यमुना के फ्लड प्लेन (डूब) क्षेत्र में बाढ़ के पानी के संग्रहण के लिए किराये पर जमीन लेने की योजना को दिल्ली सरकार से स्वीकृति मिलने के बाद किसानों से बातचीत शुरू कर दी गई है, ताकि किसानों से जमीन लेकर जल्दी उसमें छोटे-छोटे तालाब बनाए जा सकें। इस साल शुरुआत निःसंदेह छोटे स्तर पर होगी और 50 एकड़ में करीब 1575 मिलियन गेलन पानी का संग्रहण होगा, लेकिन जल बोर्ड द्वारा कराये गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि यमुना रिवर बेड में जल संग्रहण की अपार क्षमता है। मानसून में एक दिन में यमुना में बाढ़ का जितना पानी आता है, यदि उसे संग्रहण कर लिया जाए तो दिल्ली में पूरे साल की पेयजल की जरूरतें पूरी हो जाएंगी। यही वजह है कि इस योजना पर दिल्ली सरकार व अन्य सरकारी एजेंसियां तेजी से अमल में जुटी हुई हैं। यदि इस साल शुरुआत उत्साहजनक रही तो अगले साल उम्मीद के मुताबकि यमुना के डूब क्षेत्र में बाढ़ के पानी का संग्रहण हो सकेगा। इससे दिल्ली में पेयजल की किल्लत दूर करने में मदद मिलेगी। साथ ही पल्ला से अलीपुर तक भूजल स्तर सात मीटर तक ऊपर आ जाएगा। इस परियोजना के लिए जल बोर्ड ने इंटिग्रेटेड नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट से अध्ययन कराया है। जल बोर्ड के तकनीकी सलाहकार अंकित श्रीवास्तव ने कहा कि दिल्ली में यमुना करीब 50 किलोमीटर लंबी है। इसके दोनों तरफ पांच किलोमीटर के दायरे में डूब क्षेत्र है। इसका रिवर बेड 40 से 70 मीटर गहरा है, जिसमें रेत भरा है। कई जगहों पर यह सौ मीटर तक भी गहरा है। इसलिए इसकी जलधारण क्षमता बहुत अधिक है। इस रिवर बेड का 50 फीसद हिस्सा खाली है, जिसमें पानी का संग्रहण हो सकता है। सामान्य तौर पर बारिश होने पर बाढ़ का पानी रिसाव होकर रेत के रिवर बेड में चला जाता है और बाढ़ खत्म होने पर वापस बहकर नदी में आ जाता है।
तालाब के लिए किसानों को 77 हजार प्रति एकड़ प्रति वर्ष देने का फैसला किया गया है। इससे तीन फायदे होंगे। एक तो किसानों की आय प्रभावित नहीं होगी। दूसरा खेती में किसान पेस्टिसाइड का इस्तेमाल करते हैं, इसके कारण भूजल दूषित होता है। यह बंद हो जाएगा। तीसरी बात यह कि यमुना बाढ़ क्षेत्र का प्राकृतिक स्वरूप बरकरार रहेगा। जल बोर्ड की सलाहकार एजेंसी की अध्ययन में यह बात समाने आयी है कि यमुना के रीवर बेड में भूजल का बहाव नदी से शहर की तरफ है। इसलिए पल्ला में जो पानी संग्रहण होगा उससे अलीपुर तक भूजल रिचार्ज होगा।
यमुना के डूब क्षेत्र में भूजल स्तर को लेकर केंद्रीय भूजल बोर्ड वर्ष 1996 के बाद से कई बार अध्ययन कर यह बता चुका है कि पल्ला इलाके से 35 एमजीडी (मिलियन गैलन डेली) पानी निकाला जा सकता है, जो बारिश में स्वतः रिचार्ज हो जाएगा। जल बोर्ड अभी उस इलाके से करीब 20 एमजीडी पानी निकाल भी रहा है। 35 एमजीडी से अधिक पानी निकालने पर भूजल रिचार्ज करना पड़ेगा। वर्ष 2014 में आइआइटी दिल्ली, केंद्रीय भूजल बोर्ड व नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी ने मिलकर एक अध्ययन किया और यमुना में बारिश के पानी के संग्रहण की संभावना बताई थी। इन सभी शोध का अध्ययन करने के बाद जल बोर्ड ने पल्ला से वजीराबाद तक पांच किलोमीटर के दायरे में जल संग्रहण की योजना बनाई है। अंकित श्रीवास्तव ने कहा कि मानसून में छह लाख क्यूसेक तक पानी आता है, जिसका संग्रहण नहीं होने से वह बहकर निकल जाता है। यमुना में बाढ़ का आना सिर्फ दिल्ली में बारिश पर निर्भर नहीं करता। यमुना के क्षेत्र में हिमाचल व हरियाणा कहीं भी बारिश होने पर दिल्ली में बाढ़ का पानी पहुंचना तय है। यही वजह है कि पिछले साल हरियाणा से किसी दिन एक लाख तो किसी दिन दो लाख क्यूसेक पानी छोड़ा जाता था। एक दिन तो छह लाख क्यूसेक पानी भी छोड़ा गया था, जो तीन लाख एमजीडी (मिलियन गेलन डेली) के बराबर है। दिल्ली की पूरे साल की जरूरत करीब 3.65 लाख मिलियन गेलन है। इसके संग्रहण के लिए नदी के रिवर बेड के रूप में प्राकृतिक स्त्रोत उपलब्ध है। इसमें कोई अलग से विशेष निर्माण कराने की जरूरत नहीं है।
10 मीटर तक गिर चुका है भूजल स्तर
अभी बाढ़ का पानी आता है और वह तेजी से निकल जाता है। इसका कारण यह है कि एक तो लंबे समय से यमुना का सिल्ट निकाला नहीं गया। दूसरा यमुना के डूब क्षेत्र में किसान खेती करते हैं। इसके लिए किसानों ने ऊपर मिट्टी डाल दी है ताकि खेत में पानी रुके। इसलिए यमुना के डूब क्षेत्र में रिवर बेड की जलधारण क्षमता प्रभावित हुई है, जबकि भूजल दोहन अधिक हो रहा है। इसलिए भूजल स्तर 10 मीटर तक नीचे गिर गया है। कई जगहों पर यह 18 मीटर तक पहुंच गया है। पहले औसतन तीन मीटर की भूजल उपलब्ध होता था।
डेढ़ से दो मीटर मिट्टी हटाकर बनाए जाएंगे तालाब
जल संग्रहण के लिए डूब क्षेत्र में किसानों से किराये पर जमीन लेकर छोटे-छोटे तालाब बनाए जाएंगे। इस दौरान ऊपर की डेढ़ से दो मीटर मिट्टी हटाई जाएगी। इसके अलावा कोई और निर्माण कार्य कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि उसके नीचे सिर्फ रेत होगा। तालाब में पानी भरने पर रेत से पानी रिसाव के जरिये भूजल में जाएगा। वहीं केंद्रीय भूजल बोर्ड ने इस योजना को इन शर्तों के साथ स्वीकृति दी है कि बाढ़ के पानी के संग्रहण की प्रक्रिया में गंदा पानी व पेस्टिसाइट भूजल में नहीं जाना चाहिए। इसलिए भूजल की जांच की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि यमुना में अक्सर हरियाणा से औद्योगिक कचरा डाला जाता है। इसलिए यमुना के पानी में अमोनिया की मात्र बढ़ जाती है। इसके अलावा बोर्ड ने कहा कि जल संग्रहण से भूजल स्तर कितना बढ़ा, इसकी निगरानी होनी चाहिए। दिल्ली सरकार इन निर्देशों का पूरा पालन करेगी। जल संग्रहण होने पर भूजल रिचार्ज की क्या स्थिति होगी, यह जानने के लिए जल बोर्ड ने पहले पर्कोलेशन (जमीन के अंदर पानी का रिसाव) टेस्ट कराया है। जिसका मकसद यह देखना था कि जल संग्रहण करने पर कितनी तेजी से पानी जमीन (रिवर बेड) के नीचे की तरफ जाएगा। यह पाया गया कि एक दिन में रिसाव से नौ मीटर पानी जमीन (रिवर बेड) के अंदर जा रहा है। हालांकि बाढ़ के पानी के साथ नदी में थोड़ा सिल्ट भी आता है। इसलिए अधिकारी यह मानकर चल रहे हैं कि दो मीटर की गति से भी भूजल रिचार्ज होता है तो काफी मात्रा में पानी का संग्रहण हो सकेगा।
योजना के तीन फायदे
तालाब के लिए किसानों को 77 हजार प्रति एकड़ प्रति वर्ष देने का फैसला किया गया है। इससे तीन फायदे होंगे। एक तो किसानों की आय प्रभावित नहीं होगी। दूसरा खेती में किसान पेस्टिसाइड का इस्तेमाल करते हैं, इसके कारण भूजल दूषित होता है। यह बंद हो जाएगा। तीसरी बात यह कि यमुना बाढ़ क्षेत्र का प्राकृतिक स्वरूप बरकरार रहेगा। जल बोर्ड की सलाहकार एजेंसी की अध्ययन में यह बात समाने आयी है कि यमुना के रीवर बेड में भूजल का बहाव नदी से शहर की तरफ है। इसलिए पल्ला में जो पानी संग्रहण होगा उससे अलीपुर तक भूजल रिचार्ज होगा। उम्मीद है कि इससे भूजल स्तर 10 मीटर से ऊपर उठकर तीन मीटर पर आ जाएगा। बोरवेल लगाकर गर्मी में उस पानी को निकाला जाएगा ताकि पेयजल के लिए लोगों को आपूर्ति हो सके। सलाहकार एजेंसी द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार एक हजार एकड़ में 31 हजार 500 मिलियन गेलन पानी संग्रहण होगा, लेकिन केंद्रीय भूल बोर्ड ने इससे थोड़ा कम अनुमान लगाया है। इस साल 40 से 50 एकड़ में छोटे-छोटे तालाब बनाए जाएंगे। यदि यह योजना परवान चढ़ी तो इस साल 50 एकड़ में करीब 1575 मिलियन गेलन पानी संग्रहण हो सकेगा। वैसे परियोजना पर पूरा अमल होने के बाद पल्ला से वजीराबाद तक करीब तीन हजार मिलियन क्यूबिक मीटर पानी का संग्रहण हो सकेगा।
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