धरोहर

नदी वो अपने अश्रु में आकाश को डुबोएगी
नदी के अंग कटेंगे तो नदी रोएगी
नदी को हंसने दो
नदी को बहने दो

छुरी के हाथ ही होते हैं, आँख कब होती
नदी में धुल गई होती तो बहुत रोती
मिलेगा उसको क्या, जो भी मिलेगा खोएगी
नदी के अंग कटेंगे रो नदी रोएगी
नदी को बहने दो

तुम्हारे काँपते चुल्लू में खून है जिसका
तुम्हारे माथ पे लिक्खा जुनून है जिसका
उसी की प्यास एक दिन कलंक धोएगी
नदी के अंग कटेंगे रो नदी रोएगी
नदी को बहने दो

न ज्वार में है, नदी में कि जो रवानी है
किसी का खून हो, सबमें नदी का पानी है
वो जागती रही है, वो न कभी सोएगी
नदी के अंग कटेंगे रो नदी रोएगी
नदी को बहने दो

जहाँ भी रस है, रूप है, तरंग है कोई
जहाँ भी अश्रु स्वेद प्रसंग है कोई
वो अपनी धार में हर बूँद को पिरोएगी
नदी के अंग कटेंगे रो नदी रोएगी
नदी को बहने दो

उदास वन के बियाबान में अकेली है
वो बही जा रही ये भी इक पहेली है.
मरूस्थलों की भीड़ आग ही तो बोएगी
नदी के अंग कटेंगे रो नदी रोएगी
नदी को बहने दो

नदी तो अमृता है सब जगह बहेगी वो
नदी कहीं की भी, हो बस नदी रहेगी वो
नदी को बहने दो, सब कुछ वही संजोएगी
नदी के अंग कटेंगे रो नदी रोएगी
नदी को बहने दो

प्रहार किस पे कर रहे हो कुछ पता भी है
नदी का कत्ल करोगे तो सदी रोएगी
नदी को बहने दो

संकलन/टायपिंग/प्रूफ –नीलम श्रीवास्तव ,महोबा

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Post By: pankajbagwan
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