दिल्ली में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है, और स्मोग ने उसको और खतरनाक बना दिया है। एक्यूआई यानी एयर-क्वालिटी-इंडेक्स बता रहा है कि दिल्ली की हवा दम घोंट रही है। दिल्ली सरकार दम घोंटू हवा से राहत के लिए क्लाउड सीडिंग को एक समाधान के रूप में देख रही है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बढ़ते प्रदूषण स्तरों से निपटने के एक उपाय के रूप में क्लाउड सीडिंग को ट्रिगर करने का प्रयास करने की घोषणा की है। राय ने बारिश को उत्तेजित करने के लिए क्लाउड सीडिंग के लिए आईआईटी कानपुर में एक बैठक की। प्रारंभिक पूर्वानुमानों से सुझाव दिया जा रहा है कि 20-21 नवंबर को बादलों के आवरण की संभावना है, और मंजूरी के बाद, योजना के लागू होने की तारीख इन दिनों को ही तय किया जा सकता है।
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग या आर्टिफिशियल रेनमेकिंग की जरूरत क्यों
दुनिया के सभी हिस्सों में शहरी क्षेत्रों में कई स्वास्थ्य समस्याओं के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है। राष्ट्रीय राजधानी में हवा की गुणवत्ता सर्दी में बार-बार 'गंभीर' श्रेणी में बनी रही है, अधिकांश वायु निगरानी स्टेशनों ने एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) 400 से अधिक बार-बार दर्ज किया है। 401-500 की सीमा में एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) को 'गंभीर' श्रेणी में रखा गया है, जबकि 301-400 के बीच एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) बहुत ख़राब है।, और 201-300 ख़राब है। दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से वायु गुणवत्ता बेहद खराब और गंभीर श्रेणी की बार-बार दर्ज की जा रही है। कनाडा जैसे देशों में तो 3 एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) पर अलर्ट हो जाता है।
हाल ही में, दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति में प्रदूषकों के स्तर और उन्हें कम करने के लिए उठाए गए नियंत्रण उपायों के संदर्भ में कई बदलाव आए हैं। दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति और स्वास्थ्य पर इसके प्रभावों और नियंत्रण उपायों पर साक्ष्य-आधारित अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। बहुत पहले सितंबर 2011 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी शहरी वायु डेटाबेस ने बताया कि दिल्ली में अधिकतम PM10 सीमा 198 μg/m3 से लगभग 10 गुना अधिक हो गई है। वाहन उत्सर्जन और औद्योगिक गतिविधियाँ दिल्ली में इनडोर और आउटडोर वायु प्रदूषण से जुड़ी पाई गईं। दिल्ली में वायु प्रदूषण और मृत्यु दर पर अध्ययन में पाया गया कि बढ़ते वायु प्रदूषण के साथ सभी प्राकृतिक कारणों से होने वाली मृत्यु दर और रुग्णता में वृद्धि हुई है। दिल्ली ने पिछले 10 वर्षों के दौरान शहर में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। हालाँकि, वायु प्रदूषण के स्तर को और कम करने के लिए अभी भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। लेकिन उम्मीद फिलहाल है नहीं किसी भी सरकार से। इसलिए दीर्घकालिक उपायों की तो छोड़ ही दीजिए। किए जाने लायक तुरंता-उपायों में फिलहाल की दिल्ली सरकार एक नए समाधान - क्लाउड सीडिंग - पर विचार कर रही है। इस तकनीक में बारिश कराने और प्रदूषकों को दूर करने के प्रयास में बादलों में सीडिंग-कणों का छिड़काव शामिल है।
बारिश कैसे प्रदूषकों को नीचे खींच लेती है
दिल्ली सरकार वातावरण से प्रदूषण को दूर करने में मदद के लिए क्लाउड सीडिंग और वर्षा का उपयोग करने का प्रयास कर रही है। कुछ प्रयोगों से पता चला है कि बारिश वास्तव में प्रदूषक कणों को पानी की बूंदों की ओर आकर्षित करके और उन्हें वायु को धोकर साफ करने में मदद कर सकती है।
अध्ययनों से पता चला है कि उपयोग की जाने वाली बूंदें जितनी छोटी होंगी, वे उतने ही अधिक कणों को पकड़ सकती हैं। इस प्रक्रिया को जमावट कहा जाता है, और इसके लिए पानी को एक उच्च दबाव वाले नोजल के माध्यम से ‘एरोसोलाइज्ड’ तरीके से बहुत महीन स्प्रे के रूप में छिड़का जाता है।
हालाँकि, प्रदूषण के कणों और बूंदों के बीच के समीकरण को अच्छी तरह से समझा नहीं जा सका है- यह स्पष्ट नहीं है कि किस आकार की पानी की बूंदें किस प्रकार के प्रदूषकों के साथ जमा कर सकती हैं। बारीक बूंदें कितनी कुशलता से वायुमंडल से प्रदूषण के कणों को धो सकती हैं।
क्या है क्लाउड सीडिंग या आर्टिफिशियल रेनमेकिंग
नभाटा की रिपोर्ट के अनुसार क्लाउड सीडिंग एक मौसम संशोधन तकनीक है जो बादलों पर विभिन्न पदार्थों को छोड़कर बारिश या बर्फ को उत्तेजित करने का लक्ष्य रखती है। इसके लिए सिल्वर आयोडाइड या ड्राई आइस (ठोस कार्बन डाईऑक्साइड) को रॉकेट या हवाई जहाज के ज़रिए बादलों पर छोड़ा जाता है। विमान में सिल्वर आयोडाइड के दो बर्नर या जनरेटर लगे होते हैं, जिनमें सिल्वर आयोडाइड का घोल हाई प्रेशर पर भरा होता है। जहां बारिश करानी होती है, वहां पर हवाई जहाज हवा की उल्टी दिशा में छिड़काव किया जाता है। कहां और किस बादल पर इसे छिड़कने से बारिश की संभावना ज्यादा होगी, इसका फैसला मौसम वैज्ञानिक करते हैं। इसके लिए मौसम के आंकड़ों का सहारा लिया जाता है। इस प्रक्रिया में बादल हवा से नमी सोखते हैं और कंडेस होकर उसका मास यानी द्रव्यमान बढ़ जाता है। इससे बारिश की भारी बूंदें बनती हैं और वे बरसने लगती हैं।
इस तकनीक का उद्देश्य वर्षा को उत्तेजित करना होता है और बारिश या बर्फ को बारिश करने के लिए बनाया जाता है। हाल के दिनों में, नासिक में पानी प्रदान करने के लिए क्लाउड सीडिंग की कोशिश की जा रही है। इसी तरह, आंध्र प्रदेश ने भी बारिश को उत्तेजित करने के लिए क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया है। चीन जैसे देशों में आर्टिफिशयल रेनमेकिंग पुरानी बात हो चुकी है। इस तकनीक का उपयोग हवाई अड्डों में धुंध और बादल कम करने के लिए भी किया जाता है।
कब-कब किया जाता है क्लाउड सीडिंग या आर्टिफिशियल रेनमेकिंग
- वातावरण को साफ़ करना: क्लाउड सीडिंग के माध्यम से होने वाली वर्षा हवा से कण पदार्थ और प्रदूषकों को हटाने में मदद कर सकती है। वर्षा की बूंदें हवा में मौजूद प्रदूषण-कणों को पकड़ लेती हैं और अपने साथ यानी पानी में घोल लेती हैं, ऐसे उन्हें वायुमंडल से बाहर निकाल देती हैं, जिससे हवा स्वच्छ हो जाती है।
- वायुजनित प्रदूषकों में कमी: कृत्रिम बारिश धूल, धुएं और रसायनों सहित प्रदूषकों की सांद्रता को कम करने में मदद कर सकती है, उन्हें वायुमंडल से बाहर निकालकर जमीन पर जमा कर सकती है।
- स्मॉग और धुंध को कम करना: क्लाउड सीडिंग स्मॉग और धुंध को फैलाने में मदद कर सकती है, जिससे हवा साफ और अधिक सांस लेने योग्य हो जाती है, जिसका शहरी क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- जंगल की आग को नियंत्रित करना: जंगल की आग की आशंका वाले क्षेत्रों में, क्लाउड सीडिंग का उपयोग वर्षा को प्रेरित करने और आग बुझाने में मदद करने के लिए किया जा सकता है, जिससे वायुमंडल में धुएं और प्रदूषकों की रिहाई को रोका जा सकता है।
- कृषि लाभ: कृत्रिम बारिश फसलों के लिए आवश्यक नमी प्रदान करके कृषि को भी लाभ पहुंचा सकती है। इससे सिंचाई के पानी के उपयोग को कम करने में मदद मिल सकती है, जो खेती में इस्तेमाल होने वाले रसायनों के कारण प्रदूषण का एक स्रोत हो सकता है।
प्रदूषण को कम करने में क्लाउड सीडिंग की प्रभावशीलता स्थानीय मौसम की स्थिति, प्रदूषकों के प्रकार और ऑपरेशन के विशिष्ट लक्ष्यों के आधार पर भिन्न हो सकती है।
क्या क्लाउड सीडिंग दिल्ली में प्रभावी रहेगी
क्लाउड सीडिंग की अवधारणा नई नहीं है और सौ से अधिक वर्षों से इसका प्रयास किया जा रहा है। प्रसिद्ध वृत्तांतों में से एक अमेरिकी "रेनमेकर" चार्ल्स हैटफील्ड नाम याद किया जाता है। जिन्होंने 1915 में कृत्रिम बारिश का दावा किया था। आज के क्लाउड-सीडिंग कण भी जहरीले हैं। बीजारोपण के लिए बादल में छिड़के गए कण आमतौर पर सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड, तरल प्रोपेन, लवण और सूखी बर्फ होते हैं। सिल्वर आयोडाइड को लंबे समय तक संपर्क में रहने पर स्तनधारियों को नुकसान और विकलांगता का कारण बनने की संभावना की जाती है। हालांकि क्लाउड-सीडिंग के लिए उपयोग की जाने वाली मात्रा से इन प्रभावों का कारण बनने की संभावना से वैज्ञानिक इंकार करते हैं।
दिल्ली में उपयोग किए जाने पर भी, डेटा और प्रभाव स्पष्ट नहीं हैं। यदि एंटी-स्मॉग गन, जो एरोसोलिज्ड पानी का छिड़काव करती हैं, को वायु गुणवत्ता सेंसर के पास रखा जाता है, तो कम प्रदूषण रीडिंग प्राप्त होती है, जो जरूरी नहीं कि किसी स्थान के वास्तविक AQI को प्रतिबिंबित करती हो।
क्या दर्शाता है यह एक्यूआई-वायु गुणवत्ता सूचकांक, इसे कैसे जा सकता है समझा?
डाउन2अर्थ के अनुसार देश में वायु प्रदूषण के स्तर और वायु गुणवत्ता की स्थिति को आप इस सूचकांक से समझ सकते हैं जिसके अनुसार यदि हवा साफ है तो उसे इंडेक्स में 0 से 50 के बीच दर्शाया जाता है। इसके बाद वायु गुणवत्ता के संतोषजनक होने की स्थिति तब होती है जब सूचकांक 51 से 100 के बीच होती है। इसी तरह 101-200 का मतलब है कि वायु प्रदूषण का स्तर माध्यम श्रेणी का है, जबकि 201 से 300 की बीच की स्थिति वायु गुणवत्ता की खराब स्थिति को दर्शाती है। वहीं यदि सूचकांक 301 से 400 के बीच दर्ज किया जाता है जैसा दिल्ली में अक्सर होता है तो वायु गुणवत्ता को बेहद खराब की श्रेणी में रखा जाता है। यह वो स्थिति है जब वायु प्रदूषण का यह स्तर स्वास्थ्य को गंभीर और लम्बे समय के लिए नुकसान पहुंचा सकता है।
इसके बाद 401 से 500 की केटेगरी आती है जिसमें वायु गुणवत्ता की स्थिति गंभीर बन जाती है। ऐसी स्थिति होने पर वायु गुणवत्ता इतनी खराब हो जाती है कि वो स्वस्थ इंसान को भी नुकसान पहुंचा सकती है, जबकि पहले से ही बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए तो यह जानलेवा हो सकती है।
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