दिल्ली में दिवाली के बाद वायु प्रदूषण ने कहर ढाना शुरू किया। तीन नवंबर को प्रदूषण चरम पर पहुंचा था। चार नवंबर से इसमें कमी आई और दो दिनों की राहत मिली। लेकिन सात नवंबर से हवा में एक बार फिर से जहर बढ़ गया, क्योंकि हवाओं की रफ्तार कम हो गई थी और बारिश से नमी बढ़ गई थी। चार नवंबर से प्रदूषण में जो कमी आई थी उसके कारणों पर एक नजर डालते हैं। चार नवंबर को दिल्ली में बादल कम हुए। इनवर्जन लेयर भी दिल्ली एनसीआर से हट गई। इनवर्जन लेयर उस लेयर को कहते हैं जिसके ऊपर तापमान अधिक होता है जबकि नीचे जमीन की सतह से लेकर करीब 300 से 400 फीट ऊपर तक तापमान कम होता है। हालांकि सामान्य मौसम में इसका उल्टा होता है। यानी जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती जाती है, तापमान घटता जाता है।
इनवर्जन लेयर विभिन्न कारणों से बनती है। यह लेयर सूर्य की रोशनी को नीचे नहीं आने देती जिससे जमीन की सतह का तापमान बढ़ नहीं पाता और स्मॉग की मोटी लेयर नीचे ही बन जाती है। इस स्मॉग में कोहरा, धुआं और प्रदूषण का मिश्रण होता है। हवा कम होती है जिससे यह स्मॉग साफ नहीं हो पाता।प्रदूषण के कारण : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जनसंख्या क्षमता से कहीं अधिक है और गाड़ियों के मामले में दिल्ली दुनिया में अव्वल है। दिल्ली आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, मार्च 2019 तक दिल्ली में कुल 1.09 करोड़ गाडियां थीं। भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रलय के एक सर्वेक्षण के अनुसार इन गाड़ियों से निकलने वाला धुआं (पीएम 2.5) दिल्ली के प्रदूषण में 41 प्रतिशत का योगदान करता है। इसके अलावा 21 प्रतिशत प्रदूषण निर्माण स्थलों, कूड़े के ढेर और सड़कों पर दौड़ती गाड़ियों के कारण उड़ने वाली धूल से होता है। साथ ही इसमें 18 प्रतिशत योगदान उद्योग-धंधों का है। शेष प्रदूषण निश्चित रूप से वर्तमान में धान की जलती पराली से आता है।
दुनिया के बड़े शहरों में सबसे खराब दिल्ली की हवा
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया भर के 1,600 शहरों में प्रदूषण से जुड़ा एक सर्वेक्षण किया था। इसके आधार पर डब्ल्यूएचओ ने कहा कि दिल्ली विश्व के किसी भी बड़े शहर में सबसे प्रदूषित शहर है। यह भी कहा कि भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 15 लाख लोग प्रदूषण के कारण असमय मौत का शिकार हो जाते हैं। दिल्ली में 50 प्रतिशत बच्चों के फेफड़ों को प्रदूषण सीधे नुकसान पहुंचाता है।
सम-विषम से नहीं, हवा की रफ्तार से कम हुआ प्रदूषण
दिल्ली सरकार ने दिल्ली में सम-विषम नियम लागू करने में देरी कर दी। जब तक यह नियम लागू किया गया तब तक प्रदूषण अपना काम कर चुका था। यह फैसला चार से 15 नवंबर के बीच लागू किया गया। इससे दिल्ली की हवाओं में कुछ सुधार जरूर दिखा, लेकिन दिल्ली में प्रदूषण बढ़ेगा या घटेगा यह मौसम के रुख पर ज्यादा निर्भर करता है। भारत में अब तक ऐसे फैसले में विशेषज्ञों से सलाह लेने की परंपरा शुरू नहीं हुई है। अगर मौसम वैज्ञानिकों से सलाह ली गई होती तो मौसम के प्रदूषण के अनुकूल होने से पहले ही सम-विषम के फैसले को लागू कर लिया जाता जिससे तीन नवंबर को दिल्ली शायद गैस चैंबर में तब्दील नहीं होती।
इस वर्ष 23 अक्टूबर तक दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक मध्यम से खराब श्रेणी से ऊपर नहीं पहुंचा था। लेकिन उसके बाद हवाओं की दिशा बदलकर उत्तर-पश्चिम से पूर्वी होने और रफ्तार में कमी आने के कारण प्रदूषण बढ़ने लगा था। लेकिन दिवाली के दिन 15 से 20 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलने लगीं थीं जिससे प्रदूषण को दिल्ली की हवा को खराब करने का मौका दिवाली के अगले दिन नहीं मिला जिससे दिवाली पर प्रदूषण नहीं बढ़ पाया था। अक्टूबर में दिल्ली की सबसे खराब हवा 31 तारीख को हुई थी जब वायु गुणवत्ता सूचकांक 450 के करीब पहुंचा था। पर यह पिछले दो-तीन वर्षो के मुकाबले बेहतर था। इस बीच 20 नवंबर से फिर से प्रदूषण बढ़ेगा। 20 से 30 नवंबर के बीच एक के बाद एक पश्चिमी विक्षोभ उत्तर भारत से होकर जाएंगे जिससे तेज व शुष्क हवाएं दिल्ली तक नहीं पहुंचेंगी। इस कारण से नवंबर के आखिरी दौर में प्रदूषण अधिक रहने की आशंका है। (लेखक स्काइमेट के संस्थापक और एमडी हैं)
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