ध्रुवीय समुद्र और उनकी जैवविविधता

ध्रुवीय समुद्र और उनकी जैवविविधता
ध्रुवीय समुद्र और उनकी जैवविविधता

पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के आस-पास के क्षेत्र 'ध्रुवीय क्षेत्र' कहलाते हैं। उत्तर ध्रुवीय क्षेत्र, जिसे 'आर्कटिक' कहा जाता है, जिसमें पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव, ध्रुव के आस-पास का उत्तरी ध्रुवीय महासागर और इससे जुड़े आठ आर्कटिक देश कनाडा, ग्रीनलैंड, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका ( अलास्का), आइसलैंड, नार्वे, स्वीडन और फिनलैंड के भूखंड शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत वर्तमान में उत्तरी ध्रुव या आर्कटिक महासागरीय क्षेत्र पर किसी भी देश का अधिकार नहीं है। इससे संलग्न देश अपनी सीमाओं के 200 समुद्री मील ( 370 कि.मी.) तक के अनन्य आर्थिक क्षेत्र तक सीमित हैं और इसके आगे के क्षेत्र का प्रशासन इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी के अंतर्गत आता है।

दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र, जिसे अंटार्कटिका कहा जाता है, में अंटार्कटिका महाद्वीप और उसके आस-पास का दक्षिणी महासागर शामिल है। अंटार्कटिका महाद्वीप पर भी दुनिया के किसी एक देश का अधिकार नहीं है। बल्कि यहाँ दुनिया के विभिन्न देश मिल-जुलकर केवल वैज्ञानिक अनुसंधान करते हैं। इसलिए इस क्षेत्र को संरक्षित करने एवं असैन्यीकृत क्षेत्र बनाने के लिए 01 दिसंबर, 1959 को वाशिंगटन में 12 देशों के बीच अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। इन 12 मूल हस्ताक्षरकर्ताओं में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, चिली, फ्रांस, जापान, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, सोवियत संघ, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल थे। यह अंटार्कटिक संधि वर्ष 1961 में लागू हुई, तत्पश्चात इसे दूसरे अन्य देशों ने भी स्वीकार किया है। वर्ष 1983 में भारत इस सौधे का सदस्य बना और वर्तमान में इसमें 54 पक्षकार हैं।

इन दोनों ध्रुवों की सुदूर भूमि तथा उनके आस-पास के ध्रुवीय क्षेत्रों में आने वाले समुद्रों को 'ध्रुवीय समुद्र' कहा जाता है। इस प्रकार पृथ्वी के दोनों ध्रुवीय क्षेत्रों में दो बड़े महासागर अर्थात 'आर्कटिक महासागर' और 'दक्षिणी महासागर' आते हैं। इन दोनों में समाने वाले समस्त समुद्र ध्रुवीय समुद्रों की श्रेणी में आते हैं। समुद्र और महासागर में बड़ा अंतर होता है, एक तो महासागर समुद्रों से कहीं अधिक गहरे होते हैं, वहीं दूसरी ओर समुद्र स्थलों के निकट होते हैं, जबकि महासागर प्रायः स्थलों से काफी दूर होते हैं। समुद्रों में नदियाँ अपने जल को गिराती हैं। और समुद्र अपने जल को महासागरों में खाली करते हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों में मिलने वाली नदियों को 'हिमनद से संबोधित किया जाता है क्योंकि इनमें जल के स्थान पर सख्त बर्फ होती है, जो विशाल हिमशिलाखंडों के रूप में ध्रुवीय समुद्रों और महासागरों में निरंतर चलायमान होती है।

ध्रुवीय भूमि और ध्रुवीय महासागरों तथा ध्रुवीय समुद्रों के प्राकृतिक परिदृश्य प्रारंभ से ही मानव जाति के लिए कौतूहल का विषय रहे हैं। विशेष तौर पर वैज्ञानिकों को ये क्षेत्र अधिक मोहित करते आए हैं, क्योंकि इन पर जितने भी विस्तार से वे शोध करते हैं, उन्हें वे उतने ही कम से लगते हैं। व्यावहारिक रूप से अति दुर्गम ध्रुवीय समुद्रों को वैज्ञानिक एक ओर अनावरित करते हैं, तो वहीं दूसरी ओर नए-नए अचंभों के घूँघटों में छिपे ध्रुवीय समुद्रों के सम्मोहन उन्हें बाँधते चले जाते हैं। एक और बात यह भी है कि यद्यपि दोनों ध्रुवों की उत्पत्ति और वहाँ हिम निर्माण और जल के स्थान पर बर्फ  से आच्छादित समुद्रों के विविध पहलुओं का इतिहास बहुत कुछ कहता है, लेकिन फिर भी अनगिनत पहलू आज तक विज्ञान के लिए गहरी पहेली बने हुए हैं। कई मूलभूत वैज्ञानिक प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं, जैसे-आर्कटिक और अंटार्कटिका में बर्फ  की मोटी चादरों के नीचे वास्तव में क्या छिपा है? आर्कटिक महासागर की उत्पत्ति कैसे हुई? ध्रुवीय क्षेत्रों में कितने समुद्र हैं? ध्रुवों और ध्रुवीय समुद्रों में कितनी जैवविविधता समाई हुई है, आदि और भी बहुत से प्रश्न मुँह खोले खड़े हुए हैं।

अपनी शोध मेधा के बल पर दुनिया के समुद्र वैज्ञानिकों ने उत्तर ध्रुवीय क्षेत्र को जितना समझा और परखा है, उसके आधार पर यह सुनिश्चित हो पाया है कि इस क्षेत्र का सबसे बड़ा महासागर आर्कटिक महासागर है। अतः उत्तर ध्रुवीय क्षेत्र को 'आर्कटिक क्षेत्र' के नाम से भी जाना जाता है। आर्कटिक महासागर का क्षेत्रफल 14,056,000 वर्ग किलोमीटर है और इसकी समुद्री तटरेखा 45,390 कि.मी. लंबी है। आर्कटिक महासागर यूरेशिया के भूखंडों, उत्तरी अमेरिका, ग्रीनलैंड और अनेक द्वीपों द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है। हालाँकि आर्कटिक महासागर संसार का चौथा महासागर है और आकार में सबसे छोटा है। आर्कटिक बेसिन ब्यूफोर्ट समुद्र के उत्तरी भाग में स्थायी हिमपुंज के सीमांतों से लेकर ग्रीनलैंड के उत्तरी छोर तक फैला हुआ है। यह क्वीन एलिजाबेथ द्वीप के उत्तरी सीमांत से लेकर एलेसमियर द्वीप के अंतिम छोर तक भी विस्तारित है।

आर्कटिक महासागर में ऊबड़-खाबड़ वृत्ताकार बेसिन हैं तथा यह बेरिंग जलडमरूमध्य द्वारा प्रशांत महासागर से और ग्रीनलैंड सागर लेब्रेडोर सागर के माध्यम से अटलांटिक महासागर से जुड़ा हुआ है। आर्कटिक महासागर के अंतर्जलीय रिजों के कारण आर्कटिक बेसिन में अनेक उपबेसिन भी बने हुए हैं। केवल लगभग 200 मीटर चौड़ी और 1500 कि.मी. तक सीधी रेखाओं के रूप में फैली ये उपसमुद्री रिज एकदम खड़ी और संकीर्ण हैं। इन रिजों में बहुत-सी चोटियाँ और घाटियाँ भी मिलती हैं। 'लोमोनोसोव' नामक रिज एक केंद्रीय उपसमुद्री रिज है जो एलेसमियर द्वीप से लेकर न्यू साइबेरियन द्वीप तक 1770 कि.मी. में फैली है। यह रिज गहरे समुद्र, उत्तर ध्रुवीय आर्कटिक बेसिन को दो महासागरीय बेसिनों, यूरेशियन बेसिन जो 'नेनसन बेसिन' भी कहलाता है और अमेरेसियन बेसिन जो उत्तर अमेरिकी या 'हाइपरबोरिन बेसिन' भी कहलाता है, में विभक्त करती है। यूरेशियन बेसिन 4,000 से 4,500 मीटर गहरा है, जबकि अमेरेसियन बेसिन लगभग 4,000 मीटर गहरा है।

आर्कटिक महासागर

आर्कटिक महासागर में यूरेशियन बेसिन के अंदर 'नेनसन - गेकल' नामक रिज पूर्व से पश्चिम की ओर फैली है जो इस बेसिन को भूगोलीय उत्तरी ध्रुव इसी फ्राम बेसिन के
'उत्तरी फ्राम बेसिन' और 'दक्षिणी नेनसन बेसिन' में विभक्त करती है। तल के ऊपर स्थित है। नेनसन बेसिन आर्कटिक महासागर के भीतर उपबेसिनों में सबसे छोटा बेसिन एल्फा है। मेण्डलीय रिज 'अमेरसियन बेसिन' को 'केनेडियन बेसिन' और 'मेकेरोव 'बेसिन' में विभाजित करती है। मेकेरोव बेसिन में दो वितलीय मैदान हैं, जिनमें से एक 'रैंगल' और दूसरा बहुत गहरा 'साइबेरियन बितलीय मैदान है, जो समुद्री सतह से नीचे 4,000 मीटर पर स्थित है। केनेडियन बेसिन आर्कटिक महासागर का सबसे बड़ा उप - बेसिन है, जिसमें 'चकची' और 'मेण्डलीव' नामक दो बड़े वितलीय मैदान आते हैं जो 2,100 और 2,900 मीटर की गहराई पर मिलते हैं। केनेडियन वितलीय मैदान भी केनेडियन बेसिन में ही स्थित है और यह आर्कटिक महासागर का सबसे गहरा क्षेत्र है, जिसकी गहराई लगभग 3,850 मीटर है।

आर्कटिक महासागर के समुद्रतल में भी फाल्टब्लॉक रिज, वितलीय मैदान, महासागरीय गहराइयाँ और बेसिन पाए जाते हैं। आर्कटिक महासागर की औसत गहराई 1,038 मीटर है। सबसे गहरा बिंदु यूरेशियन बेसिन में 5,450 मीटर गहराई पर स्थित है। आर्कटिक महासागर ही एकमात्र ऐसा महासागर है, जिसके कुल क्षेत्रफल का लगभग एक तिहाई भाग महाद्वीपीय मग्नतट से घिरा है, जो अनियमित रूप से फैला हुआ है। अलास्का के उत्तर और ग्रीनलैंड में मग्नतट की चौड़ाई 60 से 120 मील है, इसके विपरीत साइबेरियन व चुकची मग्नतट 300 से 1100 मील चौड़े हैं।

अब यदि दक्षिण ध्रुवीय महासागर यानी दक्षिणी महासागर की बात की जाए तो यह क्षेत्रफल की दृष्टि से आर्कटिक महासागर से बड़ा है। दक्षिणी महासागर को 'अंटार्कटिक महासागर' और 'ऑस्ट्रल महासागर' के नामों से भी जाना जाता है। विश्व महासागर दिवस यानी 08 जून 2021 को नेशनल ज्योग्राफिक सोसाइटी ने 'दक्षिणी महासागर' को दुनिया के पाँचवें महासागर के रूप में आधिकारिक तौर पर मान्यता देने की घोषणा की थी। वैसे तो पिछले कई वर्षों से दुनिया के भूवैज्ञानिक और समुद्र वैज्ञानिक दक्षिणी महासागर को मान्यता देते आए थे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कभी समझौता नहीं हुआ था, इसलिए नेशनल ज्योग्राफिक सोसाइटी ने इसके पहले आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी थी।

"दक्षिणी महासागर के अंटार्कटिक परिध्रुवीय धारा के आधार पर कार्टोग्राफर्स का मानना है कि यह महासागर सबसे हाल में बना महासागर है। उनके अनुसार दक्षिणी महासागर आज से करीब तीन करोड़ साल पहले बना था, जब अंटार्कटिका और दक्षिण अमेरिका एक-दूसर से अलग हुए थे। पूर्णतया दक्षिणी गोलार्ध में स्थित दक्षिणी महासागर अंटार्कटिका महाद्वीप को घेरे हुए 60 डिग्री दक्षिण अक्षांश तक फैला हुआ है। प्रायः तो दक्षिणी महासागर 4,000 से 5,000 मीटर तक गहरा है, केवल कुछ सीमित क्षेत्रों पर ही इसकाजल उथला है।"


दक्षिणी महासागर के अंटार्कटिक परिध्रुवीय धारा के आधार पर कार्टोग्राफर्स का मानना है कि यह महासागर सबसे हाल में बना महासागर है। उनके अनुसार दक्षिणी महासागर आज से करीब तीन करोड़ साल पहले बना था, जब अंटार्कटिका और दक्षिण अमेरिका एक-दूसरे से अलग हुए थे। पूर्णतया दक्षिणी गोलार्ध में स्थित दक्षिणी महासागर अंटार्कटिका महाद्वीप को घेरे हुए 60 डिग्री दक्षिण अक्षांश तक फैला हुआ है। प्रायः तो दक्षिणी महासागर 4,000 से 5,000 मीटर तक गहरा है, केवल कुछ सीमित क्षेत्रों पर ही इसका जल उथला है। अंटार्कटिका महाद्वीपीय मग्नतट सामान्यतया संकीर्ण है, परंतु यह असामान्य रूप से गहरा है। इसके सीमांतीय किनारे 800 मीटर गहराई तक फैले हैं। दक्षिणी महासागर की अधिकतम गहराई 7,286 मीटर मापी गई है, जो 60 डिग्री दक्षिण व 24 डिग्री पश्चिम पर साउथ सैंडविच ट्रेंच के दक्षिणी छोर पर स्थित है। दक्षिणी महासागर का सबसे संकीर्णतम क्षेत्र 'ड्रेक मार्ग' है, जो 600 मील अर्थात लगभग 1,000 कि.मी. चौड़ा है तथा दक्षिण अमेरिका और अंटार्कटिका प्रायद्वीप के शिखर के मध्य स्थित है। 

दक्षिणी महासागर

दक्षिणी महासागर के अंदर भी अन्य महासागरों की भाँति महासागरीय बेसिन, पर्वत श्रृंखलाएँ, गर्त, बितलीय मैदान पाए जाते हैं। इसके दूरस्थ उत्तरी भागों में अधिकतम 14,800 फीट (4,500 मीटर) गहराई पर महासागरीय बेसिन हैं। समुद्र तल से नीचे लगभग 2,000 मीटर से कम गहराई पर महासागरीय बेसिनों से निर्मित महासागरीय पठार भी हैं, जो अपेक्षाकृत समतल क्षेत्र हैं। इस तरह के पठारों में प्रमुख रूप से केम्पबेल या न्यूजीलैंड पठार शामिल हैं, जो न्यूजीलैंड के दक्षिण-पूर्व से उठकर केम्पबेल द्वीपों से परे दक्षिण की और विस्तारित हैं। दक्षिणी महासागर 'वेमा चैनल' के माध्यम से अटलांटिक महासागर से जुड़ा है। इसी तरह क्रोजेट- करगुएलेन गेप द्वारा यह हिंद महासागर से जुड़ा है।

अंटार्कटिक ध्रुवीय समुद्र

इन दोनों ध्रुवीय महासागरों में असंख्य ध्रुवीय समुद्र मिलते हैं। आर्कटिक महासागर में समाने वाले ध्रुवीय समुद्रों के अंतर्गत बाफन खाड़ी, बेरेण्ट्स सागर, ब्यूफोर्ट सागर, चुकची सागर, पूर्व साइबेरियाई सागर, ग्रीनलैंड सागर, हडसन खाड़ी, हडसन जलडमरूमध्य कारा सागर, लापटेव सागर, श्वेत सागर और जल  के अन्य सहायक निकाय शामिल हैं। वहीं दक्षिणी महासागर के अंतर्गत, स्कोशिया सागर, वेडेल सागर, किंग हेकान VII सागर, लाज़ारेव सागर, राइज़र - लार्सन सागर, कास्मोनाट सागर, कोऑपरेशन सागर, डेविस सागर, मॉसन सागर, डी उरविले सागर, सोमोव सागर, रॉस सागर, अमण्डसेन सागर, बेलिंगशॉसेन आदि ध्रुवीय समुद्र आते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि दक्षिणी ध्रुवीय समुद्रों में तैरने वाले समुद्री हिमखंडों के नीचे निवास कर रही जैवविविधता की खोज अब भी बहुत अधिक शेष है। ऐसे हिमखंड अंटार्कटिका महाद्वीप का लगभग पंद्रह लाख वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र घेरते हैं, लेकिन अभी तक वैज्ञानिकों ने मात्र टेनिस कोर्ट के क्षेत्रफल के बराबर के क्षेत्र का ही अन्वेषण किया है।

यह सर्वविदित है कि समुद्र, महासागरों की तुलना में कम गहरे होते हैं। महासागरों की गहराई इतनी अधिक होती है कि वहाँ तक सूर्य प्रकाश नहीं पहुँच पाता जिससे जीवों के लिए ये उपयुक्त निवास नहीं हो सकते। यही कारण है कि चाहे सामान्य समुद्र हों या फिर ध्रुवीय समुद्र हों, विविध समुद्री पादप और जीवजंतु अपने निवास स्थल के लिए इन समुद्रों को ही चुनते हैं। ध्रुवीय समुद्र सदियों से पृथ्वी पर जलवायु को संयमित करने, भोजन और ऑक्सीजन उपलब्ध कराने साथ ही जैवविविधता को अक्षुण्ण बनाए रखने में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं।

दोनों ध्रुवीय क्षेत्रों के ध्रुवीय समुद्र अपनी अद्वितीय जैवविविधता से समृद्ध हैं। हालाँकि इन समुद्रों में वनस्पति बहुत कम मिलती है, या यूँ कहें कि इनमें पेड़-पौधों के नाम पर पादपप्लवकों और शैवालों की कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं। ये समस्त पादपप्लवक और शैवाल ही ध्रुवीय समुद्री खाद्य श्रृंखला में प्रमुख प्राथमिक उत्पादक होते हैं। ये सूक्ष्मपादप ही प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा समुद्र में ऑक्सीजन की अधिकतर मात्रा को बनाने के लिए उत्तरदायी होते हैं। साथ ही, वहाँ निवास करने वाले दूसरे जीवों जैसे प्राणीप्लवकों, क्रिलों, मछलियों, समुद्री स्तनपायियों, पक्षियों आदि के लिए प्रमुख खाद्य स्रोत भी होते हैं।

हालाँकि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवीय समुद्रों में मिलने वाले प्राणियों में बहुत अधिक अंतर पाया जाता है। उत्तरी ध्रुवीय समुद्रों में बेलियन व्हेल, मैकेरल, चार, कॉड, हलिबूट, ट्राउट, ईल और शार्क रहते हैं। आर्कटिक क्षेत्र में रहने वाले पक्षी जैसे स्वांस, चौती, मल्लेगार्ड, मर्गेनर, बफले, गाउन्स, लून, ओस्प्रे, गंजा ईगल, बाज, गल, टर्न, पफिन, उल्लू, कठफोड़वा, गौरैया आदि तथा कुछ छोटे स्तनधारी जैसे कि लेमिंग्स, क्रूज़, वीजल्स, हर्ज़ और मस्कट्रेट्स भी अप्रत्यक्ष रूप से ध्रुवीय समुद्रों पर निर्भर कहे जा सकते हैं, क्योंकि ये इनमें रहने वाली मछलियों का उपयोग अपने प्रिय भोजन के रूप में करते हैं। इसी तरह आर्कटिक ध्रुवीय समुद्रों में लगभग 20 प्रकार की बड़ी-बड़ी विभिन्न व्हेल प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें प्रमुखतया बोहेड वेल्स, किलर वेल्स, बेलियन व्हेल, डॉल्फिन, पोर्पोइज़, ग्रे व्हेल,मिंक, ऑकस, स्पर्म व्हेल आदि शामिल हैं। 'वालरस' नामक विशालकाय मीनपक्षी समुद्री स्तनपायी आर्कटिक महासागर और यहाँ के ध्रुवीय समुद्रों में मिलने वाला बहुत ही अद्भुत जीव है। प्राणी वर्गीकरण की दृष्टि से 'ओडोबेनाइडी' कुल और 'ओडोबेनस' वंश की एक मात्र जीवित प्रजाति 'वॉलरस' एक दीर्घजीवी सामाजिक प्राणी माना गया है। यह आर्कटिक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। इसी तरह आर्कटिक की साइमा रिंग्ड सील भी बहुत प्रसिद्ध है।

आर्कटिक महासागर में 'लैम्प्रे' नामक एक बेहद डरावनी दिखने वाली मछली पाई जाती है, जो नुकीले दाँतों और लंबी जीभ से अपने शिकार को पकड़कर उसके शरीर से रक्त चूस चूसकर कई दिनों पीती रहती है। सबसे प्रसिद्ध आर्कटिक स्तनधारियों में से एक ध्रुवीय भालू अर्थात पोलर बियर, विविध सील प्रजातियाँ, आर्कटिक भेड़िये, आर्कटिक लोमड़ियाँ जैसे वल्प्स लैगोपस, लिनेक्स, बारहसिंगे, मूस, और कारिबू भी आर्कटिक की जैवविविधता के बहुत बड़े हिस्से हैं। ये सभी बड़े स्तनधारी आमतौर पर ध्रुवीय समुद्रों की मछलियों को खाते हैं।

दक्षिणी महासागर और उसके समस्त ध्रुवीय समुद्र भी अद्वितीय और संवेदनशील महत्वपूर्ण समुद्री जैवविविधता के लिए विख्यात हैं। यहाँ पेंग्विनों और सीलों की विविध प्रजातियों वाले अनोखे जीवों सहित स्पॉन्ज जैसे छोटे जीवों से लेकर क्रिल, जेलीफिश, किंगक्रेब, पेटागोनियन टूथफिश, व्हेल, आदि हजारों मत्स्य प्रजातियाँ निवास करती हैं। वास्तव में पेंग्विन अंटार्कटिका महाद्वीप में रहने वाला एक पक्षी है, जिसकी सत्रह प्रजातियाँ पाई जाती हैं। पेंग्विन उड़ नहीं पाते हैं, परंतु अपने झिल्लीदार पैरों और चप्पू की तरह काम करने वाले अनुकूलित पंखों के कारण वे बहुत अच्छे तैराक होते हैं। पेंग्विन कई महीनों तक ध्रुवीय समुद्रों में रहते हैं और केवल प्रजनन काल में ही तट पर आते हैं। पेंग्विनों के शरीर की एक विशेष ग्रंथि से निकलने वाला तेल जैसा चिपचिपा पदार्थ उनके पंखों पर फैलकर उन्हें अंटार्कटिक ध्रुवीय समुद्रों के बर्फीले जल में सुरक्षित बनाए रखता है।

हाथी की सूंड जैसी नाक वाली 'एलीफेंट सील' दक्षिण ध्रुवीय समुद्रों में मिलने वाली विशेष सील प्रजाति है, जो विश्व के सर्वाधिक भारी प्राणियों में से एक है। इसका वजन लगभग चार हजार किलोग्राम तक होता है। जन्म के समय इसके बच्चे का वजन लगभग 50 किलोग्राम होता है, जो तीन महीने में बढ़कर 150 किलोग्राम हो जाता है। यह सदैव समूह में रहने वाले प्राणी हैं, जो लगभग तीन महीनों तक बिना कुछ खाए-पिए भी जीवित रहने की अद्भुत क्षमता रखते हैं।

अंटार्कटिका के गहरे ध्रुवीय समुद्रों में मिलने वाला प्राणी 'टारडीग्रेड' पृथ्वी का सबसे सहनशील जीव माना गया है। टारडीग्रेड -272 डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 150 डिग्री सेंटीग्रेड तक के तापमान और हजारों गुना खतरनाक विकिरणों को सहन कर सकता है। टारडीग्रेड हजारों सालों तक जीवित रहने वाला प्राणी है।

विश्व की बड़ी मकड़ियों में से एक लगभग 70 सेंटीमीटर तक लंबाई वाली समुद्री मकड़ियाँ 'पेंटापोडा' और 'पिक्नोगोनिडा' केवल अंटार्कटिक ध्रुवीय समुद्रों में अत्यधिक गहराइयों में पाई जाती हैं। इनके अलावा यहाँ एल्बेट्रास, कैप पेट्रेल जैसे बड़े समुद्री पक्षी भी मिलते हैं, जो भोजन के लिए ध्रुवीय समुद्रों से जुड़े हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इन ध्रुवीय समुद्रों में मिलने वाले प्राणी सिर्फ और सिर्फ यहीं रहते हैं, और कहीं नहीं पाए जाते हैं। अकेले दक्षिणी ध्रुवीय समुद्र रॉस सागर में दुनिया की 30 प्रतिशत से अधिक रॉस-सी किलर व्हेलें (जो रॉस सी ऑरका के नाम से जानी जाती हैं), 38 प्रतिशत एडिली पेंग्विनें (वैज्ञानिक नाम - पाइगोसेलिस एडिली), 26 प्रतिशत एम्पेरर पेंग्विनें (वैज्ञानिक नाम एपटेनोडाइटस फार्सटेरी), 30 प्रतिशत से अधिक अंटार्कटिक पेट्रेल (एक प्रकार का समुद्री पक्षी) और छह प्रतिशत अंटार्कटिक मिंक व्हेलें रहती हैं। इसके अलावा, रॉस सागर में सात ऐसी मत्स्य प्रजातियाँ मिलती हैं, जो केवल दुनिया में यहीं पाई जाती हैं।

इस तरह देखा जाए तो आर्कटिक और अंटार्कटिका के ध्रुवीय समुद्रों में मिलने वाली प्रजातियों में से आधी ऐसी हैं जो दुनिया में और कहीं नहीं मिलती हैं। 21वीं शताब्दी को ध्रुवीय प्रदेशों की सदी कहा जा रहा है। ध्रुवीय समुद्रों और उनकी जैवविविधता के प्रति प्राकृतिक आकर्षण के अलावा वैज्ञानिक समुदाय ध्रुवीय क्षेत्रों को इसलिए भी अनुसंधान के लिए उपयोगी मानता है, क्योंकि दोनों ध्रुव और उनके ध्रुवीय समुद्र तथा महासागर शीतलन कक्षों की भाँति कार्य करते हुए पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में एक अतिमहत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ ही, ये भूमंडलीय वायु द्रव्यमान और महासागरीय परिसंचरण की प्रवृत्तियों को उल्लेखनीय ढंग से प्रभावित करते हैं। पृथ्वी पर 99 प्रतिशत बर्फ के हिमस्वामियों दोनों ध्रुवों की जटिल संरचनाओं में होने वाले सूक्ष्म से सूक्ष्म बदलावों के भी दूरगामी बड़े परिणाम हो सकते हैं। यदि वे पिघलते हैं, तो वैश्विक समुद्र के स्तर के बढ़ने का खतरा तय है कि आशंका जताई जा रही है कि ऐसा होने पर दुनिया भर में जल स्तर लगभग 70 मीटर ऊँचा हो जाएगा। संभव है कि पृथ्वी के लंबे-लंबे विस्तारित समुद्र तटों वाले भागों में बाढ़ आ जाए।

ध्रुवों पर हो रहे जलवायु परिवर्तन से वैश्विक जैवविविधता का ह्रास हो रहा है। वर्तमान में वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पृथ्वी के दूसरे भागों की तुलना में ध्रुवीय क्षेत्रों और ध्रुवीय समुद्रों तथा उनकी जैवविविधता में अधिक स्पष्ट रूप से देखने में आ रहे हैं। शोधों के अनुसार, आर्कटिक और अंटार्कटिका में जलवायु और समुद्री प्रक्रियाओं में तेजी से कई परिवर्तन हो रहे हैं जो महासागरीय परिसंचरण, अम्लीकरण सहित अनेक जैव-भू-रासायनिक प्रक्रियाओं और समुद्री बर्फ  वितरण को भी प्रभावित कर रहे हैं। यही कारण है। कि जलवायु परिवर्तन को समझने के लिए ध्रुवीय क्षेत्रों को एक प्रारंभिक चेतावनीपूर्ण संकेत के रूप में देखा जा रहा है। विश्व के विभिन्न देशों के मौसम सेवा केंद्र और वैज्ञानिक, ध्रुवों के उच्च अक्षांशों पर होने वाली प्राकृतिक घटनाओं का लगातार सूक्ष्मता से अनुशीलन में संलग्न हैं।

डॉ. मिश्रा शुभ्रता
एक स्वतंत्र लेखिका हैं। 'विज्ञान प्रगति' एवं
'आविष्कार' जैसी अन्य पत्रिकाओं में उनके विज्ञान लेख नियमित प्रकाशित होते रहते हैं। प्रकाशित पुस्तकें भारतीय अंटार्कटिक संभारतंत्र, अंतरराष्ट्रीय हिंद महासागर अभियान स्वर्णिम पचास वर्ष, अंटार्कटिका : भारत की हिमानी महाद्वीप के लिए यात्रा।
सम्मान मध्य प्रदेश युवा वैज्ञानिक पुरस्कार (1999), राजीव गांधी ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार-2012 (2014 में प्रदत्त), वीरांगना सावित्रीबाई फुले राष्ट्रीय फेलोशिप सम्मान (2016), नारी गौरव सम्मान (2016) |
संपर्क: shubhrataravi@gmail.com

स्रोत :- पुस्तक संस्कृति ,22 जनवरी-फरवरी 2022

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Post By: Shivendra
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