तो डूब जाएगा जकार्ता

तो डूब जाएगा जकार्ता
तो डूब जाएगा जकार्ता

(जकार्ता इंडोनेशिया की राजधानी है, जहाँ लगभग एक करोड़ लोग रहते हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े शहरों में से एक है। इस शहर में रहने वालों के पैरों तले ज़मीन खिसक रही है। बीते दस सालों में यह शहर ढाई मीटर ज़मीन में समा गया है। लोगों के घरों में समुद्र का पानी घुसता चला जा रहा है। लेकिन दलदली ज़मीन पर बसे इस शहर पर बड़ी हाउसिंग और कमर्शियल काम्पलेक्स का निर्माण कार्य लगातार जारी है। इंडोनेशिया के वैज्ञानिक संस्थानों ने जकार्ता की जमीन में होते बदलावों का अध्ययन किया है। उनका मानना है कि 2050 तक उत्तरी जकार्ता का 95% हिस्सा डूब जाएगा। - संपादकीय टिप्पणी)

मौसम में बदलाव हो रहा है। वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। इस के कारण ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं, जिन का पानी जा कर समुद्र में मिल रहा है। इस से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। अगर इसी रफ्तार से यह सब चलता रहा तो दुनिया के नक्शे से कई शहर मिट जाएंगे, जिन में एक जकार्ता (इंडोनेशिया की राजधानी) बहुत बड़ा नाम है।जकार्ता का तो अस्तित्व ही मिटता नजर आ रहा है। यहां जकार्ता की बात इसलिए हो रही है क्योंकि इंडोनेशिया अपनी राजधानी बदलने की तैयारी में है।

मनुष्य और जलवायु परिवर्तन

हम सभी ने कभी न कभी अपनी जिंदगी में जलवायु परिवर्तन के बारे में सुना होगा। ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज, ओजोन लेयर, वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की उच्च सांद्रता जैसे शब्दों को सुना होगा, बच्चों ने तो भूगोल में यह सब पढ़ा होगा और आज भी पढ़ रहे हैं। देश और विदेशों में इस की चर्चाएं होती रहती हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि यह कितना जरूरी है ?

ग्लोबल वार्मिंग के कारण धरती गरम ग्लेशियर पिघल रहे हैं। जब वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है, तब प्रकृति का विनाशकारी और भयंकर रूप दिखता है, जो अपने साथ सब कुछ तबाह कर ले जाता है। इस के कारण भयंकर तूफान, बाढ़, जंगल में आग, सूखा, भयंकर लू जैसी आपदाएं बढ़ जाती हैं। इस का ताजा उदाहरण आप हिमाचल से ले सकते हैं। इस बार बारिश और बाढ़ के कारण लगभग पूरा हिमाचल डूब गया। करोड़ों की तबाही हुई न जाने कितने लोगों ने अपनी जान गंवाई।

उत्तराखंड का भी यही हाल है। इस से भी चिंता करने की बात यह है कि समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। अगर यह इसी तरह बढ़ता रहा तो तटवर्ती देशों के डूबने का खतरा बनेगा।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले महीने एक जानकारी सामने आई कि इंडोनेशिया अपनी राजधानी बदल रहा है। अभी उस की राजधानी जकार्ता है। लेकिन यह शहर अक्सर प्राकृतिक आपदाओं से घिरा रहता है। कभी यहां भूकंप तो कभी बाढ़ अक्सर यहां पर कुछ न कुछ होता रहता है। लेकिन समस्या यह नहीं है। ऐसा नहीं है कि इस कारण राजधानी बदलने पर विचार कर रही है। दरअसल जकार्ता जावा सागर के किनारे बसा हुआ है। यह धीरे-धीरे समुद्र में समाता जा रहा है क्योंकि समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। इस के पीछे का कारण है ग्लोबल वार्मिंग, दुनिया के कई शक्तिशाली देशों ने वैश्विक मंच पर इस मुद्दे को उठाया है और इसे रोकने के भी प्रयास जारी है

2050 तक डूब जाएगा जकार्ता

इंडोनेशिया के अधिकारियों का  कहना है कि कि नई राजधानी एक फोरेस्ट सिटी होगा। उन का लक्ष्य 2045 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का है जिसे किसी भी तरह से वे हासिल करना चाहते हैं। लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञों ने सरकार को चेतावनी दी है। उनका तर्क है कि जब एक जंगल वाले इलाके को एक शहर में तब्दील करेंगे तो वहां पर बड़े पैमाने में पेड़ काटने पड़ेंगे। इस से प्रकृति, जीव-जंतुओं और वे लोग जो जंगलों में रहते हैं उन के लिए खतरा पैदा हो जाएगा।

माना जा रहा है कि 2050 तक जकार्ता 75 फीसदी तक हिस्सा पानी में डूब जाएगा। हालांकि अब आगे क्या होगा, इसका फैसला तो वहां की सरकार ही लेगी लेकिन यह तो तय है कि अगर राजधानी बदली को नुकसान और अमर ज्यादा होगा। 

जकार्ता में बढ़ रही है भीड़

इंडोनेशिया सरकार को जकार्ता के डूबने का डर है। इसलिए कैपिटल के लिए बोर्नियो द्वीप का चयन किया गया है। रिपोर्ट्स की मानें तो अगले साल तक इस का उद्घाटन किया जाएगा। हालांकि इस को तैयार होने में कम से कम 20 साल का समय लगेगा।

जकार्ता के हालात बहुत बुरे हैं। यहां पर आबादी बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है। यहां की जनसंख्या 1 करोड़ से ज्यादा है। यहां पर ट्रैफिक, प्रदूषण की भी बड़ी समस्या है। जब आबादी बढ़ती है तो प्रकृति के जरिए कुछ न कुछ नुकसान होता ही है।अब आप को बताते हैं कुछ रिपोर्ट्स के बारे में, जिन को कई शोधों और रिसर्च के बाद तैयार किया गया है।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर्देशीय पैनल की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि साल 1990 से 2100 के बीच समुद्री जल का स्तर 9 सेंटीमीटर से 88 सेंटीमीटर के बीच बढ़ सकता है। अब इस में कोई शक नहीं कि इस के पीछे ग्लोबल वार्मिंग है। यानी पूरी दुनिया में धरती का तापमान बढ़ रहा है। इस के पीछे कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन का बढ़ना है। इस को रोकने को लेकर दुनियाभर में कवायद चल रही है। अगर वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी होगी तो जाहिर सी बात है कि हीटिंग बढ़ेगी। इस से ग्लेशियर पिघलेंगे समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और पानी का तापमान भी बढ़ेगा।

क्या कहते हैं वैज्ञानिक

जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि इसको रोकने के लिए गैसों का उत्सर्जन कम करना होगा। अगर यह इसी स्पीड से जारी रहा तो खतरा बढ़ता जाएगा। नक्शों से न जाने कितने ही देशों के नाम मिट जाएंगे।जलवायु वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि पिछले 200 सालों में लगभग सभी वैश्विक तापमान के लिए मनुष्य जिम्मेदार मानवीय गतिविधियां ग्रीनहाउस गैसों का कारण बन रही हैं, जो कम से कम पिछले 2 हजार सालों में किसी भी समय की तुलना में दुनिया को तेजी से गरम कर रही हैं।

ऐसा नहीं है कि वैज्ञानिक प्रयास नहीं कर रहे हैं लेकिन देश में इतने जोरों पर कंस्ट्रक्शन के काम, पहाड़ों को काटना, समुद्रों में कैमिकल का बढ़ना, पेड़ों की कटाई इन सब को रोक पाना इतना आसान नहीं है और इन सब के जिम्मेदार केवल और केवल मनुष्य हैं।


स्रोत - सरिता, अक्टूबर 2023
 

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Post By: Shivendra
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