फास्ट फैशन क्या है, पानी-पर्यावरण के संदर्भ में निहितार्थ

फैशन में पर्यावरण की अनदेखी (courtesy - needpix.com)
फैशन में पर्यावरण की अनदेखी (courtesy - needpix.com)

नवीनतम प्रवृत्तियों के आधार पर तेजी से सस्ते वस्त्रों के उत्पादन, यानी 'फास्ट फैशन' ने वैश्विक फैशन उद्योग को बदल दिया है। जारा, एचएंडएम व फारएवर 21 जैसे ब्रांडों ने यह आंदोलन शुरू किया है। इसका उद्देश्य बहुत तेज गति से सस्ते वस्त्र उपलब्ध कराना है। कुछ ही सप्ताह में नई डिजाइनों व स्टोर रेडी वस्त्रों के कारण लेटेस्ट स्टाइलें बहुत से लोगों, खासकर युवा ग्राहकों तक पहुंच रही हैं। हालांकि, यह फैशन का लोकतांत्रीकरण है, पर इसके गंभीर पर्यावरणीय, सामाजिक व आर्थिक नतीजे सामने आते हैं।

'फास्ट फैशन' माडल तेजी से ग्राहकों से मिल कर सस्ते व ट्रेंडी वस्त्रों का प्रचार करते हैं। बिजनेस की यह रणनीति सक्षम सप्लाई श्रृंखलाओं पर निर्भर करती है जो तेजी से लोकप्रिय शैलियों की नकल करती हैं। इससे ग्राहक लगातार नए उत्पादों से जुड़े रहते हैं। इस दृष्टिकोण से सस्ते फैशन को आगे बढ़ाया हैजिसमें ग्राहकों को विभिन्न ट्रेंड से प्रयोग का अवसर मिलता है और इस पर ज्यादा खर्च भी नहीं करना पड़ता है। युवा ग्राहकों के लिए अक्सर फैशन आत्माभिव्यक्ति का माध्यम होता है। लेकिन खराब गुणवत्ता और कम जीवन होने के कारण ऐसे वस्त्र अति उपभोग, बरबादी और पर्यावरणीय नुकसान को जन्म देते हैं।

'फास्ट फैशन' का सबसे बड़ा नुकसान पर्यावरण को होता है। इस उद्योग में ऊर्जा का भारी उपयोग होता है जो वस्त्र उत्पादन और उनके परिवहन के लिए फासिल ईंधनों पर निर्भर करती है। अनुमान है कि फैशन उद्योग विश्व स्तर पर 10 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन का जिम्मेदार है जो सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों तथा समुद्री शिपिंग को मिला कर भी उनसे अधिक है। इसका कारण बड़े पैमाने पर सिंथेटिक रेशों का प्रयोग है जो फासिल ईधनों से बनते हैं।

इसके साथ ही उनके विनिर्माण व दुनिया भर में वितरण में भी ऊर्जा खर्च होती है। इसके साथ ही उत्पादन प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर पानी का प्रयोग होता है। यह खासकर काटन के मामले में सर्वाधिक है जो आमतौर से वस्त्रों में प्रयोग होता है। एक किलोग्राम रेशा बनाने में हजारों लीटर पानी खर्च होता है।

इसके साथ ही टेक्सटाइल रंगने और फिनिशिंग में प्रयोग भारी मात्रा में पानी प्रदूषण बढ़ाता है। 'फास्ट फैशन' का पर्यावरणीय फुटप्रिंट कार्बन उत्सर्जन और जल उपभोग से आगे जाता है। 'फास्ट फैशन' सप्लाई श्रृंखलाओं में काम करने वाले कामगार अक्सर खराब कार्यस्थितियों व कम वेतन का शिकार होते हैं। अनेक मामलों में उनके श्रम का दोहन पर्यावरणीय रूप से प्रदूषक गतिविधियों से जुड़ा रहता है।

निर्माता पर्यावरण को नुकसान की चिन्ता किए बिना नियमन कठोरता से लागू नहीं करते हैं। इस प्रकार 'फास्ट फैशन' के सामाजिक व पर्यावरणीय प्रभाव एक दूसरे से जुड़े हैं। इन सरोकारों के बावजूद 'फास्ट फैशन' सस्ता होने और लगातार नई शैलियों की चमक के कारण लोकप्रिय बना हुआ है। कम खर्च करने वाले अनेक ग्राहक अपनी खरीद के नैतिक व पर्यावरणीय प्रभावों से परिचित नहीं हैं। लेकिन टिकाऊ फैशन के पक्ष में भी आंदोलन खड़ा हो रहा है जो इन मुद्दों के प्रति बढ़ती जागरूकता से संचालित है। टिकाऊ फैशन मात्रा के बजाय गुणवत्ता पर जोर देता है, पर्यावरण हितैषी सामग्रीव नैतिक उत्पादन व्यवहारों का प्रयोग करता है। कुछ ब्रांड 'सर्कुलर इकोनामी' सिद्धान्तों का पालन करते हुए रिसाइक्लिंग, अपसाइक्लिंग व मजबूत उत्पादों की डिजाइनिंग का काम करते हैं।

ग्राहकों को उनकी कपड़ों को पसंद के पर्यावरणीय प्रभावों के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए। सरकारों को टेक्सटाइल उत्पादन में कठोर नियमों को लागू कर रिसाइक्लिंग पहलों पर जोर देना चाहिए। टिकाऊ व्यवहारों को प्रोत्साहन तथा पर्यावरण हितैषी उत्पादों की मांग को बढ़ावा देने से उद्योग ज्यादा जिम्मेदार उत्पादन विधियों का प्रयोग करेगा। 'फास्ट फैशन' के बजाय टिकाऊ विकल्पों का प्रयोग उद्योग के पर्यावरणीय व सामाजिक नुकसान बचाने के लिए जरूरी है। संक्षेप में कहें तो 'फास्ट फैशन' ने ट्रेंड्स को ज्यादा पहुंच में लाने का काम किया है, पर इसके पर्यावरणीय व सामाजिक नुकसान बहुत अधिक हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए समन्वित प्रयासों की जरूरत है जिनमें ग्राहकों, उद्योग प्रमुखों तथा नीति निर्माताओं की सहभागिता जरूरी है ताकि ज्यादा नैतिक व टिकाऊ फैशन व्यवहारों की ओर बढ़ा जा सके।
 

शाइनी शर्मा पेशे से शिक्षाविद हैं, यह आलेख उनके पायनियर हिंदी में प्रकाशित शीर्षक ‘फास्ट फैशन के निहितार्थ’ से साभार।

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Post By: Kesar Singh
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