चानपुरा एक संपन्न गांव है। शिक्षित गांव होने के कारण ऊंचे ओहदे वाले सरकारी अधिकारियों, शिक्षाविदों, इंजीनियरों और डॉक्टरों की एक अच्छी खासी तादाद इस गांव में है जिस पर किसी भी गांव वाले को गर्व हो सकता है।गांव का विकास कैसे नहीं हो- यदि इस विषय को जानना है तो बिहार के इस छोटे-से गांव की यह लंबी कहानी बहुत ही मदद देगी। सत्ता के शीर्ष आसन पर बैठे लोगों को शीर्षासन सिखाने वाले, योग जैसी सात्विक शिक्षा देने वाले जब गांव से बिना पूछे उसका विकास करने की ठान लेते हैं तो वहां क्या-क्या बीतती है- इसे बता रहे एक ऐसे साथी जो इंजीनियर तो हैं ही पर वे यह भी जानते हैं कि समाज किन इंजीनियरों के दम पर खड़ा होता है और किनके कारण गिर जाता है। लोक विज्ञान संस्थान, देहरादून से हाल में ही प्रकाशित पुस्तक ‘बागमती की सद्गति’ के चानपुरा का रिंग बांध नामक अध्याय के ये संपादित अंश एक बीते युग की ऐसी कहानी कहते हैं, जिसे आने वाले हर युग में याद रखा जाना चाहिए।
बिहार के मधुबनी जिला मुख्यालय से बेनीपट्टी होते हुए पुपरी जाने वाले रास्ते पर साइली और खिरोई नदी के दोआब में बसैठ नामक एक गांव पड़ता है। बसैठ में दक्षिण से उत्तर की दिशा में मब्बी, दरभंगा को मधवापुर से जोड़ने वाली सड़क पार करती है। बसैठ से मधुबनी 36 किलोमीटर तथा बेनीपट्टी 11 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। बसैठ से मधवापुर जाने वाली सड़क से 3 किलोमीटर उत्तर दिशा में जाने पर बाईं तरफ पहला गांव चानपुरा पड़ता है।
चानपुरा एक संपन्न गांव है। शिक्षित गांव होने के कारण ऊंचे ओहदे वाले सरकारी अधिकारियों, शिक्षाविदों, इंजीनियरों और डॉक्टरों की एक अच्छी खासी तादाद इस गांव में है, जिस पर किसी भी गांव वाले को गर्व हो सकता है। यह गांव मुख्यतः दो भागों में बंटा हुआ है- के उत्तर और उत्तर पूर्व में एक बड़ा-सा तालाब है- अंगरेजवा पोखर। यह पोखर बहुत पुराना है। इसका निर्माण सन् 1896 के दुर्भिक्ष के समय अंग्रेजों ने राहत कार्यों के अधीन करवाया था। इसीलिए इसका नाम अंगरेजवा पोखर पड़ा होगा। इस पोखर के चारों ओर एक ऊंचा बांध या भिंडा है।
चानपुरा के पूरब में सोइली धार, पश्चिम में खिरोई नदी, उत्तर में कोकराहा धार तथा दक्षिण में भुड़का नाला बहता है। इस तरह से यह गांव हर तरफ से किसी न किसी नदी-नाले से घिरा हुआ है। भुड़का नाले के दक्षिण में मकिया और पाली के बीच एक जमींदारी बांध बना हुआ है, जिसे कभी दरभंगा महाराजा ने बाढ़ से अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए बनवाया होगा। पूरब-पश्चिम दिशा में निर्मित यह बांध आजकल राज्य के जल-संसाधन विभाग के अधीन है। बरसात के मौसम में जब सारी नदियां अपने उफान पर होती हैं, तब यही पाली-मकियावाला बांध उत्तर दिशा से आने वाले पानी की निकासी को छेंक दिया करता है और पूरा इलाका लंबे समय तक पानी में डूबा रहता है।
यह क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। कहते हैं कि आज का बसैठ कभी वशिष्ठ ऋषि का वास स्थल हुआ करता था। पास में शिवनगर के गांडवेश्वर महादेव के मंदिर के पास महाभारत से पहले अज्ञातवास के समय अर्जुन ने अपना गांडीव छिपा कर रखा था। कहा तो यह भी जाता है कि चानपुरा के पूर्वोत्तर में बसे उचैठ गांव का संबंध महाकवि कालिदास से रहा है।
ऐसी पृष्ठभूमि के गांव चानपुरा में श्रीमती इंदिरा गांधी के योगगुरु स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का जन्म हुआ था। उनका असली नाम धीरचन्द्र चौधरी था। कोई 14 साल की उम्र में वे गांव छोड़कर चले गए थे। लंबे समय तक उनका कोई अता-पता नहीं लगा था। गांव और परिवार वाले तो यह मान चले थे कि वे मर गए होंगे। मगर एक बार इसी गांव के परमाकांत चौधरी ने नई दिल्ली स्टेशन पर उन्हें देखा और पहचान लिया। यह सन् 1970 के आसपास की घटना रही होगी। तब तक धीरचन्द्र चौधरी स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी बन चुके थे। उनके शिष्यों में प्रधानमंत्री से लेकर छोटे-बड़े बहुत से सामर्थ्यवान लोग और नेता शामिल थे। अब वे एक स्थापित व्यक्तित्व के स्वामी बन गए थे।
अब जो नया और तीसरा प्रस्ताव बना उससे भी लोग खुश नहीं थे। बांध बनना तो जमीन पर ही था और जिसकी जमीन बांध में जाने वाली थी, उसके कान खड़े हुए। जो लोग बांध के बाहर पड़ने वाले थे उनके ऊपर से होकर धौस नदी का सारा पानी गुजरने वाला था। इन लोगों को लगा कि वे तो बाल-बच्चों समेत सीधे समुद्र में चले जाएंगे। इन लोगों ने इस नए प्रस्ताव का विरोध करना शुरू किया। हालत यह थी कि एक ओर से बांध के निर्माण के लिए सिंचाई विभाग के इंजीनियरों की तरफ से बांस और झंडा गाड़ा जाता था तो दूसरी ओर गांव वाले उसे पीछे से उखाड़ते चलते थे!धीरे-धीरे ब्रह्मचारीजी का अपने गांव से फिर संपर्क स्थापित हुआ। उस समय उनकी मां जीवित थीं और उनके दो भाई भी चानपुरा में रहते थे। संपर्क पुनर्जीवित होने और अपनी मातृभूमि के लिए कुछ कर देने की बलवती इच्छा ने ब्रह्मचारीजी को प्रेरित किया कि वे चानपुरा के दोनों टोलों को घेरते हुए एक तटबंध, रिंग बांध बनवा दें तो चारों ओर नदी-नालों से घिरा उनका यह गांव हर साल आने वाली बाढ़ के थपेड़ों से बच जाएगा। अपने गांव में जब उनकी रुचि बढ़ी तो सुनने में आया कि उन्होंने दिल्ली के गोल मार्केट जैसा एक बाजार, सौ शैया वाला अस्पताल, एक हेलीपैड और हवाई जहाजों में इस्तेमाल होने वाले पेट्रोल का एक बड़ा सा टैंक भी गांव में बनाना चाहा! पेट्रोल टैंक के लिए तो जरूरी साज-सामान गांव में आ भी गया था, जिसके अवशेष अभी भी दिखाई पड़ते हैं। अपने गांव को उन्नत करने का उनका एक दीर्घकालीन सपना था और इसे पूरा करने की सामर्थ्य भी उनमें थी ही।
गांव के दोनों टोलों को बाढ़ से हमेशा के लिए मुक्ति दिलवाने के लिए ब्रह्मचारीजी ने एक योजना बनवाई। इसमें 8.5 किलोमीटर लंबा रिंग बांध बनाने का प्रस्ताव किया गया। बिहार के कैबिनेट में 1981 में सिंचाई विभाग के झंझारपुर डिवीजन को इसके निर्माण कार्य को चालू करने के लिए सूचित किया गया था। मगर झंझारपुर डिवीजन ने इस योजना को हाथ में लेने से इसलिए इनकार कर दिया कि उसे अपने यहां से चानपुरा की दूरी बहुत ज्यादा लगती थी! तब यह काम दरभंगा डिवीजन के जिम्मे सुपुर्द कर दिया गया। यह काम शुरू होते न होते 1982 आ गया रिंग बांध के निर्माण के लिए अलाइनमेंट तय हुआ और उसी के हिसाब से निर्माण के लिए झंडे गाड़ना शुरू किया गया, जिसके भीतर पूवारी और पछुआरी टोला दोनों ही आते थे।
पछुआरी टोले के एक परिवार की तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री जगन्नाथ मिश्र से नजदीकी रिश्तेदारी थी। अगर ब्रह्मचारी जी द्वारा प्रस्तावित रिंग बांध से गांव को घेर लिया जाता तो उनकी जमीन का एक बड़ा हिस्सा बांध में चला जाता। इसलिए इस परिवार का इस बांध के निर्माण से स्वाभाविक विरोध था। यह बांध बहुत से दूसरे ऐसे लोगों की जमीन से भी गुजरता था जो अपनी जमीन छोड़ना नहीं चाहते थे। उन्होंने पटना और दिल्ली में कोशिश-पैरवी करके बांध का रूप बदलवा दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर रिंग बांध बनना ही है तो यह पुवारी टोल को ही घेरता हुआ बने। पछुवारी टोल को घेरने की जरूरत नहीं है। इस तरह से ब्रह्मचारीजी द्वारा प्रस्तावित पहला बांध मात्र प्रस्ताव ही बन कर रह गया। उस पर कोई काम नहीं हो पाया।
इस गांव में पहले से ही एक जमींदारी बांध हुआ करता था। जमींदारी टूटने के बाद यह बांध बिहार सरकार के खजान विभाग के हाथ में चला गया था। यह खस्ता हाल में था। तय हुआ कि इसी जमींदारी बांध को ठीक कर दिया जाए। इस रिंग बांध के निर्माण से चानपुरा के पुवारी टोल का अधिकांश भाग बाढ़ से सुरक्षित हो जाता था। यह एक अलग बात है। भविष्य में सुरक्षा मिलने के बावजूद जिन लोगों की जमीन से इस बांध को गुजरना था, वे खुश नहीं रहते हुए भी खामोश थे। ब्रह्मचारीजी की सामर्थ्य और इच्छा के सामने उनकी इच्छाएं बौनी पड़ती थीं।
इस बांध का निर्माण इस खुशी और कशमकश के बीच लगभग पूरा हो चला था कि गांव के कुछ लोगों ने ब्रह्मचारीजी के यहां गुहार लगाई कि अगर बांध का काम यथावत् पूरा कर लिया गया तो पुवारी टोल के दक्षिण में भुड़का नाले के किनारे बन रहा संस्कृत कॉलेज रिंग बांध के बाहर पड़ जाने के कारण असुरक्षित हो जाएगा। अतः इस तटबंध का निर्माण इस तरह से किया जाए कि संस्कृत कॉलेज भी रिंग के भीतर जाए और बकिया जमीन की भी रक्षा हो जाए।
ब्रह्मचारीजी इस बात को मान गए और तब बांध का तीसरा डिजाइन बना। इस बांध की लंबाई कोई 7 किलोमीटर थी। यह बांध पहले वाले बांध से काफी हट कर बनाया जाने वाला था। इसकी वजह से नए बांध और अंगरेजवा पोखर के बीच का फासला कम हो रहा था। पानी की निकासी में बाधा पड़ने वाली थी तथा पश्चिम में रजवा नाला और नए बांध के बीच की दूरी कम पड़ने के कारण पछुआरी टोल की दुर्गति का अंदेशा वहां के लोगों को होने लगा था।
अब जो नया और तीसरा प्रस्ताव बना, उससे भी लोग खुश नहीं थे। बांध बनना तो जमीन पर ही था और जिसकी जमीन बांध में जाने वाली थी, उसके कान खड़े हुए। जो लोग बांध के बाहर पड़ने वाले थे, उनके ऊपर से होकर धौस नदी का सारा पानी गुजरने वाला था। इन लोगों को लगा कि वे तो बाल-बच्चों समेत सीधे समुद्र में चले जाएंगे। इन लोगों ने इस नए प्रस्ताव का विरोध करना शुरू किया। हालत यह थी कि एक ओर से बांध के निर्माण के लिए सिंचाई विभाग के इंजीनियरों की तरफ से बांस और झंडा गाड़ा जाता था तो दूसरी ओर गांव वाले उसे पीछे से उखाड़ते चलते थे! जिस जगह से बांध गांव को छूने लगता है वहां से अगर पूरब और पश्चिम के दोनों टोलों को घेर दिया जाता तो, झगड़ा ही खत्म था। मगर इस बांध को लेकर बांध के अंदर और उसके बाहर पड़ने वालों के खेमे अलग हो गए और दोनों पक्ष कई बार शक्ति प्रदर्शन के लिए आमने-सामने आए।
...ब्रह्मचारीजी चौधरी टोला के रहने वाले थे और काफी ताकतवर आदमी थे। उनकी इच्छा हुई कि गांव को सुरक्षित किया जाए तो वह तो होना ही था। यह इलाका उस समय हमारे कार्य क्षेत्र में नहीं आता था। हम लोग इंजीनियरिंग विभाग में काम करते हैं और हमारा राजनीति या किसी की इच्छा-अनिच्छा से वास्ता नहीं होता। स्वीकृति दे दीजिए, बजट दे दीजिए, हम काम करवा देंगे।चानपुरा रिंग बांध का निर्माण बिहार के सिंचाई विभाग के एक प्रमुख इंजीनियर कामेश्वर झा के अधीन हुआ था। वे बाद में बिहार के जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता होकर रिटायर हुए। उनका कहना है,”...ब्रह्मचारीजी चौधरी टोला के रहने वाले थे और काफी ताकतवर आदमी थे। उनकी इच्छा हुई कि गांव को सुरक्षित किया जाए तो वह तो होना ही था। यह इलाका उस समय हमारे कार्य क्षेत्र में नहीं आता था। हम लोग इंजीनियरिंग विभाग में काम करते हैं और हमारा राजनीति या किसी की इच्छा-अनिच्छा से वास्ता नहीं होता। स्वीकृति दे दीजिए, बजट दे दीजिए, हम काम करवा देंगे। हमसे यही अपेक्षा है। उस समय टी.पी. पाण्डेय सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर थे। मैं चाहता था कि यह काम जयनगर डिवीजन ही करे क्योंकि चानपुरा के कई घरों में मेरी रिश्तेदारियां थीं और मैं खुद बांध के अंदर-बाहर के इस झमेले में नहीं पड़ना चाहता था। लेकिन पांडेयजी का मुझ पर दबाव था कि मेरा डिवीजन ही वह काम करे। पहले एक तटबंध कुछ दूर तक बना तो गांव वालों ने ऐतराज किया कि उनका कुछ हिस्सा छूट गया है। उसका खर्च किस खाते में जाएगा? हमने कहा कि नए प्रस्ताव की स्वीकृति और बजट हमको दे दीजिए, हम नया भी बना देंगे। ब्रह्मचारीजी के प्रभाव से प्रस्ताव भी बदल गया और स्वीकृति भी मिल गई। गांव में कुछ विरोध हुआ। जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री थे। सचिवालय में बैठक हुई। पश्चिम वाले टोले की तो कोई सुनता ही नहीं था। हमको हिदायत हुई कि ब्रह्मचारीजी जो कहलवाते हैं बस वही करते जाइए। विवाद बढ़ता गया। विरोध इतना बढ़ा कि बात श्री राजीव गांधी तक पहुंची और उन्होंने तारिक अनवर और दो अन्य लोगों को जांच के लिए भेजा।
इसी बीच सकरी में विभाग की एक मीटिंग हुई। उस समय उमेश्वर प्रसाद वर्मा सिंचाई मंत्री थे। इस बांध को लेकर विवाद इतना बढ़ गया था कि उन्होंने उस मीटिंग में मेरी तरफ इशारा करके कहा कि आपने ऐसा झंझट पैदा कर दिया है कि हम लोगों की कुर्सी छिन जाएगी।
ऐसी विवादस्पद परिस्थितियों में या तो नेतृत्व का जन्म होता है या नेतृत्व के शून्य को भरने के लिए किसी व्यक्ति का उदय होता है। चानपुरा में इस शून्य को भरने के लिए स्थानीय विधायक युगेश्वर झा आगे आए।किसी भी निर्माण कार्य के सामाजिक सरोकार से अपनी पेशेगत प्रतिबद्धताओं के कारण इंजीनियर उसी तरह निर्विकार रह सकते हैं, जैसे डॉक्टर अपने मरीजों के साथ और वकील अपने मुवक्किलों के साथ। वे किसी भावनात्मक लगाव में नहीं पड़ते। समाजकर्मियों या राजनीतिज्ञों से समाज इस तरह की अपेक्षाएं नहीं रखता और ऐसी विवादास्पद परिस्थितियों में या तो नेतृत्व का जन्म होता है या नेतृत्व के शून्य को भरने के लिए किसी व्यक्ति का उदय होता है। चानपुरा में इस शून्य को भरने के लिए स्थानीय विधायक युगेश्वर झा आगे आए।
मधवापुर प्रखंड के बासुकी बिहारी गांव के युगेश्वर झा यहां के विधायक थे और कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता होने के साथ-साथ मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक भी थे। वे परिस्थितियों के साथ कभी भी समझौता न करने वाले कर्मठ समाजकर्मी थे। उनके प्रखर विरोधी भी उनकी लगन, मेहनत और ईमानदारी की दाद देते थे। युगेश्वर झा ने पछुआरी टोले वालों की तरफ से रिंग बांध के विरोध का नेतृत्व संभाला और एक आंदोलन खड़ा कर दिया। पछुआरी टोल के देवचन्द्र चौधरी बताते हैं, ”... ब्रह्मचारीजी को इस बात की खबर लगी कि युगेश्वर झा बांध के निर्माण में रुकावट डाल रहे हैं और उनके ऊपर डॉ. जगन्नाथ मिश्र का हाथ है। उनका इंदिरा गांधी को सुझाव था कि सारी समस्या की जड़ युगेश्वर झा हैं और उनको यहां से हटा दिया जाए तो समस्या का समाधान हो जाएगा और रिंग बांध का निर्माण निर्विघ्न रूप से पूरा हो जाएगा। तब युगेश्वर झा को जिला बदर कर दिया गया। आंदोलन नेतृत्व विहीन हो गया। जब चानपुरा का रिंग बांध बनने लगा तो हम लोगों ने उसका विरोध किया। मेरी उम्र उस समय कोई 16 साल रही होगी। ठेकेदार के आदमियों से मेरा झगड़ा हो गया और मैंने उनका फीता काट दिया। नौबत पहले झगड़ा-झंझट और बाद में मार-पीट तक पहुंची। उसने रिपोर्ट लिखाई और पुलिस मुझे पकड़ कर ले गई। मुझे जेल में बंद कर दिया। मुझे जेल से छुड़ाने के लिए गांव के लोग गोलबंद हो गए और वहीं से इस बांध का सामूहिक विरोध शुरू हुआ।“
ब्रह्मचारीजी ने आश्वासन दिया कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। हम लोग लौट कर आए तो यहां काम चालू था। कोई 2000 लोग विरोध में खड़े थे। हम लोग ब्रह्मचारीजी का रुतबा देखकर आए थे। इसलिए हमने सबको समझाने की कोशिश की कि ब्रह्मचारीजी से झंझट कर के पार नहीं पाइएगा। दरभंगा जिले का पूरा प्रशासन एक तरफ और अकेले ब्रह्मचारीजी दूसरी तरफ- फिर भी उनका पलड़ा भारी रहेगा। अब जो हो रहा है, होने दीजिए। फिर भी लोग माने नहीं।पछुआरी टोले के निवासी श्री सतीश चन्द्र झा, युगेश्वर झा के बचपन के सहपाठी और अभिन्न मित्र हैं। वे कहते हैं, ”... जब यह निश्चित हो गया कि युगेश्वर झा को वहां से हटना ही पड़ेगा तब उन्होंने श्री जगन्नाथ मिश्र से मंत्रणा की और तब यह तय हुआ कि आंदोलन का नेतृत्व सतीश चन्द्र झा संभालेंगे। उन दिनों यहां शिक्षकों का भी एक आंदोलन चल रहा था और मैं उसी सिलसिले में मुजफ्फरपुर जेल में बंद था। युगेश्वर झा मुझसे मिलने जेल आए और कहा कि अगर आप आंदोलन की कमान नहीं संभालेंगे तो यह बांध बन जाएगा। बहुत से लोग तबाह-बरबाद हो जाएंगे और धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की जीत होगी। मैं बड़े लोगों की राजनीति में फंसा। आठ रुपया चालीस पैसा जमा करवाकर रात में मेरा डाक्टरी परीक्षण करवाया गया और मैं पैरोल पर जेल से रिहा होकर बाहर निकल आया और गांव पहुंच गया।
यहां से युगेश्वर झा की गैर-मौजूदगी में जन-आंदोलन की शुरुआत हुई बांध बन जाने से पहले से ही बदहाल जल-निकासी और भी बुरी हालत में पहुंचने वाली थी। इस बांध का असर नेपाल सीमा पर रातो नदी तक पड़ने वाला था। पचासों गांव पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगा। हम लोगों ने एक ग्राम सुरक्षा संघर्ष समिति बनाई। पछुआरी टोले के दुःखहरण चौधरी इसके महामंत्री थे और मुझे अध्यक्ष बनाया गया। हम लोगों ने इन सभी गांवों में सघन संपर्क कर बताया कि अगर चानपुरा रिंग बांध बन गया तो पश्चिम के गांव तबाही के कगार पर पहुंच जाएंगे। मामला रंग लाया और मीडिया की रुचि इस पूरी योजना में जगी। ब्लिट्ज के बी.के. करंजिया तीन दिन हमारे गांव में आकर रुके थे। विकास कुमार झा ने भी काफी कुछ लिखा। भोगेन्द्र झा, एम.पी. लगभग एक सप्ताह मेरे घर में रहे। हमारा मुकाबला धीरेन्द्र ब्रह्मचारी जैसे समर्थ व्यक्ति से था। इसलिए मामले का प्रचार भी खूब हुआ। सारा जमावड़ा मेरे घर पर और मैं खर्चे से तबाह। पत्नी का सारा समय रसोई में और मेहमानों की देख-भाल में गुजरता था।
लगभग उसी समय बिहार के पूर्व एडवोकेट जनरल और वर्तमान सभापति-बिहार विधान परिषद, ताराकांत झा के बेटे के यज्ञोपवीत संस्कार में अटल बिहारी वाजपेयी पड़ोस के उनके गांव शिवनगर आए हुए थे। हमारे गांव के एक बुजुर्ग रघुवंश झा वाजपेयी जी से मिलने गए और उन्होंने सारी व्यथा-कथा सुनाई। वाजपेयी जी ने ताराकांजी से कहा कि पचास गांवों का मामला है, आप इनकी तरफ से हाईकोर्ट में पैरवी कर दीजिए। ये लोग कहां से पैसा लाएंगे? तारा बाबू राजी हो गए। उधर मुकदमा चलता था और इधर आंदोलन। महिलाएं तक जेल गईं। सरकार ने विरोध को दबाने के लिए केन्द्रीय रिजर्व पुलिस उतार दी थी। मुख्यमंत्री पर बहुत दबाव था। उन्हें मजबूरन धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का पक्ष लेना पड़ा। इसके अलावा उनके पास कोई चारा ही नहीं था।“
यह सुनने में बड़ा ही विचित्र लगता है कि 30 लाख रुपए मात्र के किसी काम के पीछे एक छोटी-सी योजना के पीछे राज्य का मुख्यमंत्री किसी दबाव में आ जाए। पर चानपुरा बांध ने कुछ इसी तरह की परिस्थितियां बना दी थीं। लेखक ने श्री मिश्र से बात करके उनका मंतव्य जानना चाहा।
”यह सच है कि युगेश्वर झा मेरे बहुत नजदीक थे और चानपुरा संबंधी पूरे मसले पर मैं उनसे सलाह लेता था। यह पूरी घटना व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए बहुत ही उलझन और किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति पैदा करने वाली थी। ब्रह्मचारी का जर्बदस्त दबदबा था और अब अंदरूनी बात क्या थी, वह तो मेरे लिए कह पाना मुश्किल है मगर इंदिराजी के यहां उनका आना-जाना और उठना-बैठना तो निश्चित रूप से था। इसका एक मनोवैज्ञानिक दबाव मेरे ऊपर था। लेकिन मेरी प्रतिबद्धताएं जन-हित के साथ थीं और उसका प्रतिनिधित्व युगेश्वर झा कर रहे थे और मानसिक रूप से राज्य सरकार उनका समर्थन कर रही थी। इस वजह से ब्रह्मचारीजी को हो सकता है मुझसे नाराजगी रही हो और इस घटना के विरोध को मेरे खिलाफ इस्तेमाल किया गया हो। पर इसमें कोई दो राय नहीं है कि मैं युगेश्वर झा का समर्थन कर रहा था और यही समग्रता में जन-हित में था। यह लगभग तीस साल पुरानी घटना है। बहुत कुछ घटनाएं मुझे अब याद नहीं है और अब वहां क्या स्थिति है, यह भी मुझे नहीं मालूम।“
जब इस नए बांध का काम लगभग 12 आना पूरा हो गया तब उसका विरोध शुरू हुआ। इस बीच बांध के समर्थक और विरोधी दोनों ही ब्रह्मचारीजी से अपनी-अपनी तकलीफें बताने के लिए संपर्क करते रहे और ब्रह्मचारीजी भी सभी को तसल्ली देते रहे कि वे किसी का अहित नहीं होने देंगे। पछुआरी टोले से 76 वर्षीय द्वारका नाथ चौधरी बताते हैं, ”...हमारे गांव के एक बुजुर्ग चले गए ब्रह्मचारीजी के पास दिल्ली यह कहने के लिए अगर यह बांध पूरा हो गया तो उनकी जगह-जमीन पूरी तरह बरबाद हो जाएगी। ब्रह्मचारीजी ने उन्हें आश्वासन दिया कि जब आप आ गए हैं तो आपका काम हो जाएगा।
फिर ब्रह्मचारीजी ने बांध का तीसरा हवाई सर्वेक्षण किया। तब फिर तीसरी योजना बनी। इसमें भी हम लोगों की जमीन जाती थी और हमें कोई फायदा नहीं होना था। तब हमने और दुःखहरण चौधरी ने बांध के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया। हमारी तरफ से ताराकांत झा ने वकालत की। जब यह मामला दायर हुआ तो दिल्ली से ब्रह्मचारीजी का फोन आया कि किसी तरह की चिंता मत कीजिए और जैसा आप चाहते हैं वैसा ही होगा। आप लोग दिल्ली आइए।
”हमने भी सोचा कि जहां नाखून से काम चलता हो वहां तलवार क्यों लाए। मैंने दुःखहरण बाबू से कहा कि चलिए, दिल्ली चलते हैं। इस बीच ब्रह्मचारीजी ने हम दोनों के लिए हवाई जहाज का टिकट भिजवा दिया। हमें वहां ब्रह्मचारीजी के आश्रम विश्वायतन में बहुत अच्छे कमरे में रखा गया था मगर न तो वहां हम लोगों ने कभी भर पेट खाना खाया, न पूरी नींद सोए और न एक ही कमरे में रहते हुए आपस में कोई बातचीत की। दुःखहरण बाबू कुछ बोलने को होते थे तो मैं रोक देता था कि पता नहीं कमरे में हमारी बातें रिकार्ड करने की व्यवस्था कर दी गई होगी तो हम लोग मुसीबत में पड़ जाएंगे। मैं भी बोलने को होता था तो दुखःहरण बाबू रोक देते थे। हम लोगों को बात करनी होती थी तो हम कमरे से बाहर चले जाते थे।
इन लोगों को ब्रह्मचारीजी ने ही दिल्ली बुलाया था, हवाई जहाज का टिकट भेज कर। पर बातचीत तो हुई ही नहीं थी। कुछ दिन वहां रहने के बाद जब हम लोगों ने वापस जाने की बात कही तब ब्रह्मचारीजी का बुलावा आया बातचीत के लिए। दुःखहरण बाबू जाने के लिए तैयार थे मगर मुझे डर लग रहा था। फिर भी जाना तो था ही गए। जहां प्रतीक्षा करनी थी, वहां हमसे भी डेढ़ हाथ ऊंचे जवान 5 मिनट बाद आकर हमारे अगल-बगल में खड़े हो गए।
हमको मृत्यु का स्मरण हो गया। दुःखहरण बाबू कुछ ऊंचा सुनते थे। वे शायद इस स्थिति से खुश नहीं थे और कुछ कहना चाहते थे मगर मैंने उनका हाथ दबा दिया। फिर हिम्मत जुटा कर मैंने ब्रह्मचारीजी से कहा कि आप ने तो गांव का हवाई सर्वेक्षण किया, जमीन पर तो उतरे नहीं कि हम लोग सारी परिस्थिति आपको समझा पाते। यह सच है कि अगर यह बांध जैसा बन रहा है वैसा ही बन गया तो पछुआरी टोला बरबाद हो जाएगा। हमने उनको याद दिलाया कि उन्हीं के परिवार के सौजन्य से हम लोग चानपुरा बसने के लिए आए थे और अगर उसी परिवार के कारण हम लोग उजड़ जाएंगे तो यह अच्छा तो नहीं होगा। वैसे आप जो चाहेंगे वही होगा। अगर आप की कृपा होगी तो हमारा पुनर्वास हो जाएगा और आप रूठ जाएंगे तो हम तो आपको गांव भी नहीं ले जा सकेंगे।“
उन्होंने आश्वासन दिया कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। हम लोग लौट कर आए तो यहां काम चालू था। कोई 2000 लोग विरोध में खड़े थे। हम लोग ब्रह्मचारीजी का रुतबा देखकर आए थे। इसलिए हमने सबको समझाने की कोशिश की कि ब्रह्मचारीजी से झंझट कर के पार नहीं पाइएगा। दरभंगा जिले का पूरा प्रशासन एक तरफ और अकेले ब्रह्मचारीजी दूसरी तरफ- फिर भी उनका पलड़ा भारी रहेगा। अब जो हो रहा है, होने दीजिए। फिर भी लोग माने नहीं।
पछुआरी टोले और आसपास के प्रभावित होने वाले गांवों की लगभग 5,000 महिलाओं को आगे कर के प्रदर्शन जारी रहा तो पता नहीं कहां से महिला पुलिस भारी तादाद में उतार दी गई। पुलिस के जवान भी जो लगाए गए। वे किसी भी मायने में बिहार पुलिस के नहीं लगते थे। अब औरतों को बाल पकड़ कर खींचा जाने लगा और आदमियों के सीने पर संगीनें तनीं तो पूरा विरोध बिखर गया। बहुत से लोगों को पकड़कर मधुबनी जेल में बंद कर दिया गया। कुछ लोगों को यहां से उठाकर दूर-दराज इलाकों में रास्ते में कहीं-कहीं छोड़ दिया गया। ये लोग बाद में किसी तरह तीन-चार दिन में अपने गांव लौटे। आसपास के गांव जैसे धनुखी, पुलबरिया, बर्री, माधोपुर आदि 15-20 गांवों के लोग हम लोगों के साथ शामिल थे। जेल भरने का सिलसिला कई दिन चला। मगर हमारा विरोध बहुत बड़ी ताकत से था।
भयावह जन-आक्रोश के फलस्वरूप उत्पन्न परिस्थिति को देखते हुए कुछ समय के लिए काम रोक दिया गया था। लेकिन पुनः उक्त कार्य को सशस्त्रा पुलिस के द्वारा बंदूक की नोक पर करवाया जा रहा है। प्रदर्शन, धरना, सत्याग्रह घेराव, सर्वदलीय विरोध उसके विरुद्ध जारी है। लेकिन सरकार बच्चे, बूढ़े, बूढ़ी औरतों पर लाठी चार्ज, अश्रु गैस का प्रयोग कर उक्त विनाश लीला के उक्त कार्य को करते रहने में गर्व का अनुभव करती है।यह सवाल बिहार विधान परिषद में भी उठा। 7 जुलाई 1982 को विधान परिषद में लाए गए एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव में श्री कृपानाथ पाठक ने कहा, ”...बेनीपट्टी अनुमंडल के बसैठ-चानपुरा के पूर्वी टोल की बाढ़ सुरक्षा के लिए सिंचाई विभाग द्वारा 32 लाख रुपए की लागत से विशालकाय तटबंध के कार्य प्रारंभ करने से हजारों-हजार परिवारों के सामने जान-माल का खतरा उत्पन्न हो गया है, क्योंकि अधवारा ग्रुप की अनेक नदियों का बहाव इस बांध के द्वारा बिलकुल ही रोक दिया गया है। सुरसरिया और मुकरा के बेड को बिलकुल बांधकर इसके बहाव को अवरूद्ध किया जा रहा है। पानी के निकास की योजना बनाए बिना मात्र एक छोटा गांव बचाने के लिए सरकार ने अन्य इलाकों के सैकड़ों गांवों में बसने वाले आम नागरिकों के सामने जिंदगी के अस्तित्व पर भयंकर खतरा उत्पन्न कर दिया है। ... उक्त बांध से दरभंगा, बसैठ-माधवापुर तथा मधुबनी-बसैठ-पुपरी-सीतामढ़ी लोक निर्माण पथ जो वहां से नागरिकों का एकमात्र पथ है, जलमग्न होकर नष्ट हो जाएगा। खिरोई तटबंध जो एग्रोपट्टी से दरभंगा तक बाढ़ सुरक्षा का तटबंध वह भी पूर्णतया टूट जाएगा। फलस्वरूप सैकड़ों गांवों के लोग पानी में बहकर दुनियां से चले जाएंगे। ...सबसे आश्चर्य की बात है कि सरकार जबरन, बिना मुआवजा दिए हुए असंवैधानिक तरीके से सशस्त्र पुलिस तैनात कर किसानों की हजारों एकड़ जमीन छीन कर इस तटबंध का निर्माण कर रही है। ...उक्त तटबंध योजना की तकनीकी स्वीकृति भी प्राप्त नहीं है और न उक्त योजना को गजट में ही प्रकाशित किया गया है।
...उक्त अलोक-कल्याणकारी हजारों-हजार घर-बार को बेघर कर बीच मंझधार में डुबा देने वाली योजना के विरुद्ध वहां के हजारों-हजार नर-नारियों ने 25 मई 1982 से ही अपने जीवन मरण की लड़ाई छेड़ दी है। भयावह जन-आक्रोश के फलस्वरूप उत्पन्न परिस्थिति को देखते हुए कुछ समय के लिए काम रोक दिया गया था। लेकिन पुनः उक्त कार्य को सशस्त्र पुलिस के द्वारा बंदूक की नोक पर करवाया जा रहा है। प्रदर्शन, धरना, सत्याग्रह घेराव, सर्वदलीय विरोध उसके विरुद्ध जारी है। लेकिन सरकार बच्चे, बूढ़े, बूढ़ी औरतों पर लाठी चार्ज, अश्रु गैस का प्रयोग कर उक्त विनाश लीला के उक्त कार्य को करते रहने में गर्व का अनुभव करती है। ....इस तरह के अलोकतांत्रिक, अलोक-कल्याणकारी, जन-विरोधी और अमानवीय कार्य करवाने के लिए प्रशासन के निर्णय और कठोर व्यवहार से लोगों के जन-जीवन में आक्रोश, क्षोभ, भय एवं असंतोष व्याप्त हो गया है। किसी भी क्षण विस्फोट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यदि उक्त कार्य को तत्काल बंद नहीं किया गया तो जन-जीवन अस्त-व्यस्त होने के साथ-साथ कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने की संभावना है।“
इस ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर सरकार को 20 जुलाई, 1982 के दिन जवाब देना था मगर लगता है कि ब्रह्मचारीजी के प्रभाव के कारण सरकार परिषद् में किसी भी बहस से बचना चाहती थी। इस बीच दुःखहरण चौधरी ने बांध के निर्माण के विरुद्ध पटना हाईकोर्ट में सरकार पर मुकदमा दायर कर दिया था। इस मुकदमे की अपील का वास्ता देकर कि अगर मामला न्यायालय में विचाराधीन है अतः इस पर विधान परिषद में बहस नहीं होनी चाहिए, सरकार बहस से बच निकलना चाहती थी!
इस स्थगन प्रस्ताव पर अध्यक्ष राधानंदन झा की टिप्पणी थी कि चानपुरा में रिंग बांध का काम पिछले तीन महीनों से चल रहा है और यह कोई आपात स्थिति नहीं है कि उस पर विचार हो। अध्यक्ष की इस व्यवस्था पर भारतीय जनता पार्टी के सदस्य सदन छोड़कर बाहर चले गए। सरकार ने जरूर यह आश्वासन दिया कि वह 30 जुलाई, 1982 को इस विषय पर वक्तव्य देगी। दुर्भाग्यवश सरकार का यह बयान बिहार विधानसभा पुस्तकालय के संग्रह में या दूसरी जगह उपलब्ध नहीं है।
एक तरफ इन वैधानिक संस्थाओं में इस मुद्दे पर बहस तेज थी, वहीं दूसरी तरफ चानपुरा पुलिस छावनी में तबदील हो गया था। रोज धर-पकड़ और लोगों का जेल आना-जाना लगा रहा। 23 जुलाई, 1982 को सतीशचन्द्र झा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करके करीब सौ लोगों की गिरफ्तारी की सूचना दी। इस बीच घटनाक्रम तेजी से बदला जिसके बारे में फिर बताते हैं सतीशचन्द्र झा। उनका कहना है, ”... एक दिन मुझे युगेश्वर झा का फोन आया कि श्री राजीव गांधी गुवाहाटी जाते समय कुछ समय के लिए पटना हवाई अड्डे पर रुकेंगे। वहां उनके जहाज में ईंधन भरा जाएगा। उन्होंने मुझे कुछ लोगों के साथ हवाई अड्डे पर मौजूद रहने की ताकीद की।
मैं पंद्रह लोगों के साथ हवाई अड्डे पर आ गया। जैसे ही राजीव गांधी लाउंज में आकर लोगों से मिलने लगे वैसे ही युगेश्वर झा जोर-जोर से रोने लगे। हम लोगों ने भी वही काम दुहराया। राजीव गांधी ने हम लोगों से इस तरह के विचित्र व्यवहार का कारण पूछा तो युगेश्वर झा ने उन्हें सारी बात बताई। राजीव गांधी ने तुरंत तारिक अनवर, श्यामसुंदर धीरज और रणजीत सिन्हा को लेकर एक समिति बनाई और उनसे कहा कि कल वे इसी समय गुवाहाटी से लौटते समय कुछ देर के लिए पटना रुकेंगे। इस बीच में यह तीनों लोग चानपुरा जाकर वहां की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट दें।
इन लोगों को चानपुरा लाने ले जाने का यह सारा काम मेरे जिम्मे पड़ा क्योंकि युगेश्वर झा वहां जा नहीं सकते थे, उन पर रोक लगी हुई थी। मैंने रातों-रात सब जगह खबर भिजवाई। सुबह काफी संख्या में लोग चानपुरा में इकट्ठा थे। ये तीनों लोग भी वहां पहुंचे। हमने पूरा बांध इन लोगों को दिखाया। संस्कृत कॉलेज में सबकी मीटिंग हुई। गांव के लोगों ने सारी बातें उन्हें समझाई। तब ये लोग समय रहते पटना वापस चले गए। निर्धारित समय पर राजीवजी फिर पटना उतरे। इन लोगों ने उन्हें सारी बातें, गांव का पूरा किस्सा बयान किया।
श्री राजीव जब वापस दिल्ली घर पहुंचे तो वहां धीरेन्द्र ब्रह्मचारी मौजूद थे, उन्हें देखकर उनका गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने इंदिराजी से बताया कि ब्रह्मचारीजी की वजह से पचास गांव बरवाद हो जाएंगे और कांग्रेस का गढ़ वहां छिन्न-भिन्न हो जाएगा। उन्होंने ब्रह्मचारीजी को चले जाने को कहा। प्रधानमंत्री कार्यालय से दूसरे दिन इस बांध का काम बंद करने का आदेश आ गया।
इस तरह जब तक राजीव गांधी का प्रभाव रहा यह काम बंद रहा। हाईकोर्ट में जो मामला चल रहा था वह भी खारिज हो गया, क्योंकि न्यायालय ने इंजीनयरों की एक कमेटी बना कर उनसे तकनीकी राय मांगी और उसी के अनुसार काम करने या न करने का आदेश दे दिया था।
यह सच है कि स्वामीजी उत्कृष्टतम योगियों में थे। आयुर्वेद के महान ज्ञाता थे। उन्होंने राजेन्द्रप्रसादजी का दमा का इलाज किया था। इंदिरा गांधी और जयप्रकाश नारायण का उन्होंने इलाज किया था। उनके ज्ञान और साधना में कहीं कोई कमी नहीं थी। इन सब कारणों से उनके संसाधनों की भी कोई कमी नहीं थी। हमारे तमाम विरोध के बावजूद उनका व्यक्तित्व हम लोगों के लिए बड़ा उदार था, भले ही उनके बारे में बाहर के लोगों द्वारा जो कुछ भी विवादास्पद बातें कही जाती रही हों। यह भी गलत नहीं है कि राजीव गांधी अगर नहीं रहते तो हम लोग बरबाद हो गए होते।“
यहां से चानपुरा रिंग बांध का उत्तर कांड शुरू होता है। पटना हाईकोर्ट में दुःखहरण चौधरी ने इस नए रिंग बांध के निर्माण के खिलाफ जो मामला दायर किया था, उसमें उच्च न्यायालय में बादियों की तरफ से बिहार के भूतपूर्व चीफ इंजीनियर भवानंद झा ने आपत्ति की थी। ये सारे मसले तकनीकी थे, जिन पर राय जानने के लिए उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ इंजीनियरों की एक समिति का गठन किया और उससे भावी कार्यक्रम के लिए राय मांगी। इस समिति में तीन सदस्य थे जिसमें गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष नीलेन्दु सान्याल, बिहार सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता ए. के. बसु और बिहार सरकार में समस्तीपुर क्षेत्र के मुख्य अभियंता एच.पी. सिंह शामिल थे। इस समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट पहली फरवरी 1983 को उच्च न्यायालय को दे दी।
समिति की इस रिपोर्ट के आने के पहले ही रिंग बांध पर काम बंद हो चुका था। यह संभवतः राजीव गांधी की इस पूरे मामले में रुचि लेने के कारण हुआ हो। राजीव गांधी के उदय के साथ-साथ ब्रह्मचारीजी का भी सत्ता के गलियारों में पहले जैसा प्रभाव नहीं रहा। अक्तूबर 1984 में इंदिराजी की हत्या के बाद उनकी पूछ एकाएक घट गई और कुछ समय बाद ब्रह्मचारीजी स्वयं एक विमान दुर्घटना में मारे गए।
चानपुरा के इस रिंग बांध के निर्माण को लेकर अनेक विवाद हुए और अभी भी उच्च न्यायालय में पूरा मामला लंबित है। संस्कृत कॉलेज आज भी असुरक्षित है और वही हाल पछुआरी टोले का है। रिंग बांध दो बार टूट कर भीतर के टोले को डुबा चुका है। अब बांध ऊंचा और तथाकथित रूप से मजबूत कर दिया गया है। इसके बाद भी इस तरह की घटना बार-बार घटेंगी और उनकी तीव्रता और भी बढ़ेगी।
इलाके के सारे बांधों को ऊंचा और मजबूत किया जा रहा है और अब इस क्षेत्र की जल-निकासी का क्या होगा, यह तो भविष्य ही बताएगा। इतना जरूर लगता है कि राज्य के जल-संसाधन विभाग की बाढ़ के पानी की शीघ्र निकासी में कोई दिलचस्पी नहीं है। वह पानी के प्रवाह को यथा-संभव रोक देने में ही रुचि रखता है। उसे सारी संरचनाएं ऊंची और मजबूत चाहिए। वह यह भूल जाता है कि ऐसी संरचनाओं की मजबूती से डटे रहने पर एक तरफ के लोगों को निश्चित रूप से नुकसान पहुंचता है तो उनके टूट जाने पर दूसरी तरफ के लोग दुख भोगते हैं। इन संरचनाओं की न तो तीसरी कोई गति है और पीड़ित जनता के पास न कोई तीसरा विकल्प है।
इतना सब होने के बावजूद रिंग बांध के भीतर और बाहर वालों के बीच वैसा कोई मनमुटाव नहीं है। भोज-भात, काज-करोज में एक दूसरे के यहां आना जाना सब चलता है। जो कुछ मतभेद है वह वर्षा के चार महीने रहता है। अक्तूबर के अंत तक सब सामान्य हो जाता है।
श्री दिनेश कुमार मिश्र ने इंजीनियरिंग के अपने श्रेष्ठ ज्ञान को समाज के साथ जोड़ा है। उन्होंने बिहार के उत्तरी भाग में आने वाली बाढ़ों के स्वभाव को जानने और फिर उसे दूसरों तक पहुंचाने का काम किया है ताकि बाढ़ की विभीषिका कम हो सके।
बिहार के मधुबनी जिला मुख्यालय से बेनीपट्टी होते हुए पुपरी जाने वाले रास्ते पर साइली और खिरोई नदी के दोआब में बसैठ नामक एक गांव पड़ता है। बसैठ में दक्षिण से उत्तर की दिशा में मब्बी, दरभंगा को मधवापुर से जोड़ने वाली सड़क पार करती है। बसैठ से मधुबनी 36 किलोमीटर तथा बेनीपट्टी 11 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। बसैठ से मधवापुर जाने वाली सड़क से 3 किलोमीटर उत्तर दिशा में जाने पर बाईं तरफ पहला गांव चानपुरा पड़ता है।
चानपुरा एक संपन्न गांव है। शिक्षित गांव होने के कारण ऊंचे ओहदे वाले सरकारी अधिकारियों, शिक्षाविदों, इंजीनियरों और डॉक्टरों की एक अच्छी खासी तादाद इस गांव में है, जिस पर किसी भी गांव वाले को गर्व हो सकता है। यह गांव मुख्यतः दो भागों में बंटा हुआ है- के उत्तर और उत्तर पूर्व में एक बड़ा-सा तालाब है- अंगरेजवा पोखर। यह पोखर बहुत पुराना है। इसका निर्माण सन् 1896 के दुर्भिक्ष के समय अंग्रेजों ने राहत कार्यों के अधीन करवाया था। इसीलिए इसका नाम अंगरेजवा पोखर पड़ा होगा। इस पोखर के चारों ओर एक ऊंचा बांध या भिंडा है।
चानपुरा के पूरब में सोइली धार, पश्चिम में खिरोई नदी, उत्तर में कोकराहा धार तथा दक्षिण में भुड़का नाला बहता है। इस तरह से यह गांव हर तरफ से किसी न किसी नदी-नाले से घिरा हुआ है। भुड़का नाले के दक्षिण में मकिया और पाली के बीच एक जमींदारी बांध बना हुआ है, जिसे कभी दरभंगा महाराजा ने बाढ़ से अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए बनवाया होगा। पूरब-पश्चिम दिशा में निर्मित यह बांध आजकल राज्य के जल-संसाधन विभाग के अधीन है। बरसात के मौसम में जब सारी नदियां अपने उफान पर होती हैं, तब यही पाली-मकियावाला बांध उत्तर दिशा से आने वाले पानी की निकासी को छेंक दिया करता है और पूरा इलाका लंबे समय तक पानी में डूबा रहता है।
यह क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। कहते हैं कि आज का बसैठ कभी वशिष्ठ ऋषि का वास स्थल हुआ करता था। पास में शिवनगर के गांडवेश्वर महादेव के मंदिर के पास महाभारत से पहले अज्ञातवास के समय अर्जुन ने अपना गांडीव छिपा कर रखा था। कहा तो यह भी जाता है कि चानपुरा के पूर्वोत्तर में बसे उचैठ गांव का संबंध महाकवि कालिदास से रहा है।
ऐसी पृष्ठभूमि के गांव चानपुरा में श्रीमती इंदिरा गांधी के योगगुरु स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का जन्म हुआ था। उनका असली नाम धीरचन्द्र चौधरी था। कोई 14 साल की उम्र में वे गांव छोड़कर चले गए थे। लंबे समय तक उनका कोई अता-पता नहीं लगा था। गांव और परिवार वाले तो यह मान चले थे कि वे मर गए होंगे। मगर एक बार इसी गांव के परमाकांत चौधरी ने नई दिल्ली स्टेशन पर उन्हें देखा और पहचान लिया। यह सन् 1970 के आसपास की घटना रही होगी। तब तक धीरचन्द्र चौधरी स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी बन चुके थे। उनके शिष्यों में प्रधानमंत्री से लेकर छोटे-बड़े बहुत से सामर्थ्यवान लोग और नेता शामिल थे। अब वे एक स्थापित व्यक्तित्व के स्वामी बन गए थे।
अब जो नया और तीसरा प्रस्ताव बना उससे भी लोग खुश नहीं थे। बांध बनना तो जमीन पर ही था और जिसकी जमीन बांध में जाने वाली थी, उसके कान खड़े हुए। जो लोग बांध के बाहर पड़ने वाले थे उनके ऊपर से होकर धौस नदी का सारा पानी गुजरने वाला था। इन लोगों को लगा कि वे तो बाल-बच्चों समेत सीधे समुद्र में चले जाएंगे। इन लोगों ने इस नए प्रस्ताव का विरोध करना शुरू किया। हालत यह थी कि एक ओर से बांध के निर्माण के लिए सिंचाई विभाग के इंजीनियरों की तरफ से बांस और झंडा गाड़ा जाता था तो दूसरी ओर गांव वाले उसे पीछे से उखाड़ते चलते थे!धीरे-धीरे ब्रह्मचारीजी का अपने गांव से फिर संपर्क स्थापित हुआ। उस समय उनकी मां जीवित थीं और उनके दो भाई भी चानपुरा में रहते थे। संपर्क पुनर्जीवित होने और अपनी मातृभूमि के लिए कुछ कर देने की बलवती इच्छा ने ब्रह्मचारीजी को प्रेरित किया कि वे चानपुरा के दोनों टोलों को घेरते हुए एक तटबंध, रिंग बांध बनवा दें तो चारों ओर नदी-नालों से घिरा उनका यह गांव हर साल आने वाली बाढ़ के थपेड़ों से बच जाएगा। अपने गांव में जब उनकी रुचि बढ़ी तो सुनने में आया कि उन्होंने दिल्ली के गोल मार्केट जैसा एक बाजार, सौ शैया वाला अस्पताल, एक हेलीपैड और हवाई जहाजों में इस्तेमाल होने वाले पेट्रोल का एक बड़ा सा टैंक भी गांव में बनाना चाहा! पेट्रोल टैंक के लिए तो जरूरी साज-सामान गांव में आ भी गया था, जिसके अवशेष अभी भी दिखाई पड़ते हैं। अपने गांव को उन्नत करने का उनका एक दीर्घकालीन सपना था और इसे पूरा करने की सामर्थ्य भी उनमें थी ही।
गांव के दोनों टोलों को बाढ़ से हमेशा के लिए मुक्ति दिलवाने के लिए ब्रह्मचारीजी ने एक योजना बनवाई। इसमें 8.5 किलोमीटर लंबा रिंग बांध बनाने का प्रस्ताव किया गया। बिहार के कैबिनेट में 1981 में सिंचाई विभाग के झंझारपुर डिवीजन को इसके निर्माण कार्य को चालू करने के लिए सूचित किया गया था। मगर झंझारपुर डिवीजन ने इस योजना को हाथ में लेने से इसलिए इनकार कर दिया कि उसे अपने यहां से चानपुरा की दूरी बहुत ज्यादा लगती थी! तब यह काम दरभंगा डिवीजन के जिम्मे सुपुर्द कर दिया गया। यह काम शुरू होते न होते 1982 आ गया रिंग बांध के निर्माण के लिए अलाइनमेंट तय हुआ और उसी के हिसाब से निर्माण के लिए झंडे गाड़ना शुरू किया गया, जिसके भीतर पूवारी और पछुआरी टोला दोनों ही आते थे।
पछुआरी टोले के एक परिवार की तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री जगन्नाथ मिश्र से नजदीकी रिश्तेदारी थी। अगर ब्रह्मचारी जी द्वारा प्रस्तावित रिंग बांध से गांव को घेर लिया जाता तो उनकी जमीन का एक बड़ा हिस्सा बांध में चला जाता। इसलिए इस परिवार का इस बांध के निर्माण से स्वाभाविक विरोध था। यह बांध बहुत से दूसरे ऐसे लोगों की जमीन से भी गुजरता था जो अपनी जमीन छोड़ना नहीं चाहते थे। उन्होंने पटना और दिल्ली में कोशिश-पैरवी करके बांध का रूप बदलवा दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर रिंग बांध बनना ही है तो यह पुवारी टोल को ही घेरता हुआ बने। पछुवारी टोल को घेरने की जरूरत नहीं है। इस तरह से ब्रह्मचारीजी द्वारा प्रस्तावित पहला बांध मात्र प्रस्ताव ही बन कर रह गया। उस पर कोई काम नहीं हो पाया।
इस गांव में पहले से ही एक जमींदारी बांध हुआ करता था। जमींदारी टूटने के बाद यह बांध बिहार सरकार के खजान विभाग के हाथ में चला गया था। यह खस्ता हाल में था। तय हुआ कि इसी जमींदारी बांध को ठीक कर दिया जाए। इस रिंग बांध के निर्माण से चानपुरा के पुवारी टोल का अधिकांश भाग बाढ़ से सुरक्षित हो जाता था। यह एक अलग बात है। भविष्य में सुरक्षा मिलने के बावजूद जिन लोगों की जमीन से इस बांध को गुजरना था, वे खुश नहीं रहते हुए भी खामोश थे। ब्रह्मचारीजी की सामर्थ्य और इच्छा के सामने उनकी इच्छाएं बौनी पड़ती थीं।
इस बांध का निर्माण इस खुशी और कशमकश के बीच लगभग पूरा हो चला था कि गांव के कुछ लोगों ने ब्रह्मचारीजी के यहां गुहार लगाई कि अगर बांध का काम यथावत् पूरा कर लिया गया तो पुवारी टोल के दक्षिण में भुड़का नाले के किनारे बन रहा संस्कृत कॉलेज रिंग बांध के बाहर पड़ जाने के कारण असुरक्षित हो जाएगा। अतः इस तटबंध का निर्माण इस तरह से किया जाए कि संस्कृत कॉलेज भी रिंग के भीतर जाए और बकिया जमीन की भी रक्षा हो जाए।
ब्रह्मचारीजी इस बात को मान गए और तब बांध का तीसरा डिजाइन बना। इस बांध की लंबाई कोई 7 किलोमीटर थी। यह बांध पहले वाले बांध से काफी हट कर बनाया जाने वाला था। इसकी वजह से नए बांध और अंगरेजवा पोखर के बीच का फासला कम हो रहा था। पानी की निकासी में बाधा पड़ने वाली थी तथा पश्चिम में रजवा नाला और नए बांध के बीच की दूरी कम पड़ने के कारण पछुआरी टोल की दुर्गति का अंदेशा वहां के लोगों को होने लगा था।
अब जो नया और तीसरा प्रस्ताव बना, उससे भी लोग खुश नहीं थे। बांध बनना तो जमीन पर ही था और जिसकी जमीन बांध में जाने वाली थी, उसके कान खड़े हुए। जो लोग बांध के बाहर पड़ने वाले थे, उनके ऊपर से होकर धौस नदी का सारा पानी गुजरने वाला था। इन लोगों को लगा कि वे तो बाल-बच्चों समेत सीधे समुद्र में चले जाएंगे। इन लोगों ने इस नए प्रस्ताव का विरोध करना शुरू किया। हालत यह थी कि एक ओर से बांध के निर्माण के लिए सिंचाई विभाग के इंजीनियरों की तरफ से बांस और झंडा गाड़ा जाता था तो दूसरी ओर गांव वाले उसे पीछे से उखाड़ते चलते थे! जिस जगह से बांध गांव को छूने लगता है वहां से अगर पूरब और पश्चिम के दोनों टोलों को घेर दिया जाता तो, झगड़ा ही खत्म था। मगर इस बांध को लेकर बांध के अंदर और उसके बाहर पड़ने वालों के खेमे अलग हो गए और दोनों पक्ष कई बार शक्ति प्रदर्शन के लिए आमने-सामने आए।
...ब्रह्मचारीजी चौधरी टोला के रहने वाले थे और काफी ताकतवर आदमी थे। उनकी इच्छा हुई कि गांव को सुरक्षित किया जाए तो वह तो होना ही था। यह इलाका उस समय हमारे कार्य क्षेत्र में नहीं आता था। हम लोग इंजीनियरिंग विभाग में काम करते हैं और हमारा राजनीति या किसी की इच्छा-अनिच्छा से वास्ता नहीं होता। स्वीकृति दे दीजिए, बजट दे दीजिए, हम काम करवा देंगे।चानपुरा रिंग बांध का निर्माण बिहार के सिंचाई विभाग के एक प्रमुख इंजीनियर कामेश्वर झा के अधीन हुआ था। वे बाद में बिहार के जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता होकर रिटायर हुए। उनका कहना है,”...ब्रह्मचारीजी चौधरी टोला के रहने वाले थे और काफी ताकतवर आदमी थे। उनकी इच्छा हुई कि गांव को सुरक्षित किया जाए तो वह तो होना ही था। यह इलाका उस समय हमारे कार्य क्षेत्र में नहीं आता था। हम लोग इंजीनियरिंग विभाग में काम करते हैं और हमारा राजनीति या किसी की इच्छा-अनिच्छा से वास्ता नहीं होता। स्वीकृति दे दीजिए, बजट दे दीजिए, हम काम करवा देंगे। हमसे यही अपेक्षा है। उस समय टी.पी. पाण्डेय सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर थे। मैं चाहता था कि यह काम जयनगर डिवीजन ही करे क्योंकि चानपुरा के कई घरों में मेरी रिश्तेदारियां थीं और मैं खुद बांध के अंदर-बाहर के इस झमेले में नहीं पड़ना चाहता था। लेकिन पांडेयजी का मुझ पर दबाव था कि मेरा डिवीजन ही वह काम करे। पहले एक तटबंध कुछ दूर तक बना तो गांव वालों ने ऐतराज किया कि उनका कुछ हिस्सा छूट गया है। उसका खर्च किस खाते में जाएगा? हमने कहा कि नए प्रस्ताव की स्वीकृति और बजट हमको दे दीजिए, हम नया भी बना देंगे। ब्रह्मचारीजी के प्रभाव से प्रस्ताव भी बदल गया और स्वीकृति भी मिल गई। गांव में कुछ विरोध हुआ। जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री थे। सचिवालय में बैठक हुई। पश्चिम वाले टोले की तो कोई सुनता ही नहीं था। हमको हिदायत हुई कि ब्रह्मचारीजी जो कहलवाते हैं बस वही करते जाइए। विवाद बढ़ता गया। विरोध इतना बढ़ा कि बात श्री राजीव गांधी तक पहुंची और उन्होंने तारिक अनवर और दो अन्य लोगों को जांच के लिए भेजा।
इसी बीच सकरी में विभाग की एक मीटिंग हुई। उस समय उमेश्वर प्रसाद वर्मा सिंचाई मंत्री थे। इस बांध को लेकर विवाद इतना बढ़ गया था कि उन्होंने उस मीटिंग में मेरी तरफ इशारा करके कहा कि आपने ऐसा झंझट पैदा कर दिया है कि हम लोगों की कुर्सी छिन जाएगी।
ऐसी विवादस्पद परिस्थितियों में या तो नेतृत्व का जन्म होता है या नेतृत्व के शून्य को भरने के लिए किसी व्यक्ति का उदय होता है। चानपुरा में इस शून्य को भरने के लिए स्थानीय विधायक युगेश्वर झा आगे आए।किसी भी निर्माण कार्य के सामाजिक सरोकार से अपनी पेशेगत प्रतिबद्धताओं के कारण इंजीनियर उसी तरह निर्विकार रह सकते हैं, जैसे डॉक्टर अपने मरीजों के साथ और वकील अपने मुवक्किलों के साथ। वे किसी भावनात्मक लगाव में नहीं पड़ते। समाजकर्मियों या राजनीतिज्ञों से समाज इस तरह की अपेक्षाएं नहीं रखता और ऐसी विवादास्पद परिस्थितियों में या तो नेतृत्व का जन्म होता है या नेतृत्व के शून्य को भरने के लिए किसी व्यक्ति का उदय होता है। चानपुरा में इस शून्य को भरने के लिए स्थानीय विधायक युगेश्वर झा आगे आए।
मधवापुर प्रखंड के बासुकी बिहारी गांव के युगेश्वर झा यहां के विधायक थे और कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता होने के साथ-साथ मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक भी थे। वे परिस्थितियों के साथ कभी भी समझौता न करने वाले कर्मठ समाजकर्मी थे। उनके प्रखर विरोधी भी उनकी लगन, मेहनत और ईमानदारी की दाद देते थे। युगेश्वर झा ने पछुआरी टोले वालों की तरफ से रिंग बांध के विरोध का नेतृत्व संभाला और एक आंदोलन खड़ा कर दिया। पछुआरी टोल के देवचन्द्र चौधरी बताते हैं, ”... ब्रह्मचारीजी को इस बात की खबर लगी कि युगेश्वर झा बांध के निर्माण में रुकावट डाल रहे हैं और उनके ऊपर डॉ. जगन्नाथ मिश्र का हाथ है। उनका इंदिरा गांधी को सुझाव था कि सारी समस्या की जड़ युगेश्वर झा हैं और उनको यहां से हटा दिया जाए तो समस्या का समाधान हो जाएगा और रिंग बांध का निर्माण निर्विघ्न रूप से पूरा हो जाएगा। तब युगेश्वर झा को जिला बदर कर दिया गया। आंदोलन नेतृत्व विहीन हो गया। जब चानपुरा का रिंग बांध बनने लगा तो हम लोगों ने उसका विरोध किया। मेरी उम्र उस समय कोई 16 साल रही होगी। ठेकेदार के आदमियों से मेरा झगड़ा हो गया और मैंने उनका फीता काट दिया। नौबत पहले झगड़ा-झंझट और बाद में मार-पीट तक पहुंची। उसने रिपोर्ट लिखाई और पुलिस मुझे पकड़ कर ले गई। मुझे जेल में बंद कर दिया। मुझे जेल से छुड़ाने के लिए गांव के लोग गोलबंद हो गए और वहीं से इस बांध का सामूहिक विरोध शुरू हुआ।“
ब्रह्मचारीजी ने आश्वासन दिया कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। हम लोग लौट कर आए तो यहां काम चालू था। कोई 2000 लोग विरोध में खड़े थे। हम लोग ब्रह्मचारीजी का रुतबा देखकर आए थे। इसलिए हमने सबको समझाने की कोशिश की कि ब्रह्मचारीजी से झंझट कर के पार नहीं पाइएगा। दरभंगा जिले का पूरा प्रशासन एक तरफ और अकेले ब्रह्मचारीजी दूसरी तरफ- फिर भी उनका पलड़ा भारी रहेगा। अब जो हो रहा है, होने दीजिए। फिर भी लोग माने नहीं।पछुआरी टोले के निवासी श्री सतीश चन्द्र झा, युगेश्वर झा के बचपन के सहपाठी और अभिन्न मित्र हैं। वे कहते हैं, ”... जब यह निश्चित हो गया कि युगेश्वर झा को वहां से हटना ही पड़ेगा तब उन्होंने श्री जगन्नाथ मिश्र से मंत्रणा की और तब यह तय हुआ कि आंदोलन का नेतृत्व सतीश चन्द्र झा संभालेंगे। उन दिनों यहां शिक्षकों का भी एक आंदोलन चल रहा था और मैं उसी सिलसिले में मुजफ्फरपुर जेल में बंद था। युगेश्वर झा मुझसे मिलने जेल आए और कहा कि अगर आप आंदोलन की कमान नहीं संभालेंगे तो यह बांध बन जाएगा। बहुत से लोग तबाह-बरबाद हो जाएंगे और धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की जीत होगी। मैं बड़े लोगों की राजनीति में फंसा। आठ रुपया चालीस पैसा जमा करवाकर रात में मेरा डाक्टरी परीक्षण करवाया गया और मैं पैरोल पर जेल से रिहा होकर बाहर निकल आया और गांव पहुंच गया।
यहां से युगेश्वर झा की गैर-मौजूदगी में जन-आंदोलन की शुरुआत हुई बांध बन जाने से पहले से ही बदहाल जल-निकासी और भी बुरी हालत में पहुंचने वाली थी। इस बांध का असर नेपाल सीमा पर रातो नदी तक पड़ने वाला था। पचासों गांव पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगा। हम लोगों ने एक ग्राम सुरक्षा संघर्ष समिति बनाई। पछुआरी टोले के दुःखहरण चौधरी इसके महामंत्री थे और मुझे अध्यक्ष बनाया गया। हम लोगों ने इन सभी गांवों में सघन संपर्क कर बताया कि अगर चानपुरा रिंग बांध बन गया तो पश्चिम के गांव तबाही के कगार पर पहुंच जाएंगे। मामला रंग लाया और मीडिया की रुचि इस पूरी योजना में जगी। ब्लिट्ज के बी.के. करंजिया तीन दिन हमारे गांव में आकर रुके थे। विकास कुमार झा ने भी काफी कुछ लिखा। भोगेन्द्र झा, एम.पी. लगभग एक सप्ताह मेरे घर में रहे। हमारा मुकाबला धीरेन्द्र ब्रह्मचारी जैसे समर्थ व्यक्ति से था। इसलिए मामले का प्रचार भी खूब हुआ। सारा जमावड़ा मेरे घर पर और मैं खर्चे से तबाह। पत्नी का सारा समय रसोई में और मेहमानों की देख-भाल में गुजरता था।
लगभग उसी समय बिहार के पूर्व एडवोकेट जनरल और वर्तमान सभापति-बिहार विधान परिषद, ताराकांत झा के बेटे के यज्ञोपवीत संस्कार में अटल बिहारी वाजपेयी पड़ोस के उनके गांव शिवनगर आए हुए थे। हमारे गांव के एक बुजुर्ग रघुवंश झा वाजपेयी जी से मिलने गए और उन्होंने सारी व्यथा-कथा सुनाई। वाजपेयी जी ने ताराकांजी से कहा कि पचास गांवों का मामला है, आप इनकी तरफ से हाईकोर्ट में पैरवी कर दीजिए। ये लोग कहां से पैसा लाएंगे? तारा बाबू राजी हो गए। उधर मुकदमा चलता था और इधर आंदोलन। महिलाएं तक जेल गईं। सरकार ने विरोध को दबाने के लिए केन्द्रीय रिजर्व पुलिस उतार दी थी। मुख्यमंत्री पर बहुत दबाव था। उन्हें मजबूरन धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का पक्ष लेना पड़ा। इसके अलावा उनके पास कोई चारा ही नहीं था।“
यह सुनने में बड़ा ही विचित्र लगता है कि 30 लाख रुपए मात्र के किसी काम के पीछे एक छोटी-सी योजना के पीछे राज्य का मुख्यमंत्री किसी दबाव में आ जाए। पर चानपुरा बांध ने कुछ इसी तरह की परिस्थितियां बना दी थीं। लेखक ने श्री मिश्र से बात करके उनका मंतव्य जानना चाहा।
”यह सच है कि युगेश्वर झा मेरे बहुत नजदीक थे और चानपुरा संबंधी पूरे मसले पर मैं उनसे सलाह लेता था। यह पूरी घटना व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए बहुत ही उलझन और किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति पैदा करने वाली थी। ब्रह्मचारी का जर्बदस्त दबदबा था और अब अंदरूनी बात क्या थी, वह तो मेरे लिए कह पाना मुश्किल है मगर इंदिराजी के यहां उनका आना-जाना और उठना-बैठना तो निश्चित रूप से था। इसका एक मनोवैज्ञानिक दबाव मेरे ऊपर था। लेकिन मेरी प्रतिबद्धताएं जन-हित के साथ थीं और उसका प्रतिनिधित्व युगेश्वर झा कर रहे थे और मानसिक रूप से राज्य सरकार उनका समर्थन कर रही थी। इस वजह से ब्रह्मचारीजी को हो सकता है मुझसे नाराजगी रही हो और इस घटना के विरोध को मेरे खिलाफ इस्तेमाल किया गया हो। पर इसमें कोई दो राय नहीं है कि मैं युगेश्वर झा का समर्थन कर रहा था और यही समग्रता में जन-हित में था। यह लगभग तीस साल पुरानी घटना है। बहुत कुछ घटनाएं मुझे अब याद नहीं है और अब वहां क्या स्थिति है, यह भी मुझे नहीं मालूम।“
जब इस नए बांध का काम लगभग 12 आना पूरा हो गया तब उसका विरोध शुरू हुआ। इस बीच बांध के समर्थक और विरोधी दोनों ही ब्रह्मचारीजी से अपनी-अपनी तकलीफें बताने के लिए संपर्क करते रहे और ब्रह्मचारीजी भी सभी को तसल्ली देते रहे कि वे किसी का अहित नहीं होने देंगे। पछुआरी टोले से 76 वर्षीय द्वारका नाथ चौधरी बताते हैं, ”...हमारे गांव के एक बुजुर्ग चले गए ब्रह्मचारीजी के पास दिल्ली यह कहने के लिए अगर यह बांध पूरा हो गया तो उनकी जगह-जमीन पूरी तरह बरबाद हो जाएगी। ब्रह्मचारीजी ने उन्हें आश्वासन दिया कि जब आप आ गए हैं तो आपका काम हो जाएगा।
फिर ब्रह्मचारीजी ने बांध का तीसरा हवाई सर्वेक्षण किया। तब फिर तीसरी योजना बनी। इसमें भी हम लोगों की जमीन जाती थी और हमें कोई फायदा नहीं होना था। तब हमने और दुःखहरण चौधरी ने बांध के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया। हमारी तरफ से ताराकांत झा ने वकालत की। जब यह मामला दायर हुआ तो दिल्ली से ब्रह्मचारीजी का फोन आया कि किसी तरह की चिंता मत कीजिए और जैसा आप चाहते हैं वैसा ही होगा। आप लोग दिल्ली आइए।
”हमने भी सोचा कि जहां नाखून से काम चलता हो वहां तलवार क्यों लाए। मैंने दुःखहरण बाबू से कहा कि चलिए, दिल्ली चलते हैं। इस बीच ब्रह्मचारीजी ने हम दोनों के लिए हवाई जहाज का टिकट भिजवा दिया। हमें वहां ब्रह्मचारीजी के आश्रम विश्वायतन में बहुत अच्छे कमरे में रखा गया था मगर न तो वहां हम लोगों ने कभी भर पेट खाना खाया, न पूरी नींद सोए और न एक ही कमरे में रहते हुए आपस में कोई बातचीत की। दुःखहरण बाबू कुछ बोलने को होते थे तो मैं रोक देता था कि पता नहीं कमरे में हमारी बातें रिकार्ड करने की व्यवस्था कर दी गई होगी तो हम लोग मुसीबत में पड़ जाएंगे। मैं भी बोलने को होता था तो दुखःहरण बाबू रोक देते थे। हम लोगों को बात करनी होती थी तो हम कमरे से बाहर चले जाते थे।
इन लोगों को ब्रह्मचारीजी ने ही दिल्ली बुलाया था, हवाई जहाज का टिकट भेज कर। पर बातचीत तो हुई ही नहीं थी। कुछ दिन वहां रहने के बाद जब हम लोगों ने वापस जाने की बात कही तब ब्रह्मचारीजी का बुलावा आया बातचीत के लिए। दुःखहरण बाबू जाने के लिए तैयार थे मगर मुझे डर लग रहा था। फिर भी जाना तो था ही गए। जहां प्रतीक्षा करनी थी, वहां हमसे भी डेढ़ हाथ ऊंचे जवान 5 मिनट बाद आकर हमारे अगल-बगल में खड़े हो गए।
हमको मृत्यु का स्मरण हो गया। दुःखहरण बाबू कुछ ऊंचा सुनते थे। वे शायद इस स्थिति से खुश नहीं थे और कुछ कहना चाहते थे मगर मैंने उनका हाथ दबा दिया। फिर हिम्मत जुटा कर मैंने ब्रह्मचारीजी से कहा कि आप ने तो गांव का हवाई सर्वेक्षण किया, जमीन पर तो उतरे नहीं कि हम लोग सारी परिस्थिति आपको समझा पाते। यह सच है कि अगर यह बांध जैसा बन रहा है वैसा ही बन गया तो पछुआरी टोला बरबाद हो जाएगा। हमने उनको याद दिलाया कि उन्हीं के परिवार के सौजन्य से हम लोग चानपुरा बसने के लिए आए थे और अगर उसी परिवार के कारण हम लोग उजड़ जाएंगे तो यह अच्छा तो नहीं होगा। वैसे आप जो चाहेंगे वही होगा। अगर आप की कृपा होगी तो हमारा पुनर्वास हो जाएगा और आप रूठ जाएंगे तो हम तो आपको गांव भी नहीं ले जा सकेंगे।“
उन्होंने आश्वासन दिया कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। हम लोग लौट कर आए तो यहां काम चालू था। कोई 2000 लोग विरोध में खड़े थे। हम लोग ब्रह्मचारीजी का रुतबा देखकर आए थे। इसलिए हमने सबको समझाने की कोशिश की कि ब्रह्मचारीजी से झंझट कर के पार नहीं पाइएगा। दरभंगा जिले का पूरा प्रशासन एक तरफ और अकेले ब्रह्मचारीजी दूसरी तरफ- फिर भी उनका पलड़ा भारी रहेगा। अब जो हो रहा है, होने दीजिए। फिर भी लोग माने नहीं।
पछुआरी टोले और आसपास के प्रभावित होने वाले गांवों की लगभग 5,000 महिलाओं को आगे कर के प्रदर्शन जारी रहा तो पता नहीं कहां से महिला पुलिस भारी तादाद में उतार दी गई। पुलिस के जवान भी जो लगाए गए। वे किसी भी मायने में बिहार पुलिस के नहीं लगते थे। अब औरतों को बाल पकड़ कर खींचा जाने लगा और आदमियों के सीने पर संगीनें तनीं तो पूरा विरोध बिखर गया। बहुत से लोगों को पकड़कर मधुबनी जेल में बंद कर दिया गया। कुछ लोगों को यहां से उठाकर दूर-दराज इलाकों में रास्ते में कहीं-कहीं छोड़ दिया गया। ये लोग बाद में किसी तरह तीन-चार दिन में अपने गांव लौटे। आसपास के गांव जैसे धनुखी, पुलबरिया, बर्री, माधोपुर आदि 15-20 गांवों के लोग हम लोगों के साथ शामिल थे। जेल भरने का सिलसिला कई दिन चला। मगर हमारा विरोध बहुत बड़ी ताकत से था।
भयावह जन-आक्रोश के फलस्वरूप उत्पन्न परिस्थिति को देखते हुए कुछ समय के लिए काम रोक दिया गया था। लेकिन पुनः उक्त कार्य को सशस्त्रा पुलिस के द्वारा बंदूक की नोक पर करवाया जा रहा है। प्रदर्शन, धरना, सत्याग्रह घेराव, सर्वदलीय विरोध उसके विरुद्ध जारी है। लेकिन सरकार बच्चे, बूढ़े, बूढ़ी औरतों पर लाठी चार्ज, अश्रु गैस का प्रयोग कर उक्त विनाश लीला के उक्त कार्य को करते रहने में गर्व का अनुभव करती है।यह सवाल बिहार विधान परिषद में भी उठा। 7 जुलाई 1982 को विधान परिषद में लाए गए एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव में श्री कृपानाथ पाठक ने कहा, ”...बेनीपट्टी अनुमंडल के बसैठ-चानपुरा के पूर्वी टोल की बाढ़ सुरक्षा के लिए सिंचाई विभाग द्वारा 32 लाख रुपए की लागत से विशालकाय तटबंध के कार्य प्रारंभ करने से हजारों-हजार परिवारों के सामने जान-माल का खतरा उत्पन्न हो गया है, क्योंकि अधवारा ग्रुप की अनेक नदियों का बहाव इस बांध के द्वारा बिलकुल ही रोक दिया गया है। सुरसरिया और मुकरा के बेड को बिलकुल बांधकर इसके बहाव को अवरूद्ध किया जा रहा है। पानी के निकास की योजना बनाए बिना मात्र एक छोटा गांव बचाने के लिए सरकार ने अन्य इलाकों के सैकड़ों गांवों में बसने वाले आम नागरिकों के सामने जिंदगी के अस्तित्व पर भयंकर खतरा उत्पन्न कर दिया है। ... उक्त बांध से दरभंगा, बसैठ-माधवापुर तथा मधुबनी-बसैठ-पुपरी-सीतामढ़ी लोक निर्माण पथ जो वहां से नागरिकों का एकमात्र पथ है, जलमग्न होकर नष्ट हो जाएगा। खिरोई तटबंध जो एग्रोपट्टी से दरभंगा तक बाढ़ सुरक्षा का तटबंध वह भी पूर्णतया टूट जाएगा। फलस्वरूप सैकड़ों गांवों के लोग पानी में बहकर दुनियां से चले जाएंगे। ...सबसे आश्चर्य की बात है कि सरकार जबरन, बिना मुआवजा दिए हुए असंवैधानिक तरीके से सशस्त्र पुलिस तैनात कर किसानों की हजारों एकड़ जमीन छीन कर इस तटबंध का निर्माण कर रही है। ...उक्त तटबंध योजना की तकनीकी स्वीकृति भी प्राप्त नहीं है और न उक्त योजना को गजट में ही प्रकाशित किया गया है।
...उक्त अलोक-कल्याणकारी हजारों-हजार घर-बार को बेघर कर बीच मंझधार में डुबा देने वाली योजना के विरुद्ध वहां के हजारों-हजार नर-नारियों ने 25 मई 1982 से ही अपने जीवन मरण की लड़ाई छेड़ दी है। भयावह जन-आक्रोश के फलस्वरूप उत्पन्न परिस्थिति को देखते हुए कुछ समय के लिए काम रोक दिया गया था। लेकिन पुनः उक्त कार्य को सशस्त्र पुलिस के द्वारा बंदूक की नोक पर करवाया जा रहा है। प्रदर्शन, धरना, सत्याग्रह घेराव, सर्वदलीय विरोध उसके विरुद्ध जारी है। लेकिन सरकार बच्चे, बूढ़े, बूढ़ी औरतों पर लाठी चार्ज, अश्रु गैस का प्रयोग कर उक्त विनाश लीला के उक्त कार्य को करते रहने में गर्व का अनुभव करती है। ....इस तरह के अलोकतांत्रिक, अलोक-कल्याणकारी, जन-विरोधी और अमानवीय कार्य करवाने के लिए प्रशासन के निर्णय और कठोर व्यवहार से लोगों के जन-जीवन में आक्रोश, क्षोभ, भय एवं असंतोष व्याप्त हो गया है। किसी भी क्षण विस्फोट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यदि उक्त कार्य को तत्काल बंद नहीं किया गया तो जन-जीवन अस्त-व्यस्त होने के साथ-साथ कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने की संभावना है।“
इस ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर सरकार को 20 जुलाई, 1982 के दिन जवाब देना था मगर लगता है कि ब्रह्मचारीजी के प्रभाव के कारण सरकार परिषद् में किसी भी बहस से बचना चाहती थी। इस बीच दुःखहरण चौधरी ने बांध के निर्माण के विरुद्ध पटना हाईकोर्ट में सरकार पर मुकदमा दायर कर दिया था। इस मुकदमे की अपील का वास्ता देकर कि अगर मामला न्यायालय में विचाराधीन है अतः इस पर विधान परिषद में बहस नहीं होनी चाहिए, सरकार बहस से बच निकलना चाहती थी!
इस स्थगन प्रस्ताव पर अध्यक्ष राधानंदन झा की टिप्पणी थी कि चानपुरा में रिंग बांध का काम पिछले तीन महीनों से चल रहा है और यह कोई आपात स्थिति नहीं है कि उस पर विचार हो। अध्यक्ष की इस व्यवस्था पर भारतीय जनता पार्टी के सदस्य सदन छोड़कर बाहर चले गए। सरकार ने जरूर यह आश्वासन दिया कि वह 30 जुलाई, 1982 को इस विषय पर वक्तव्य देगी। दुर्भाग्यवश सरकार का यह बयान बिहार विधानसभा पुस्तकालय के संग्रह में या दूसरी जगह उपलब्ध नहीं है।
एक तरफ इन वैधानिक संस्थाओं में इस मुद्दे पर बहस तेज थी, वहीं दूसरी तरफ चानपुरा पुलिस छावनी में तबदील हो गया था। रोज धर-पकड़ और लोगों का जेल आना-जाना लगा रहा। 23 जुलाई, 1982 को सतीशचन्द्र झा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करके करीब सौ लोगों की गिरफ्तारी की सूचना दी। इस बीच घटनाक्रम तेजी से बदला जिसके बारे में फिर बताते हैं सतीशचन्द्र झा। उनका कहना है, ”... एक दिन मुझे युगेश्वर झा का फोन आया कि श्री राजीव गांधी गुवाहाटी जाते समय कुछ समय के लिए पटना हवाई अड्डे पर रुकेंगे। वहां उनके जहाज में ईंधन भरा जाएगा। उन्होंने मुझे कुछ लोगों के साथ हवाई अड्डे पर मौजूद रहने की ताकीद की।
मैं पंद्रह लोगों के साथ हवाई अड्डे पर आ गया। जैसे ही राजीव गांधी लाउंज में आकर लोगों से मिलने लगे वैसे ही युगेश्वर झा जोर-जोर से रोने लगे। हम लोगों ने भी वही काम दुहराया। राजीव गांधी ने हम लोगों से इस तरह के विचित्र व्यवहार का कारण पूछा तो युगेश्वर झा ने उन्हें सारी बात बताई। राजीव गांधी ने तुरंत तारिक अनवर, श्यामसुंदर धीरज और रणजीत सिन्हा को लेकर एक समिति बनाई और उनसे कहा कि कल वे इसी समय गुवाहाटी से लौटते समय कुछ देर के लिए पटना रुकेंगे। इस बीच में यह तीनों लोग चानपुरा जाकर वहां की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट दें।
इन लोगों को चानपुरा लाने ले जाने का यह सारा काम मेरे जिम्मे पड़ा क्योंकि युगेश्वर झा वहां जा नहीं सकते थे, उन पर रोक लगी हुई थी। मैंने रातों-रात सब जगह खबर भिजवाई। सुबह काफी संख्या में लोग चानपुरा में इकट्ठा थे। ये तीनों लोग भी वहां पहुंचे। हमने पूरा बांध इन लोगों को दिखाया। संस्कृत कॉलेज में सबकी मीटिंग हुई। गांव के लोगों ने सारी बातें उन्हें समझाई। तब ये लोग समय रहते पटना वापस चले गए। निर्धारित समय पर राजीवजी फिर पटना उतरे। इन लोगों ने उन्हें सारी बातें, गांव का पूरा किस्सा बयान किया।
श्री राजीव जब वापस दिल्ली घर पहुंचे तो वहां धीरेन्द्र ब्रह्मचारी मौजूद थे, उन्हें देखकर उनका गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने इंदिराजी से बताया कि ब्रह्मचारीजी की वजह से पचास गांव बरवाद हो जाएंगे और कांग्रेस का गढ़ वहां छिन्न-भिन्न हो जाएगा। उन्होंने ब्रह्मचारीजी को चले जाने को कहा। प्रधानमंत्री कार्यालय से दूसरे दिन इस बांध का काम बंद करने का आदेश आ गया।
इस तरह जब तक राजीव गांधी का प्रभाव रहा यह काम बंद रहा। हाईकोर्ट में जो मामला चल रहा था वह भी खारिज हो गया, क्योंकि न्यायालय ने इंजीनयरों की एक कमेटी बना कर उनसे तकनीकी राय मांगी और उसी के अनुसार काम करने या न करने का आदेश दे दिया था।
यह सच है कि स्वामीजी उत्कृष्टतम योगियों में थे। आयुर्वेद के महान ज्ञाता थे। उन्होंने राजेन्द्रप्रसादजी का दमा का इलाज किया था। इंदिरा गांधी और जयप्रकाश नारायण का उन्होंने इलाज किया था। उनके ज्ञान और साधना में कहीं कोई कमी नहीं थी। इन सब कारणों से उनके संसाधनों की भी कोई कमी नहीं थी। हमारे तमाम विरोध के बावजूद उनका व्यक्तित्व हम लोगों के लिए बड़ा उदार था, भले ही उनके बारे में बाहर के लोगों द्वारा जो कुछ भी विवादास्पद बातें कही जाती रही हों। यह भी गलत नहीं है कि राजीव गांधी अगर नहीं रहते तो हम लोग बरबाद हो गए होते।“
यहां से चानपुरा रिंग बांध का उत्तर कांड शुरू होता है। पटना हाईकोर्ट में दुःखहरण चौधरी ने इस नए रिंग बांध के निर्माण के खिलाफ जो मामला दायर किया था, उसमें उच्च न्यायालय में बादियों की तरफ से बिहार के भूतपूर्व चीफ इंजीनियर भवानंद झा ने आपत्ति की थी। ये सारे मसले तकनीकी थे, जिन पर राय जानने के लिए उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ इंजीनियरों की एक समिति का गठन किया और उससे भावी कार्यक्रम के लिए राय मांगी। इस समिति में तीन सदस्य थे जिसमें गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष नीलेन्दु सान्याल, बिहार सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता ए. के. बसु और बिहार सरकार में समस्तीपुर क्षेत्र के मुख्य अभियंता एच.पी. सिंह शामिल थे। इस समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट पहली फरवरी 1983 को उच्च न्यायालय को दे दी।
समिति की इस रिपोर्ट के आने के पहले ही रिंग बांध पर काम बंद हो चुका था। यह संभवतः राजीव गांधी की इस पूरे मामले में रुचि लेने के कारण हुआ हो। राजीव गांधी के उदय के साथ-साथ ब्रह्मचारीजी का भी सत्ता के गलियारों में पहले जैसा प्रभाव नहीं रहा। अक्तूबर 1984 में इंदिराजी की हत्या के बाद उनकी पूछ एकाएक घट गई और कुछ समय बाद ब्रह्मचारीजी स्वयं एक विमान दुर्घटना में मारे गए।
चानपुरा के इस रिंग बांध के निर्माण को लेकर अनेक विवाद हुए और अभी भी उच्च न्यायालय में पूरा मामला लंबित है। संस्कृत कॉलेज आज भी असुरक्षित है और वही हाल पछुआरी टोले का है। रिंग बांध दो बार टूट कर भीतर के टोले को डुबा चुका है। अब बांध ऊंचा और तथाकथित रूप से मजबूत कर दिया गया है। इसके बाद भी इस तरह की घटना बार-बार घटेंगी और उनकी तीव्रता और भी बढ़ेगी।
इलाके के सारे बांधों को ऊंचा और मजबूत किया जा रहा है और अब इस क्षेत्र की जल-निकासी का क्या होगा, यह तो भविष्य ही बताएगा। इतना जरूर लगता है कि राज्य के जल-संसाधन विभाग की बाढ़ के पानी की शीघ्र निकासी में कोई दिलचस्पी नहीं है। वह पानी के प्रवाह को यथा-संभव रोक देने में ही रुचि रखता है। उसे सारी संरचनाएं ऊंची और मजबूत चाहिए। वह यह भूल जाता है कि ऐसी संरचनाओं की मजबूती से डटे रहने पर एक तरफ के लोगों को निश्चित रूप से नुकसान पहुंचता है तो उनके टूट जाने पर दूसरी तरफ के लोग दुख भोगते हैं। इन संरचनाओं की न तो तीसरी कोई गति है और पीड़ित जनता के पास न कोई तीसरा विकल्प है।
इतना सब होने के बावजूद रिंग बांध के भीतर और बाहर वालों के बीच वैसा कोई मनमुटाव नहीं है। भोज-भात, काज-करोज में एक दूसरे के यहां आना जाना सब चलता है। जो कुछ मतभेद है वह वर्षा के चार महीने रहता है। अक्तूबर के अंत तक सब सामान्य हो जाता है।
श्री दिनेश कुमार मिश्र ने इंजीनियरिंग के अपने श्रेष्ठ ज्ञान को समाज के साथ जोड़ा है। उन्होंने बिहार के उत्तरी भाग में आने वाली बाढ़ों के स्वभाव को जानने और फिर उसे दूसरों तक पहुंचाने का काम किया है ताकि बाढ़ की विभीषिका कम हो सके।
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