एक सबक


सबेरे-सबेरे मिश्रा जी हाथों में बाल्टी लेकर सड़क पार कर रहे थे। तभी पीछे से आवाज आई-

क्यों मिश्रा जी आज भी पानी आया नहीं क्या?

हाँ मोहन जी, इस पानी की हाहाकार ने तो नाक में दम किया हुआ है। आज दो दिन हो गए पानी नहीं आया और मैं लगातार दो दिनों से चौधरी जी के घर के कुएँ से पीने का पानी ला रहा हूँ। लेकिन वह भी शायद अब बंद कर देंगे क्योंकि चौधरी जी के कुएँ का पानी बहुत नीचे चला गया है।

वह तो होना ही था। दरअसल यह पानी की समस्या या अभाव हमारे शहरों में बढ़ती हुई कई मंजिलों वाले अपार्टमेंटों की वजह से हो रही है।

वह कैसे

अरे इस अपार्टमेंटों में पानी की व्यवस्था के लिये जमीन को कई फीट नीचे तक छेद कर मशीन द्वारा पानी निकाला जाता है। जितना बड़ा अपार्टमेंट उतना गहरा छेद।

लेकिन उससे हमारे पानी के अभाव का क्या संबंध?

संबंध है और वह भी बहुत गहरा। जमीन छेद कर पानी निकालने की प्रक्रिया में कभी तो सिर्फ 30-50 फीट नीचे खोदने से ही पानी मिल जाता है और कभी 200-300 फीट नीचे तक खोदना पड़ता है। इस तरह मशीन द्वारा जमीन के नीचे से पानी नित दिन निकालते रहने से कुछ साल बाद आस-पास की जगहों में पानी कम होने लगता है जिससे आस-पास के कुएँ और पंपों में पानी कम आने लगता है।

लेकिन हमारे घर में तो नल का पानी आता है। जिसकी आपूर्ति नगर निगम द्वारा की जाती है और जिसके लिये हम कर (टैक्स) भी अदा करते हैं। फिर भी हमें जरूरत का पानी नसीब नहीं होता। ऐसा क्यों?

अरे नगर निगम भी तो कोई-न-कोई बड़ा तालाब, झरना या नदी से पानी की व्यवस्था करता है और अगर उन सब में पानी कम हो जाए या सूख जाए तो फिर वह भी विवश हो जाता है।

लेकिन अभी तो फिलहाल हमारे शहरों के तालाबों में भरपूर पानी है और शहर के पास वाली नदी में भी पानी कम नहीं हुआ है, तो फिर क्यों दो दिनों से पानी नहीं आ रहा है?

मिश्राजी, आप बहुत नासमझ लगते हैं आपने शायद ध्यान नहीं दिया कि दो दिनों से बिजली ठीक तरह से नहीं रहती है। बिजली नहीं रहेगी तो पानी का प्रबंध कैसे कोई कर पाएगा?

यह बात तो मेरे ध्यान में हीं नहीं आई।

एक बात और मिश्रा जी, बिजली और पानी दोनों एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। क्योंकि पानी से बिजली उत्पन्न होती है और फिर उसी बिजली से मशीन द्वारा घर-घर पानी पहुँचाया जाता है। अब देखिए न कई शहरों में सागर के पानी को विशुद्ध कर पानी का प्रबंध किया जाता है और कहीं-कहीं जमीन छेद कर पानी निकाल कर नगर निगम तथा गाँव पंचायत पानी की व्यवस्था करते हैं। प्रक्रिया में बिजली की जरूरत होती है और अगर कभी बिजली नहीं रही तो सब व्यवस्था चरमरा जाती है।

मोहन जी, आप इतनी सारी बातें कैसे जानते हैं?

मिश्रा जी, अखबार पढ़कर रेडियो और टीवी में आने वाली जरूरी खबरें एवं विज्ञापनों को सुनकर और देखकर, कोई भी व्यक्ति इन साधारण बातों को आसानी से जान एवं समझ सकता है। इसकेलिए मोटी-मोटी किताबें पढ़ने की कोई जरूरत नहीं और किताबें पढ़कर जो मोटी-मोटी डिग्रियां हासिल कर ऊँचे महलों में रहते हैं उन से कभी-कभी बड़ी-बड़ी गलतियाँ हो जाती हैं और उन्हें इस बात का पता भी नहीं चलता।

आप ठीक कह रहे हैं, लेकिन पानी की समस्या मूलतः पीने के पानी की समस्या या अभाव को, कैसे कम किया जाए। क्या इसके लिये कोई उपाय नहीं है? उपाय तो है और वह भी हम सबको हाथों में हैं।

हमारे हाथों में, वो कैसे,

देखिए, सबसे पहले हमें दो बातों पर ज्यादा-से-ज्यादा ध्यान देना होगा। पहला-कोई भी व्यक्ति अकारण पेड़-पौधे न काटे और अगर काटना पड़े तो एक के बदले तीन-चार पौधे तुरंत लगाए। दूसरा जनसंख्या के ऊपर नियंत्रण बहुत जरूरी है। क्योंकि आबादी जितनी बढ़ेगी समस्या भी उतनी ही बढ़ेगी। रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या बढ़ती जाएगी और एक दिन हम सब आपस में लड़-झगड़ कर इस सुंदर सी धरती या पृथ्वी का खुद ही विनाश का कारण बन बैठेंगे।

मोहन जी, क्या आप मुझे डरा रहे हैं।

नहीं, मैं सच्चाई बयान कर रहा हूँ। समय रहते अगर हम सब मिलकर इन बातों पर ध्यान न देंगे तो आगे भगवान ही जाने इस संसार का क्या होगा।

क्या और भी कोई उपाय है जिससे हम पानी का खर्च कम कर सकते हैं?

क्यों नहीं, ऐसे कई उपाय हैं जो पानी की फिजूलखर्ची को रोक सकते हैं और जिससे हम पानी की काफी बचत भी कर सकते हैं।

मोहन जी, आप तो एक दम पैसे बचाने की तरकीब बताने जैसी बात बता रहे हैं।

अरे पानी तो पैसे भी कीमती चीज है। पैसा आदमी की सृष्टि है और पानी प्रकृति की। पैसे के बिना आदमी रह सकता है लेकिन पानी के बिना कोई भी जीव नहीं रह सकता। पानी के बिना इस संसार का कोई अस्तित्व ही नहीं है।

मिश्रा जी, क्या आप जानते हैं वैज्ञानिक जब दूसरे ग्रहों की खोज करते हैं तो सबसे पहले वे उन ग्रहों में पानी की स्थिति का जायजा लेते हैं ताकि उन ग्रहों में जीव के होने या न होने का पता लगा सकें।

मोहनजी, अब आप उन उपायों बारे में बताइये जिससे हम पानी की बचत कर सकें।

पहले तो हमें अपने घरों में होने वाली पानी की बर्बादी को रोकना होगा। नल खोलकर या शावर से नहाने के बजाय बाल्टी और मग से नहाना चाहिए जिससे हम पानी की फिजूलखर्ची को काफी हद तक रोक पाएँगे। नल खोलकर बर्तन धोने के बजाए हम गमले जैसे बर्तन में जरूरत के अनुसार पानी लेकर पानी के खर्च को कम कर सकते हैं। पीने के लिये हमें लोटा या मग के बजाय गिलास का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए। इससे दो फायदे होंगे, एक-हमारे शरीर के जरूरत के अनुसार हम दिनभर में सही मात्रा में पानी रहे हैं कि नहीं यह हमें आसानी से पता चल जाएगा। दूसरा- लोटा या मग से पानी पीते समय पानी का जो अपव्यय होता है उससे हम बच सकेंगे और पानी की काफी बचत कर सकेंगे।

लेकिन बिजली की वजह से जो कभी-कभार पानी नहीं आता तब क्या किया जाए?

इसका भी उपाय है। आप बड़ा प्लास्टिक ड्रम (300-500ली.) में जरूरत के अनुसार पानी भरकर रख सकते हैं जिससे दो-तीन दिनों तक पानी न आने पर काम चला सकते हैं। हाँ, एक और उपाय है जिसे रेन वाटर हार्वेस्टिंग कहा जाता है। इस प्रक्रिया में बारिश का पानी का भंडारण कर उसे आप विभिन्न कामों में इस्तेमाल कर सकते हैं यह योजना सरकार द्वारा कई जगहों में लागू भी की गई है।

लेकिन बारिश का तो कोई ठिकाना ही नहीं रहता। किसी साल ज्यादा तो किसी साल कम।

इसका कारण है पर्यावरण का संतुलन ठीक न होना। वर्तमान में कुछ लोग पेड़-पौधे काट कर जंगल-के-जंगल साफ कर थोड़े से फायदे के लिये प्राकृतिक वातावरण को नष्ट कर रहे हैं। इससे पूरी दुनिया को नुकसान पहुँच रहा है।

इतना बड़ा नुकसान हो रहा है और सरकार को कुछ भी खबर नहीं?

देखिए मिश्रा जी, सरकार अपनी तरफ से कोशिश कर रही है लेकिन सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती जब तक जनता साथ न दे। आखिर हमारा भी कुछ फर्ज बनता है। जरा सोचिए, सरकार कौन है हम और आप ही तो हैं। अगर हम और आप ठीक न हुए तो सरकार भला क्या कर पाएगी? इसलिए हमें ही सचेत रहकर इस दुनिया को विनष्ट होने से बचाना होगा। आप क्या कहते हैं?

हाँ बिल्कुल, अब मैं ठीक तरह से समझ चुका हूँ कि जब तक जनता की चेतना जागृत नहीं होगी तब तक हम किसी भी समस्या को कभी भी खत्म नहीं कर पाएँगे।

हाँ, अब आप बिल्कुिल समझ गए हैं तो फिर जाइए आप पीने के पानी की समस्या को हल करने की कोशिश कीजिए।

जी हाँ मोहनजी, मैं अड़ोस-पड़ोस के लोगों को आप द्वारा बताई गई बातें बताऊँगा ताकि वे भी अभी से पानी की अहमियत को समझकर उसका सही उपयोग एवं उसकी बचत कर सकें। लेकिन उससे पहले अभी मुझे चौधरी जी के कुएँ से जल्दी पानी लेकर घर पहुँचना है।

हाँ, तब तो मिश्रा आप को दौड़ते हुए जाना चाहिए। दोनों एक दूसरे से विदा लेकर अपने-अपने रास्ते चले गए।

लेखक परिचय

विकास बरुआ
-टी.एन. बरुआ मार्केट, जी.एन.बी. रोड, शिलपुखुरी, गुवाहाटी पिन-781003 (असम)

Path Alias

/articles/eka-sabaka

Post By: Hindi
×