वे लोग केमिकल व एसिडयुक्त पानी पीने को मजबूर हैं। पीला या काला और बदबूदार पानी जिससे हाथ धोने की भी इच्छा न हो, ऐसा पानी उन्हें पीना पड़ रहा है। यही पानी नालों से होते हुए क्षिप्रा की सहायक नदी नागधम्मन को प्रदूषित करता है और इसका दूषित पानी क्षिप्रा में भी पहुँचता है। इतना ही नहीं यहाँ के माहौल में साँस लेना भी दूभर होता जा रहा है। आसपास की हवा में प्रदूषण से तीव्र दुर्गन्ध आती रहती है। इन लोगों ने इसकी शिकायत जिला अधिकारियों से भी की है लेकिन अब भी हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है।
मध्य प्रदेश के देवास शहर में औद्योगिक इलाके के पास रहने वाली करीब आधा दर्जन बस्तियों में यह समस्या है। यहाँ पाँच हजार से ज्यादा लोग बीते कई महीनों से इस त्रासदी का सामना कर रहे हैं। लगातार शिकायतें करने के बाद भी अब तक इनकी परेशानियों का कोई हल नहीं निकला है। इन्दौर रोड औद्योगिक क्षेत्र के पास की बस्तियों बावड़िया, सन सिटी, बीराखेड़ी, बिंजाना, इन्दिरा नगर सहित आसपास के कुछ इलाकों के लोगों के पास पीने के पानी का अन्यत्र कोई वैकल्पिक संसाधन भी नहीं है। लिहाजा इन्हें मजबूरी में ही सही, दूषित पानी ही पीने को मजबूर होना पड़ रहा है।
कारखाने में ही कार्यरत एक श्रमिक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि यह कारखानों में लगने वाले स्टेनलेस स्टील के ट्यूब बनाने की बड़ी फैक्टरी है। इसके ट्यूब देश के कई औद्योगिक संस्थानों में तो उपयोग आते ही हैं, देश के बाहर भी जाते हैं। स्टील ट्यूब के आकार लेने के बाद इसे एसिडयुक्त पानी के हौद में डाला जाता है। इसे इस तरह फिनिश या परिशुद्ध किया जाता है। इस पानी के प्रभाव को बढ़ाने के लिये इसमें नाइट्रिक एसिड के साथ अन्य तीव्र एसिड (जिसे यहाँ के कर्मचारी एचएस के नाम से पहचानते हैं।) मिलाया जाता है। यह इतना घातक होता है कि हौद में काम करने वाले श्रमिकों को दस्ताने पहनने पड़ते हैं।
श्रमिक के मुताबिक बड़ी तादाद में हर दिन ट्यूब फिनिश करने पड़ते हैं तो इस हौद का पानी भी करीब-करीब हर घंटे पर बदला जाता है। नया पानी डालने से पहले पुराना पानी खाली किया जाता है। नियमों के मुताबिक इस एसिडयुक्त पानी का उपचार किया जाना चाहिए लेकिन यहाँ बिना किसी उपचार के यह पानी ऐसे ही फैक्टरी के आउटलेट से नालियों में बहा दिया जाता है। फैक्टरी परिसर से बाहर आते ही यह पानी कच्ची नालियों से होता हुआ जमीन में चला जाता है।
सामाजिक कार्यकर्ता विकास लोखंडे कहते हैं, ‘इस फैक्टरी के दूषित पानी की वजह से आसपास के करीब एक किमी क्षेत्र के सभी भूजल संसाधन प्रदूषित हो चुके हैं। यही पानी नालों से होते हुए क्षिप्रा नदी तक भी पास में बह रही नागधम्मन नदी के पानी में घुलकर पहुँचता है और उसके पानी को भी दूषित करता है। सिंहस्थ से पहले क्षिप्रा को साफ रखने के लिये जिला प्रशासन को नागधम्मन नदी के इस दूषित पानी को पाल बाँधकर क्षिप्रा में मिलने से रोकना पड़ा था, लेकिन सिंहस्थ खत्म होते ही इसे फिर शुरू कर दिया गया है। करीब एक किमी क्षेत्र के भूजल प्रदूषित हो जाने से सरकारी हैण्डपम्प सहित निजी बोरिंग से भी दूषित पानी ही आता है।’
उन्होंने बताया कि इस पानी के नालियों में बहने से यहाँ तीव्र दुर्गन्ध आती रहती है। इससे लोगों को साँस लेना भी दूभर है। बारिश में तो स्थिति और भी बुरी हो जाती है। इससे यहाँ के लोगों को तरह-तरह की बीमारियाँ हो रहीं हैं। दूषित पानी पीने से पक्षियों की मौतें भी हो चुकी हैं। इलाके के लोगों को भी गम्भीर बीमारियों की आशंका है। डॉक्टरों के मुताबिक एसिडयुक्त पानी लगातार पीने से मानव स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है। इससे साँस, पेट, लीवर, किडनी और चर्म रोग तो होते ही हैं, कैंसर और अन्य गम्भीर बीमारियों की आशंका भी बढ़ जाती है। इससे मानव शरीर की प्राकृतिक जीवनशक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती जाती है।
स्थानीय रहवासी इन्दिरा मालवीय बताती हैं, सिंहस्थ से पहले क्षिप्रा की सहायक नदी नागधम्मन में प्रदूषण रोकने के लिये प्रशासन ने दूषित पानी बहाने वाले इन उद्योगों के नालों के मुहानों पर सीसीटीवी कैमरे भी लगाए थे। इनकी मानिटरिंग सीधे मप्र प्रदूषण नियंत्रण मण्डल भोपाल करता रहा। उन दिनों इस पानी का निपटान उद्योगों ने अपने अन्दर ही परिसर में कर लिया पर सिंहस्थ खत्म होते ही उन्होंने इसे फिर नालों में बहाना शुरू कर दिया है। इसी तरह कुछ जगह भूमिगत पाइप लगाकर इस पानी को आगे नालों में मिला दिया जाता है।’
देवास की एसोसिएशन ऑफ इण्डस्ट्रीज के अध्यक्ष अशोक खंडॉलिया कहते हैं, ‘औद्योगिक क्षेत्र के निकले पाइपों के सामने सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। किसी भी कम्पनी से कोई दूषित या केमिकल एसिडयुक्त पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। फिर भी कोई दूषित पानी छोड़ रहा है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।’
स्थानीय निवासी विकास लोखंडे ने 27 सितम्बर 16 को देवास जिला मुख्यालय पर जन सुनवाई के दौरान जिला कलेक्टर से की थी। इसे शिकायत संख्या 34671 पर दर्ज कर जिला कलेक्टर ने अनुविभागीय अधिकारी को 3 अक्टूबर 16 की तिथि नियत कर तत्काल कार्यवाही करने के निर्देश दिये थे। देवास अनुविभागीय अधिकारी ने पत्र क्र. 1509 दि. 28 सितम्बर 16 को क्षेत्र के राजस्व निरीक्षक को इस सम्बन्ध में भण्डारी फाइल्स एंड ट्यूब्स कम्पनी में मौका मुआयना कर जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश दिये। राजस्व निरीक्षक ने जाँच भी की पर उसके बाद से अब तक लम्बा वक्त गुजर जाने के बाद भी हालात में कोई बदलाव नहीं आया है। अब भी पानी उसी तरह हर घंटे पर छोड़ा जा रहा है।
यहीं रहने वाले रतनदास महन्त बताते हैं कि पानी का कोई वैकल्पिक स्रोत नहीं होने से लोगों को यही प्रदूषित पानी पीना पड़ रहा है और यही पानी रोजमर्रा के काम भी लेना पड़ता है। इससे लोग बीमार होते जा रहे हैं। वे बताते हैं कि कुछ सालों पहले तक तो आसपास के खेत मालिक उनके यहाँ से पीने लायक पानी भर लेने देते थे पर अब उन्होंने भी बन्द कर दिया है। यहाँ रहने वाले लोग जिनमें ज्यादातर मजदूर वर्ग से हैं, जिनके लिये दो वक्त की रोटी ही मुश्किल है वे अपने लिये पानी का इन्तजाम कहाँ से करें।
क्षेत्रीय पार्षद राजेश डांगी बताते हैं कि पहले तो और भी समस्या थी, उनके आने के बाद तो समस्या और भी कम हुई है। ट्यूबवेल में मोटर डालकर पाइपलाइन से पानी पहुँचाने का काम किया है। दूषित पानी की बात पर वे कहते हैं कि इसकी शिकायत भी करेंगे। अब नगर निगम नर्मदा का पानी आने के तृतीय चरण के लिये काम कर रहा है। अभी द्वितीय चरण के बाद भी पानी उतने प्रवाह से नहीं आ पा रहा है, तो इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। पर अब अगले चरण में पर्याप्त पानी आने से फायदा मिल सकेगा।
महापौर सुभाष शर्मा कहते हैं, ‘बस्तियों को साफ पानी देने के लिये हरसम्भव कोशिश की जाएगी। फिलहाल देवास को पर्याप्त पानी मिलने लगा है। अब क्षिप्रा के नवनिर्मित बाँध से भी पानी मिल रहा है। इस तरह बस्तियों के लिये पानी का इन्तजाम आसान हो सकेगा। इससे पहले तक तो शहर के लिये ही पानी की बहुत किल्लत थी।’
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