गाद का साध


नदी केवल बहता पानी नहीं है। गाद इसका अविभाज्य अंग है। गंगा और डॉल्फिन पर काफी शोध कर चुके जीव विज्ञानी रविन्द्र कुमार सिन्हा कहते हैं, “गाद के बिना तो नदियाँ मर जाएँगी। गाद नहीं होगी तो जैवविविधता भी नहीं होगी।” गाद और रेत से बने टापुओं पर कई तरह के पक्षी और जलीय जीव रहते हैं। मछलियाँ जब धारा के विपरीत चलती हैं तो जरूरत पड़ने पर इन टापुओं के पीछे आकर रुकती हैं और यहाँ जमा सड़े जैविक पदार्थों को खाती हैं। गाद अपने साथ पोषक तत्वों को भी एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है। रेत पानी को सोखकर सुरक्षित रखता है। कंकड़ पानी के प्रवाह में हलचल पैदा कर उसमें ऑक्सीजन घोलते हैं। अतः मछलियों के अंडे देने के लिये उपयुक्त जगह बनाते हैं। गाद जब बाढ़ के पानी के साथ आस-पास के इलाके में फैलती है, तो उसमें निहित उर्वरक तत्व जमीन को उपजाऊ बनाते हैं।

गाद समस्या तब बन जाती है जब यह बह या फैल नहीं पाती और नदी के पेट में जमा होने लगती है, पर बड़े स्तर पर गाद को नदी से निकालना न तो आसान है और न ही वांछनीय। अव्वल तो इतनी सारी गाद निकालने के लिये बड़ी मात्रा में संसाधन जुटाने होंगे और अगर निकाल भी ली जाये तो किसी के पास कोई पुख्ता उपाय नहीं है कि इसे डालेंगे कहाँ। नदी विशेषज्ञ कलायन रुद्र के अनुसार, केवल फरक्का के पीछे जमी गाद निकालने के लिये जितने ट्रकों की जरूरत होगी उन्हें अगर कतार में खड़ा कर दिया जाये तो यह कतार पृथ्वी के 126 चक्कर पूरे कर लेगी। इस गाद को समुद्र तक ले जाने का खर्च भारत सरकार की सालाना आय का दोगुना होगा। यह अनुमान बारह साल पुराना है, तब से गाद और बढ़ चुकी है।

हाल में गंगा से गाद निकालने के लिये दिशा-निर्देश तैयार करने के लिये बनी एम ए चितले समिति ने गाद निकालने को लेकर अत्यन्त सावधानी बरतने की हिदायत दी है वर्ना इसके विपरीत परिणाम हो सकते हैं, जैसे किनारों का कटाव और पानी के स्तर में गिरावट। इस साल जमा की गई अपनी रिपोर्ट में चितले समिति ने कहा है कि गाद निकालने का काम सिर्फ कुछ ही जगहों पर और वो भी वैज्ञानिक जाँच के बाद ही होना चाहिए।

इसलिये जब केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती कहती हैं कि जलमार्ग मंत्रालय नदियों की उड़ाही (ड्रेजिंग) करके गाद की समस्या हल कर देगा तो शक होता है कि आखिर वह नदियों के स्वास्थ्य को लेकर कितनी गम्भीर हैं। बिहार में फिलहाल गंगा जलमार्ग के लिये हो रही उड़ाही को रोक दिया गया है।

तो आखिर नदियों के उथलेपन का उपाय क्या है? इसके लिये तीन काम करने होंगे। पहला तो यह कि जैसा चितले समिति ने कहा है, गाद को रास्ता दिया जाये। दूसरा यह कि पानी का प्रवाह बढ़ाया जाये ताकि वह गाद को बहाकर ले जाये। और तीसरा, नदी के जल ग्रहण क्षेत्र में मिट्टी के कटाव को रोका जाये, ताकि नदियों में गाद कम आये।

पर भारत में चालू शायद ही किसी बाँध या बैराज में गाद के बहने का कोई उपाय है। जल संसाधन मंत्रालय, जैसा कि नाम से ही झलकता है, नदियों को महज जल संसाधन के रूप में देखता है। गाद की तरफ कभी इसका ध्यान ही नहीं गया। जबकि गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली में गाद की मात्रा दुनिया में सबसे अधिक है। गंगा का मैदान और बंगाल का डेल्टा इसी गाद से बने हैं।

फरक्का बराज एक विशाल बांधआईआईटी कानपुर के राजीव सिन्हा का कहना है कि फरक्का के डिजाइन और रख-रखाव को बेहतर करने से स्थिति में काफी हद तक सुधार आ सकता है (देखें: ‘तोड़ दिया जाए, या...’)। पर मेरा विचार है कि यह काफी नहीं होगा। गंगा में गाद इस हद तक जम चुकी है कि अब आप अगर पचास साल पहले वाला प्रवाह भी पैदा कर दें तो भी इसे बहाकर साफ नहीं कर सकते। इसलिये आपको कुछ जगहों पर नियंत्रित तरीके से गाद निकालनी ही पड़ेगी।” अतः पहला कदम होना चाहिए फरक्का बैराज के रख-रखाव, संचालन और डिजाइन का पुनरावलोकन और दूसरा उन जगहों को चिन्हित करना जहाँ गाद निकालना जरूरी है।

 

आखिर कितनी गाद?


गंगा के प्रवाह और गाद से जुड़े ताजा आँकड़े हासिल करना आसान नहीं है, क्योंकि यह क्लासीफाइड जानकारी के तहत आते हैं। नजर अब्बास और वी सुब्रमनियन के 1984 के अध्ययन के अनुसार, फरक्का पर गंगा में हर साल 80 करोड़ टन गाद आती है। आर जे वासन के 2003 के अध्ययन के अनुसार 73.6 करोड़ टन गाद आती है। बिहार के सिंचाई विभाग का 1999 में अनुमान था 30.1 टन। गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग द्वारा गंगा की उड़ाही पर बनी चितले समिति को पिछले साल सौंपे गए आँकड़ों के अनुसार यह महज 21.8 करोड़ टन है। अधिकतर लोग सरकारी आँकड़ों से सहमत नहीं हैं। नदी विशेषज्ञ कल्याण रुद्र का 2004 में अनुमान था कि हर साल फरक्का में 72.9 करोड़ टन गाद आती है, जिसमें से 32.8 करोड़ टन बैराज के पीछे रुक जाती है।

 

गाद को रास्ता देने का एक दूसरा आयाम भी है। वह है नदियों को बाढ़ के समय दोनों तरफ फैलने देना। यह भूजल पुनर्भरण के लिये भी जरूरी है। रुद्र कहते हैं, “बाढ़ से पूरी तरह मुक्ति वांछनीय नहीं है।” जरूरत है बाढ़ के पानी को नदी किनारे निचले इलाकों और झीलों में रोक कर रखने की। और जरूरत पड़ने पर इन झीलों और तालाबों से गाद निकाली जा सकती है। पर बिहार में गंगा की सहायक नदियों के किनारे बने तटबन्धों का जाल सा बिछा हुआ है, जो गाद को विस्तृत क्षेत्र में फैलने से रोकता है। परिणामस्वरूप गाद नदियों के तल में जम रही है और नदियों का तल ऊपर उठ रहा है। नतीजा यह है कि पिछले छह दशकों में बिहार का बाढ़ क्षेत्र तिगुना हो गया है। बिहार चाहे तो इस पर पहल कर सकता है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय गाद नीति की माँग की है जो जरूरी है। क्यों न इसकी शुरुआत बिहार से हो? क्यों न बिहार अध्ययन करे कि राज्य में कितना गाद कहाँ से आ रही है और तय करे कि नदियों का बाढ़ क्षेत्र कितना है जहाँ कोई दखल न हो?

गंगा में 80 प्रतिशत गाद खड़ी ढाल वाले हिमालय के उन ऊँचे पहाड़ों से आती है जहाँ जंगल कम हैं और व्यापक चराई होती है। इस जल ग्रहण क्षेत्र में वनों के कटाव और उससे होने वाले भूमि क्षरण को अगर रोका जाये तो गाद की मात्रा कुछ कम हो सकती है। इसके लिये नेपाल के सहयोग की जरूरत है। केन्द्र सरकार इस पर पहल कर सकती है।

बिहार सरकार ने गंगा की अविरलता पर पटना में एक सेमिनार आयोजित करके एक ‘पटना डेक्लेरेशन’ स्वीकार किया है। इसमें ‘सिविलाइजेशनल रीफोर्म’ की बात की गई है। यह दो तरह से हो सकते हैं। एक, जिसमें हम नदी के साथ अपना बर्ताव बदलने के बजाय उसके दुष्परिणामों से बचने के लिये सारी तकनीक झोंक दें। और दूसरा, हम नदी के समग्र और जीवन्त रूप का आदर करते हुए अपनी नीति बदलें।

 

तोड़ दिया जाये, या...


फरक्का बैराज गंगा डेल्टा के शुरुआती छोर पर बना है। यहाँ से गंगा दो भागों में बँट जाती है। एक जो आगे जाकर भागीरथी और फिर हुगली कहलाती है, दूसरी जो बांग्लादेश में जाकर पद्मा कहलाती है। इस बैराज का निर्माण भागीरथी-हुगली नदी में प्रवाह बढ़ाकर कोलकाता पोर्ट को जिलाने के लिये किया गया था। योजना यह थी कि बैराज से 40,000 घनसेक पानी हुगली में छोड़ा जाएगा जो नदी की गाद को समुद्र तक धकेल कर इसे जहाजों की आवाजाही के लायक बनाए रखेगा। हालांकि इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली।


यह बैराज 2.6 किलोमीटर लम्बा है और इसके दाहिने छोर से 38 किलोमीटर लम्बी नहर भागीरथी-हुगली में पानी ले जाती है। साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल की परिणीता दांडेकर तो इसे बैराज भी नहीं मानतीं। उनका कहना है कि चूँकि इसके फाटक 15 मीटर से ऊँचे हैं और यह 87 मिलियन घन मीटर पानी रोक कर रखते हैं, इस लिहाज से यह एक विशाल बाँध है। गाद को रास्ता देने के लिये बैराज में 24 अन्दरूनी जलद्वार (अंडरस्लूस) हैं। पर नदी वैज्ञानिक राजीव सिन्हा का कहना है कि ये अंदरूनी जलद्वार गाद में धँस चुके हैं और इसके साथ ही बैराज की गाद को रास्ता देने की क्षमता खत्म हो चुकी है। फरक्का बैराज प्रोजेक्ट के जनरल मैनेजर ने यह कहते हुए बैराज पर टिप्पणी करने से मना कर दिया कि वह इसके लिये अधिकृत नहीं हैं।


क्या फरक्का के सारे गेट खोल देने या सब में अन्दरूनी जलद्वार लगाने से कोई हल निकलेगा? राजीव सिन्हा कहते हैं कि गंगा में गाद इतनी ज्यादा आती है कि सारी अन्दरूनी जलद्वार के जरिए नहीं धकेली जा सकती। दूसरी अड़चन यह है कि फरक्का पर गंगा का बहाव सीधा न होकर तिरछा है। नतीजतन दाईं तरफ नदी का बहाव ज्यादा है, जबकि इस हिस्से की जल (और गाद) प्रवाह क्षमता सीमित है।


तो क्या फरक्का बैराज को बन्द किया या तोड़ा जा सकता है? रुद्र मानते हैं कि यह सही नहीं होगा। वह कहते हैं, “हालांकि मैंने फरक्का की काफी आलोचना की है, मैं मानता हूँ कि यह बैराज एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। फरक्का बैराज ने बंगाल के मुर्शिदाबाद और नदिया जिले से होकर बहते भागीरथी-हुगली नदी 220 किलोमीटर के हिस्से को पुनः जीवित कर दिया है। यह हिस्सा गंगा डॉल्फिन का घर है। यह हिलसा के प्रजनन की जगह भी है। यहाँ नदी ने अपने आपको बदले हालात के अनुरूप ढाल लिया है।” फरक्का भागीरथी-हुगली के किनारे बसी 44 नगर पालिकाओं में पानी की जरूरत को भी पूरा करता है। यह घनी आबादी वाला क्षेत्र है जिसमें कोलकाता भी शामिल है। बैराज की वजह से हुगली के निचले हिस्से में खारापन कम हुआ है। रुद्र आगे कहते है, “अगर आप फरक्का को बन्द कर देंगे तो यह नदी सूख जाएगी” बैराज तोड़ने से बांग्लादेश में बाढ़ का खतरा भी पैदा हो जाएगा। नदियों के जानकार दिनेश कुमार मिश्र कहते हैं, “नीतीश कुमार जानते हैं जिस दिन फरक्का को हाथ लगाया जाएगा बांग्लादेश यूएनओ में जाएगा।”


कुछ लोगों का सुझाव है कि फरक्का की जगह एक अलग डिजाइन का बैराज बनाया जाये जिससे बांग्लादेश और भारत के बीच पानी का बँटवारा भी जस-का-तस बना रहे और गाद की रुकावट भी दूर हो जाए (देखें: वैकल्पिक डिजाइन)। यह देखना होगा कि ये सुझाव फरक्का के लिये कितने उपयुक्त हैं। पर कोई भी डिजाइन कितनी भी बेहतर क्यों न हो, बिना सही रख-रखाव के उसका भी फरक्का जैसा ही हाल होगा।


वैकल्पिक डिजाइन


भरत झुनझुनवाला सहित और कई पर्यावरणविदों ने फरक्का के तीन विकल्प सुझाए हैं, वहीं हाइड्रोलिक इंजीनियर नयन शर्मा ने एक आधुनिक तकनीक के वीयर की बात की है।


1. यमुना पर बना अंग्रेजी के एल अक्षर के आकार का ताजे वाला बैराज नदी के दूसरे किनारे तक नहीं जाता। यह घुमावदार बहाव का फायदा उठाकर पानी को एक तरफ मोड़ देता था।


2. गंगा पर बना भीमगोडा बैराज नदी के दो किनारों से आती दो ठोकरों (स्पर्स) की तरह था जिसके बीच में खाली जगह थी।


3. अलवर में रूपारेल नदी पर बिना गेट का ऐसा ढाँचा बनाया गया है जो नदी के बहाव को 55:45 के अनुपात में बाँट देता है।


4. ‘पियानो की वीयर’ एक नई तकनीक का वीयर है, जिसमें कोई गेट नहीं होते। यह नदी की अपनी शक्ति का उपयोग करता है और 85 प्रतिशत गाद निकाल सकता है।

 

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