दूर संवेदन के समग्र प्रयोग द्वारा भूजल स्रोतों का चित्रण

मनुष्य की कुल जल आवश्यकता लगभग 80% पूर्ति भूजल से प्राप्त होती है। समग्र कृषि और जल का विकास, सर्वांगीण विकास की आवश्यक कड़ी है। जल संसाधन विकास के लिए आवश्यक है कि भूजल स्रोतों को चिन्हित किया जाये और विश्वसनीय एवं आशावादी विकास किया जाय सामान्यतः यह पाया गया है कि संसाधनों के आंकलन हेतु आवश्यक सूचना प्रथमतः तो उपलब्ध ही नहीं होती है या फिर आवश्यक के अनरुप नहीं होती है। दूर संवेदन तकनीकी का प्रयोग करके वांछित आंकड़े प्राप्त किये जा सकते हैं। एकत्र किये गये आंकड़ों को भूगौलिक सूचना तंत्र (जी.आई.एस.) में संग्रहण करके संसाधन का आंकलन किया जा सकता है। इस अध्ययन में भूजल स्रोतों को चित्रित करने के लिए दूर संवेदन और भूगौलिक सूचना तंत्र का समग्र प्रयोग करते हुए एक गणितीय प्रारुप का सृजन किया गया है। सृजित प्रारुप को हरिद्वार और आसपास के आंकड़ों के आधार पर योग्य बनाया है। इस क्षेत्र में यह प्रारूप करीब 80% सक्षम है। आशा की जाती है कि किसी अन्य क्षेत्र के आंकड़ों के आधार पर प्रतिरूप को सुदृढ़ीकरण करके प्रयोग में लाया जा सकता है।

सतही और भगर्भित विधियों के द्वारा भूजल स्रोतों को चित्रण और उनकी मात्रा का आंकलन किया जा सकता है। भूगर्भीय सर्वेक्षण, भूरसायनिक स्रवेक्षण और परीक्षण छिद्रण सर्वेक्षण, सामान्यतः प्रचलित सर्वेक्षण विधियां हैं। प्रचलित विधियों को प्रयोग करते समय पाया गया है कि इन विधियों के लिये अधिक कुशल, अर्ध कुशल और अकुशल कामगारों की आवश्यकता होती है, साथ ही साथ अधिक समय और धन की भी आवश्यकता होती है। अतः इन विधियों का प्रयोग कुछ खास चुने हुए स्थलों पर ही किया जता है। ऐसी परिस्थिति में भूजल स्रोत क्षमता, जो कि स्थल और समय, चारों विभाओं में विचर भौतिक तत्व है कि चित्रण और आंकलन एक अच्छे अंदाज के समान है। दूसरी ओर पाया गया है कि कुल आवश्यक जल का करीब 80% भाग भूजल द्वारा पुर्ति किया जाता है। साथ ही साथ जन समुदाय में, कृषकों के बीच भूजल एक आश्रययुक्त जल का स्रोत माना जाता है।

भूजल स्रोत क्षमता का आकलन करते समय सतह के ऊपर, सतह के और सतह के नीचे के आंकड़ों के समूह का उपयोग किया जाता है। ये आंकड़े स्थल और समय की विभाओं के साथ ही साथ आपस में भी एक दूसरे से बहुत मजबूती से जुड़े होते हैं। अतः स्रोत क्षमता के आंकलन के समय इनका दूसरे से बहुत मजबूती से जुड़े होते हैं। अतः स्रोत क्षमता के आंकलन के समय इनका विश्लेषण कठिन और दुरुह होता है। ऊपर से वह एक सामान्य अनुभव है कि अधिकतर परिस्थितियों में आवश्यक आंकड़ें उपलब्ध ही नहीं होते हैं। यदि वे उपलब्ध भी होते हैं तो भी आवश्यकता के अनुरूप नहीं होते (ई.एस.सी.ए.पी, 1996)। ऐसी परिस्थिति में निर्णय लेना एक कठिन कार्य होता है और प्रश्नवाचक आंकड़ों पर आधारित होता है।

दूर संवेदन के अद्ययन से भूसतह के ऊपर के भूसतह के और भूसतह के नीचे के बहुत से आंकड़े प्राप्त किये जा सकते हैं (होवे, 1960, वाल्टन, 1970, दुबे 1984, 1985, 1986, 1987, चॅपतिराय 1983, शर्मा एवं दूबे 2002)। दूर संवेदन तकनीक से आंकड़े कई वेव लेंग्थ में, कई स्तरों पर तथा कई आवृत्तियों में एकत्र किये जा सकते हैं। दूर संवेदन आंकड़ों का प्रयोग भूजल स्रोतों की क्षमता आकलन में आसानी से किया जा सकता है।

भूगौलिक सूचना तंत्र (जी.आई.एस.) आंकड़ों के संग्रहण, विश्लेषण, सूचना एकत्र करने आंकड़ों के संपीडन, आंकड़ों के समायोजन और आंकड़ों के आदान करने के लिए बहुत ही प्रभावी प्रणाली है। अतः दूर संवेदन तकनीक और भूगौलिक सूचना तंत्र के समग्र प्रयोग द्वारा भूजल स्रोतों को चित्रण किया जा सकत है और साथ ही साथ स्रोतों की क्षमता आंकने के लिए एक सुदृढ़ तकनीक विकसित की जा सकती है।

उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुये इस अध्ययन में दूर संवेदन और सहयोगी आंकड़ों के आधार पर एक गणितीय प्रारुप का सृजन किया गया है। प्रारुप को फर्जी पर्यावरण में सृजित किया गया है।

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