दुर्दैवी शिवनाथ

[‘शिवनाथ और ईब’ लेख में जिसका जिक्र आया है, उस लोककथा का सार बेमेतरा-द्रुग से लिखे हुए नीचे के पत्र में मिलेगा।]

कल और आज शिवनाथ नदी के दर्शन किये। यों तो कलकत्ता आते और जाते समय शिवनाथ को एक-दो बार पार करना ही पड़ता है। यहां बड़े ऊंचे पुल पर से शिवनाथ का प्रवाह ऊंचे-ऊंचे टीलों के बीच से बहता हुआ देखने को मिलता है। कल शाम को बालोड़ से वापस लौटे तब शिवनाथ के किनारे खास तौर पर घूमने गये थे।

चौमासा तौ बैठ गया है, किन्तु नदी में अभी तक पानी नहीं आया है। परिणामस्वरूप शिवनाथ किसी विरहिणी के जैसी म्लान-वदना मालूम पड़ी। श्रावण भादों में जो अपने दोनों किनारों को लांघकर मीलों तक फैल जाती है, उसी नदी को इस तरह अपने ही पट में अजगर के समान एक कोने में पड़ी हुई देखकर किसी के भी मन में विषाद उत्पन्न हुए बिना नहीं रहेगा।

द्रुग के लोगों से शिवनाथ के बारे में मैंने पूछाः ‘यह नदी कहां से आती है? कितनी लंबी है? आगे उसका क्या होता है?’ परन्तु कोई मुझे ठीक जवाब नहीं दे सका। इस नदी का माहात्म्य का वर्णन पुराणों में कहीं है? उसके बारे में कोई लोकगीत प्रचलित है? कोई दंतकथा सुनाई देती है? एक भी सवाल का जवाब ‘हां’ में नहीं मिला। नदी के बारे में जानने जैसा होता ही क्या है? रोज सुबह उससे सेवा लेते हैं; बस उससे अधिक उसका हमारे जीवन से क्या संबंध है?

अंत में मैंने द्रुग तहसील का गेझेटियर मंगवाया। उसमें ऊपर के साधारण सवालों के जवाब तो दिये ही है; मगर इसके अलावा शिवनाथ के बारे में एक लोक कथा भी दी हुई है। यही कथा आज मैं यहां अपनी भाषा में देना चाहता हूं।

शिवा नामक एक गोंड़ लड़की थी। जंगली गोंड़ जाति की होते हुए भी वह संस्कारी और रसिक थी। उस पर गोंड़ जाति के ही एक लड़के का दिल बैठ गया। लड़की के दिल को आकर्षित कर सके, ऐसा एक भी गुण उसमें नहीं था। स्वच्छंदता से पेश आना और धमकियां देकर लोगो से काम निकालना, बस इतना ही उसे मालूम था। वह शिवा का ध्यान करता रहता था और उसे पाने का कोई रास्ता न देखकर परेशान होता रहता था। आखिर अपनी जाति के रिवाज के अनुसार उसने मौका देखकर शिवा का हरण किया और राक्षस-पद्धति से उसके साथ विवाह किया!

विवाह-विधि पूरी करना उसके लिए आसान था; मगर शिवा को अपनी बनाना आसान काम नहीं था। शिवा जैसी संस्कारी और भावनाशील लड़की उसकी ओर भला क्यों देखने लगी? और यह जड़मूढ़ अनुनय जैसी चीज को क्या समझे? उसने पति की हुकूमत चलाने की कोशिश की। लड़की ने अबला का सामर्थ्य प्रकट किया। शिवा को लूटकर लाने वाला युवक शिवा के रूद्ध हृदय के सामने हारा। उसका क्रोध भड़क उठा शरीर को ही सब-कुछ समझनेवाला आदमी शरीर के बाहर जा ही नहीं सकता। उसने अंत में शिवा को मार डाला और उसके शरीर के टुकड़े एक गहरी घाटी में फेंक दिए!!

जहां शिवा का शव गिरा वहीं से तुरन्त एक नदी बहने लगी। वहीं है हमारी यह शिवनाथ, जो आगे जाकर महानदी में अपना पानी छोड़ देती है।

आज सुबह हम बेमेतरा जाने के लिए निकले। रास्ते में एक दुर्घटना हुई। हमारी दौड़ती हुई मोटर एक बैलगाड़ी से टकरा गई और एक बैल का सींग टूट गया। हम रुके और उसकी मदद करने के लिए दौड़े मुझे बैल का लटकने वाला सींग काटने की सलाह देनी पड़ी। और जहां से खून बह रहा था वहां पेट्रोल की पट्टी बांधनी पड़ी। सारा वायुमंडल करुण तथा गमगीन बन गया। इस हालत में शिवनाथ का दुबारा दर्शन हुआ। यहां नदी का पट सुन्दर है। आसपास के पत्थर जामुनी लाल रंग के थे। नदी का पात्र भी सुन्दर था। प्रतिबिंब काव्यमय मालूम होता था। मगर शिवा की करुण कथा मन में रम रही थी। अतः इस दर्शन में भी विषाद की ही छाया थी।

शायद शिवनाथ की तकदीर ही ऐसी हो। आखिर मन का विषाद करने के लिए यह पत्र लिख डाला। अब दिल कुछ हलका मालूम होता है।

मई, 1940

Path Alias

/articles/dauradaaivai-saivanaatha

Post By: Hindi
×