दुनिया के लिए खतरा है ई-कचरा

दुनिया के लिए खतरा ई-कचरा।
दुनिया के लिए खतरा ई-कचरा।

हममें से ज्यादातर लोग भूल गए हैं कि हमारे संसाधन सीमित हैं और विकास की तीव्र और अनियोजित गति पर्यावरण को भारी क्षति पहुँचा रही है। सच है कि प्रदूषण बड़े उद्योगों के कारण होता है, लेकिन क्या व्यक्ति के रूप में हम इसमें योगदान देने के अपराध बोध से पूरी तरह मुक्त हैं ? ऐसा नहीं लगता। व्यक्तिगत स्तर पर शुरुआत करते हुए हमें सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में योगदान करना सुनिश्चित करना चाहिए। स्वच्छ भारत आन्दोलन का ही उदाहरण लें, जिसमें सभी नागरिकों का ही उदाहरण लें। जिसमें सभी नागरिकों से अपने आस-पास का क्षेत्र स्वच्छ रखने का आग्रह किया जा रहा है। वास्तव में यह आन्दोलन प्रदूषण रोकने की दिशा में हुई अन्य पहलों की तुलना में अधिक प्रभावी है क्योंकि इसे समुदाय से जोड़ा गया है, जागरूकता पैदा की गई है और असंगठित अपशिष्ट निपटान को रोकने के लिए कचरे के पृथक्करण और रीसाइक्लिंग की प्रक्रियाओं को समाहित करने वाली व्यवस्था पैदा करने की सम्भावना बनाई गई है। इस अभियान के कारण प्लास्टिक अब जल निकायों तक नहीं पहुँचेगा और नमामि गंगे जैसी परियोजनाएँ सुनिश्चित कर रही हैं जल में मौजूद प्रदूषकों को हटाया जाए।
 
प्रौद्योगिकी का प्रभाव सभी उद्यमों पर हुआ है, चाहे कृषि हो, वित्त हो, खुदरा व्यापार हो या फिर उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स। जनवरी 2016 में संयुक्त राष्ट्र ने सतत विकास लक्ष्यों की एक सूची जारी की थी जिसमें जलवायु परिवर्तन, आर्थिक विषमता, नवाचार, सतत उपभोग एवं उत्पादन, सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा जैसी बातों पर जोर दिया गया था। दुनियाभर के तकनीकी विशेषज्ञ इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए तकनीकी शोध और विकास में जुटे हुए हैं। आज के दौर में कृत्रिम बुद्धिमत्ता दुनिया में क्रान्तिकारी बदलाव ला रहा है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता का तब उपयोग होता है जब हम चाहते हैं कि हमारे उपकरण बिल्कुल नई परिस्थितियों के अनुरूप खुद को ढालनें या सुधारने में सक्षम हों या किसी वर्तमान प्रक्रिया को ज्यादा दक्षता से पूरा कर सकें। यह संसाधनों का उपयोग सीमित करने और प्रक्रियाओं को (जैसे निर्माण आदि) ज्यादा दक्षता तथा कम ऊर्जा खपत के साथ पूरा करने में मददगार है। यह प्रौद्योगिकी उन समस्याओं का समाधान करने मं मदद कर सकती है जिसे दिक-काल की बाधाओं के कारण मानव मस्तिष्क कर पाने में अक्षम है।

वर्तमान में भारत में लगभग 25 करोड़ पर्सनल कम्प्यूटर (पीसी) हैं। कोई पीसी या फोन जब बेकार हो जाता है तो इसे आमतौर पर अन्य अपशिष्ट पदार्थों के साथ फेंक दिया जाता है। भारत में हर साल लगभग 20 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है और 2018 में भारत में उत्पन्न कुल ई-कचरे में से केवल 1.8 प्रतिशत का उपचार किया गया था। इस ई-कचरे में कोबाल्ट और सिल्वर जैसी धातुएँ तथा सिलिकॉन और जर्मेनियम जैसे अन्य तत्व होते हैं जिनका उपयोग दूसरे कम्प्यूटरों के निर्माण के लिए किया जा सकता है।

चौथी औद्योगिक क्रान्ति बड़ी तकनीकी सफलताओं के अलावा बेहतर कम्प्यूटिंग क्षमताएँ भी ले आई हैं। क्लाउड प्रौद्योगिकी के आगमन के साथ बड़े शक्तिशाली कम्प्यूटरों का व्यक्तिगत स्वामित्व अनावश्यक हो गया है। सभी प्रमुख एप्लिकेशन क्लाउड सेवाओं के रूप में उपलब्ध हैं और किसी उपयोगकर्ता को अब सॉफ्टवेयर की सीडी/डीवीडी खरीदने की जरूरत नहीं रह गई है। सर्वरों के प्रबन्धन के मामले में राहत मिली है और ज्यादातर संगठन अब अपने पास महंगे हार्डवेयर रखने के बजाय क्लाउड प्लेटफॉर्म पर निर्भर हैं। इससे सुनिश्चित हुआ है कि प्रत्येक संगठन अपने पास बहुत सारे हार्डवेयर रखने, जिनकी क्षमता का 100 प्रतिशत उपयोग भी नहीं हो पाता था, के बजाय सामान्य प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हुए ई-कचरे का उत्पादन रोकने और बिजली का उपयोग सीमित करने में योगदान कर सके। बेहतर कम्प्यूटरों और इस दिशा में शोध के हालिया रुझान के कारण हाल के वर्षों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी तकनीकों में अचानक वृद्धि हुई है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता जटिल समस्याओं को हल करने में सक्षम है, जैसे ड्रोन का उपयोग करके आपदा प्रभावित क्षेत्रों में फंसे लोगों का पता लगाना और कुंभ मेले जैसी बड़ी और दीर्घकाल तक चलने वाली परिघटनाओं का प्रबन्धन करना आदि। इन सभी समाधानों के परिणामस्वरूप सतत विकास सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।
 
पहली औद्योगिक क्रान्ति के दौरान अस्तित्व में आने के बाद से ही स्वचालन का हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ा है। फोर्ब्स के एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत के विनिर्माण क्षेत्र में प्रत्येक 10,000 कर्मचारियों पर तीन औद्योगिक रोबोट हैं। अब यह संख्या बढ़ने की सम्भावना है क्योंकि इनके लिए दीर्घकालिक निवेश की आवश्यकता होती है तथा अब उद्योगों का आधुनिकीकरण सुनिश्चित करने के लिए हमारे पास एक स्थिर सरकार है। औद्योगिक रोबोटों की कार्य क्षमता ऊँची होती है और उनकी मदद से बेहतर उत्पादन होता है। इनसे पूँजी बचाई जा सकती है और कामगारों को कम श्रम-गहन कार्यों पर लगाया जा सकता है। रोबोट उन परिस्थितियों में भी काम करने में सक्षम होते हैं जो मानव के लिए उपयुक्त नहीं हैं। उदाहरण के लिए, जापान के परमाणु संयंत्रों में बड़ी संख्या में ज्यादा सुरक्षित रहती हैं।
 
लेकिन ये सभी तकनीकी प्रगतियाँ ई-कचरा पैदा करती हैं। इसीलिए जब भी इनका कोई घटक अनुपयोगी हो जाने के कारण बदला जाए तो पर्यावरण पर उसके बुरे प्रभाव को रोकने के लिए उसका उचित उपयोग किया जाना चाहिए। व्यक्तिगत कम्प्यूटरों और स्मार्टफोन का चलन आम होने के बाद से ई-कचरे का प्रबन्धन एक प्रमुख चिंता का विषय रहा है। वर्तमान में भारत में लगभग 25 करोड़ पर्सनल कम्प्यूटर (पीसी) हैं। कोई पीसी या फोन जब बेकार हो जाता है तो इसे आमतौर पर अन्य अपशिष्ट पदार्थों के साथ फेंक दिया जाता है। भारत में हर साल लगभग 20 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है और 2018 में भारत में उत्पन्न कुल ई-कचरे में से केवल 1.8 प्रतिशत का उपचार किया गया था। इस ई-कचरे में कोबाल्ट और सिल्वर जैसी धातुएँ तथा सिलिकॉन और जर्मेनियम जैसे अन्य तत्व होते हैं जिनका उपयोग दूसरे कम्प्यूटरों के निर्माण के लिए किया जा सकता है।
 
इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से घटकों या कम कीमती सामग्रियों को निकालने की लागत को इससे होने वाले मुनाफे की तुलना में काफी महंगा माना जाता है, इसलिए लोगों को लगता है कि इन सामग्रियों को निकालना व्यवहार में सम्भव नहीं है और आमतौर पर फेंक दिया जाता है। हालांकि, यह सच नही है। ई-कचरा रीसाइक्लिंग व्यवसाय बहुत ही लाभदायक है और भारतीय बाजार में इसकी बड़ी सम्भावना है। प्रौद्योगिकी केवल हमारे जीवन को आसान बनाने का उपकरम है और इसी बिन्दु तक यह हमारे लिए वास्तव में उपयोगी है, लेकिन अगर हम अपने ग्रह का दोहन बंद नहीं करते हैं, तो कोई भी प्रौद्योगिकी हमें कयामत से नहीं बचा सकेगी। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम प्रौद्योगिकी का विकास और उपयोग इस स्थायित्वपूर्ण तरीके से करें कि इससे हमारी आने वाली पीढ़ियों को नुकसान न हो।

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