दो युवकों ने बदल दी झारखंड के एक प्यासे गांव की तस्वीर

दो युवकों ने बदल दी झारखंड के एक प्यासे गांव की तस्वीर
दो युवकों ने बदल दी झारखंड के एक प्यासे गांव की तस्वीर

 

दुनियाभर में पर्यावरण और जल संरक्षण का कार्य काफी तेजी से चल रहा है, लेकिन अधिकांश लोग इस कार्य को सोशल मीडिया पर स्टेटस डालकर अधिक कर रहे हैं। इसके बाद जल संरक्षण व्हाट्सअप्प आदि प्लेटफार्म पर फाॅरवर्ड मैसेज के रूप में देखने को मिलता है। स्पष्ट तौर पर हमारा जीवन सोशल मीडिया तक सीमित हो गया है और देश भीषट जल संकट का सामना कर रहा है, लेकिन झारखंड के दो युवकों ने इंटरनेट की ऑनलाइन दुनिया का सदुपयोग कर झारखंड के एक गांव की तस्वीर बदल दी। ये दोनों युवक मंगेश झा और शशांक सिंह हैं।

पिछली स्टोरी हमने रांची के रहने वाले मंगेश झा (मंगरु पैडमैन) के बारे में बताया था, जो ग्रामीण लड़कियों और महिलाओं को माहवारी के प्रति जागरुक कर रहे थे। वें महिलाओं को सेनेटरी पैड भी उपलब्ध करवाते थे। मंगेश तीन साल से झारखंड के छोटा नागपुर इलाके के इस मांव (रसाबेड़ा) में अपने सामाजिक अभियानों के तहत आ रहे थे। गांव में 28 परिवार रहते हैं। उन्होंने सभी को माहवारी के प्रति जागरुक तो किया, लेकिन गांव में पानी की बड़ी समस्या थी। गिरते जलस्तर के कारण हैंडपंपों किसी काम के नहीं रहे थे। गांव में स्वच्छ जलस्रोत का अभाव था, जिस कारण पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए ग्रामीण एकमात्र जलस्रोत चुआ (जलभर) पर निर्भर थे। 

जलभर से पानी भरने के लिए लड़कियों और महिलाओं को गांव से दूर जाना पड़ता था। ऐसे में पानी से भरे बर्तनों को उठाकर लाने से उनके शरीर को विभिन्न प्रकार से नुकसान तो उठाना ही पड़ता था। साथ ही जलभर का पानी भी साफ नहीं है। ऐसे में दूषित पानी से गांव में विभिन्न प्रकार की बीमारियों के पनपने का खतरा बना हुआ था। मंगेश ने गांव को जल संकट से निजात दिलाने का संकल्प लिया, लेकिन सबसे बड़ा सवाल था कैसे ?

कहते हैं जिंदगी में अच्छा कार्य करने की सोचों तो राह अपने आप बन जाती है। ऐसा ही मंगेश के साथ हुआ। उनकी मुलाकात एक बार शशांक से हुई। बातों बातों में पता चला कि शशांक चार सालों से जल संरक्षण के लिए कार्य कर रहा है। एसबीआई फेलोशिप के अंतर्गत जल संरक्षण के काफी कार्य किए हैं। संयोगवश ही सही, लेकिन मंगेश को एक साथी मिल गया था और उसके देर किए बिना शशांक को रसाबेड़ा आकर गांव के लिए कुछ करने के लिए कहा। उन्होंने तुरंत हां कर दी और दोनों ने मिलकर ‘ग्राउंड वाॅटर एंड रिफाॅरेस्टेशन एडप्टिव मैनेजमेंट ऐसोसिएशन’ नाम से संगठन की स्थापना की। अपने पहले प्रोजेक्ट के तौर पर उन्होंने ‘रसाबेड़ा पेयजल परियोजना’ पर काम किया। 

शशांक ने इंडिया वाटर पोर्टल को बताया कि 

सबसे पहला काम ग्रामीणों को इस काम के लिए तैयार करना था। उनका भरोसा जीतना था। क्योंकि हम कुछ भी चीज़ बनाकर ऐसे ही छोड़ देना नहीं चाहते थे। क्योंकि इससे समाधान कुछ समय के लिए ही होता है। इसलिए हम बार बार गांव वालों के बीच जाते रहे। किसी भी कार्य को करने के लिए लोगो का सहयोग जरूरी होता है। हमने लोगों को सहयोग के लिए तैयार किया। साथ ही उन्हें समझाया कि जो भी कार्य किया जाएगा उसके रखरखाव की जिम्मेदारी भी उनकी ही होगी।

किसी भी कार्य को करने से पहले उसका ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है। शशांक और मंगेश ने पहले की निर्धारित कर लिया था कि क्या और कैसे करना करना था। गांवा वालों को मनाने के बाद दूसरा काम फंड जुटाने का था। क्योंकि उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे और उन्होंने इस प्रोजेक्ट के लिए 2 लाख 75 हजार रुपये का बजट तय किया था। उन्होंने गांव की ऑफलाइन दुनिया को बदलने के लिए ऑनलाइन दुनिया (इंटरनेट) का सहारा लिया। एक क्राउडफंडिंग अभियान लगाया। अभियान से लगभग 2 लाख 20 हजार रुपये इकट्ठा हुए। बाकी के पैसे दोनों ने अपनी जेब से लगाए। हालांकि इसमें थोड़ा समय जरूर लगा।

जलभर जमीन की सतह के नीचे चट्टानों का एक एसो संस्तर होता है, जहां भूजल एकत्रित होता है और फिर यहीं से ऊपर निकाला जाता है। इसलिए सबसे पहले सबसे पहले उपलब्ध पानी का उपयोग करना था, जिसके लिए जलभर के पानी को ग्रेविटी फ्लो के साथ ऊपर लाना था। इसके लिए हमने गांव के एक प्राइमरी स्कूल के पास 13500 लीटर की क्षमता का स्टोरेज टैंक बनवाया। पानी की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए फिल्टर लगाए। 

फंड आने के बाद दोनों ने काम शुरु कर दिया था। वैसे तो जलभर गांव से थोड़ी दूरी पर था, लेकिन पाइप की मदद से उसका पानी प्राइमरी स्कूल में लगाए बए सेप्टिक टैंक तक लाया गया। स्कूल पर छत पर 1500 लीटर की पानी की टंकी थी, जिसमें पानी नहीं था। टंकी में पानी न होने के कारण स्कूल के शौचालय भी उपयोग में नहीं लाए जाते थे। सेप्टिक से टैंक से स्कूल की छत पर लगे टैंक तक पानी पहुंचाया गया। इससे शौचालय चालू हो गए। पानी लाने के लिए स्कूल को ही एक काॅमन प्वाइंट बनाया, क्योंकि गांव के हर घर तक पानी पहुंचाना संभव नहीं था और स्कूल सभी के घरों के पास भी है। इससे लोगों को पानी लाने के लिए अब जलभर के पास नहीं जाना पड़ता और फिल्टर लगने के कारण साफ पानी मिलता है।

इसके बाद का कार्य बारिश के पानी का संचयन था। वर्षाजल संचयन के लिए स्कूल की छप पर पाइप लगाए गए। पाइप के माध्यम से छत से पानी का कनेक्शन नीचे स्टोरज टैंक से पास बनाए एक गड्ढे से कर दिया। लोगों की पीने के पानी के अलावा नहाने और कपड़े धोने जैसी रोजाना की पानी की जरूरत भी पूरी हो, इसके लिए 5600 लीटर का एक रिजर्वायर बनाया गया। इससे अब गांव में पानी की समस्या हल हो गई है। पानी क्या लौटा मानों गांव वालों की खुशी लौट आई। इसका श्रेय शशांक और मंगेश को जाता है, जिन्होंने सभी चुनौतियों का सामना हंस कर किया। 

शशांक और मंगेश अपने इस कार्य के लिए पास के ही एक गांव की किसान और समाजसेविका माया बेदिया दीक्षा एनजीओ को धन्यवाद देते है। इस कार्य में माया ने खुद उनके साथ श्रमदान भी किया। साथ ही शशांक सुझाव देते हुए कहते हैं कि जल संकट से बचने के लिए कुओं, तालाब और झील आदि जलस्रोतों को सहेजने की जरूरत है। जलस्रोतों को हमें नियमित रूप से साफ रखना होगा, ताकि बारिश के समय अधिक से अधिक पानी को सहेज पाएं। इसके लिए जल संरक्षण केवल एक शब्द न रहे, बल्कि लोगों के जीवन में भी आत्मसात हो। 
 


हिमांशु भट्ट (8057170025)

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Post By: Shivendra
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