हलक सूख रहा है
अकड़ रहा है शरीर
प्यास के मारे छटपटा रही है जान
सूखते-सूखते कुआँ को ऐसा ही लगा होगा
इसी तरह तड़पी होगी सूखते समय नदी
अपना पानी चुकते लख
मछलियों को देख मरते
आसमान की तरफ़ निहार-निहार
कितना छटपटायी होगी
अपनी बड़ी झील!!
अकड़ रहा है शरीर
प्यास के मारे छटपटा रही है जान
सूखते-सूखते कुआँ को ऐसा ही लगा होगा
इसी तरह तड़पी होगी सूखते समय नदी
अपना पानी चुकते लख
मछलियों को देख मरते
आसमान की तरफ़ निहार-निहार
कितना छटपटायी होगी
अपनी बड़ी झील!!
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