसे अमल में लाने की कोशिश की। बरसात के पूर्व जगह-जगह पानी रोकने के लिए आड़ी बनवाए। इसका फायदा यह हुआ कि वर्षा का जल बाहर नहीं जा पाता है। साथ ​ही रूकने की वजह से भूस्खलन नहीं होता है। उनका कहना है कि यदि भूस्खलन रोक देते हैं तो हम धरती की उर्वरा शक्ति को कायम रखने में सफल होते हैं। जब जल के कारण ​हरियाली रहती है तो जैवविविधता भी कायम रखती है। इसके फलस्वरूप कई तरह के जन्तु जो लुप्त हो चुके थे, वे देखे जाने लगे हैं।

सिंचाई की एक और पद्धति का इस्तेमाल इस संस्थान में कर रहे हैं। वह है एमीटर एरिगेशन सिस्टम। इस तकनीक का इजाद वर्धा में किया गया है। इसके मुताबिक पौधा उतना ही जल ग्रहण करता है जितने मात्रा की उसे आवश्यकता होती है। इस तकनीक को सेंटर आॅफ रूरल सांइसेस ने भी मान्यता दी है।

संस्थान के निदेशक भारत महोदय कहते हैं कि- “पश्चिम के ज्ञान के प्रभाव और देशज ज्ञान के भूलने का नजीजा है गम्भीर जल संकट।” देशज ज्ञान और तकनीक के आधार पर जल संकट की चुनौतियों का हम मुकाबला कर सकते हैं। उनके मुताबिक परिसर के आस-पास के दर्जनों गाँव के लोग यहाँ आकर हमारे प्रयोगों को देख रहे हैं और अपना रहे हैं।

छात्रों ने जल प्रबंधन से उत्साहित होकर फलदार वृक्षों की वाटिका लगायी है। यह आने वाले समय में फल के क्षेत्र में संस्थान को आत्मनिर्भर बनाएगा। वर्तमान सत्र की छात्रा किरण का कहना है कि उनलोगों ने श्रम ने लतावाटिका बनाने का फैसला लिया है, इसे सभी छात्र मूर्त रूप दे रहें हैं, सत्र समाप्त होते-होते यह पूरा हो जाएगा और इस संस्थान को हमारी यह ​स्मृति रहेगी।
 

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