दूर, यमुना पार

रात गहरी-
खो गया हो ज्यों तिमिर में पंथ:
सितारों के तले-
बहता अनंत प्रवाह
दूर, यमुना पार...
दिख रही है
बत्तियाँ वे टिमटिमाती
ज्यों निबिड़ वन में
कहीं से रोशनी दिख जाए-
...किंतु राही भटकता रह जाए
उन तक पहुँच पाने में!

बीच का व्यवधान नील अदृश्य-
केवल
हरहराती ध्वनि:
तथा सब मौन, नीरव शांत!

किंतु क्षण-भर बाद ही घहरा उठा पुल
घोषणा अस्तित्व की करता हुआ अपने-
उन अँधेरी पटरियों पर
चपल गति के पुंज

विद्युत दीप-माला
तथा अनगिन मंजिलों को
पार करने के
कठिन इस्पात के संकल्प।

दूर यमुना पार...
जाकर
टिमटिमाती बत्तियों में
मिल गई वह ज्योति-माला...
-अभी कुछ ही क्षण प्रथम जो
सेतु-पथ दिखला गई थी।

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