पानी की माँग बढ़ने के साथ-साथ इससे जुड़े विवाद भी बढ़ते जा रहे हैं। नदियों का पानी साझा करने वाले पड़ोसी देशों के बीच संघर्ष बढ़ रहे हैं। ऐसे जल विवाद अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के विकासशील देशों को विशेष तौर पर प्रभावित कर रहे हैं..
पानी से जुड़े विभिन्न प्रकार के संघर्षः
1. विकास पर विवाद
जहाँ जल संसाधन आर्थिक और सामाजिक तरक्की का मुख्य वाहक है।
2. सैन्य हस्तक्षेप
जहाँ किसी देश द्वारा सैन्य हथियार के रूप में जलस्रोतों का प्रयोग किया जाता है।
3. राजनीतिक हस्तक्षेप
जहाँ कोई देश, राज्य या गैर-राज्य संगठन राजनीतिक हितों के लिये जल संसाधनों को हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है।
4. आतंकवाद
जहाँ कोई देश या आतंकी संगठन हिंसा या प्रताड़ना के लिये जलस्रोतों को हथियार बनाता है।
वैश्विक परिदृश्य | |
45 % | पृथ्वी की सतह का क्षेत्र पानी से घिरा |
276 | धरती पर सीमावर्ती बेसिन की कुल संख्या |
148 | देश सीमावर्ती बेसिनों से सटे |
3,600 | कुल अन्तरराष्ट्रीय जल संधियाँ |
40 % | जल-विवाद क्षेत्रों में दुनिया की आबादी |
इजराइल, फलस्तीन, जॉर्डन और लेबनान
जॉर्डन नदी के पानी के बँटवारे के लिये इजराइल, लेबनान, जॉर्डन और फलस्तीन लम्बे समय से संघर्षरत है। वर्ष 1967 में पश्चिमी तट पर कब्जे के बाद इजराइल ने इस क्षेत्र के जल संसाधनों पर नियंत्रण कर लिया था और तब से इन्हें अपनी मर्जी से इस्तेमाल कर रहा है। जून 2016 में इजराइल ने उत्तरी पश्चिमी तट के फलस्तीनी क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति बहुत कम कर दी थी।
एल साल्वाडोर, ग्वाटेमाला
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा खनिजों के अंधाधुंध दोहन से सतही जल के प्रदूषित होने के कारण तीन मध्य अमेरिकी देशों को नागरिक अशांति और बड़ी संख्या में लोगों के पलायन का सामना करना पड़ा। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या वृद्धि के कारण भविष्य में इस क्षेत्र में पानी की स्थिति और गंभीर होने वाली है।
ब्राजील
लगातार सूखे के कारण वर्ष 2015 में ब्राजील के दो सबसे बड़े शहर साओ पाउलो और रियो डी जेनेरियो सूखे रहे। पानी की इतनी कमी हो गई कि स्थानीय निवासियों को शुद्ध पेयजल के लिये दूसरे क्षेत्रों की ओर पलायन करना पड़ा।
अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान
ताजिकिस्तान मध्य एशिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक अमुदरया की सहायक नदी पर रोगुन डैम बनाना चाहता है। यह नदी युद्ध-प्रभावित अफगानिस्तान से शुरू होकर ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों से बहती है। परियोजना के पूरा होने पर यह दुनिया का सबसे लम्बा बाँध होगा। कृषि के लिये पानी की उपलब्धता में कमी की आशंका के चलते उज्बेकिस्तान ने ताजिकिस्तान पर व्यापारिक और परिवहन प्रतिबंध लगा दिए हैं।
भारत, पाकिस्तान और चीन
जल बँटवारे को लेकर अपने दो पड़ोसी देशों के साथ भारत की खींचतान का असर इनके साथ सम्बन्धों पर भी पड़ा है। आजादी के समय से ही पाकिस्तान के साथ सिंधु नदी को लेकर विवाद है। साठ के दशक में एक संधि के माध्यम से आंशिक निपटारा हुआ, लेकिन बीते दिनों पाकिस्तान द्वारा आतंकी गतिविधियों के बाद यह विवाद फिर गहरा गया है। चीन के साथ 1962 में युद्ध के बाद से ही ब्रह्मपुत्र के जल बँटवारे को भारत का विवाद जारी है।
लाओस, कंबोडिया, विएतनाम और थाईलैण्ड
लाओस द्वारा मेकोंग नदी के मुख्य मछली केन्द्र पर डोन सहोंग पनबिजली परियोजना के निर्माण से नदी के किनारे रहने वाले लाखों लोगों की आजीविका पर असर पड़ा है। कंबोडिया, विएतनाम और थाईलैण्ड में मछली के कारोबार के प्रभावित होने से ये देश इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं।
नाइजीरिया
नाइजर डेल्टा में पानी की कमी का मुख्य कारण जनसंख्या विस्फोट और प्रदूषण है। स्थिति इतनी गम्भीर है कि वर्ष 1992 से ही क्षेत्र में जलस्रोतों पर अधिकार के लिये किसानों और चरवाहों के बीच लगातार झड़पें हो रही हैं। आतंकवादी संगठन बोको हरम की गतिविधियों ने क्षेत्र में पानी के संकट को और गहरा दिया है।
इथियोपिया, मिस्र
इथियोपिया ने वर्ष 2011 में नील नदी पर बिजली पैदा करने के लिये रेनेसांस बाँध बनाना शुरू किया। इस परियोजना का नदी के निचले इलाकों में पानी की आपूर्ति पर व्यापक प्रभाव होने की आशंका है, खासकर मिस्र में, जिसके कारण मिस्र लगातार इसका विरोध कर रहा है। यह बाँध वर्ष 2017 में बनकर तैयार होगा।
दक्षिण अफ्रीका
यह देश लगातार पानी और ऊर्जा संकट से जूझ रहा है, जिसके कारण नागरिक अशांति फैल रही है। पिछली बार बड़े प्रदर्शन वर्ष 2014 में हुए थे, जिनमें उत्तरी क्षेत्र के ब्रिट्स कस्बे में अनेक लोग मारे गए।
सीरिया, तुर्की और इराक
तुर्की की तिगरिस नदी पर इलिसू बाँध बनाने की योजना है, जो तिगरिस-यूफारेट्स बेसिन पर 22 बाँध और 19 बिजली परियोजनाओं वाले साउथ ईस्टर्न अनातोलियन प्रोजेक्ट का हिस्सा है। सीरिया और इराक तुर्की की परियोजना को बड़ा खतरा मानते हैं, क्योंकि तिगरिस नदी इराक की 98 प्रतिशत पानी की जरूरतों और यूफारेट्स नदी सीरिया की 90 प्रतिशत जरूरतों को पूरा करती हैं। कुछ विश्लेषक उत्तरी इराक और सीरिया क्षेत्र में आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों के उभार के लिये पानी के वर्तमान संकट को जिम्मेदार मानते हैं।
इतिहास : मानव सभ्यता जितनी ही पुरानी हैं जल संधियाँ
अन्तरराष्ट्रीय जल समझौतों का इतिहास 2500 ईसा पूर्व काल तक मिलता है, जब सुमेरियन सभ्यता के नगरों लगास और उम्मा के बीच तिगरिस नदी पर जल विवाद को समाप्त करने के लिये सहमति बनी थी। यह अपनी तरह की पहली जल संधि कही जाती है। खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, वर्ष 805 ईस्वी से अब तक अन्तरराष्ट्रीय जल संसाधनों से सम्बन्धित 3600 से अधिक समझौते हो चुके हैं। इनमें से अधिकतर संधियाँ जल परिवहन और सीमा निर्धारण से जुड़ी हैं। |
डीटीई/सीएसई डेटा सेंटर द्वारा तैयार
इंफोग्राफिकः राज कुमार सिंह
डेटा स्रोतः संयुक्त राष्ट्र, पैसिफिक इंस्टीट्यूट, ग्लोबल वॉटर पार्टनरशिप, यूएस सेंट्रल इंटेलिजेन्स, एजेन्सी और न्यूज रिपोर्ट, अन्य इंफो ग्राफिक के लिये www.downtoearth.org.in/infographics पर जाएँ। विवादित क्षेत्रों की जानकारी वर्ष 2000 और 2016 के बीच की अवधि की है।
/articles/daunaiyaa-bhara-maen-jala-vaivaada-worldwide-water-dispute