एक और शिलान्यास

पश्चिमी कोसी नहर की अनुमानित लागत 154.06 करोड़ रुपये तक जा पहुँची थी जबकि उस पर हुआ खर्च केवल 17.18 करोड़ रुपये था। नहर पर सालाना खर्च अब तक बिरले ही 4 करोड़ रुपयों की सीमा को पार कर पाया। यदि निर्माण सामग्री और मजदूरी की दर स्थिर भी रहती तो भी इस निवेश की दर पर योजना के पूरा होने में कोई 35 साल का समय लगने वाला था, यानी धनिक लाल मंडल का हिसाब-किताब एकदम सही था और यह नहर अपने निर्माण के क्रम में 21वीं शताब्दी में आधी-अधूरी स्थिति में ही प्रवेश करने वाली थी।

बिहार सरकार ने नेपाल में पश्चिमी कोसी नहर का काम शुरू करते-करते नवम्बर 1972 तक का समय ले लिया मगर भारत जैसे देश में यह काम नेताओं की जय-जयकार और शिलान्यास की औपचारिकता निबाहे बिना नहीं हो सकता था और इसके लिए 30 जनवरी 1974 तक इंतजार करना पड़ा। इस दिन पश्चिमी कोसी नहर के पाँचवें शिलान्यास का फर्ज अदा किया बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर ने और इस दिन नेपाल से समझौता हो जाने के बाद एक बार फिर आशा की किरण जगी कि मूल रूप में पश्चिमी कोसी नहर योजना का क्रियान्वयन होगा। बहरहाल, जैसे -तैसे योजना पर काम शुरू हुआ और इसकी गाड़ी तबसे अब तक किसी तरह घिसट रही है।

पश्चिमी कोसी नहर की खास बातें


पश्चिमी कोसी नहर योजना के मुख्य अंश इस प्रकार हैं। (देखें चित्र 6.1)। नेपाल में भारदह हेड-वर्क्स से लेकर भारत-नेपाल सीमा तक इस मुख्य नहर की लम्बाई 35.13 किलोमीटर है। भारत में यह नहर मधुबनी जिले के लौकही प्रखण्ड में नारी गाँव के पास प्रवेश करती है और यहाँ से धौस नदी तक, जहाँ यह नहर समाप्त हो जाती है, इस नहर की कुल लम्बाई 56.90 किलोमीटर है। नारी से यह नहर लौकही, पिपराही गाँवों से होती हुई एकम्मा गाँव के पास भुतही बलान नदी को पार करती है जहाँ से बरैल, भूपट्टी, पीढ़ी, सलखनिया, छोराही और भकुआ गैप होती हुई कमला नदी को पार करती है।

कमला को पार करने के बाद यह खजौली के पास सकरी-जयनगर रेल लाइन पार करके कलुआही गाँव के पास दरभंगा-जयनगर मार्ग को पार करती है और अन्ततः साहर घाट शाखा नहर के रूप में धौस नदी में जाकर समाप्त हो जाती है। इस नहर द्वारा सिंचित क्षेत्र पूर्व में कोसी पर बने हुये पश्चिमी तटबन्ध, पश्चिम में धौस तथा दरभंगा बागमती, दक्षिण में करेह तथा उत्तर में स्वयं इसी नहर से घिरा हुआ है। इस नहर की प्रवाह क्षमता भारदह में 240 घनमेक (8,500 क्यूसेक) और नारी में 184 घनमेक (6,495 क्यूसेक) है और इससे नेपाल में 14,100 हेक्टेयर (34.870 एकड़) और भारत में 2,58,,600 हेक्टेयर (6,38,700 एकड़) खेती की जमीन पर सिंचाई करने का अनुमान था। भारत में नहर का कुल पफ़सल क्षेत्र 3.25 लाख हेक्टेयर प्रस्तावित था।

इक्कीसवीं शताब्दी की नहर


20 फरवरी 1975 को जगन्नाथ मिश्र ने बिहार विधान सभा को बताया कि इस पश्चिमी कोसी नहर योजना की लागत 51 करोड़ रुपये हो गई है और इसे 1980-81 में पूरा कर लिया जायेगा। तेजनारायण झा, सदस्य-विधान सभा, को इस बात का अफसोस था कि 1961 में 13 करोड़ रुपये की लागत की इस योजना की कीमत चार गुणा हो गई थी और उन्हें आशंका थी कि अगर यह काम जल्दी और समय पर पूरा नहीं किया गया तो इसकी कीमत पाँच-छः गुणा बढ़ जायेगी।

मगर यह महज अरण्य रुदन था। पश्चिमी कोसी नहर के काम में वायदों और साइट पर होने वाले काम ने अपनी अलग-अलग रफ्तार पकड़ रखी थी। काम की प्रगति ऐसी थी कि वह आगे बढ़ने का नाम ही नहीं लेती थी जबकि वायदे सरपट दौड़ते थे। धनिक लाल मंडल, जब वह जनता पार्टी की सरकार में केन्द्र में गृहराज्य-मंत्री थे, अक्टूबर 1979 में अपने गाँव आये थे जो पश्चिमी कोसी नहर के कमान क्षेत्र में पड़ता था। इस समय पश्चिमी कोसी नहर परियोजना का दावा था कि 1981 में कमला नदी के पूर्व वाले क्षेत्रों को पश्चिमी कोसी नहर से पानी मिलने लगेगा मगर तब तक वहाँ मुख्य नहर की 59 में से 17 मात्र संरचनाओं का काम पूरा हुआ था, 7 पर काम चालू था और बाकी 35 संरचनाओं की तो सर्वे रिपोर्ट भी तैयार नहीं हुई थी।

नहर का काम-काज देखने के बाद उन्होंने कहा कि जिस रफ्तार से पश्चिमी कोसी नहर का काम चल रहा है उस रफ्तार से इस नहर का काम बीसवीं शताब्दी में पूरा नहीं होगा। उनकी जब़ान पर उस समय सरस्वती का वास था सो जो उन्होंने कहा वह सच हो गया। जब उन्होंने यह बयान दिया था उसके कुछ महीने पहले राज्य में उन्हीं की पार्टी की कर्पूरी ठाकुर की सरकार का लगभग दो साल के शासन के बाद पतन हो चुका था। मंडल ने कहा कि वह केन्द्र से विशेषज्ञों की एक टीम नहर के काम को शीघ्र पूरा करने के लिए भेजेंगे मगर इससे आम जनता का कोई उत्साह वर्धन नहीं हुआ क्यों कि कर्पूरी ठाकुर के अलावा एक लम्बे समय तक जगन्नाथ मिश्र, जो इसी इलाके के रहने वाले थे, राज्य में सिंचाई मंत्री और मुख्यमंत्री के पदों पर रह चुके थे। इतने प्रभावशाली लोगों की मौजूदगी के बावजूद योजना में कोई प्रगति नहीं हो पा रही थी।

11 जून 1980 को हरिनाथ मिश्र ने एक बार फिर पश्चिमी कोसीनहर की प्रगति का पूरा विवरण देते हुये प्रधानमंत्री को स्मार-पत्र दिया और उनसे मामले में हस्तक्षेप करने के लिए कहा। इस बार ऊर्जा मंत्री गनी खान चौधरी ने उनको आश्वासन दिया कि पाँच वर्ष के अन्दर इस योजना का काम पूरा कर लिया जायेगा। हरिनाथ मिश्र चाहते थे कि इस नहर को किसी तरह राज्य सरकार के चंगुल से छुड़ा कर केन्द्र सरकार के हाथ में दे दिया जाय और इसके लिए उन्होंने केन्द्रीय जल तथा शक्ति आयोग का नाम भी सुझाया मगर गनी खान चौधरी का कहना था कि इसके लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा क्योंकि केन्द्र सरकार की कोई संस्था राज्य सरकार का काम नहीं कर सकती। इस वक्त तक (1979-80) में पश्चिमी कोसी नहर की अनुमानित लागत 154.06 करोड़ रुपये तक जा पहुँची थी जबकि उस पर हुआ खर्च केवल 17.18 करोड़ रुपये था। नहर पर सालाना खर्च अब तक बिरले ही 4 करोड़ रुपयों की सीमा को पार कर पाया। यदि निर्माण सामग्री और मजदूरी की दर स्थिर भी रहती तो भी इस निवेश की दर पर योजना के पूरा होने में कोई 35 साल का समय लगने वाला था, यानी धनिक लाल मंडल का हिसाब-किताब एकदम सही था और यह नहर अपने निर्माण के क्रम में 21वीं शताब्दी में आधी-अधूरी स्थिति में ही प्रवेश करने वाली थी।

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Post By: tridmin
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