इस से पहले के आदेश में एन जी टी ने सरकार को वशिष्ठ से रोहतांग दर्रे तक पी॰पी॰पी/ मॉडलपर रोप वे स्थापित करने व सीएनजी बसें चलाने का सुझाव दिया था और “लोगों को पर्यावरण संरक्षण व टिकाऊ विकास के बारे में समझाने को कहा। यह धारणा कि इससे लोगों के रोजगार प्रभावित होंगे, इसके लिए लोगों को ठीक से पढ़ाएँ कि टिकाऊ विकास खुशाली लाने के लिए बाध्य हैजो उन्हें भविष्य में रोजगार प्रदान कराएगा।” नेशनल ग्रीन ट्रिवूनल (एनजीटी) के 6 जुलाई 2015 के आदेशानुसार अब घोड़ों, बर्फ के स्कूटर, ATV, पेराग्लाइडिंग इत्यादि के चलाने पर भी रोक लगा दी है। इससे पहले मनाली रोहतांग सड़क पर दस बर्ष पुराने व डीजल वाहनों के चलाने पर पाँच मई से रोक लगा दी गई थी तथा इस सड़क पर दिन में केवल छ: सौ पेट्रोल व चार सौ डीजल के पर्यटन वाहन को चलाने की अनुमति दी थी। 2008 से चल रहे इस केस में कई अलग–अलग आदेशों में एन जी टी ने सोलंग नाला व इस सड़क के अन्य स्थलों पर से सभी खोखों व ढ़ाबों को हटाने तथा लघु पर्यटन से जुड़ी बहुत सी सेवाओं पर भी रोक का फर्मान जारी किया है।
पर्यावरण संरक्षण के नाम पर लिए गए इन एक तरफा आदेशों में हजारों लोगों की आजीविका की सुरक्षा पर गौर नहीं किया गया व न ही कोई वैकल्पिक रास्ता दिखाया गया। यह भी नहीं बताया गया कि कैसे स्थानीय लोगों की आजीविका बचेगी व कैसे पर्यावरण मित्र पर्यटन का विकास होगा।
कोर्ट के इस कदम से छ: हजार से भी ज्यादा स्थानीय व प्रवासी कामगारों का रोजगार छिन जाएगा। इस क्षेत्र में पर्यटन के विकास में पिछले तीस सालों से भरी बढ़ोतरी हुई है। इससे पहले यहाँ के ग्रामीण गरीबी व अल्प शिक्षा के हालातों में जीवन जीने को मजबूर थे, क्योंकि यह पिछड़ा इलाका 6 माह बर्फ छादित रहता था। पर्यटन के विकास से लोगों को आजीविका उपार्जन के नए अवसर प्राप्त हुए। स्थानीय लोगों ने चाय व खाने के ढ़ाबे खोले, छोटे-छोटे खोखे खोल कर दुकानें चलाई, जिन में कोट, बूट, दस्तकारी का समान व कारयाने का व्यापार शुरू किया, टैक्सी चलना, घोड़े व याक की सवारी, बर्फ के पहाड़ी वाहन, स्थानीय पहनावे की थड़ी, जोरबिंग, ट्रेंपलिंग, स्लेज, फोटोग्राफी, पेराग्लाइडिंग, और स्कीइंग इत्यादि का काम शुरू किया। स्थानीय ग्राम पंचायत बुरुआ, शनाग, पल्चान, वशिष्ठ व मनाली तथा आस-पास के हजारों लोग इन कारोबारों में पिछले कई वर्षों से संलग्न हैं और इससे वे अपनी आजीविका उपार्जन कर रहे हैं। इन्हीं पर्यटन सहयोगी गतिविधियों के कारण आज इस इलाके में पर्यटन का भरी विकास हो पाया है।
उक्त आदेशों की पालना करते हुए प्रशासन ने सैंकड़ों ढ़ाबों व खोखों इत्यादि को अभी तक हटा दिया है। पाँच मई के बाद पर्यटन वाहनों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। ऐसे में आज यहाँ अराजकता का वातावरण बना हुआ है। सोलंग नाला में निजी कम्पनी रोप वे चला रही है, विद्युत परियोजना व दूसरे निजी बड़ी पूँजी के करोवरी वन भूमि लीज पर लेकर व्यापार कर रहे हैं। क्या इन स्थानीय ग्रामीणों, जो छोटा कारोबार पिछले तीस-चालीस वर्षों से कर रहे हैं को भी लीज पर वन भूमि दी जा सकती थी, जो आज तक नहीं दी गई और न ही इस पर कोई बात होती है।
अपुष्ट सूचना यह भी है कि बशिष्ठ-रोहतंग रोप वे की परियोजना PPP मॉडल पर 450 करोड़ रुपया में TATA कम्पनी को देने का प्रस्ताव सरकार के पास विचाराधीन है। दूसरी बात यह है की 2019 के बाद जब सोलंग – लाहौल सुरंग बन कर तैयार होगी और सेना रोहतंग सड़क के रख-रखाव व बर्फ हटाने के काम से हट जाएगी, जिस पर आज सेना का लगभग 70 करोड़ वार्षिक खर्च होता है, उसके बाद इस सड़क का रख-रखाव का कार्य कैसे होगा व कौन करेगा? क्या हिमाचल सरकार यह कार्य करने की जिम्मेवारी उठाने को तैयार है या TATA जैसी किसी कम्पनी को सड़क ही PPP मॉडल पर यह भी सौंप दी जाएगी?
PPP क्या है- Public Private Partnership, यह आज कल देश में एक व्यापार का मॉडल विकास के नाम पर चल रहा है, जिसमें निजी कम्पनी परियोजना में पैसे लगाती है और सरकार उसे जमीन इत्यादि अन्य सुविधाएँ मुफ़्त में देती है। कारोबार कम्पनी का होता है तथा मुनाफा भी कम्पनी ही लेती है। 40-50 साल बाद यह परियोजना सरकार को सौंप दी जाती है। इसका सीधा अर्थ होता है सरकारी (जनता) के पैसे व जमीन से निजी व्यापार। आजकल इस तरह की परियोजनाएँ सड़कों, जलविद्युत इत्यादि की भी चल रही है।
ऐसे में कोर्ट व सरकार के सारे प्रयत्न यही लगते हैं कि फिर से SKI VILLAGE जैसी कोई योजना (पर्दे के पीछे से) चलाई जाए, जिसका मात्र उदेश्य पर्यटन कारोबार से स्थानीय लघु व्यवसायियों को हटना ही लगता है। इसके लिए कोर्ट में तर्क भी दिए गए और कहा गया कि स्थानीय लघु पर्यटन व्यवसायियों के कारण पर्यावरण को इस संवेदनशील इलाके में भारी नुक्सान हो रहा है, ये प्रदूषण फैला रहे हैं, इन्होंने गंदगी व कचरा फैला दिया, नाजायज कब्जे किए, पर्यटकों की लूट की जा रही है इत्यादि-इत्यादि।
पिछली वर्ष जब NGT के आदेश आए उसके बाद फरवरी 2015 को हिमालय नीति अभियान के कार्यकर्ताओं ने क्षेत्र का दौरा किया। हमने स्थानीय लघु पर्यटन व्यवसायियों के समूहों, होटलवालों तथा जिला प्रशासन से बात की और उसके बाद एक रिपोर्ट इसपर सार्वजनिक की। इससे पहले बर्ष 2011-12 में हमने EQUATION, Bangluru तथा ENVIRINICS TRUST, दिल्ली के साथ मिलकर, हिमाचल के पर्यटन उद्योग की सम्भावनाओं, टिकाऊपन तथा ज़िम्मेवार पर्यटन के लक्ष्य को लेकर छ: गोष्ठियों का आयोजन चंबा, मक्लोड्गंज, मनाली, बंजार, रिकोङ्गपीओ व कुफ़री में किया था। इन गोष्ठियों में प्रदेश के पर्यटन से जुड़े अलग-अलग विधाओं के कारोबारियों ने भाग लिया था।
हिमालय नीती अभियान इससे पहले SKI VILLAGE के खिलाफ चले जन आन्दोलन के साथ रही है, इसलिए प्रदेश में पर्यटन उद्योग को पर्यावरण मित्र, टिकाऊ व ज़िम्मेवार उद्यम बनाने के लक्ष्य से हमने यह पहल की थी। हमने पाया कि पर्यटन के टिकाऊ नियोजन, कायदे कानून व प्रचार प्रसार की कमी, पर्यावरण व साफ़-सुथरा वातावरण, ग़ैरक़ानूनी कृत्य, सरकारी विभागों की भ्रष्ट कार्यप्रणाली पर उचित दिशानिर्देश का भी अभाव है। इसी कारण आज प्रदेश में पर्यटन का कारोबार अराजक तरीके से चल रहा है। इसलिए छोटे स्थानीय कारोबारियों को इस स्थिति के लिए जीमेबार नहीं ठहराया जा सकता है।
हमने पाया कि प्रदेश में आज लगभग छ; लाख से भी ज्यादा लोग इस उद्योग में नौकरी व प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से अपनी आजीविका उपार्जन कर रहे हैं। यह भी देखा गया कि प्रदेश के राजस्व में इस उद्योग की 7% के करीब भागी दरी है। आज दुनिया में यह उद्योग 25% की दर से वृद्धि कर रहा है। ऐसे में यह उद्योग अभी और भी फले-फूलेगा। इसीलिए कारण कारपोरेट की नजरें इस तरह की परियोजना पर टिकी हैं और मुनाफे के लिए इस क्षेत्र में निवेश करना चाहते हैं न कि पर्यावरण की चिंता के कारण। इस उद्योग में फ़ैली अराजकता, पर्यावरण का नुक्सान, लूट-घसूट व बुराइयाँ तथा गैरकानूनि गतिविधियाँ जो सरकारी संरक्षण व लापरवाही से ही पनपी हैं, असल में मात्र बहाना है, जबकि छुपा हुआ मकसद कुछ और ही है।
चार दिन पहले मैंने एक चर्चा पत्र सरकार, पर्यटन उद्योग से जुड़े जानकारों व मनाली के लघु पर्यटन कारोबारियों को जारी किया था। उसमें भविष्य में क्या होना चाहिए पर कुछ बिन्दु उठाए थे।
1. क्योंकि इस उद्योग से कई बुराइयाँ पनपी हैं, तो क्या इसे बंद कर दिया जाए?
2. क्या कारपोरेट व बड़ी कम्पनी के आने से पर्यावरण का नुक्सान नहीं होगा और अनैतिकता व बुराइयों का खातमा हो जाएगा तथा लूट बंद होगी और पर्यटक को सस्ती सेवा मिलेगी, इसलिए कारपोरेट का कारोबार सँभाला जाए?
3. या फिर कोई और भी विकल्प है, जो टिकाऊ व पर्यावरण मित्र हो, स्थानीय युवाओं को रोजगार व आजीविका का आधार प्रदान करता हो, साथ में बुराइयों व लूट-खसूट पर अंकुश लगा सके।
चर्चा के उपरांत हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि पर्यटन उद्योग बंद नहीं हो सकता बल्कि भविष्य में और ज्यादा फैलेगा। कारपोरेट व कम्पनी स्वच्छ व पर्यावरण मित्र पर्यटन का विकास एक भ्रम है जिस कि मिसाल केरल व दूसरे स्थानों पर देखि जा सकती है कि किस तरह ये पर्यटन के बड़े व्यापारी पर्यावरण को नुक्सान पहुँचा रहे हैं। स्थानीय युवाओं को रोजगार नहीं देते, जिसके कई बहाने होते हैं जैसे स्किल इत्यादि। छोटी मोती बेटर इत्यादि की नौकरी जरूर मिल सकती है, परन्तु उसमें भी स्थानीय कर्मी ज्यादा नहीं लिए जाते हैं, क्योंकि उनका यूनियन बनाने का खतरा होता है। जबकि प्रबंधन में कभी भी स्थानीय लोग नहीं लिए जाते हैं, यह देश भर में इन कम्पनियों के बारे में सर्वविदित अनुभव है। सस्ती सेवा तो इनकि हो ही नहीं सकती हैं। सोलांग नाला में बने रोप वे व उसके रेस्टोरेंट का बिल ज़रूर देखें, आप को रेट मालूम हो जाएँगे।
आज प्रदेश में दस लाख से ऊपर बेरोजगारों की फौज रोज़गार की तलाश में है, यह उद्योग एक सम्भावना है, जिसमें इन्हें रोजगार मिल सकता है। पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण व वनों का विकास कभी भी स्थानीय जन भागीदारी के बिना सम्भव नहीं हो सकता है। हमारी सरकार, नीतिनिर्धारक व राजनेता इस तरफ सोचना चाहिए। ऐसे में एक ही रास्ता है की सरकार जन भागीदारी से इस समस्या का समाधान निकालें तथा उसी क्षेत्र के स्थानीय लोगों, होटल व लघु पर्यटन सेवाओं से जुड़े कारोबारियों से मिल कर कोई रास्ता प्रदेश व स्थानीय लोगों के हित में निकले जो पर्यावरण मित्र हो तथा स्थानीय लोगों को रोजगार व आजीविका प्रदान करे। हमारा निम्न सुझाव है ;-
1. उसी क्षेत्र के स्थानीय लोगों, होटल व लघु पर्यटन सेवाओं से जुड़े कारोबारियों को एक मंच से एक राय के साथ अपना मत टिकाऊ, पर्यावरण मित्र, रोजगार मुल्क, लोक मित्र व जिम्मेवार पर्यटन पर रखना चाहिए।
2. सरकार को इस मुद्दे पर जनता के साथ चर्चा में बैठना चाहिए और जो लोग मिल कर तय करें उस पर अमल करके एनजीटी के समक्ष अपना पक्ष रखना चाहिए। और भी कानूनी रास्ते मिल कर तलाशे जा सकते हैं।
3. मनाली रोहतंग पर एक पूरी परियोजना का प्रकल्प तैयार कर्ण चाहिए, जिस में क्या-क्या पर्यटन से सम्बन्धित गतिविधियाँ संचालित की जाएँगी का उल्लेख हो तथा पर्यावरण संरक्षण व रोजगार की सम्भावनाओं को इंगित करना होगा। उन्हें कैसे संचालित किया जाएगा का पूरा हवाला देना होगा, जिस में पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता, कचरा प्रबंधन, पार्किंग, कम से कम छ: स्थानों पर शॉपिंग व खाद्य तथा मनोरंजन के स्थानों का निर्धारण व उसकी प्रबंध योजना का प्रारूप पेश करना होगा। इसका प्रबंधन कौन करेगा, नियम कायदे भी बनाने होंगे जिसको लागू करने का जिम्मा किसका होगा भी दिखाना पड़ेगा।
4. प्रदेश सरकार को भी अपनी पर्यटन नीति बनानी होगी जो टिकाऊ, पर्यावरण मित्र, रोजगार मूलक, लोक मित्र व जिम्मेवार पर्यटन जैसे पहलुओं पर आधारित हो।
गुमान सिंह, राष्ट्रीय संयोजक – हिमालय नीति अभियान
पर्यावरण संरक्षण के नाम पर लिए गए इन एक तरफा आदेशों में हजारों लोगों की आजीविका की सुरक्षा पर गौर नहीं किया गया व न ही कोई वैकल्पिक रास्ता दिखाया गया। यह भी नहीं बताया गया कि कैसे स्थानीय लोगों की आजीविका बचेगी व कैसे पर्यावरण मित्र पर्यटन का विकास होगा।
कोर्ट के इस कदम से छ: हजार से भी ज्यादा स्थानीय व प्रवासी कामगारों का रोजगार छिन जाएगा। इस क्षेत्र में पर्यटन के विकास में पिछले तीस सालों से भरी बढ़ोतरी हुई है। इससे पहले यहाँ के ग्रामीण गरीबी व अल्प शिक्षा के हालातों में जीवन जीने को मजबूर थे, क्योंकि यह पिछड़ा इलाका 6 माह बर्फ छादित रहता था। पर्यटन के विकास से लोगों को आजीविका उपार्जन के नए अवसर प्राप्त हुए। स्थानीय लोगों ने चाय व खाने के ढ़ाबे खोले, छोटे-छोटे खोखे खोल कर दुकानें चलाई, जिन में कोट, बूट, दस्तकारी का समान व कारयाने का व्यापार शुरू किया, टैक्सी चलना, घोड़े व याक की सवारी, बर्फ के पहाड़ी वाहन, स्थानीय पहनावे की थड़ी, जोरबिंग, ट्रेंपलिंग, स्लेज, फोटोग्राफी, पेराग्लाइडिंग, और स्कीइंग इत्यादि का काम शुरू किया। स्थानीय ग्राम पंचायत बुरुआ, शनाग, पल्चान, वशिष्ठ व मनाली तथा आस-पास के हजारों लोग इन कारोबारों में पिछले कई वर्षों से संलग्न हैं और इससे वे अपनी आजीविका उपार्जन कर रहे हैं। इन्हीं पर्यटन सहयोगी गतिविधियों के कारण आज इस इलाके में पर्यटन का भरी विकास हो पाया है।
उक्त आदेशों की पालना करते हुए प्रशासन ने सैंकड़ों ढ़ाबों व खोखों इत्यादि को अभी तक हटा दिया है। पाँच मई के बाद पर्यटन वाहनों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। ऐसे में आज यहाँ अराजकता का वातावरण बना हुआ है। सोलंग नाला में निजी कम्पनी रोप वे चला रही है, विद्युत परियोजना व दूसरे निजी बड़ी पूँजी के करोवरी वन भूमि लीज पर लेकर व्यापार कर रहे हैं। क्या इन स्थानीय ग्रामीणों, जो छोटा कारोबार पिछले तीस-चालीस वर्षों से कर रहे हैं को भी लीज पर वन भूमि दी जा सकती थी, जो आज तक नहीं दी गई और न ही इस पर कोई बात होती है।
अपुष्ट सूचना यह भी है कि बशिष्ठ-रोहतंग रोप वे की परियोजना PPP मॉडल पर 450 करोड़ रुपया में TATA कम्पनी को देने का प्रस्ताव सरकार के पास विचाराधीन है। दूसरी बात यह है की 2019 के बाद जब सोलंग – लाहौल सुरंग बन कर तैयार होगी और सेना रोहतंग सड़क के रख-रखाव व बर्फ हटाने के काम से हट जाएगी, जिस पर आज सेना का लगभग 70 करोड़ वार्षिक खर्च होता है, उसके बाद इस सड़क का रख-रखाव का कार्य कैसे होगा व कौन करेगा? क्या हिमाचल सरकार यह कार्य करने की जिम्मेवारी उठाने को तैयार है या TATA जैसी किसी कम्पनी को सड़क ही PPP मॉडल पर यह भी सौंप दी जाएगी?
PPP क्या है- Public Private Partnership, यह आज कल देश में एक व्यापार का मॉडल विकास के नाम पर चल रहा है, जिसमें निजी कम्पनी परियोजना में पैसे लगाती है और सरकार उसे जमीन इत्यादि अन्य सुविधाएँ मुफ़्त में देती है। कारोबार कम्पनी का होता है तथा मुनाफा भी कम्पनी ही लेती है। 40-50 साल बाद यह परियोजना सरकार को सौंप दी जाती है। इसका सीधा अर्थ होता है सरकारी (जनता) के पैसे व जमीन से निजी व्यापार। आजकल इस तरह की परियोजनाएँ सड़कों, जलविद्युत इत्यादि की भी चल रही है।
ऐसे में कोर्ट व सरकार के सारे प्रयत्न यही लगते हैं कि फिर से SKI VILLAGE जैसी कोई योजना (पर्दे के पीछे से) चलाई जाए, जिसका मात्र उदेश्य पर्यटन कारोबार से स्थानीय लघु व्यवसायियों को हटना ही लगता है। इसके लिए कोर्ट में तर्क भी दिए गए और कहा गया कि स्थानीय लघु पर्यटन व्यवसायियों के कारण पर्यावरण को इस संवेदनशील इलाके में भारी नुक्सान हो रहा है, ये प्रदूषण फैला रहे हैं, इन्होंने गंदगी व कचरा फैला दिया, नाजायज कब्जे किए, पर्यटकों की लूट की जा रही है इत्यादि-इत्यादि।
पिछली वर्ष जब NGT के आदेश आए उसके बाद फरवरी 2015 को हिमालय नीति अभियान के कार्यकर्ताओं ने क्षेत्र का दौरा किया। हमने स्थानीय लघु पर्यटन व्यवसायियों के समूहों, होटलवालों तथा जिला प्रशासन से बात की और उसके बाद एक रिपोर्ट इसपर सार्वजनिक की। इससे पहले बर्ष 2011-12 में हमने EQUATION, Bangluru तथा ENVIRINICS TRUST, दिल्ली के साथ मिलकर, हिमाचल के पर्यटन उद्योग की सम्भावनाओं, टिकाऊपन तथा ज़िम्मेवार पर्यटन के लक्ष्य को लेकर छ: गोष्ठियों का आयोजन चंबा, मक्लोड्गंज, मनाली, बंजार, रिकोङ्गपीओ व कुफ़री में किया था। इन गोष्ठियों में प्रदेश के पर्यटन से जुड़े अलग-अलग विधाओं के कारोबारियों ने भाग लिया था।
हिमालय नीती अभियान इससे पहले SKI VILLAGE के खिलाफ चले जन आन्दोलन के साथ रही है, इसलिए प्रदेश में पर्यटन उद्योग को पर्यावरण मित्र, टिकाऊ व ज़िम्मेवार उद्यम बनाने के लक्ष्य से हमने यह पहल की थी। हमने पाया कि पर्यटन के टिकाऊ नियोजन, कायदे कानून व प्रचार प्रसार की कमी, पर्यावरण व साफ़-सुथरा वातावरण, ग़ैरक़ानूनी कृत्य, सरकारी विभागों की भ्रष्ट कार्यप्रणाली पर उचित दिशानिर्देश का भी अभाव है। इसी कारण आज प्रदेश में पर्यटन का कारोबार अराजक तरीके से चल रहा है। इसलिए छोटे स्थानीय कारोबारियों को इस स्थिति के लिए जीमेबार नहीं ठहराया जा सकता है।
हमने पाया कि प्रदेश में आज लगभग छ; लाख से भी ज्यादा लोग इस उद्योग में नौकरी व प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से अपनी आजीविका उपार्जन कर रहे हैं। यह भी देखा गया कि प्रदेश के राजस्व में इस उद्योग की 7% के करीब भागी दरी है। आज दुनिया में यह उद्योग 25% की दर से वृद्धि कर रहा है। ऐसे में यह उद्योग अभी और भी फले-फूलेगा। इसीलिए कारण कारपोरेट की नजरें इस तरह की परियोजना पर टिकी हैं और मुनाफे के लिए इस क्षेत्र में निवेश करना चाहते हैं न कि पर्यावरण की चिंता के कारण। इस उद्योग में फ़ैली अराजकता, पर्यावरण का नुक्सान, लूट-घसूट व बुराइयाँ तथा गैरकानूनि गतिविधियाँ जो सरकारी संरक्षण व लापरवाही से ही पनपी हैं, असल में मात्र बहाना है, जबकि छुपा हुआ मकसद कुछ और ही है।
चार दिन पहले मैंने एक चर्चा पत्र सरकार, पर्यटन उद्योग से जुड़े जानकारों व मनाली के लघु पर्यटन कारोबारियों को जारी किया था। उसमें भविष्य में क्या होना चाहिए पर कुछ बिन्दु उठाए थे।
1. क्योंकि इस उद्योग से कई बुराइयाँ पनपी हैं, तो क्या इसे बंद कर दिया जाए?
2. क्या कारपोरेट व बड़ी कम्पनी के आने से पर्यावरण का नुक्सान नहीं होगा और अनैतिकता व बुराइयों का खातमा हो जाएगा तथा लूट बंद होगी और पर्यटक को सस्ती सेवा मिलेगी, इसलिए कारपोरेट का कारोबार सँभाला जाए?
3. या फिर कोई और भी विकल्प है, जो टिकाऊ व पर्यावरण मित्र हो, स्थानीय युवाओं को रोजगार व आजीविका का आधार प्रदान करता हो, साथ में बुराइयों व लूट-खसूट पर अंकुश लगा सके।
चर्चा के उपरांत हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि पर्यटन उद्योग बंद नहीं हो सकता बल्कि भविष्य में और ज्यादा फैलेगा। कारपोरेट व कम्पनी स्वच्छ व पर्यावरण मित्र पर्यटन का विकास एक भ्रम है जिस कि मिसाल केरल व दूसरे स्थानों पर देखि जा सकती है कि किस तरह ये पर्यटन के बड़े व्यापारी पर्यावरण को नुक्सान पहुँचा रहे हैं। स्थानीय युवाओं को रोजगार नहीं देते, जिसके कई बहाने होते हैं जैसे स्किल इत्यादि। छोटी मोती बेटर इत्यादि की नौकरी जरूर मिल सकती है, परन्तु उसमें भी स्थानीय कर्मी ज्यादा नहीं लिए जाते हैं, क्योंकि उनका यूनियन बनाने का खतरा होता है। जबकि प्रबंधन में कभी भी स्थानीय लोग नहीं लिए जाते हैं, यह देश भर में इन कम्पनियों के बारे में सर्वविदित अनुभव है। सस्ती सेवा तो इनकि हो ही नहीं सकती हैं। सोलांग नाला में बने रोप वे व उसके रेस्टोरेंट का बिल ज़रूर देखें, आप को रेट मालूम हो जाएँगे।
आज प्रदेश में दस लाख से ऊपर बेरोजगारों की फौज रोज़गार की तलाश में है, यह उद्योग एक सम्भावना है, जिसमें इन्हें रोजगार मिल सकता है। पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण व वनों का विकास कभी भी स्थानीय जन भागीदारी के बिना सम्भव नहीं हो सकता है। हमारी सरकार, नीतिनिर्धारक व राजनेता इस तरफ सोचना चाहिए। ऐसे में एक ही रास्ता है की सरकार जन भागीदारी से इस समस्या का समाधान निकालें तथा उसी क्षेत्र के स्थानीय लोगों, होटल व लघु पर्यटन सेवाओं से जुड़े कारोबारियों से मिल कर कोई रास्ता प्रदेश व स्थानीय लोगों के हित में निकले जो पर्यावरण मित्र हो तथा स्थानीय लोगों को रोजगार व आजीविका प्रदान करे। हमारा निम्न सुझाव है ;-
1. उसी क्षेत्र के स्थानीय लोगों, होटल व लघु पर्यटन सेवाओं से जुड़े कारोबारियों को एक मंच से एक राय के साथ अपना मत टिकाऊ, पर्यावरण मित्र, रोजगार मुल्क, लोक मित्र व जिम्मेवार पर्यटन पर रखना चाहिए।
2. सरकार को इस मुद्दे पर जनता के साथ चर्चा में बैठना चाहिए और जो लोग मिल कर तय करें उस पर अमल करके एनजीटी के समक्ष अपना पक्ष रखना चाहिए। और भी कानूनी रास्ते मिल कर तलाशे जा सकते हैं।
3. मनाली रोहतंग पर एक पूरी परियोजना का प्रकल्प तैयार कर्ण चाहिए, जिस में क्या-क्या पर्यटन से सम्बन्धित गतिविधियाँ संचालित की जाएँगी का उल्लेख हो तथा पर्यावरण संरक्षण व रोजगार की सम्भावनाओं को इंगित करना होगा। उन्हें कैसे संचालित किया जाएगा का पूरा हवाला देना होगा, जिस में पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता, कचरा प्रबंधन, पार्किंग, कम से कम छ: स्थानों पर शॉपिंग व खाद्य तथा मनोरंजन के स्थानों का निर्धारण व उसकी प्रबंध योजना का प्रारूप पेश करना होगा। इसका प्रबंधन कौन करेगा, नियम कायदे भी बनाने होंगे जिसको लागू करने का जिम्मा किसका होगा भी दिखाना पड़ेगा।
4. प्रदेश सरकार को भी अपनी पर्यटन नीति बनानी होगी जो टिकाऊ, पर्यावरण मित्र, रोजगार मूलक, लोक मित्र व जिम्मेवार पर्यटन जैसे पहलुओं पर आधारित हो।
गुमान सिंह, राष्ट्रीय संयोजक – हिमालय नीति अभियान
Path Alias
/articles/ena-jai-tai-kae-adaesa-sae-sathaanaiya-baasaindae-haongae-vaisathaapaita
Post By: Hindi