धनीराम बादल के दोहे

मेंढक जी की गायकी, बारिश में घनघोर,
झींगुर के संगीत पर, नाच रहे हैं मोर।।

सावन लाया है हमें, हरियाली सौगात,
शहरों के लब हँस रहे, खिले-खिले देहात।।

सौंधी मिट्टी की महक, भीगे हैं दिन-रात,
चटनी संग पकौडिय़ाँ, माँग रहे जज़्बात।।

गरमी से दरकी हुई, धरती थी बेजार,
झर-झर बूँदें सावनी, करती है गुलज़ार।।

तन पर बूँदों की छुअन, जगा रहीं उन्माद,
बच्चे-बूढ़े, युवतियाँ, सब के सब है शाद।।

किसने डाले राह में, नदिया की ये पेंच,
पूछ रहा है आदमी, क्यों बारिश की खेंच।।

महलों का क्या कर सकी, बरखा मूसलधार,
कांप-कांप कर झोपड़ी, सहती रहती मार।।

बारिश ने ऐसा किया, गोरी का सिंगार
झिलमिल-झिलमिल झाँकते, अंग वसन के पार

तू ऐसा स्कूल है तुझ पर ऐसा ज्ञान
मछली सीखे तैरना पंछी भरे उड़ान

उम्र भले लंबी मिली, पर सारी बदरंग
उनके आगे जी लिये जो पल माँ के संग

धड़कन कहती है गज़ल, आँखें बुनती गीत
सर चढ़कर जब बोलती प्रीतम तेरी प्रीत

प्रेम रसायन में घुले जब तन-मन की प्यास
चाहत को महसूस हो हर मौसम मधुमास

उस पर ‘बादल’ हो गया दूजे का अधिकार
मेरा हक मारा गया, मैं ही था हकदार।।

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Post By: RuralWater
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