एनजीटी खुद पहुँचा नदी का हाल जानने

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नदी के किनारे कई जगह अतिक्रमण देखकर भी एनजीटी दल ने नाराजगी जताई। फूलमंडी इलाके में हरित पट्टी में भी विवाद की बात सामने आई। बीते एक साल में यहाँ लगे पौधों की जानकारी तो दूर सही संख्या भी नहीं बता सके। कुछ पौधे लगाए भी हैं लेकिन देखरेख के अभाव में वे बढ़ ही नहीं पा रहे हैं। अधिकारियों ने बताया कि शहर में 22 किमी लम्बाई में फैली खान नदी में 468 जगहें ऐसी हैं, जहाँ गन्दे पानी के नाले नदी में आकर मिलते हैं। फिलहाल मात्र 104 जगहों पर ही टेपिंग की जा सकी है। मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर के बीचों-बीच से बहने वाली खान (कान्ह) नदी को फिर से जिन्दा करने और उसे साफ करने के नाम पर नगर निगम अधिकारियों ने सरकारी खजाने से 400 करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि खर्च कर दी, लेकिन अब भी नदी साफ नहीं हुई। नदी में मिलने वाले सीवेज के गन्दे पानी के नालों को नहीं रोके जाने से नदी फिर से गन्दले नाले में तब्दील होती जा रही है। वहीं ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद किनारे पर पौधरोपण तो हुआ लेकिन एक साल बाद भी पौधे एक इंच भी नहीं बढ़ सके हैं। स्थिति का जायजा लेने आये एनजीटी के दल ने हकीकत देखी तो सहसा कह उठे- 'क्या इसी नदी को आपके शहर की लाइफलाइन कहते थे।'

नदी की बदहाल हालत को लेकर इन्दौर के सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में इसके खिलाफ याचिका दायर की। इस पर एनजीटी लम्बे समय से निगम अधिकारियों सहित वन विभाग, प्रदूषण मण्डल को भी आदेश जारी कर नदी की स्थिति सुधारने और साफ करने की ताकीद करता रहा लेकिन कोई बदलाव नहीं आया। हर पेशी में अधिकारी कागज और आँकड़ों के भ्रमजाल प्रस्तुत करते रहे, करीब दर्जन भर बार नगर निगम एनजीटी में शपथ पत्र पर काम होने की बात करता रहा। लेकिन हकीकत इसके विपरीत रही। इससे नाराज एनजीटी के न्यायाधीश दलीप सिंह ने आदेश दिये कि अब वे खुद नदी तट पर जाकर स्थिति की हकीकत जानेंगे।

26 फरवरी 2017 की सुबह एनजीटी न्यायाधीश दलीप सिंह खुद इन्दौर पहुँचे। उन्होंने अधिकारियों के साथ बैठक की। उनके निर्देश पर रजिस्ट्रार संजय शुक्ला ने खान नदी के तट पर पहुँच कर करीब दर्जन भर स्थानों पर मुआयना किया। उनके साथ याचिकाकर्ता किशोर कोडवानी सहित निगम अधिकारी और वन तथा प्रदूषण मण्डल के अफसर भी मौजूद थे।

यहाँ पूछताछ में कई बार अधिकारी बगले झाँकते नजर आये। खुली आँखों से नदी की दुर्दशा भरी सच्चाई देखकर श्री शुक्ला ने कई बार नाराजगी का इजहार किया। कई बार किशोर कोडवानी की अधिकारियों से तीखी बहस भी हुई। एनजीटी की अगली पेशी 16 मार्च को श्री शुक्ला इसकी रिपोर्ट पेश करेंगे।

सबसे पहले टीम ने तेजपुर की पुलिया से नदी को देखा तो पाया कि नदी के साफ पानी की जगह पर गन्दे पानी का नाला बह रहा था। इस पर रजिस्ट्रार ने नाराज होते हुए निगम अधिकारियों से सवाल किया कि यहाँ पानी इतना गन्दा है तो सीवेज के पानी का उपचार कहाँ और कैसे हो रहा है। अधिकारी गाँव के सीवेज का पानी मिलने की बात कहकर बगले झाँकने लगे तो कोडवानी ने बताया कि यहाँ कोई काम नहीं किया गया है। इस पर श्री शुक्ला ने साथ चल रहे प्रदूषण मण्डल के अफसरों से पानी का सैम्पल लेने के निर्देश दिये।

श्री शुक्ला ने दुखी होकर पूछा कि नदी का पानी इतना गन्दा है, क्या इसी नदी को आपके शहर की लाइफलाइन कहते थे। निगम अधिकारियों का मानना था कि समीप की नगर पंचायत राऊ की कालोनियों से गन्दा पानी मिल रहा है लेकिन कोडवानी ने स्थिति स्पष्ट करते हुए बताया कि ऐसा नहीं है, यह गन्दा पानी आसपास की छोटी–छोटी फैक्टरियों से आ रहा है, जिसे रोकने में आप लोग नाकाम रहे हो। उन्होंने मौके पर मौजूद निगम के अधीक्षण यंत्री हरभजन सिंह से तीखे सवाल किये कि गन्दे पानी के नालों की टेपिंग क्यों नहीं की गई, आप अब तक कोर्ट में झूठ बोलते आये हैं। इसलिये खुद एनजीटी को आज यहाँ आना पड़ा।

एनजीटी रजिस्ट्रार ने यह भी पूछा कि इसमें जलकुम्भी कैसे हो रही है तो अधिकारियों ने कमजोर तर्क दिया कि हम बार-बार सफाई करते हैं लेकिन फिर हो जाती है। इस पर कोडवानी ने कहा कि नदी को गहरा किया जाये तो जलकुम्भी नहीं रहेगी। उन्हें हरभजन सिंह ने बरगलाने की कोशिश करते हुए कहा कि आपको जलकुम्भी के बारे में पता नहीं है तो कोडवानी ने कहा कि इस बारे में प्रदूषण मण्डल के अधिकारी ज्यादा जानते हैं। आप बात को इधर-उधर करने के बजाय अपनी गलती मानो हरभजन सिंह जी, मैं यहाँ आया हूँ तो सब बताकर ही जाऊँगा। इसी तरह नदी में आकर मिल रहे गन्दे नालों की टेपिंग के सवाल पर भी कोडवानी ने सख्त तेवर में निगम अधिकारियों को डपटते हुए कहा कि आप तो अभी की स्थिति बताओ, गलत आँकड़े मत दो। इस पर श्री शुक्ल ने भी कहा कि सही बात है, बारिश में तो सब जगह का पानी मटमैला हो जाता है। असली स्थिति तो अब पता चलेगी।

नदी के प्रवाह क्षेत्र में बिल्डिंग देखकर भी रजिस्ट्रार चौंके और उन्होंने पूछा कि नदी के प्रवाह क्षेत्र में 30 मीटर की दूरी पर कैसे कोई निर्माण हो सकता है तो हरभजन सिंह ने सफाई पेश की कि पहले नदी से 9 मीटर दूरी पर निर्माण का नियम था लेकिन अब नया नियम 30 मीटर तक का आ गया है। नदी के किनारे कई जगह अतिक्रमण देखकर भी एनजीटी दल ने नाराजगी जताई। फूलमंडी इलाके में हरित पट्टी में भी विवाद की बात सामने आई।

बीते एक साल में यहाँ लगे पौधों की जानकारी तो दूर सही संख्या भी नहीं बता सके। कुछ पौधे लगाए भी हैं लेकिन देखरेख के अभाव में वे बढ़ ही नहीं पा रहे हैं। अधिकारियों ने बताया कि शहर में 22 किमी लम्बाई में फैली खान नदी में 468 जगहें ऐसी हैं, जहाँ गन्दे पानी के नाले नदी में आकर मिलते हैं। फिलहाल मात्र 104 जगहों पर ही टेपिंग की जा सकी है। इस पर कोडवानी ने कहा कि आप और हम तो अपनी जिन्दगी जी चुके लेकिन आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी। आप अपनी गलती मान लो और कह दो कि काम ठीक नहीं चल रहा है।

बाद में न्यायाधीश श्री सिंह ने बैठक के दौरान आदेश दिया कि नदी के शुरुआती हिस्से से ही इसकी साफ-सफाई की जाये और शुरुआती पाँच किमी लम्बाई क्षेत्र को पूरी तरह से साफ और अतिक्रमण मुक्त कर आदर्श मॉडल की तरह बनाया जाये। किशोर कोडवानी कहते हैं- “लम्बे वक्त से शहर की खान नदी की लडाई लड़ रहा हूँ। अधिकारी कोर्ट में वस्तुस्थिति नहीं रखते। आँकड़ों का भ्रमजाल फैलाते हैं। हालात बहुत बुरे हैं। सरकारी खजाने से अधिकारियों ने 400 करोड़ की भारी-भरकम राशि खर्च कर दी लेकिन नदी का कोई फायदा नहीं हुआ। नदी आज भी गन्दा नाला भर ही है। इसीलिये एनजीटी को जमीनी हकीकत देखने यहाँ आना पड़ा। गन्दा पानी रोकने के लिये नालों का पानी सीवेज लाइन के जरिए फिल्टर प्लांट तक पहुँचाने का काम फरवरी 16 में पूरा हो जाना था लेकिन साल भर बाद अब तक अधूरा है। दिसम्बर के आदेश के बाद नदी किनारे पौधे लगाने थे। कुछ जगह ही लग सके और वहाँ भी देख-रेख नहीं हुई तो पौधे एक इंच भी नहीं बढ़ सके। कई जगह तो पौधे ही उखड़कर बर्बाद हो चुके हैं।”

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