एक आवाज पहचान कर बचाए पन्द्रह परिवार

कोडागू बाढ़
कोडागू बाढ़
कोडागू बाढ़ (फोटो साभार - इण्डियन एक्सप्रेस)लोगों को एक तेज आवाज सुनाई दी। सब लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकले, तो उन्होंने देखा कि गाँव के एक छोर पर हुए भू-स्खलन की वजह से एक औरत और कुछ बच्चे कीचड़ में सने पड़े हैं। भू-स्खलन दूसरे घरों को अपनी जद में लेने को आतुर दिख रहा था। कुछ युवाओं ने उन्हें दलदल से निकाला और सुरक्षित जगहों पर ले जाने के लिये जीप में बिठाया।

कुछ समय पहले यह घटना मदिकेरी गाँव में घटी थी। मैं कर्नाटक स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट अॉफ टेक्नोलॉजी (national institute of technology, karnataka) में भू-विज्ञान के अभ्यर्थियों को पढ़ाता हूँ। इससे पहले मैंने मैसूर विश्वविद्यालय से जियोलॉजी की पढ़ाई की है। फिलहाल राज्य के जिस हिस्से में मैं रहता हूँ, उसमें नियमित अन्तराल पर बाढ़, अतिवृष्टि और भू-स्खलन जैसी आपदाएँ झेली हैं। इस मानसूनी सत्र में भी यहाँ के लोगों की परेशानियाँ बरकरार हैं। कोडागू जिले में बाढ़ का कहर बदस्तूर जारी है।

उस दिन कोडागू में काम निपटाने के बाद मैं सूरतकल पहुँचा ही था कि मेरे एक दोस्त ने मुझे एक विडियो भेजा। उस वीडियो में जमीन के भीतर की तेज आवाज आसानी से सुनी जा सकती थी। मैंने अपने दोस्त को तुरन्त फोन किया और उससे अधिक जानकारी माँगते हुए एक नया वीडियो भेजने के लिये कहा। उन वीडियो का विश्लेषण करने के बाद यह पुख्ता हो गया कि वे तेज आवाजें मिट्टी खिसकने की हैं।

इसका मतलब था कि आसपास रह रहे लोगों को जितनी जल्दी हो सके, वहाँ से निकल लेना चाहिए। मैंने तुरन्त कोडागू के उपायुक्त से बात की और उन्हें स्थिति की भयावहता से वाकिफ कराया। हालांकि इलाके के पंचायत विकास अधिकारियों को किसी भी सम्भावित भू-स्खलन के बारे में पहले से अन्देशा था, लेकिन मेरे इनपुट के बाद उन्होंने तुरन्त कार्रवाई की और सभी एहतियाती कदम उठाए गए, जिसमें उस जगह के लोगों को दूसरी जगह ले जाया गया। इस बचाव कार्य में कम-से-कम पन्द्रह परिवार के लोगों को बचाया गया।

यह घटना करिके गाँव की है। उस दिन मैं इसी गाँव में बाढ़ का दंश झेल रहे ग्रामीणों की मदद करके ही वापस लौटा था। वहाँ काम करते हुए मुझे इसका अन्दाजा नहीं था कि यहाँ से मेरे जाते ही मुझे एक ऐसा वीडियो देखने को मिलेगा, जिसमें धरती के भीतर की भयानक आवाजें सुनाई देगीं। मिट्टी की आवाजें पहचानना मैंने कुछ साल पहले सीखा है।

तिरुअनंतपुरम में आयोजित नेशनल सेंटर फॉर अर्थ साइंस स्टडीज (national center for earth science studies) की एक कार्यशाला में मुझे यह जानने का मौका मिला।

मैंने इन आवाजों का गहन अध्ययन करने के लिये अलग-अलग इलाकों के नदी तटों का दौरा किया है। ये आवाजें मिट्टी की उथल-पुथल की द्योतक हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो इन्हें भारी भू-स्खलन की चेतावनी के तौर पर लिया जा सकता है। उन परिवारों के लोगों को यदि समय पर वहाँ से नहीं निकाला जाता, तो उनमें से शायद ही कोई व्यक्ति सही-सलामत बचता, क्योंकि कुछ वक्त बाद लोगों ने अपनी आँखों से अपने घरों को जमींदोज होते देखा है। मैं मानता हूँ कि मैंने कोई बड़ा काम नहीं किया है। मैंने बस अपना कर्तव्य निभाते हुए प्रशासन की मदद से कुछ लोगों को बचाया है, जिसके लिये मेरा तजुर्बा काम आया। नहीं, तो करिके गाँव में भी वहीं घटना घटती, जो पास के मदिकेरी गाँव में घटी थी।

विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित

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