सर्वोच्च न्यायालय के फरवरी 2006 के आदेश में 840 मीटर पर पुनर्वास करने का निर्देश था लेकिन केन्द्र व राज्य सरकारों ने 835 मीटर तक पुनर्वास करना है ऐसा शपथ पत्र देकर पूर्ण डूब में कम व आंशिक डूब में ज्यादा गांव दिखा दिए। यह एक साजिश थी जिसके तहत कोर्ट को बताने की कोशिश की गई कि पुनर्वास का काम पूरा दिया गया है।
नई टिहरी। इस बार उतरांचल में हुई जोरदार बारिश ने जो तबाही मचाई वह सामने आ चुकी है पर जो तबाही आने वाली उसका किसी को अंदाजा नहीं है। भगीरथी - भिलांगना नदी पर बने टिहरी बांध की वजह से बनी झील के आसपास के गाँव धसकने लगे है। इनकी संख्या एक दो नहीं बल्कि दर्जनों है। बांध बनने से विस्थापित होने वाले लोगों का सवाल उठाने वाले संगठन ऐसे गांवों की संख्या 75 मानते है। टिहरी बांध के आसपास बसे करीब आधा दर्जन गांवों का दौरा करने पर नजर आया कि कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। गाँव तो गाँव वह सड़क नई टिहरी से छाम को जाती हुई गाँव सैकड़ों गाँवो जोड़ती है वह सड़क भी धसक रही है। नई टिहरी से छाम का रास्ता कच्चा, संकरा और खतरनाक है। जगह-जगह मलबा सड़क पर दिखाई पड़ता है। कुछ किलोमीटर चलने के बाद मरोड़ा गाँव आता है। मरोड़ा में ही टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन करने वाले सुंदरलाल बहुगुणा का पुराना घर खंडहर जैसा दीखता है तो गाँव के लोग किसी भी हादसे से भयभीत है। ललिता प्रसाद डोभाल ने कहा, एक दिन और बारिश हो जाती तो दर्जनों गाँव टिहरी बांध की झील में समा जाते। यह देखिए सड़क धंस गई है और दरार यहाँ से लेकर करीब एक फर्लांग दूर बसे गाँव तक जा चुकी है।
कई घरों पर दरार आ गई है। पर यह सब न तो सरकार को दिखता है और न बांध बनाने वाली कंपनी टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कार्पोरेशन को। डोभाल जिस जगह को दिखा रहे थे वह झील से करीब सौ फुट ऊपर थी और सड़क के किनारे दरार कई जगह आधा फुट चौड़ी थी। कुछ जगह दरार पर ताजा मिट्टी पड़ी हुई थी जो सड़क ठीक करने वालों ने डाल रखी थी। बरसात में भगीरथी नदी पर बने टिहरी बांध की झील का पानी 832 फुट तक पहुँच गया था और दर्जनों गांवों को खाली करना पड़ा था। कई गाँव तो 835 फुट पर बसे हुए हैं। इन गांवों में रहने वालों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। फिर जो सड़क इन गांवों को नई टिहरी से जोड़ती है ज्यादा बारिश होने के बाद उस पर कोई भी वाहन नहीं चल सकता है। कुछ गांवों तक हम लोग भी नहीं जा सके क्योंकि कार का जाना संभव नहीं था। यह हाल तब था जब कई दिनों से बारिश नहीं हुई और मौसम ठीक था। पर इस सड़क पर कई बार लगता की अब गिरे तो तब गिरे। उप्पू गाँव तक पहुँचते-पहुँचते टिहरी बांध से बनी झील के किनारे लगे पहाड़ पर बसे गांवों में रहने वालों की त्रासदी समझ में आ जाती है। कई गाँव झील में समा चुके है तो कई गाँव झील में समाने वाले है। नाकोट गाँव में बड़ा पुल बन रहा है जो झील के उस पर बसे लोगों को इधर आने का रास्ता देगा। फिलहाल वे मोटर बोट से आते जाते हैं।
नाकोट गाँव के गजेंद्र रावत ने उस पर बसे गांवों की व्यथा सुनाते हुए कहा - बांध बनाने से पहले ये लोग पुरानी टिहरी के पुल से पंद्रह बीस मिनट में नई टिहरी वाली सड़क पर आ जाते थे पर अब सड़क के जरिए आने जाने में कई घंटे लग जाते हैं। पर समस्या यही ख़त्म नहीं होती। खेत झील के पानी में समा चुका है और गाँव पर खतरा मंडरा रहा है। जब लगातार बरसात हुई तो लोगों की रातों की नींद हराम हो गई। कब कौन सा घर झील में गिर जाए यह पता नहीं था। सामने देखिए गाँव के जो घर है उनके ठीक नीचे से पहाड़ धसक कर झील में जा चुका है। ऐसे गाँव 70 से ज्यादा है जिन पर खतरा मंडरा रहा है। टिहरी बांध के विनास का यह नया आयाम है जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया है। जिस तरह जमीन धसक रही है उससे देर सबेर दर्जनों गाँव झील में समा जाएंगे। बड़े बांधों के खिलाफ आंदोलन छेड़ने वाले माटू संगठन का मानना है कि इस क्षेत्र में 75 गांवों पर खतरा मंडरा रहा है और इस सिलसिले में जल्द कोई पहल नहीं हुई तो अगली बारिश में हालत गंभीर होंगे
छाम गाँव के रहने वाले पूरण सिंह राणा बांध की वजह से भूस्खलन और विस्थापित हुए लोगों का सवाल उठाते है और अब खुद भी विस्थापितों के लिए हरिद्वार में बसाए गाँव में रहते है क्योंकि उनका घर नहीं बचा। बाद में दूसरे भाइयों ने और ऊँचाई पर घर बनाया जहाँ वे जाते रहते है। राणा ने बताया, ' कुछ समय पहले माटू जन संगठन ने नई टिहरी, उत्तराखंड में टिहरी बांध से नई डूब विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया। जिसमें टिहरी बांध की डूब के विभिन्न आयामों पर चर्चा की गयी। पिछले दिनों टिहरी बांध जलाशय को भरने की जो प्रक्रिया की गई उसके असरों पर माटू जनसंगठन की ओर से नागेन्द्र जगूड़ी ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें बताया गया कि 75 गांवों छोटे-बड़े पर भूस्खलन, धंसाव, भूमि कटान के असर और उनके झील में आने का खतरा है। इसके अलावा दिचली-गमरी पट्टी में 40 गांवों रास्ते बंद होने से खाद्यान्न का संकट पैदा हो गया है। ढूंगमंदार पट्टी के 27 गांवों के रास्ते बंद हुए तो धारमंडल क्षेत्र के रास्ते डूबे। चम्बा-धरासू मार्ग भी धंसा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि स्यांसू, नगुण, जलकुर आदि नदियों मे गाद रूकने से डेल्टा बने है। पूरण सिंह राणा नई टिहरी से आगे उप्पू गाँव तक झील के किनारे बसे गांवों को दिखाते हैं। इन गाँव में बसे लोगों से बात होती है तो उनकी दिक्कतों का भी पता चलता है।
यहाँ की समूची आबादी भयभीत नजर आती है। फिलहाल बरसात का खतरा टल गया है पर भारी बारिश और झील के चलते भूस्खलन जारी है। दूसरी तरफ पहाड़ों का धसकना भी जारी है। ऐसे में हर किसी को हमेशा हादसे की आशंका बनी रहती है। करीब पंद्रह किलोमीटर कच्चे रास्ते पर चलने के बाद हमें मजबूर होकर वापस लौटना पड़ा क्योंकि कई जगह कार की चेसिस पत्थरों से रगड़ खाने लगी थी और आसपास न कोई मेकेनिक मिलता न कोई गैराज। रास्ते के नीचे भुरभुरी मिट्टी और भी झील नजर आती न कोई बड़ा दरख्त और न ही आम पेड़ पौधे नजर आए। अगर इन कच्ची पहाड़ियों पर बांध परियोजना शुरू करते ही वृक्षारोपण भी किया जाता तो शायद यह रास्ता इतना खतरनाक न होता और गाँव वालों को भी भूस्खलन की समस्या का ज्यादा सामना करना पड़ता। इससे पहले पिछले डेढ़ दशक में बने देश में विस्थापितों के सबसे बड़े शहर यानी नई टिहरी से गुजरे तो जगह-जगह सड़क के किनारे मलबे का ढेर भी मिला जो इस बार की जोरदार बारिश के बाद भूस्खलन से नीचे आया था।
हालाँकि नई टिहरी को उतरांचल का सबसे नियोजित शहर कहा जाता है पर इस शहर के बाशिंदे एक दशक बाद भी शहरी सुविधाओं के लिए आंदोलनरत नजर आते है। महिपाल सिंह नेगी अखबार की नौकरी छोड़कर आंदोलन से जुड़ गए हैं और टिहरी बांध के खतरे पर लिखते रहते हैं। नेगी ने जियालाजिकल सर्वे आफ इंडिया की रपट का हवाला देते हुए कहा -भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण ने सन् 2002 में एक अध्ययन के बाद चेतावनी दी थी कि इस इलाके में जल स्तर बढ़ने से ढलानों पर दबाव और अस्थिरता में बढ़ोतरी हो सकती है। ख़ास बात यह है कि जीएसआई ने टिहरी बांध के समूचे इलाके में व्यापक अध्ययन पर जोर दिया था और झील बनने के बाद जल भराव से इन कच्ची पहाड़ियों में ज्यादा भूस्खलन की आशंका जताई थी पर इस सिलसिले में न तो कोई ठोस पहल हुई और न ही जियालाजिकल सर्वे आफ इंडिया की रपट सार्वजनिक की गई ताकि उस पर आम बहस हो पाती अब उसके खतरे सामने है। झील बनने के बाद जल भराव से गाँव के गाँव भूस्खलन के दायरे में आ रहे है। पिछले दिनों जब लगातार बारिश हुई तो उप्पू, नाकोट और रौलाकोट गाँव खाली करा लिए गए। उस समय करीब तीन हजार लोग प्रभावित हुए थे, जो गाँव ऊपर बसे थे उन गांवों में रहने वालों की नींद हराम हो गई थी। उप्पू गाँव से पहले ही रामसिंह तोपवाल से बात हुई तो उनका कहना था - ऊपर देखिए, हम लोग वही रहते हैं। जब झील में पानी बढ़ने लगा तो सबकी नींद हराम हो गई। कही पहाड़ न धसक जाए यह खतरा मंडरा रहा था।
एक तरफ ऊपर से मानो बदल फट गया हो और नीचे भागीरथी की झील का पानी चढ़ रहा था। भारी बारिश से रास्ता अलग बंद हो गया था। इधर के सभी गाँव कट गए थे। ऐसे में हमारी क्या हालत होगी आप अंदाजा लगा सकते हैं। यह सारे पहाड़ कच्चे है, फिर भी इतना बड़ा बांध बनाक़र सबको को खतरे में डाल दिया गया है। कई गांवों का दौरा करने और लोगों से बातचीत करने से कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मिली जिसे यहाँ के जन संगठन लगातार उठा भी रहे हैं। टिहरी बांध से बनी झील झील का जल स्तर बढ़ने और बाद में जल स्तर घटने के कारण 26 गांवों में नियमित भूस्खलन होने के कारण वे अस्थिर हो गए हैं। बांध में पानी का स्तर बढ़ने के कारण भागीरथी नदीघाटी में तीन गांवों रौलाकोट, नाकोट, स्यांसु के डूबने की आशंका है। यह गाँव पहले भी जोखिम वाले गाँव माने जाते थे। रीम सर्वे लाइन और बांध में पानी का स्तर बढ़ने का कारण, पहले शिनाख्त किए प्रभावित परिवारों के अलावा, 45 गांवों में करीब डेढ़ सौ परिवार फिर प्रभावित होंगे। जमीन धसकने से मरोड़ गाँव और आसपास की जगह कभी भी झील में समा सकती है। गाँव वालों की मांग थी कि जियालाजिकल सर्वे आफ इंडिया को फ़ौरन इस इलाके का सर्वे क़र नए खतरे का आकलन करना चाहिए। वर्ना कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
वैसे भी झील के दूसरी तरफ बसे गाँव के लोग अपने को मुख्यधारा से कटा हुआ मानते हैं। मोटरबोट से झील के उस पार से नई टिहरी में कालोनी के पास उतरे विजय सेमवाल ने कहा - दो घंटे पहले घर से चले हैं, कब अस्पताल पहुचेंगे पता नहीं। अगर मौसम ख़राब हो जाए तो उस पार गांवों में रहने वाले लोग भगवान के भरोसे होते है। बांध बनने के बाद से बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ और कई नई तरह की समस्याएं भी सामने आईं। गाँव के गाँव भागीरथी नदी की झील में समा गए और एक बड़ी आबादी को अपनी जड़ों से कटना पड़ा। घर छूटा, खेती बारी चली गई और नए ठिकाने के लिए भटकना पड़ा पर दो दशक बाद भी यह सिलसिला जारी है। अब झील के आसपास के गाँवो पर खतरा मंडरा रहा है तो कई परिवार फिर विस्थापन के रास्ते पर हैं पर जो शहर में बस गए हैं वे भी कम परेशान नहीं हैं। नई टिहरी के मुख्य बाजार में तम्बू ताने लोग आंदोलन क़र रहे हैं। कड़ाके की इस ठंड में रजाई ओढ़ क़र वे आमरण अनशन पर बैठे हैं। ये वो लोग हैं जिन्हें नई टिहरी में बसाया गया था। विस्थापितों और सीढ़ियों के इस शहर में विस्थापित ज्यादा है या सीढ़ियां आप अंदाजा नहीं लगा सकते पर शहर का मिजाज तो बिगड़ा हुआ है। खतरा इस शहर पर भी मंडरा रहा है। शहर में जगह-जगह मलबे के ढेर और भूस्खलन इसका साफ़ संकेत देते हैं।
माटू संगठन के सर्वेसर्वा विमल भाई इन सब सवालों को लेकर टीएचडीसी व राज्य सरकार दोनों को जिम्मेदार मानते हैं। पुनर्वास के सवाल पर उन्होंने कहा - सर्वोच्च न्यायालय के फरवरी 2006 के आदेश में 840 मीटर पर पुनर्वास करने का निर्देश था लेकिन केन्द्र व राज्य सरकारों ने 835 मीटर तक पुनर्वास करना है ऐसा शपथ पत्र देकर पूर्ण डूब में कम व आंशिक डूब में ज्यादा गांव दिखा दिए। यह एक साजिश थी जिसके तहत कोर्ट को बताने की कोशिश की गई कि पुनर्वास का काम पूरा दिया गया है। इस तरह से बांध की लागत भी कम दिखा दी गई। माटू जन संगठन ने 28 अगस्त के सुप्रीम कोर्ट आदेश के बाद ही कहा था कि टीएचडीसी ने यह डूब लाकर आपराधिक कृत्य किया है। 17 सितम्बर को दिये गये सुप्रीम कोर्ट के आदेश से साफ जाहिर है कि टीएचडीसी व राज्य सरकार दोनों आपस में ना कोई समझ बनाये हैं और न ही दोनों में कोई तालमेल है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 2007 से लगातार पुनर्वास पर अंतरिम आदेश दिये हैं। जिन पर ही गंभीर नहीं रहे और इसका खामियाजा विस्थापितों को भुगतना पड़ा है।
साभार -
disaster management and development पत्रिका से
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