मध्यप्रदेश के पूर्वी भाग के लगभग अन्तिम छोर पर स्थित गंगा के कछार का हिस्सा। इस हिस्से की कछारी मिट्टी में धान की खेती होती है। इसी हिस्से में बसा है एक अनजान गांव - नाम है सेमरहा। यह रीवा जिले की हनुमना तहसील का लगभग अनजान गांव है। इस गांव मे एक तालाब है जिसे गांव के नाम पर ही सेमरहा तालाब कहा जाता है। यह तालाब बहुत पुराना है। गांव की भौगोलिक पहचान है उसके अक्षांस औैर देशांश। वह पहचान है - अक्षांश 24 डिग्री 48 मिनिट 34.2 सेकेन्ड, उत्तर। देशांश 81 डिग्री 59 मिनिट 57.50 सेकेन्ड, पूर्व। इस पहचान की मदद से उस छोटे से गांव को टोपोशीट और गूगल अर्थ पर आसानी से खोजा जा सकता है। इस तालाब और उसकी खूबियों से मेरा परिचय नागेन्द्र मिश्र ने कराया। नागेन्द्र मिश्र, मध्यप्रदेश के जल संसाधन विभाग के सेवा निवृत्त मुख्य अभियन्ता है। उन्होंने लम्बे समय तक बाणसागर परियोजना पर काम किया है। फिलहाल खेती करते हैं और जरुरतमन्दों को तकनीकी देते हैं। सारा समय अध्ययन में गुजारते हैं।
सेमरहा तालाब के कैचमेंट का इलाका थोड़ा ऊँचाई पर पूर्व तथा उत्तर दिशा में स्थित है। उसके कैचमेंट में मुख्यतः धान के खेत हैं। धान के खेतों में पानी भरने के लिए ऊँची-ऊँची मेढें हैं। मेढ़ों के कारण कैचमेंट का पानी सीधे तालाब में प्रवेश नहीं कर पाता। तालाब में पानी के प्रवेश के लिए देशज ज्ञान पर आधारित व्यवस्था है - रिसाव तथा इनलेट से। इनलेट वह कृत्रिम प्रणाली है जिसकी मदद से तालाब में पानी को प्रवेश कराया जा सकता है या पानी प्रवेश करता है। यह प्रणाली तालाब को भरने में मदद करती है।
चित्र एक में तालाब सेमरहा तालाब की इनलेट प्रणाली और तालाब को दिखाया गया है। बरसात में जब तालाब पूरा भर जाता है तब उसका डूब क्षेत्र लगभग 0.75 हैक्टर और औसत गहराई लगभग 2.5 मीटर होती है। अर्थात पूरे भरे तालाब में 18 लाख 75 हजार क्यूबिक मीटर (1.875 हैक्टर मीटर) पानी जमा होता है। तालाब में जमा यह पानी फिक्स डिपाजिट की तरह है। जब जरुरत हो काम में ले लो। चित्र दो में गूगल अर्थ से प्राप्त किया सेमरहा तालाब और उसके आसपास का चित्र है। यह दूसरा चित्र है। इस चित्र में सेमरहा तालाब, अपने गहरे काले रंग के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। इसी चित्र में उसका आगौर (हल्के हरे रंग से दर्शाया पूर्व और उत्तर दिशा में स्थित अनुमानित क्षेत्र), उत्तर-पूर्व दिशा में इनलेट प्रणाली तथा उसके वेस्टवियर को इंगित किया गया है।
वेस्टवियर
सेमरहा तालाब, उसका आगौर, इनलेट प्रणाली तथा वेस्टवियर का गूगल अर्थ चित्र।
तीन- इनलेट प्रणाली के माध्यम से धान के खेत के अतिरिक्त पानी की तालाब को आपूर्ति।
चित्र तीन में सेमरहा तालाब क्षेत्र का चार्ट दर्शाया गया है। इस चित्र से पता चलता है कि तालाब को सबसे पहले धान के खेतों से होने वाला रिसाव प्राप्त होता है। उसके बाद उसे, धान के खेतों का अतिरिक्त पानी इनलेट प्रणाली के माध्यम से मिलता है। यही सेमरहा तालाब में पानी के प्रवेश की दुहरी व्यवस्था है। बरसात के कारण जब धान के खेतों का पानी इनलेट प्रणाली की ऊँचाई तक पहुँच जाता है तब तालाब की इनलेट प्रणाली सक्रिय होती है। इनलेट प्रणाली के सक्रिय होते ही तालाब को धान के खेत का अतिरिक्त पानी मिलने लगता है। यह पानी तालाब को भरता है। जब तालाब पूरा भर जाता है तो उसका पानी निकासी तंत्र अर्थात वेस्टवियर सक्रिय हो जाता है और सारा अतिरिक्त पानी वेस्टवियर के माध्यम से बाहर निकल जाता है। यह व्यवस्था काफी पुरानी है। वह बघेलखंड के किसानों की सूझ-बूझ का इसलिए प्रमाणिक दस्तावेज है क्योंकि वह बरसात के दिनों के सूखे अन्तरालों में, धान को सूखे से बचाने के लिए, पुख्ता बीमा है। यह उनका, उनके द्वारा नियंत्रित पानी है। यह स्थानीय स्तर पर किया प्रयास है जिसके अन्मर्गत गांव का पानी गांव में ठहर कर, गांव के किसानों की मदद करता है। इस प्रयोग में सीखने के लिए बहुत कुछ है।
देश के बहुत बड़े इलाके में धान की खेती होती है। पर्याप्त बरसात के बावजूद, किसी न किसी इलाके में सूखे अन्तराल आते हैं। कई बार उन अन्तरालों की अवधि लम्बी होती है। उस अवधि में ऊँचाई पर स्थित धान के खेतों की फसल नमी के अभाव में सूखने लगती है। कई बार सूख भी जाती है। यह त्रासदी किसान के लिए गंभीर सदमा होती है। उस फसल को या गांव के अन्य हिस्सों की फसल को बचाने और किसान को फसल के खराब होने से बचाने के लिए तालाब में जमा पानी उपयोग में लाया जा सकता है। इस व्यवस्था को बनाने के लिए पंचायत स्तर पर या ग्राम स्तर पर फैसला किया जा सकता है। पानी के उठाने और वितरण के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है। सूखे अन्तरालों से अक्सर प्रभावित होने वाले खेतों के लिए यह व्यवस्था उपयोगी है। किसानों की माली हालत को सुधारने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। सेमरहा का अनुभव भी उन प्रयासों का हिस्सा हो सकता है। यदि वह प्रयास अपनाया जाता है या पंचायत उसे लागू करती है तो मानसून की बेरुखी से निपटने के लिए, कुछ किसानो को ही सही, सुरक्षा कवच मिल सकता है। यह आलेख उसी सुरक्षा कवच के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य को ध्यान में रख लिखा गया है। यह मध्यप्रदेश सहित देश के अनेक इलाकों में आजमाया जा सकता है। उम्मीद है, प्रयास होगा।
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