बहत्तर साल के जलालुद्दीन ने ग्लोबल वार्मिंग का नाम तक नहीं सुना है। वे नहीं जानते कि यह किसी बला का नाम है। वे बस एक बात जानते हैं और यह कि दुनिया में होने वाले अत्याचारों और प्रकृति से छेड़छाड़ की वजह से अब बंगाल की खाड़ी के बढ़ते जलस्तर ने उनके पुरखों की पांच बीघे जमीन लील ली है। भारत और बांग्लादेश की सीमा पर बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर बसे सुंदरवन के घोड़ामारा नामक जिस द्वीप पर जलालुद्दीन अपनी पत्नी, पांच बेटों और तीन बेटियों के साथ रहते थे उसका दो-तिहाई हिस्सा अब पानी में समा चुका है। उसके साथ ही समा गई है उनके पुरखों की वह जमीन जो उनकी रोजी-रोटी का अकेला जरिया थी। अब जलालुद्दीन का पूरा परिवार सागरद्वीप पर बने शरणार्थी शिविरों में रहता है। वे वहां अकेले नहीं हैं। उनकी तरह हजारों लोग वहां रहते हैं। इन सबको पर्यावरण का शरणार्थी कहा जाता है। दूर अपने डूबते द्वीप को दिखाते हुए वह कहते हैं-एक दिन पूरा द्वीप ही डूब जाएगा।
पश्चिम बंगाल में बंगाल की खाड़ी व हुगली के मुहाने पर बसा सुंदरवन रायल बंगाल टाइगरों का सबसे बड़ा घर है। लेकिन अब इस इलाके में पर्यावरण असंतुलन के चलते बाघ ही नहीं, बल्कि इंसानों का वजूद भी खतरे में पड़ गया है। यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शुमार सुंदरवन में देखने के लिए बहुत कुछ है। रायल बंगाल बाघ, जैविक और प्राकृतिक विविधता और सुंदरी पेड़ों का सबसे बड़ा जंगल यानी मैनग्रोव फॉरेस्ट। लेकिन अब इसमें एक और चीज जुड़ गई है। वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी का कुप्रभाव देखना हो तो भी सुंदरवन आ सकते हैं।
बांग्लादेश की सीमा से सटा सुंदरवन पूरी दुनिया में मैनग्रोव जंगल और अपनी जैविक व पर्यावरण विविधताओं के लिए मशहूर है। लेकिन बंगाल की खाड़ी के लगातार बढ़ते जलस्तर ने इसके अस्तित्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पर्यावरण में तेजी से होने वाले बदलावों के चलते समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण इस जंगल और इलाके में जहां-तहां बिखरे द्वीपों पर संकट मंडराने लगा है। इन प्राकृतिक द्वीपों के साथ यहां रहने वाली आबादी भी खतरे में है। डूबने के डर से इलाके से बड़े पैमाने पर विस्थापन हो रहा है। वैसे, तो पहले भी समय-समय पर सुंदरवन के द्वीपों के पानी में समाने पर चिंताएं जताई जा रहीं थी। लेकिन संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी पर्यावरण रिपोर्ट के बाद अब इसकी गंभीरता खुल कर सामने आ गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र का जलस्तर इसी तरह बढ़ता रहा तो सुंदरवन जल्दी ही भारत के नक्शे से मिट जाएगा।
इस क्षेत्र के दो द्वीप पानी में डूब गए हैं। लोहाचारा नामक एक द्वीप पानी में समा चुका है। घोड़ामारा द्वीप भी धीरे-धीरे पानी में समा रहा है। अब कम से कम और एक दर्जन द्वीपों पर यही खतरा मंडरा रहा है। इनमें वह सागरद्वीप भी शामिल है जहां सदियों से मशहूर गंगासागर मेला आयोजित होता रहा है। उन द्वीपों में लगभग 70 हजार की आबादी रहती है।
कोलकाता में यादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्री अध्ययन स्कूल के निदेशक सुगत हाजरा कहते हैं कि यह पर्यावरण में हो रहे बदलावों का नतीजा है। लोहाचारा समेत दो द्वीप समुद्र में डूब गए हैं। अब सेटेलाइट से ली जाने वाली तस्वीरों में इनको नहीं देखा जा सकता। ग्लोबल वार्मिंग और लगातार जारी भूमि कटाव के कारण इलाके के कम से कम 12 और द्वीपों के डूब जाने का खतरा पैदा हो गया है। हाजरा कहते हैं कि समुद्र के लगातार बढ़ते जलस्तर व प्रशासनिक उदासीनता के कारण सुंदरवन का 15 फीसदी हिस्सा वर्ष 2020 तक समुद्र में समा जाएगा। वे बताते हैं कि यहां समुद्र का जलस्तर 3.14 मिमी सालाना की दर से बढ़ रहा है। इससे कम से कम 12 द्वीपों का वजूद संकट में है।
सुंदरवन इलाके में कुल 102 द्वीप हैं। उनमें से 54 द्वीपों पर आबादी है। मछली मारना और खेती करना ही उनकी आजीविका के प्रमुख साधन हैं। हाजरा कहते हैं कि अब हाल में आई संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने भी हमारे अध्ययन की पुष्टि कर दी है। अगर सरकार ने समय रहते इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की तो नतीजे गंभीर हो सकते हैं।
हाजरा बताते हैं कि दरअसल, इलाके में डूबने की यह प्रक्रिया 1940 से ही शुरू हो गई थी। लेकिन हाल के वर्षों में इसमें तेजी आई है। द्वीपों के डूबने से बेघर हुए लोगों को अब एक नया नाम दिया गया है। वह है पर्यावरण के शरणार्थी।
इलाके में दो सौ साल पहले जिस घोड़ामारा द्वीप में पहली ब्रिटिश चौकी की स्थापना की गई थी वह भी खतरे में है। इस द्वीप का एक तिहाई हिस्सा समुद्र में समा चुका है। घोड़ामारा के विश्वजीत दास कहते हैं कि मेरे पास पांच एकड़ खेत थे। अब उसमें से एक एकड़ ही बचा है। अब यह भी अगर डूब गया तो हम जिएंगे कैसे? यही सवाल इस द्वीप के बाकी लोगों की जुबान पर भी है। लेकिन इसका जवाब कहीं नजर नहीं आता।
ऐसे ही एक शरणार्थी नरेश मंडल बताते हैं कि एक तो यहां रोजगार का कोई अवसर नहीं है। इसके साथ बढ़ती आबादी और बाहरी लोगों के यहां की जमीन पर कब्जा कर होटल खोलने के कारण दबाव और बढ़ा है। सुंदरवन के गड़बड़ाते पर्यावरण संतुलन पर व्यापक शोध करने वाले आर. मित्र कहते हैं कि इस मुहाने के द्वीप धीरे-धीरे समुद्र में समाते जा रहे हैं। अगले दशक के दौरान हजारों लोग पर्यावरण के शरणार्थी बन जाएंगे। वे इस बात पर खेद जताते हैं कि कई बार कहने के बावजूद केंद्र या राज्य सरकार ने इस समस्या पर कोई ध्यान नहीं दिया है। यह हालत तब है जब राज्य में एक सुंदरवन विकास मंत्री भी हैं। अब इतने द्वीपों के डूबने के बाद वहां रहने वालों को कहां बसाया जाएगा? इस सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है।
डा. हाजरा और सुंदरवन को बचाने में जुटे गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों का कहना है कि इस हालत के लिए इंसान भी कम जिम्मेवार नहीं है। 1990 के मध्य तक इलाके के पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई हुई। लेकिन दोबारा नए पेड़ लगाने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। उनकी दलील है कि पर्यटन को बढ़ावा देकर लोगों को रोजगार के वैकल्पिक अवसर मुहैया कराना जरूरी है। तभी इलाके की दुर्लभ वनस्पतियों को बचाया जा सकता है।
राज्य के अतिरिक्त प्रमुख वन संरक्षक अतनू राहा कहते हैं कि आबादी के दबाव ने सुंदरवन के जंगलों को भारी नुकसान पहुंचाया है। इलाके के गावों में रहने वाले लोगों के चलते जंगल पर काफी दबाव है। इसे बचाने के लिए एक ठोस पहल की जरूरत है ताकि जंगल के साथ-साथ वहां रहने वाले लोगों को भी बचाया जा सके। हमने इलाके में बड़ी नहरें व तालाब खुदवाने का फैसला किया है ताकि बारिश का पानी संरक्षित किया जा सके। इस पानी से इलाके में जाड़ों के मौसम में दूसरी फसलें उगाई जा सकती हैं। इससे जंगल पर दबाव कम होगा।
डा. हाजरा कहते हैं कि सरकार ने अगर तत्काल प्रभावी उपाय किए तो कई द्वीपों को डूबने से बचाया जा सकता है। लेकिन उसकी प्रतिक्रिया धीमी ही है। राज्य सरकार ने सुंदरवन के संरक्षण व विकास के लिए एक अलग मंत्रालय का गठन किया है। सुंदरवन मामलों के मंत्री कांति गांगुली कहते हैं कि हमने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को गंभीरता से लिया है। हमारे वैज्ञानिक भी बीते कुछ वर्षों से सुंदरवन में पर्यावरण असंतुलन के कारण होने वाले बदलावों का अध्ययन कर रहे हैं। सरकार परिस्थिति से वाकिफ है। हम जल्दी ही इस दिशा में जरूरी कदम उठाएंगे। गांगुली कहते हैं कि इलाके के लोगों को वैकल्पित रोजगार मुहैया कराने व पेड़ों की कटाई रोकने की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार ने कुछ गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिल कर सुंदरवन इलाके के लोगों में जागरूकता पैदा करने की भी योजना बनाई है। लेकिन सुंदरवन को बचाने की दिशा में होने वाले उपाय उस पर मंडराते खतरे के मुकाबले पर्याप्त नहीं हैं।
लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि अगर इस दिशा मंप ठोस पहल नहीं की गई तो जल्दी ही सुंदरवन का नाम नक्शे से मिट जाएगा। तब यहां न तो बाघ बचेंगे और न ही इंसान।
डिसास्टर मैनेजमेंट एंड डेवलोपमेंट “पत्रिका से”
पश्चिम बंगाल में बंगाल की खाड़ी व हुगली के मुहाने पर बसा सुंदरवन रायल बंगाल टाइगरों का सबसे बड़ा घर है। लेकिन अब इस इलाके में पर्यावरण असंतुलन के चलते बाघ ही नहीं, बल्कि इंसानों का वजूद भी खतरे में पड़ गया है। यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शुमार सुंदरवन में देखने के लिए बहुत कुछ है। रायल बंगाल बाघ, जैविक और प्राकृतिक विविधता और सुंदरी पेड़ों का सबसे बड़ा जंगल यानी मैनग्रोव फॉरेस्ट। लेकिन अब इसमें एक और चीज जुड़ गई है। वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी का कुप्रभाव देखना हो तो भी सुंदरवन आ सकते हैं।
बांग्लादेश की सीमा से सटा सुंदरवन पूरी दुनिया में मैनग्रोव जंगल और अपनी जैविक व पर्यावरण विविधताओं के लिए मशहूर है। लेकिन बंगाल की खाड़ी के लगातार बढ़ते जलस्तर ने इसके अस्तित्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पर्यावरण में तेजी से होने वाले बदलावों के चलते समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण इस जंगल और इलाके में जहां-तहां बिखरे द्वीपों पर संकट मंडराने लगा है। इन प्राकृतिक द्वीपों के साथ यहां रहने वाली आबादी भी खतरे में है। डूबने के डर से इलाके से बड़े पैमाने पर विस्थापन हो रहा है। वैसे, तो पहले भी समय-समय पर सुंदरवन के द्वीपों के पानी में समाने पर चिंताएं जताई जा रहीं थी। लेकिन संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी पर्यावरण रिपोर्ट के बाद अब इसकी गंभीरता खुल कर सामने आ गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र का जलस्तर इसी तरह बढ़ता रहा तो सुंदरवन जल्दी ही भारत के नक्शे से मिट जाएगा।
इस क्षेत्र के दो द्वीप पानी में डूब गए हैं। लोहाचारा नामक एक द्वीप पानी में समा चुका है। घोड़ामारा द्वीप भी धीरे-धीरे पानी में समा रहा है। अब कम से कम और एक दर्जन द्वीपों पर यही खतरा मंडरा रहा है। इनमें वह सागरद्वीप भी शामिल है जहां सदियों से मशहूर गंगासागर मेला आयोजित होता रहा है। उन द्वीपों में लगभग 70 हजार की आबादी रहती है।
कोलकाता में यादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्री अध्ययन स्कूल के निदेशक सुगत हाजरा कहते हैं कि यह पर्यावरण में हो रहे बदलावों का नतीजा है। लोहाचारा समेत दो द्वीप समुद्र में डूब गए हैं। अब सेटेलाइट से ली जाने वाली तस्वीरों में इनको नहीं देखा जा सकता। ग्लोबल वार्मिंग और लगातार जारी भूमि कटाव के कारण इलाके के कम से कम 12 और द्वीपों के डूब जाने का खतरा पैदा हो गया है। हाजरा कहते हैं कि समुद्र के लगातार बढ़ते जलस्तर व प्रशासनिक उदासीनता के कारण सुंदरवन का 15 फीसदी हिस्सा वर्ष 2020 तक समुद्र में समा जाएगा। वे बताते हैं कि यहां समुद्र का जलस्तर 3.14 मिमी सालाना की दर से बढ़ रहा है। इससे कम से कम 12 द्वीपों का वजूद संकट में है।
सुंदरवन इलाके में कुल 102 द्वीप हैं। उनमें से 54 द्वीपों पर आबादी है। मछली मारना और खेती करना ही उनकी आजीविका के प्रमुख साधन हैं। हाजरा कहते हैं कि अब हाल में आई संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने भी हमारे अध्ययन की पुष्टि कर दी है। अगर सरकार ने समय रहते इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की तो नतीजे गंभीर हो सकते हैं।
हाजरा बताते हैं कि दरअसल, इलाके में डूबने की यह प्रक्रिया 1940 से ही शुरू हो गई थी। लेकिन हाल के वर्षों में इसमें तेजी आई है। द्वीपों के डूबने से बेघर हुए लोगों को अब एक नया नाम दिया गया है। वह है पर्यावरण के शरणार्थी।
इलाके में दो सौ साल पहले जिस घोड़ामारा द्वीप में पहली ब्रिटिश चौकी की स्थापना की गई थी वह भी खतरे में है। इस द्वीप का एक तिहाई हिस्सा समुद्र में समा चुका है। घोड़ामारा के विश्वजीत दास कहते हैं कि मेरे पास पांच एकड़ खेत थे। अब उसमें से एक एकड़ ही बचा है। अब यह भी अगर डूब गया तो हम जिएंगे कैसे? यही सवाल इस द्वीप के बाकी लोगों की जुबान पर भी है। लेकिन इसका जवाब कहीं नजर नहीं आता।
पर्यावरण में तेजी से होने वाले बदलावों के चलते समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण इस जंगल और इलाके में जहां-तहां बिखरे द्वीपों पर संकट मंडराने लगा है। इन प्राकृतिक द्वीपों के साथ यहां रहने वाली आबादी भी खतरे में है। डूबने के डर से इलाके से बड़े पैमाने पर विस्थापन हो रहा है।
लोहाचारा में रहने वाले लोग अब पर्यावरण के शरणार्थी के तौर पर दूसरे द्वीपों पर दिन गुजार रहे हैं। इन शरणार्थियों के पास अब न तो कोई जमीन है और न ही आजीविका का कोई दूसरा साधन। द्वीप के डूबने के पहले 75 साल के अर्जुन जाना समेत हजारों लोगों को सागरद्वीप पर बसाया गया था। उस समय प्रशासन ने उनको एक झोपड़ी और जमीन का एक टुकड़ा दिया था। जिस अर्जुन जाना के पास लोहाचारा में पांच बीघे से ज्यादा जमीन थी उसे अब छोटा-मोटा काम करके पेट पालना पड़ रहा है। इसी तरह दूसरे द्वीप बेडफोर्ड पर रहने वाले लोग भी अब गंगासागर कालोनी में रहते हैं। कभी धनी किसान के तौर पर जीवन गुजारने वाले इन लोगों को अब मेहनत-मजदूरी करनी पड़ रही है। इन लोगों को जिन कालोनियों में बसाया गया है वहां न्यूनतम नागरिक सुविधाएं भी मुहैया नहीं हैं। खाने की कौन कहे यहां तो पीने के पानी की भी भारी किल्लत है। स्वास्थ्य सेवाएं भी पूरी तरह बदहाल हैं। किसी स्वास्थ्य केंद्र में न तो डाक्टर हैं और न ही दवाएं।ऐसे ही एक शरणार्थी नरेश मंडल बताते हैं कि एक तो यहां रोजगार का कोई अवसर नहीं है। इसके साथ बढ़ती आबादी और बाहरी लोगों के यहां की जमीन पर कब्जा कर होटल खोलने के कारण दबाव और बढ़ा है। सुंदरवन के गड़बड़ाते पर्यावरण संतुलन पर व्यापक शोध करने वाले आर. मित्र कहते हैं कि इस मुहाने के द्वीप धीरे-धीरे समुद्र में समाते जा रहे हैं। अगले दशक के दौरान हजारों लोग पर्यावरण के शरणार्थी बन जाएंगे। वे इस बात पर खेद जताते हैं कि कई बार कहने के बावजूद केंद्र या राज्य सरकार ने इस समस्या पर कोई ध्यान नहीं दिया है। यह हालत तब है जब राज्य में एक सुंदरवन विकास मंत्री भी हैं। अब इतने द्वीपों के डूबने के बाद वहां रहने वालों को कहां बसाया जाएगा? इस सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है।
डा. हाजरा और सुंदरवन को बचाने में जुटे गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों का कहना है कि इस हालत के लिए इंसान भी कम जिम्मेवार नहीं है। 1990 के मध्य तक इलाके के पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई हुई। लेकिन दोबारा नए पेड़ लगाने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। उनकी दलील है कि पर्यटन को बढ़ावा देकर लोगों को रोजगार के वैकल्पिक अवसर मुहैया कराना जरूरी है। तभी इलाके की दुर्लभ वनस्पतियों को बचाया जा सकता है।
राज्य के अतिरिक्त प्रमुख वन संरक्षक अतनू राहा कहते हैं कि आबादी के दबाव ने सुंदरवन के जंगलों को भारी नुकसान पहुंचाया है। इलाके के गावों में रहने वाले लोगों के चलते जंगल पर काफी दबाव है। इसे बचाने के लिए एक ठोस पहल की जरूरत है ताकि जंगल के साथ-साथ वहां रहने वाले लोगों को भी बचाया जा सके। हमने इलाके में बड़ी नहरें व तालाब खुदवाने का फैसला किया है ताकि बारिश का पानी संरक्षित किया जा सके। इस पानी से इलाके में जाड़ों के मौसम में दूसरी फसलें उगाई जा सकती हैं। इससे जंगल पर दबाव कम होगा।
डा. हाजरा कहते हैं कि सरकार ने अगर तत्काल प्रभावी उपाय किए तो कई द्वीपों को डूबने से बचाया जा सकता है। लेकिन उसकी प्रतिक्रिया धीमी ही है। राज्य सरकार ने सुंदरवन के संरक्षण व विकास के लिए एक अलग मंत्रालय का गठन किया है। सुंदरवन मामलों के मंत्री कांति गांगुली कहते हैं कि हमने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को गंभीरता से लिया है। हमारे वैज्ञानिक भी बीते कुछ वर्षों से सुंदरवन में पर्यावरण असंतुलन के कारण होने वाले बदलावों का अध्ययन कर रहे हैं। सरकार परिस्थिति से वाकिफ है। हम जल्दी ही इस दिशा में जरूरी कदम उठाएंगे। गांगुली कहते हैं कि इलाके के लोगों को वैकल्पित रोजगार मुहैया कराने व पेड़ों की कटाई रोकने की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार ने कुछ गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिल कर सुंदरवन इलाके के लोगों में जागरूकता पैदा करने की भी योजना बनाई है। लेकिन सुंदरवन को बचाने की दिशा में होने वाले उपाय उस पर मंडराते खतरे के मुकाबले पर्याप्त नहीं हैं।
लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि अगर इस दिशा मंप ठोस पहल नहीं की गई तो जल्दी ही सुंदरवन का नाम नक्शे से मिट जाएगा। तब यहां न तो बाघ बचेंगे और न ही इंसान।
डिसास्टर मैनेजमेंट एंड डेवलोपमेंट “पत्रिका से”
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