दूब घास के औषधीय गुण (Medicinal use of Cynodon dactylon)


सारांश


दूब घास का औषधीय गुण हमारे जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण संस्कारों का एक अध्याय है। जो हमारे जीवन में बहुत सी औषधीय के रूप में प्रयोग किया जाता है। इतना ही नहीं मधुमेह रोगी के लिये भी बहुत लाभकारी प्रमाणित किया जा चुका है। अगर हम पानी के साथ ताजी दूब धुलकर उबाल कर सेवन करें तो 59 प्रतिशत ब्लड शुगर लेवल कम कर देता है।

Abstract : Medicinal activity of Cynodon dactylon (Family: Poaceae) is very useful and play an important role in our life activities. The study was undertaken to investigate the Hypoglycemic & Antidiabetic effect of single and repeat Oral administration of aqueous extract of grass resulted, significant reduction of 59% in the blood sugar level.

दूब या दुर्वा (वैज्ञानिक नाम- ‘साइनोडॉन डेक्टिलॉन’) वर्ष भर पायी जाने वाली घास है जो जमीन पर पसरते हुए या फैलते हुए बढ़ती है। हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग किया जाता है तथा वर्ष में दो बार सितम्बर-अक्टूबर और फरवरी-मार्च में इसमें फूल आते हैं। महाकवि तुलसीदास ने दूब को अपनी लेखनी में इस प्रकार सम्मान दिया है- ‘‘राम दुर्वादल श्याम, पद्याक्षं पीतावाससा।’’
प्रायः जो वस्तु स्वास्थ्य के लिये हितकर सिद्ध होती थी, उसे पूर्वजों ने धर्म के साथ जोड़कर उसका महत्त्व और भी बढ़ा दिया है। दूब भी ऐसी ही वस्तु है, यह सारे देश में बहुतायत के साथ हर मौसम में उपलब्ध रहती है।

दूब को संस्कृत में ‘दूर्वा’, ‘अमृता’, ‘अनन्ता’, ‘गौरी’, ‘महौषधि’, ‘शतपर्वा’, ‘भार्गवी’ इत्यादि नामों से जानते हैं। दूब घास पर ऊषाकाल में जमीं हुई ओस की बूँदें मोतियों सी चमकती प्रतीत होती हैं। ब्रह्म मुहूर्त में हरी-हरी ओस से परिपूर्ण दूब पर भ्रमण करने का अपना निराला ही आनन्द होता है तथा आँखों के स्वास्थ्य के लिये श्रेयस्कर माना जाता है। पशुओं के लिये ही नहीं अपितु मनुष्यों के लिये पूर्ण पौष्टिक आहार है दूब। महाराणा प्रताप ने वनों में भटकते हुए जिस घास की रोटियाँ खाई थीं, वह भी दूब से ही निर्मित थीं। दूब में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। आयुर्वेद में दूब में उपस्थित अनेक औषधि गुण के कारण दूब को ‘महौषधि’ कहा गया है। आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार दूब का स्वाब कसैला मीठा होता है। विभिन्न पैत्तिक एवं कफज विकारों के शमन में दूब का निरापद प्रयोग किया जाता है। यह दाह शामक, रक्तदोष, मूर्छा, अतिसार, अर्श, रक्त पित्त, प्रदन, गर्भस्राव, गर्भपात, यौन रोग, मूत्रकृच्छ इत्यादि में विशेष लाभकारी है। दूर्वा कान्तिवर्धक, रक्त स्तंभक उदय रोग, पीलिया इत्यादि में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है।

औषधि प्रयोग


1. दूब के काढ़े से कुल्ले करने से मुँह के छाले मिट जाते हैं।
2. नकसीर में इसका रस नाक में डालने से लाभ होता है।
3. दूब के रस को हरा रक्त कहा जाता है। इसे पीने से एनीमिया ठीक हो जाता है।
4. इस पर नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढ़ती है जिससे लोगों को कम क्षमता वाले चश्मा लगने लगे।
5. दूब कुष्ठ (कोढ़) दाँतों का दर्द, पित्त की गर्मी के लिये लाभदायक है। इसका लेप लगाने से खुजली शांत हो जाती है।
6. दूर्वा में रक्त में ग्लूकोज के स्तर को कम करने की क्षमता होती है। इसी कारण मधुमेह रोग नियंत्रित करने में सहायक है।
7. दूर्वा घास शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को उन्नत करने में सहायक होती है। इसमें एन्टीवायरल और एन्टी माइक्रोबियल (रोगाणुरोधी बीमारी को रोकने की क्षमता) गुण होने के कारण यह शरीर के किसी भी बीमारी से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है।
8. दूर्वा के प्रयोग से स्त्रियों के स्वास्थ्य सम्बन्धी कई समस्या जैसे सफेद यौन स्राव, बवासीर आदि से राहत मिलती है। इसीलिये दही के साथ दूर्वा घास को मिलाकर सेवन करते हैं।
9. महिलाओं में जो माँ बच्चों को दूध पिला रही है, उनके लिये लाभकारी है क्योंकि प्रोलेक्टिन हार्मोन को उन्नत करने में भी मदद करती है।
10. दूर्वा घास के लगातार सेवन से पेट की बीमारी को खतरा कुछ हद तक कम होने के साथ पाचन शक्ति भी बढ़ती है। यह कब्ज, एसिडिटी से राहत दिलाने में मदद करती है।
11. दूर्वा घास फ्लेवनाइड का मुख्य प्रधान स्रोत होता है। जिसके कारण यह अल्सर रोग को रोकने में मदद करती है।
12. यह सर्दी, खाँसी एवं कफ विकारों को समाप्त करने में सहायक है।
13. दूर्वा मसूड़ों से रक्त बहने और मुँह से दुर्गन्ध निकलने की समस्या (पायरिया) से राहत दिलाती है।
14. दूर्वा घास त्वचा सम्बन्धी बीमारियों में भी सहायक होती है। इसमें एन्टी इन्फ्लेमेटरी (सूजन और जलन को कम करने वाला) एन्टीसप्टिक गुण होने के कारण त्वचा सम्बन्धी कई समस्याओं जैसे खुजली, त्वचा पर चकत्ते और एक्जिमा आदि समस्याओं से राहत दिलाने में मदद करती है। दूर्बा घास को हल्दी के साथ पीसकर पेस्ट बनाकर त्वचा के ऊपर लगाने से त्वचा सम्बन्धी कुछ समस्याओं से राहत मिलती है। कुष्ठ रोग और खुजली जैसी समस्याओं से राहत दिलाने में सहायता करती है।
15. दूर्वा रक्त को शुद्ध करती है एवं लाल रक्त कणिकाओं को बढ़ाने में भी मदद करती है जिसके कारण हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है।
16. दूर्वा रक्त में कोलेस्ट्राल, एच.डी.एल., वी.एल.डी.एल. के स्तर को कम करके हृदय को मजबूती प्रदान करती है।
17. इसके रस में बारीक पिसा नाग केशर और छोटी इलायची मिलाकर सूर्योदय के पहले छोटे बच्चों को नस्य दिलाने से वे तंदुरुस्त होते हैं।
18. दूर्वा घास पौष्टिकता से भरपूर होने के कारण शरीर को सक्रिय और ऊर्जायुक्त बनाये रखने में बहुत सहायता करती है। यह अनिद्रा रोग, थकान, तनाव जैसे रोगों में प्रभावकारी है।
19. सुबह नंगे पाँव हरी दूब वाली घास पर चलने से माइग्रेन रोग दूर होता है। ओसयुक्त दूब घास हमारे लिये एक्यूप्रेसर का काम करती है। वैसे आँख की रोशनी बढ़ाने के लिये बहुत सहायक होती है क्योंकि विटामिन ‘ए’ हमें मिलता है। और इस प्रक्रिया से लोगों के चश्मे भी उतरने लगे हैं।
20. दूब के रस में अतीस के चूर्ण को मिलाकर दिन में दो-तीन बार चटाने से मलेरिया में लाभ होता है।

मधुमेह प्रबन्धन में सहायक - दूब घास मधुमेह रोगी के लिये बहुत लाभदायक होती है। हर्बल जानकारों के अनुसार करीब 10 ग्राम ताजी दूब घास एकत्रित करके साफ धोकर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें और उसे पानी में उबाल लें। फिर छानकर ठंडा करके खाली पेट सेवन करके मधुमेह बहुत हद तक नियंत्रित रहेगी।

प्रयोग द्वारा सिद्ध किया गया है कि सामान्य चूहे में 23 प्रतिशत ब्लड शुगर लेवल कम करने में सहायक होती है और मध्यम मधुमेह रोगी का 31 प्रतिशत और अधिक मधुमेह रोगी का 59 प्रतिशत ब्लड शुगर लेवल कम कर देती है और साथ-साथ ही शरीर का वजन दो सप्ताह में बढ़ने लगता है। जोकि टाइप-1, टाइप-2 मधुमेह रोगी के लिये दूब घास बहुत अदिक लाभकारी है और टोटल कोलेस्ट्रॉल लो डेन्स्टी लेवल, टोटल टी.जी. लेवल बहुत हद तक कम कर देती है।

हिन्दू समाज में शुभ कार्य जैसे पूजा-पाठ, शादी विवाह, गृह प्रवेश के लिये दूब घास का सदैव प्रयोग किया जाता है, क्योंकि भगवान गणेश को दूब घास से ही नहलाया जाता है। हमने कभी यह नहीं देखा है कि पशुओं में मधुमेह रोग पाया जाता है क्योंकि उनका मुख्यतः आहार दूब घास ही है जिससे वह सदैव स्वस्थ्य रहते हैं।

संदर्भ


1. धर, एम.एल.; ध्वन एम. एवं मल्होत्रा सी.एल. (1968) इण्डियन जनरल ऑफ एक्सपेरिमेन्टल बायोलॉजी, खण्ड-6, मु.पृ.-232-245।
2. कृतिकर, के.के. एवं बसु, बी.डी. (1980) इण्डियन मेडीसिनल प्लान्ट, खण्ड-द्वितीय, मु.पृ.-2650 से 2655।
3. अहमद, ए. अख्तर एम.एस. एवं मलिक, टी. (2000) फाइटोथेरैपी रिसर्च, खण्ड-14, मु.पृ-103-106।
4. डे, सी. (1998) ब्रिटेन जनरल ऑफ न्यूट्रीशन, खण्ड-80, मु.पृ.-506।
5. बेले, एल.जे. एवं डे,सी. (1989) डायबटीज़ केयर, खण्ड-12, मु.पृ.-553-554।
6. चोपड़ा, आर.एन. एवं हॉण्डा के. एल. (1982) इन्डीजीनियश ड्रग्स ऑफ इण्डिया, खण्ड-2, मु.पृ.-504-506।
7. अहमेद एस. एवं रिजा, एम.एस. जब्बार (1994) फाइटोथेरेपिया, खण्ड-65, मु.पृ.-463-464।
8. कृतिकर, के.आर. एवं बसु बी.डी. (1933) इण्डियन मेडिसिनल प्लान्ट, खण्ड-4, मु.पृ.-10-2.0।
9. सिंह सन्तोष कुमार एवं गीता वातल (2009) इण्डियन जनरल ऑफ क्लीनिकल बायोकेमिस्ट्री, खण्ड-24(4), मु.पृ.-410-413।
10. राव, वी.के. एवं गिरि आर. ए. (1999) जनरल ऑफ इथनोफर्माकोलॉजी, खण्ड-67, मु.पृ.-103-109।
11. सिंह, सन्तोष कुमार एवं गीता, वातल (2007) जनरल ऑफ इथनोफर्माकालॉजी, खण्ड-114, मु.पृ.-174-179।
12. सिंह, सन्तोष कुमार एवं गीता, वातल (2007) जनरल ऑफ इकेम, खण्ड-17, मु.पृ.-1-7।
13. सिंह, सन्तोष कुमार एवं गीता, वातल (2008) जनरल ऑफ इकोफिजियोलॉजिकल एक्यूपेसनल हेल्थ, खण्ड-8, मु.पृ. 195-199।
14. सिंह, सन्तोष कुमार (2015) अनुसंधान विज्ञान शोध पत्रिका, खण्ड-3, अंक-1, मु.पृ.-219-222।

लेखक परिचय


सन्तोष कुमार सिंह
सहायक प्रोफेसर, रसायन विज्ञान विभाग, श्री जय नारायण महाविद्यालय, लखनऊ-226001, उ.प्र. भारत, santoshsinghjnpg@gmail.com
प्राप्त तिथि-04.07.2016 स्वीकृत तिथि-27.09.2016

Path Alias

/articles/dauuba-ghaasa-kae-ausadhaiya-gauna-medicinal-use-cynodon-dactylon

Post By: Hindi
×