एक सन्यासी निगमानंद की मौत के बाद कोई हंगामा नहीं हुआ, समाज ने ठीक से अश्रु भी नहीं बहाए...तो इस दूसरे सन्यासी की मृत्यु से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। संभवतः हमारी सरकारें अब यही सोचती हैं। यदि ऐसा है, तो स्थिति सचमुच विकट है। ऐसे में इस मांग का उठना पूरी तरह वाजिब है कि प्रधानमंत्री गंगा प्राधिकरण से इस्तीफ़ा दें और अपनी जगह तत्काल एक दृढ़ और सुयोग्य व्यक्ति को इसका पूर्णकालिक अध्यक्ष नियुक्त कर दें। यह उनका प्रायश्चित भी होगा और संभवतः गंगा और गंगा प्राधिकरण को प्राणवान बनाने वाला कदम भी। राहुल गांधी के ताज़ा बयान पर डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने की उनके पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारु की सलाह भले ही वाजिब न हो, लेकिन गंगा प्राधिकरण से उनके इस्तीफ़े की मांग एकदम वाजिब है। 25 सितंबर को पर्यावरण मामलों के प्रख्यात वकील श्री एम.सी. मेहता ने एक प्रेस वार्ता में यह मांग की।
श्री मेहता यह मांग करते हुए अत्यंत विनम्रता से कहा- “चार साल में कुल जमा तीन बैठकें यह सिद्ध करती हैं, प्रधानमंत्री के पास गंगा प्राधिकरण के लिए वक्त नहीं है। उनके पास देश के और दूसरे बड़े काम हैं। बेहतर है कि वह खुद गंगा अथारिटी से इस्तीफ़ा दें दें।’’ श्री मेहता ने चुनाव आयोग की तर्ज पर गंगा प्राधिकरण के लिए पूर्णकालिक अध्यक्ष की भी मांग की। उल्लेखनीय है कि गत् 13 जून से गंगा तप कर रहे स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद उर्फ प्रो जी डी अग्रवाल द्वारा 21 सितंबर से जल त्याग के बाद उनकी सेहत बिगड़ गई थी। 22 सितंबर को स्थानीय प्रशासन इलाज के लिए उन्हें देहरादून के दून अस्पताल ले गया। इससे स्वामी सानंद के प्राणों पर आया संकट तो तत्काल टल गया, लेकिन उनके संकल्प पर संकट और गहरा गया। इसे देखते हुए 25 सितंबर को नई दिल्ली के प्रेस क्लब में गंगा महासभा ने एक प्रेस वार्ता आयोजित की। सर्वश्री न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय, गंगा महासभा के आचार्य जितेन्द्र, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष श्री परितोष त्यागी, एन्वायरोटेक कंपनी के मुखिया श्री एस.के. गुप्ता और पर्यावरण मामलों के प्रख्यात वकील श्री एम.सी. मेहता ने प्रेस को संबोधित किया।
हालांकि ऐसा पहली बार है कि स्वामी सानंद के अनशन अथवा गंगा के लिए राष्ट्रीय मीडिया के पास बहुत जगह नहीं है; लेकिन इस समय का मीडिया सच यही है। मालूम नहीं कि कारण क्या है? किंतु कुछ कारण तो है कि गंगा प्राधिकरण से गंगा जैसे राष्ट्रीय महत्व के मसले पर अनशन के 30 सितम्बर को 110 दिन पूरे होने के बावजूद बहुमत राष्ट्रीय मीडिया द्वारा इसे मुद्दे के रूप में नहीं उठाया गया। यह आश्चर्यजनक नहीं, किंतु दुर्भाग्यपूर्ण ज़रूर है। गंगामहासभा की प्रेस वार्ता में वक्ता भी पांच और श्रोता प्रेस प्रतिनिधि भी बमुश्किल पांच मीडिया समूहों से ही थे। इससे पूर्व वूमैन प्रेस क्लब में बुलाई एक अन्य प्रेसवार्ता में यह संख्या चार पर अटक गई थी। कुछेक को छोड़कर बहुमत राष्ट्रीय मीडिया.... खासकर इलेक्ट्रॅानिक मीडिया ने जलपुरुष श्री राजेन्द्र सिंह, लोक विज्ञान केन्द्र-देहरादून के श्री रवि चोपड़ा और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर राशिद हयात सिद्दकी के गंगा प्राधिकरण की विशेषज्ञ सदस्यता से इस्तीफ़े को एक साधारण खबर भी नहीं समझा। ऐसे में उनसे प्राधिकरण के शेष पांच विशेषज्ञ सदस्यों (सुश्री सुनीता नारायण-नई दिल्ली, रमा राउत-पुणे, के.जी. नाथ-कोलकाता, बीडी त्रिपाठी-वाराणसी और आर के सिन्हा-पटना) की सार्वजनिक चुप्पी पर सवाल उठाने की उम्मीद कोई क्या करे?
प्रेस वार्ता में मौजूद ‘आजतक’ के वरिष्ठ मीडियाकर्मी श्री प्रतीक चतुर्वेदी ने प्रेस प्रतिनिधियों की अत्यंत कम संख्या पर टिप्पणी भी की और वार्ताकारों को उकसाया भी। उन्होंने कहा- “जब इस देश में खास महत्व के मुद्दे इंडिया गेट पर ही तय हो रहे हों, तो क्या आपको नहीं लगता कि आपको भी इंडिया गेट जाना चाहिए?’’ श्री प्रतीक का इशारा स्वामी सानंद और गंगा के मसले को समाज के बीच ले जाने का था। उन्होंने गंगा महासभा और वार्ताकारों से जानना भी चाहा कि सरकार द्वारा मांग न माने जाने पर वार्ताकारों की क्या रणनीति है? दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था।
खैर! इस प्रेस वार्ता में न्यायमूर्ति श्री गिरधर मालवीय ने सवाल उठाया कि गंगा को ‘राष्ट्रीय नदी’ तो घोषित कर दिया, लेकिन एक ‘राष्ट्रीय नदी’ को संरक्षित करने के लिए जो कानून होने चाहिए, वे कहां है? उन्होंने गंगा संरक्षण के लिए विशेष क़ानूनों की आवश्यकता बताते हुए स्पष्ट कहा- “गंगा और स्वामी सानंद.. दोनों का जीवन राष्ट्र के हित में है। किंतु दोनों को लेकर जिस तरह की संवेदनहीनता सरकार की ओर से दिखाई दे रही है, हमें लगा कि हम मीडिया के पास जाएं।’’ उन्होंने मीडिया से अपेक्षा की कि वह मसले को तवज्जो देकर स्वामी सानंद की प्राण रक्षा हेतु शासन पर दबाव बनाएगा।
दुनिया के दूसरे देशों द्वारा नदियों को एक जीवित व्यक्ति का कानूनी दर्जा दिए जाने का संदर्भ रखते हुए श्री परितोष त्यागी ने भारत में भी ऐसा किए जाने की जरूरत बताई। उल्लेखनीय है कि करीब एक साल पूर्व यमुना वाटरकीपर्स की मुखिया मीनाक्षी अरोड़ा ने जलबिरादरी के मेरठ सम्मेलन में यह मांग रखी थी। मैं खुद कई मंचों और अपने लेखों के जरिए नदियों के मातृत्व को संवैधानिक मान्यता देने की मांग उठाता रहा हूं। एक भौतिक वस्तु की तरह मानकर निवेशकों द्वारा नदियों से कमाने के लालच को देखते हुए अब इस मांग को जोरदार तरीके से उठाने की जरूरत बढ़ती जा रही है।
आचार्य जितेन्द्र ने आरोप लगाते हुए साफ-साफ कहा कि देश के एक शंकराचार्य के इशारे पर केन्द्र व उत्तराखंड की सरकार स्वामी सानंद की उपेक्षा कर रही है। उन्होंने याद दिलाया कि इस देश में ही नहीं, दुनिया भर में मां गंगा का दर्जा विशेष है। हम क्यों भूलते हैं कि स्वामी सानंद की मांग सिर्फ गंगा को लेकर है, किसी और नदी को लेकर नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि जिस देश के प्रधानमंत्री के पास देश की राष्ट्रीय नदी को बचाने की कोशिश में अपने प्राण तक से खेलने वालों से बात करने तक का वक्त नहीं है, ऐसे में हम उनसे और क्या उम्मीद करें?
एक सन्यासी निगमानंद की मौत के बाद कोई हंगामा नहीं हुआ, समाज ने ठीक से अश्रु भी नहीं बहाए.......तो इस दूसरे सन्यासी की मृत्यु से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। संभवतः हमारी सरकारें अब यही सोचती हैं। यदि ऐसा है, तो स्थिति सचमुच विकट है। ऐसे में इस मांग का उठना पूरी तरह वाजिब है कि प्रधानमंत्री गंगा प्राधिकरण से इस्तीफ़ा दें और अपनी जगह तत्काल एक दृढ़ और सुयोग्य व्यक्ति को इसका पूर्णकालिक अध्यक्ष नियुक्त कर दें। यह उनका प्रायश्चित भी होगा और संभवतः गंगा और गंगा प्राधिकरण को प्राणवान बनाने वाला कदम भी। क्या गंगा का समाज एकजुट होकर प्रधानमंत्री से यह मांग करेगा?
प्राधिकरण को प्रधानमंत्री नहीं, चाहिए एक पूर्णकालिक अध्यक्ष – एम.सी. मेहता
श्री मेहता यह मांग करते हुए अत्यंत विनम्रता से कहा- “चार साल में कुल जमा तीन बैठकें यह सिद्ध करती हैं, प्रधानमंत्री के पास गंगा प्राधिकरण के लिए वक्त नहीं है। उनके पास देश के और दूसरे बड़े काम हैं। बेहतर है कि वह खुद गंगा अथारिटी से इस्तीफ़ा दें दें।’’ श्री मेहता ने चुनाव आयोग की तर्ज पर गंगा प्राधिकरण के लिए पूर्णकालिक अध्यक्ष की भी मांग की। उल्लेखनीय है कि गत् 13 जून से गंगा तप कर रहे स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद उर्फ प्रो जी डी अग्रवाल द्वारा 21 सितंबर से जल त्याग के बाद उनकी सेहत बिगड़ गई थी। 22 सितंबर को स्थानीय प्रशासन इलाज के लिए उन्हें देहरादून के दून अस्पताल ले गया। इससे स्वामी सानंद के प्राणों पर आया संकट तो तत्काल टल गया, लेकिन उनके संकल्प पर संकट और गहरा गया। इसे देखते हुए 25 सितंबर को नई दिल्ली के प्रेस क्लब में गंगा महासभा ने एक प्रेस वार्ता आयोजित की। सर्वश्री न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय, गंगा महासभा के आचार्य जितेन्द्र, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष श्री परितोष त्यागी, एन्वायरोटेक कंपनी के मुखिया श्री एस.के. गुप्ता और पर्यावरण मामलों के प्रख्यात वकील श्री एम.सी. मेहता ने प्रेस को संबोधित किया।
क्या अब मीडिया एजेंडे में नहीं गंगा- जीडी?
हालांकि ऐसा पहली बार है कि स्वामी सानंद के अनशन अथवा गंगा के लिए राष्ट्रीय मीडिया के पास बहुत जगह नहीं है; लेकिन इस समय का मीडिया सच यही है। मालूम नहीं कि कारण क्या है? किंतु कुछ कारण तो है कि गंगा प्राधिकरण से गंगा जैसे राष्ट्रीय महत्व के मसले पर अनशन के 30 सितम्बर को 110 दिन पूरे होने के बावजूद बहुमत राष्ट्रीय मीडिया द्वारा इसे मुद्दे के रूप में नहीं उठाया गया। यह आश्चर्यजनक नहीं, किंतु दुर्भाग्यपूर्ण ज़रूर है। गंगामहासभा की प्रेस वार्ता में वक्ता भी पांच और श्रोता प्रेस प्रतिनिधि भी बमुश्किल पांच मीडिया समूहों से ही थे। इससे पूर्व वूमैन प्रेस क्लब में बुलाई एक अन्य प्रेसवार्ता में यह संख्या चार पर अटक गई थी। कुछेक को छोड़कर बहुमत राष्ट्रीय मीडिया.... खासकर इलेक्ट्रॅानिक मीडिया ने जलपुरुष श्री राजेन्द्र सिंह, लोक विज्ञान केन्द्र-देहरादून के श्री रवि चोपड़ा और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर राशिद हयात सिद्दकी के गंगा प्राधिकरण की विशेषज्ञ सदस्यता से इस्तीफ़े को एक साधारण खबर भी नहीं समझा। ऐसे में उनसे प्राधिकरण के शेष पांच विशेषज्ञ सदस्यों (सुश्री सुनीता नारायण-नई दिल्ली, रमा राउत-पुणे, के.जी. नाथ-कोलकाता, बीडी त्रिपाठी-वाराणसी और आर के सिन्हा-पटना) की सार्वजनिक चुप्पी पर सवाल उठाने की उम्मीद कोई क्या करे?
क्या मीडिया को मसले पर जनांदोलन का इंतजार?
प्रेस वार्ता में मौजूद ‘आजतक’ के वरिष्ठ मीडियाकर्मी श्री प्रतीक चतुर्वेदी ने प्रेस प्रतिनिधियों की अत्यंत कम संख्या पर टिप्पणी भी की और वार्ताकारों को उकसाया भी। उन्होंने कहा- “जब इस देश में खास महत्व के मुद्दे इंडिया गेट पर ही तय हो रहे हों, तो क्या आपको नहीं लगता कि आपको भी इंडिया गेट जाना चाहिए?’’ श्री प्रतीक का इशारा स्वामी सानंद और गंगा के मसले को समाज के बीच ले जाने का था। उन्होंने गंगा महासभा और वार्ताकारों से जानना भी चाहा कि सरकार द्वारा मांग न माने जाने पर वार्ताकारों की क्या रणनीति है? दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था।
नदी राष्ट्रीय, पर इसका कानून कहां? -न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय
खैर! इस प्रेस वार्ता में न्यायमूर्ति श्री गिरधर मालवीय ने सवाल उठाया कि गंगा को ‘राष्ट्रीय नदी’ तो घोषित कर दिया, लेकिन एक ‘राष्ट्रीय नदी’ को संरक्षित करने के लिए जो कानून होने चाहिए, वे कहां है? उन्होंने गंगा संरक्षण के लिए विशेष क़ानूनों की आवश्यकता बताते हुए स्पष्ट कहा- “गंगा और स्वामी सानंद.. दोनों का जीवन राष्ट्र के हित में है। किंतु दोनों को लेकर जिस तरह की संवेदनहीनता सरकार की ओर से दिखाई दे रही है, हमें लगा कि हम मीडिया के पास जाएं।’’ उन्होंने मीडिया से अपेक्षा की कि वह मसले को तवज्जो देकर स्वामी सानंद की प्राण रक्षा हेतु शासन पर दबाव बनाएगा।
नदियों को इंसानी दर्जे की जरूरत –परितोष त्यागी
दुनिया के दूसरे देशों द्वारा नदियों को एक जीवित व्यक्ति का कानूनी दर्जा दिए जाने का संदर्भ रखते हुए श्री परितोष त्यागी ने भारत में भी ऐसा किए जाने की जरूरत बताई। उल्लेखनीय है कि करीब एक साल पूर्व यमुना वाटरकीपर्स की मुखिया मीनाक्षी अरोड़ा ने जलबिरादरी के मेरठ सम्मेलन में यह मांग रखी थी। मैं खुद कई मंचों और अपने लेखों के जरिए नदियों के मातृत्व को संवैधानिक मान्यता देने की मांग उठाता रहा हूं। एक भौतिक वस्तु की तरह मानकर निवेशकों द्वारा नदियों से कमाने के लालच को देखते हुए अब इस मांग को जोरदार तरीके से उठाने की जरूरत बढ़ती जा रही है।
स्वामी सानंद के अनशन की उपेक्षा के पीछे एक शंकराचार्य- आचार्य जितेन्द्र
आचार्य जितेन्द्र ने आरोप लगाते हुए साफ-साफ कहा कि देश के एक शंकराचार्य के इशारे पर केन्द्र व उत्तराखंड की सरकार स्वामी सानंद की उपेक्षा कर रही है। उन्होंने याद दिलाया कि इस देश में ही नहीं, दुनिया भर में मां गंगा का दर्जा विशेष है। हम क्यों भूलते हैं कि स्वामी सानंद की मांग सिर्फ गंगा को लेकर है, किसी और नदी को लेकर नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि जिस देश के प्रधानमंत्री के पास देश की राष्ट्रीय नदी को बचाने की कोशिश में अपने प्राण तक से खेलने वालों से बात करने तक का वक्त नहीं है, ऐसे में हम उनसे और क्या उम्मीद करें?
कब एकजुट होगा समाज?
एक सन्यासी निगमानंद की मौत के बाद कोई हंगामा नहीं हुआ, समाज ने ठीक से अश्रु भी नहीं बहाए.......तो इस दूसरे सन्यासी की मृत्यु से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। संभवतः हमारी सरकारें अब यही सोचती हैं। यदि ऐसा है, तो स्थिति सचमुच विकट है। ऐसे में इस मांग का उठना पूरी तरह वाजिब है कि प्रधानमंत्री गंगा प्राधिकरण से इस्तीफ़ा दें और अपनी जगह तत्काल एक दृढ़ और सुयोग्य व्यक्ति को इसका पूर्णकालिक अध्यक्ष नियुक्त कर दें। यह उनका प्रायश्चित भी होगा और संभवतः गंगा और गंगा प्राधिकरण को प्राणवान बनाने वाला कदम भी। क्या गंगा का समाज एकजुट होकर प्रधानमंत्री से यह मांग करेगा?
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